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बांद्रा निवासी रघुवीर भास्कर पुरंदरे साईं बाबा के परम भक्त थे| जो अवसर शिरडी जाते रहते थे| जब वे एक अवसर पर शिरडी जा रहे थे तो श्रीमती तर्खड (जो उस समय बांद्रा में ही थीं) ने श्रीमती पुरंदरे को दो बैंगन देते हुए उनसे विनती की की वे शिरडी में पहुचंकर साईं बाबा को एक बैंगन का भुर्ता और दूसरे बैंगन की कतलियां (घी में तले बैंगन के पतले टुकड़े) बनाकर बाबा को अर्पण कर दें| यह बाबा को बहुत पसंद हैं|
शिरडी पहुंचने पर श्रीमती पुरंदरे भुर्ता बनाकर मस्जिद में थाली ले गयीं| वहां दूसरे लोगों के साथ उन्होंने भी अपनी थाली रखी और वापस अपने ठहरने की जगह पर लौट आयीं| जब बाबा दोपहर को सब चीजें इकट्ठा करके खाने बैठे तो उन्हें भुर्ता बहुत स्वादिष्ट लगा, भुर्ता खाते हुए उनकी कतलियां खाने की इच्छा हुई तो बाबा ने भक्तों से कतलियां लाने को कहा| सामने बैठे भक्त सोचने लगे, इस इलाके में तो बैंगन का मौसम नहीं है, फिर बैंगन कहां से लाएं ? फिर सोचा कि जिन्होंने भुर्ता बनाया है उनके पास और बैंगन भी हो सकते हैं|
तब पता चला कि पुरंदरे की पत्नी बैंगन का भुर्ता आयी थीं| तब उन्हें कतलियां बनाने को कहा तो उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ| उन्होंने गलती के लिए माफी मांगकर कतलियां तलकर परोसीं, तब साईं बाबा ने भोजन किया| साईं बाबा का भक्तों के प्रति प्यार और उनकी सर्वज्ञता देखकर सभी भक्त बहुत आश्चर्यचकित हुए|
Source:
http://spiritualworld.co.in/an-introduction-to-shirdi-wale-shri-sai-baba-ji-shri-sai-baba-ji-ka-jeevan/shri-sai-baba-ji-ki-lilaye/1598-sai-baba-ji-real-story-katliya-kahan-hain.html