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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: spiritualworld on May 30, 2012, 03:47:20 AM

Title: डॉक्टर द्वारा साईं बाबा की पूजा (Shri Sai Baba Ji Real Stories with youtube video)
Post by: spiritualworld on May 30, 2012, 03:47:20 AM
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तात्या साहब नूलकर अपने डॉक्टर मित्र के साथ साईं बाबा के दर्शन करने के लिए शिरडी आये थे| मस्जिद में पहुंचकर उन्होंने बाबा के दर्शन कर उन्हें प्रणाम किया और कुछ देर तक वहीं पर बैठे रहे| कुछ देर बाद बाबा ने उन्हें दादा भट्ट केलकर के पास भेज दिया| तब वह केलकर के घर गये| केलकर ने उनका उत्तम ढंग से स्वागत किया और उनके रहने की भी व्यवस्था की|

कुछ देर बाद जब केलकर बाबा का पूजन करने के लिए चलने लगे तो डॉक्टर भी उनके साथ हो लिये| मस्जिद पहुंचकर पहले केलकर ने बाबा का पूजन किया, फिर डॉक्टर ने बाबा का पूजन किया और पूजन करते हुए पूजा की थाली में से चंदन लेकर बाबा के मस्तक पर त्रिपुंड आकार का तिलक लगा दिया| पर, बाबा ने कुछ भी नहीं कहा| बाबा ने बड़े शांत भाव से तिलक लगवा लिया| वहां उपस्थित भक्तों के मन कांप उठे, कि अब बाबा गुस्से में आयेंगे| क्योंकि बाबा किसी को गंध (चंदन आदि) लगाने नहीं देते थे| यदि किसी को लगाना होता तो वह बाबा के चरणों में लगाता था| केवल म्हालसापति ही बाबा के गले पर चंदन लगाते थे| मस्तक पर तिलक लगाने का साहस आज तक किसी ने नहीं किया था| डॉक्टर इस बात को नहीं जानते थे| पर, सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि जब डॉक्टर ने बाबा के मस्तक पर त्रिपुंड आकार का तिलक लगाया तो बाबा कुछ भी नहीं बोले और न बाबा को गुस्सा ही आया, न बाबा ने मना ही किया|

उस समय तो केलकर जी चुप रहे, लेकिन जब शाम को बाबा के दर्शनार्थ मस्जिद आये तो उन्होंने बाबा से इसका कारण पूछा, तो बाबा बोले कि - "डॉक्टर पंडित ने मुझे जो तिलक लगाया था, वह मुझे श्री साईं बाबा समझकर नहीं लगाया, बल्कि अपने गुरु रघुनाथ महाराज घोपेश्वर कर (जो काका पुराणिक के नाम से प्रसिद्ध है) समझकर लगाया था| उस समय उन्हें मुझमें अपने गुरु के दर्शन हो रहे थे, जिन्हें वे चंदन का तिलक लगाया करते थे| उस समय उन्होंने मुझे अपने गुरु के रूप में तिलक लगाया था| उस समय उनके मन में वही श्रद्धा और प्रेमभाव था जो अपने गुरु के लिए था| उनके उस श्रद्धा और प्रेमभाव के आगे में विवश था| तब मैं भला उनको तिलक करने से कैसे रोक सकता था|"साईं बाबा अपने भक्तों की इच्छा या भावना के अनुसार ही पूजा करवाते थे| या फिर किसी को स्पष्ट मना भी कर देते थे| तब किसी में इतना साहस नहीं होता था कि वह बाबा से इसका कारण पूछ सके| क्योंकि बाबा अपने भक्त की भावना को पहले ही जान जाते थे|


Source: http://spiritualworld.co.in/an-introduction-to-shirdi-wale-shri-sai-baba-ji-shri-sai-baba-ji-ka-jeevan/shri-sai-baba-ji-ki-lilaye/1601-sai-baba-ji-real-story-doctor-dwara-sai-baba-ki-pooja.html