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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: rajiv uppal on December 16, 2007, 10:30:16 AM

Title: कबीर (Kabir)
Post by: rajiv uppal on December 16, 2007, 10:30:16 AM
Introduction to Sant Kabir

 Kabirdas, a great devotee, was greatly attracted to the Hindu spiritual
tradition though by birth he was not one and was drawn to saint Ramananda,
whom he recognised as his Guru. Every day he used to stand outside the
gates of the saint's Ashram since he could not muster enough courage
to enter the premises with the fond hope that his presence would be
noticed by his disciples who would convey the matter to the saint.

Days rolled on and his wish remained unfulfilled. At last God Himself
decided to intercede. The saint while going out for his bath overheard the
idols of Rama and Lakshmana in his worship speaking to one another, to
the effect that they should leave the Ashram because a great devotee had
not been welcomed there.

The saint who was not aware of Kabir's daily visit to his Ashram found him
weeping on the banks of the river and in the darkness of the morning hour
stumbled on him and invountarily utterred ``Rama''. Kabir fell prostrate at
his feet in gratitude for he received this utterance as his initiation and the
touch of his Guru's feet as the greatest blessing and became a great saint in
due course. Such was his devotion and faith.


मोको कहां ढूढे रे बन्दे
- कबीर (Kabir)

मोको कहां ढूढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में

ना तीर्थ मे ना मूर्त में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में

मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में

ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं बरत उपास में
ना मैं किर्या कर्म में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में

खोजि होए तुरत मिल जाउं
इक पल की तालाश में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूँ विश्वास में

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English translation by Gurudev Rabindranath Tagore

O Man, where dost thou seek Me?
Lo! I am beside thee.

I am neither in temple nor in mosque:
I am neither in Kaaba nor in Kailash:

Neither am I in rites and ceremonies,
nor in Yoga and renunciation.

If thou art a true seeker,
thou shalt at once see Me:
thou shalt meet Me in a moment of time.

Kabîr says, "O Sadhu! God is the breath of all breath."
Title: Re: मोको कहां ढूढे रे बन्दे- कबीर (Kabir)
Post by: Ramesh Ramnani on December 22, 2007, 01:45:36 AM
जय सांई राम।।।

‘कबीर’ सो धन संचिये, जो आगै कू होइ
सीस चढाये पोटली, ले जात न देख्या कोइ

उसी धन का संचय करो, जो आगे काम आए, तुम्हारे इस धन में क्या रखा है। गठरी सिर पर रखकर किसी को भी आज तक ले जाते नहीं देखा।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: मोको कहां ढूढे रे बन्दे- कबीर (Kabir)
Post by: Ramesh Ramnani on December 22, 2007, 01:46:36 AM
जय सांई राम।।।

‘कबीर’ सो धन संचिये, जो आगै कू होइ
सीस चढाये पोटली, ले जात न देख्या कोइ

उसी धन का संचय करो, जो आगे काम आए, तुम्हारे इस धन में क्या रखा है। गठरी सिर पर रखकर किसी को भी आज तक ले जाते नहीं देखा।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: मोको कहां ढूढे रे बन्दे- कबीर (Kabir)
Post by: tana on December 22, 2007, 04:20:29 AM
ॐ सांई राम~~~

कहे कबीर सुनो भई साधो~~~

कबीर ह्रदय कठोर के, शब्द न लागै सार
सुधि बुद्धि के ह्रदय विधै, उपजे ज्ञान विचार ।


जिनका दिल कठोर होता है , उनके ऊपर शब्द या उपदेश उसी प्रकार कोई असर नहीं करता , जैसे पत्थर पर जल गिरने से कुछ नहीं होता। जिनमें जिज्ञासा,श्रद्धा,प्रेम भरा होता है उन्ही के ह्रदय में ज्ञान प्राप्त करने की तमन्ना होती है ।


जय सांई राम~~~
Title: Re: मोको कहां ढूढे रे बन्दे- कबीर (Kabir)
Post by: tana on December 23, 2007, 06:08:04 AM
ॐ सांई राम~~~

पाहन को क्या पुजिये, जो नहिं दे जवाब |
अंधा नर आशा मुखी, यौं ही खोवाई आब ||


संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि पत्थर को पूजकर क्या करोगे जो आपके प्रश्नों का उत्तर नहीं देता | अज्ञानी मनुष्य ऐसी मिथ्या आशा के सम्मुख अपना महत्त्व खो देता है |
भावार्थ-कबीरदास जी का कहना है कि अगर कोई अज्ञानतावश केवल पत्थर को पूजने से कोई लाभ नहीं है जब तक हम परमात्मा को अपने मन में धारण नहीं करते|

पाहन पूजै हरि मिलै, तो मैं पूंजूं पहार|
ताते तो चक्की भली, पीसि खाए संसार ||


संत कबीरदास जी का कहना है कि यदि पत्थर की पूजने से लाभ होता है तो मैं पत्थर के विशाल रूप पर्वत को पूजने लगूँ जिससे शायद अधिक लाभ हो |यह सब बेकार ह| इससे तो पत्थर के चक्की अच्छी जो आटा पीसने के काम आते है और जिसे पूरा संसार खाता है |

जय सांई राम~~~
Title: Re: मोको कहां ढूढे रे बन्दे- कबीर (Kabir)
Post by: Ramesh Ramnani on December 25, 2007, 01:39:15 AM
जय सांई राम।।।

कबीर क्षुधा कूकरी, करत भजन में भंग
वाकूं टुकडा डारि के, सुमिरन करूं सुरंग

संत शिरोमणि कबीरदास जीं कहते हैं कि भूख कुतिया के समान है। इसके होते हुए भजन साधना में विध्न-बाधा होती है। अत: इसे शांत करने के लिए समय पर रोटी का टुकडा दे दो फिर संतोष और शांति के साथ ईश्वर की भक्ति और स्मरण कर सकते हो ।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: मोको कहां ढूढे रे बन्दे- कबीर (Kabir)
Post by: tana on December 26, 2007, 05:12:52 AM
ॐ सांई राम~~~

जबहिं नाम ह्रदय धरा,भया पाप का नास ।
मानों चिनगी आग की,परी पुरानी घास ॥


जब भगवान का स्मरण मन से किया जाता है तो सम्पूर्ण पाप जीव के नष्ट हो जाते है। जिस प्रकार एक आग की चिंगारी घास में गिर पङे तो क्या होगा उससे  सम्पूर्ण  घास नष्ट हो जाती है । इसलिए भगवान का स्मरण ह्रदय से करना चाहिये।

जय सांई राम~~~
Title: Re: मोको कहां ढूढे रे बन्दे- कबीर (Kabir)
Post by: tana on December 27, 2007, 12:26:00 AM
ॐ सांई राम~~~

कबीर जब हम गावते, तब जाना गुरु नाहीं |
अब गुरु दिल में देखिया, गावन को कछु नाहिं ||


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक हम गाते रहे, तब तक हम गुरु को जान ही नहीं पाए, परन्तु अब हृदय में दर्शन पा लिया, तो गाने को कुछ नहीं रहा.

भावार्थ- संत कबीरदास जी के दोहों में बहुत बड़ा महत्वपूर्ण दर्शन मिलता है. समाज में कई ऐसे लोग हैं जो किन्हीं गुरु के पास या किसी मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थान पर जाते है और फिर लोगों से वहाँ के महत्त्व का दर्शन बखान करते हैं. यह उनका ढोंग होता है. इसके अलावा कई गुरु ऐसे भी हैं जो धर्म ग्रंथों का बखान कर अपने ज्ञान तो बघारते हैं पर उस पर चलना तो दूर उस सत्य के मार्ग की तरफ झांकते तक नहीं है. ऐसे लोग भक्त नहीं होते बल्कि एक गायक की तरह होते हैं. जिसने भगवान् की भक्ति हृदय में धारण कर ली है तो उसे तत्वज्ञान मिल जाता है और वह इस तरह नहीं गाता. वह तो अपनी मस्ती में मस्त रहता है किसी के सामने अपने भक्ति का बखान नहीं करता.

जय सांई राम~~~
Title: Re: मोको कहां ढूढे रे बन्दे- कबीर (Kabir)
Post by: Ramesh Ramnani on December 27, 2007, 10:26:42 PM
जय सांई राम।।।

संतों की निंदा करना ठीक नहीं

सीखै सुनै विचार ले, ताहि शब्द सुख देय
बिना समझै शब्द गहै, कछु न लोहा लेय

संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति सत्य और न्याय के शब्दों को अच्छी तरह से ग्रहण करता है उसके लिए ही फलदायी होता है। परंतु जो बिना समझे, बिना सोचे-विचारे शब्द को ग्रहण करता है तथा रटता फिरता है उसे कोई लाभ नहीं मिलता ।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: मोको कहां ढूढे रे बन्दे- कबीर (Kabir)
Post by: rajiv uppal on January 04, 2008, 09:22:26 AM
मन लाग्यो मेरो यार
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

भला बुरा सब का सुन लीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..