सांई राम।।।
नवरात्र: शक्ति की उपासना का उत्तम काल
यादेवी सर्वभूतेषू शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
जो देवी संसार के समस्त प्राणियों में शक्ति के रूप में स्थित हैं, उस शक्ति स्वरूपा पराम्बा माता दुर्गा को बारम्बार नमस्कार है।
संसार में जितनी वस्तुएं दिखाई देती हैं। सभी के अधिष्ठात्र देवता बतलाए गए हैं, परंतु अति महत्वपूर्ण है, शक्ति एवं शक्ति का उपयोग। शक्ति के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। यदि यह कहा जाए कि शक्ति का प्रयोग न जानने वाला शक्ति होते हुए भी शक्ति विहीन है। परिणामस्वरूप श्री दुर्गा सप्तशती में मधु कैटभ, चामुण्ड, इत्यादि ऐसे भयंकर असुरों का वर्णन आता है, जिनके पास अथाह शक्ति थी। परंतु उस शक्ति का उपयोग अति निकृष्ट था। श्री दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में दो ऐसे असुरों का वर्णन मिलता है, जिन्होंने भगवान विष्णु से कई वर्ष तक युद्ध किया। भगवान विष्णु ने चिंतन किया कि इन्हें शक्ति प्राप्त है। युद्ध से जीता नहीं जा सकता। महामाया की प्रेरणा से बुद्धिरूप में स्थित देवी का ध्यान किया और उन दैत्यों से कहा कि हम तुमसे अति प्रसन्न हैं, वर मांगो। दैत्यों ने हंस कर कहा की वर तुम नहीं हम देंगे, क्योंकि हमारे पास शक्ति है। मांगो क्या मांगते हो। भगवान विष्णु ने कहा कि यदि तुम दोनों हमसे प्रसन्न हो तो मुझे यह वर दो कि तुम दोनों मेरे हाथों मारे जाओ। और उन्हें वर देना पड़ा तथा वरदान के बाद उनका बध हो गया। शक्ति का उपयोग शक्तिमान व्यक्ति उचित तरीके से नहीं करता है, तो उसका विनाश शीघ्र हो जाता है। परंतु शक्ति अर्जित कैसे की जाए, यह विचारणीय प्रश्न है।
वर्ष में चार नवरात्रों का वर्णन मिलता है। दो गुप्त एवं दो प्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष दो नवरात्रों में एक को शारदीय नवरात्र व दूसरे को वासन्तिक नवरात्र कहा जाता है। शारदीय अर्थात शरद ऋतु में पड़ने वाला नवरात्र। नवरात्र में नव शब्द संख्यावाची भी है तथा नवीनता का द्योतक भी। नवदुर्गा: प्रकीर्तिता: के अनुसार माता दुर्गा के नव स्वरूपों का वर्णन मिलता है और ये स्वरूप नवीन है, नए-नए हैं। अर्थात् माता दुर्गा के नवों स्वरूपों में उल्लास के साथ रत हो जाना, लग जाना, ध्यानावस्थित हो जाना, नवरात्र की एक परिभाषा हो सकती है।
अब किसी नवीनता को प्राप्त करने के लिए प्राचीनता को बदलना होगा, इस पर विचार करना होगा। इस परिपे्रक्ष्य में पौरोहित्य शास्त्र पहला सूत्र देता है, संकल्प का। संकल्प का अर्थ है सम्यक् तरीके से कल्पना की जाए। आज कल्पना ही सम्यक् नहीं है। सम्यक् शब्द का अभिप्राय उचित है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को शक्ति के अर्जन में प्रथम पीढ़ी के रूप में संकल्प लेना चाहिए।
नवरात्र की पूर्व संध्या में मन में साधक यह संकल्प लेता है कि मुझे शक्ति की उपासना करनी है। उसके बाद बनाई गई योजनाओं को कार्यान्वित करना होगा। मानव मस्तिष्क की यह व्यवस्था है कि योजनाओं को किस प्रकार मूर्तरूप प्रदान किया जाए। शक्ति पूजक को चाहिए कि वह रात्रि में शयन ध्यानपूर्वक करें। प्रात: काल उठकर भगवती का स्मरण कर ही नित्य क्रिया प्रारम्भ करनी चाहिए। नीतिगत कार्यो से जुड़कर अनीतिगत कार्यो को उपेक्षित करनी चाहिए। सत्य का आचरण करना चाहिए। आहार संबंधी पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए। दूसरे के अपकार का चिंतन न करें। नवरात्र में सम्यक् प्रकार से सत्याचरण करते हुए व्यक्ति शक्ति का अर्जन कर सकता है।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
जय सांई राम।।।
नवरात्रि साधना एक संकल्पित साधना है
नवरात्र विशेष प्रकार की साधना का समय है। यह वर्ष में दो बार आता है। एक चैत्र माह में, दूसरा आश्विन माह में। हमारे धर्म ग्रंथों में इसे विशेष महत्व दिया गया है और ऋषि-मुनियों ने इसे सामूहिक उपासना का समय बताया है।
विशेष साधना का क्या मतलब? मतलब यह है कि इस अवधि में साधना करने का निश्चय आप स्वयं करते हैं। वह साधना किस प्रकार करेंगे, यह भी आप ही तय करते हैं। आप पर कोई बंधन नहीं है। इसीलिए नवरात्रों में कई तरह की उपासनाएं प्रचलित हैं। राम भक्त इन दिनों में रामायण पाठ या राम के चरित्र का विशेष अध्ययन करते हैं, कृष्ण भक्त गीता आदि का परायण करते हैं। देवी उपासक इन दिनों भगवती दुर्गा के लिए व्रत-उपवास रखते हैं। कुछ लोग तांत्रिक साधनाएँ करते हैं। नवरात्रों में गायत्री मंत्रों के जप की भी परंपरा है। ऐसी ही कई और तरह की साधनाएं प्रचलित हैं।
नवरात्रों का समय दो ऋतुओं के मिलन का समय है- सर्दी और गर्मी के मौसम का मिलन। इस ऋतु परिवर्तन के समय सूक्ष्म जगत में अनेक प्रकार की हलचलें होती हैं। शरीर से लेकर पूरे चेतन जगत में ज्वार-भाटा जैसी हलचलें पैदा होती हैं। जीवनी शक्ति शरीर में जमी हुई विकृतियों को बाहर निकालने का प्रयास करती है। अंतरिक्ष शक्तियां हमारे शरीर, मन और अंत:करण का कायाकल्प करने का प्रयास करती हैं।
वैसे तो ईश्वर ने सारे दिन पवित्र बनाए हैं। शुभ कर्म करने के लिए हर घड़ी शुभ मुहूर्त है। फिर भी प्रकृति और ऋतु का सहयोग मिले तो और अच्छा है। इसलिए नवरात्रों के समय हम स्वयं साधना करें तो बहुत अच्छा है, क्योंकि इसमें ऋतु भी हमारी सहयोगी होती है। इस समय शरीर मौसम की मार से (अत्यधिक सर्दी या गर्मी) शिथिल नहीं होता। और अपनी आंतरिक शक्तियों को जगाने में प्रकृति हमारी सहायता करती है।
वैदिक साहित्य में नवरात्र की अवधि का विस्तृत वर्णन है। ऋषियों ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है इसका शाब्दिक अर्थ तो नौ रातें ही है, पर इनका गूढ़ार्थ कुछ और है। नौ रातें इस काया रूपी अयोध्या के नौ द्वार अर्थात हमारी नौ इंदियां हैं। जो मनुष्य इन नौ द्वारों- एक मुख, दो नेत्र, दो कान, दो नासिकाएं, मूत्रेन्दिय और गुदा- के विषय में जागरूक रहता है, जो अपनी साधना और संयम से यह सुनिश्चित करता है कि इन नौ द्वारों से कोई शत्रु या विकार प्रवेश न कर पाए, वही अपने मनोरथ पूरे कर पाता है।
नवरात्र की साधना एक संकल्पित साधना है। जैसे कथा-पूजा या यज्ञ के समय हम कोई निश्चित जाप या पूजा करने या दान करने का संकल्प लेते हैं। उसी तरह इस अवधि के लिए भी हम स्वयं ही तय कर सकते हैं कि किस उद्देश्य के लिए, क्या हासिल करने के लिए संकल्प करना है। ऋषियों ने इस समय उपासना का निर्धारण कुछ ऐसा किया है कि वह कर पाना सभी के लिए सुलभ है। इसलिए नवरात्र के दिनों को वर्ष भर के जाने-अनजाने हुए भले- बुरे कृत्यों के प्रायश्चित के लिए तपस्या का भी समय मानना चाहिए।
इसीलिए कुछ लोग नवरात्र के समय गायत्री मंत्रों के जप का भी परामर्श देते हैं। कुछ लोगों के मन में संशय हो सकता है कि नवरात्र तो शक्ति या दुर्गा या राम की उपासना से जुड़े हैं, तब गायत्री का जाप क्यों? दुर्गा कहते हैं- दोष, दुर्गुणों को नष्ट करने वाली महाशक्ति को। नौ रूपों में मां दुर्गा की उपासना इसलिए की जाती है कि वह हमारी इन्दिय चेतना में बसे दुर्गुणों को नष्ट कर दे। हमारी पाप रूपी वृत्तियां ही महिषासुर हैं। नवरात्र में ऐसी प्रवृत्तियों पर मानसिक संकल्प द्वारा अंकुश लगाया और संयम द्वारा दमन किया जाता है। साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा- यह चार आत्मोत्कर्ष के चरण हैं। संयमशील आत्मा को दुर्गा या गायत्री की शक्ति से सम्पन्न कहा गया है। प्राण-चेतना के जगने पर यही शक्ति महिषासुर मदिर्नी बन जाती है।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
Happy Navaratri to All .....
Jai Sai Maa Sai Baba.
ॐ सर्व मंगल मांगल्ये। शिवे सर्वार्थ साधिके।।
शरण्ये त्रियाम्बके गौरी। नारायणी नमोस्तुते।।
जयंती मंगला काली, भद्र काली कृपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिव धात्री, नारायणी नमोस्तुते।
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