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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: spiritualworld on February 27, 2012, 04:53:03 AM

Title: दयालु साईं बाबा (Real Story Shri Sai Baba Ji with mp3 voiceover)
Post by: spiritualworld on February 27, 2012, 04:53:03 AM
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दोपहर का समय था!

साईं बाबा खाना खाने के बाद अपने भक्तों से वार्तालाप कर रहे थे कि अचानक सारंगी के सुरों के साथ तबले पर पड़ी थाप से मस्जिद की गुम्बदें और मीनारें गूंज उठीं|

सब लोग चौंक उठे| दूसरे ही क्षण मस्जिद के दालान पर सारंगी के सुरों और तबलों की थापों के साथ घुंघरों की रुनझुन भी गूंज उठी| सभी शिष्य एक रूपसी नव नवयौवना की ओर देखने लगे| जिसके सुंदर बदन पर रेशमी घाघरा तथा चोली थी| जब वह नाचते हुए तेजी के साथ गोल-गोल चक्कर काटती थी, तो उसका रेशमी घाघरा गोरी-गोरी टांगों से ऊपर तक उठ जाता था|

चोली बहुत तंग और छोटी इतनी थी कि देखने वाले को शर्म आती थी| कजरारी आँखों से वासना छलक रही थी| वह अपने में मग्न होकर, सब-कुछ खोकर नाच रही थी|

सभी शिष्य बड़ी हैरानी से उसे देखने लगे| उन सबको बहुत आश्चर्य हो रह था कि वह कहां से आ गयी ? जरूर किसी आस-पास के गांव की होगी| उसका नृत्य करना भी बड़ा आश्चर्यजनक था|

वह नाचती रही| घुंघरूओं की ताल, सारंगी के सुर और तबलों की थाप बराबर गूंजती रही| अचानक साईं बाबा धीरे से उठे और नर्तकी की ओर बढ़ने लगे|

नर्तकी नाच रही थी| साईं बाबा एक पल उसे देखते रहे और फिर उन्होंने एकदम झुझ्कर नर्तकी के थिरकते पैर पकड़ लिये|

"बस करो मां, बस भी करो मां, तुम्हारे ये कोमल पैर इतनी देर तक नाचते-नाचते थक गए होंगे|" -साईं बाबा ने कहा और नर्तकी के पैर दबाने लगे|

थिरकते पैर एकदम रुक गये| घुंघरू थम गए|

तभी एक दर्दभरी चींख गूंज गयी - "बचाओ...बचाओ...सांप...सांप...|"

सबने चौंककर उस तरफ देखा, जिधर से आवाज आ रही थी|

मस्जिद के खम्बे के पीछे पंडित और गणेश खड़े थे| दोनों के सामने काला नाग फन फैलाये खड़ा था| उसने पंडितजी की कलाई में डस लिया था| वह छटपटाते हुए चींख रहे थे|

"अरे नाग कहां से आया ?" कई लोग चौककर बोले|

साईं बाबा मुस्कराते हुए उस नाग की ओर बढ़ने लगे|

देखते-देखते वह नाग मोटी रस्सी के रूप में बदल गया| लोगों के आश्चर्य की सीमा न रही|

बुरी तरह से थर-थर कांपते हुए गणेश ने एक नजर उस उस्सी पर डाली और साईं बाबा के पैर पकड़ लिये|

मुझे क्षमा कर दो बाबा, मैं पापी हूं| सारा कुसूर मेरा ही है| कहते-कहते वह रोने लगा|

नर्तकी का सारा बदन भय से कांप रहा था|

"साईं बाबा मुझे माफ...कर दो ...मैं तुम्हें... अपना शत्रु... समझता रहा था| मेरे सारे शरीर में जहर फैल चुका है| मुझे क्षमा कर दो...साईं बाबा ...!"

साईं बाबा ने अपना हाथ आकाश की ओर उठाकर कहा - "फौरन उतर जा...|"

"तुम्हें कुछ नहीं होगा पंडितजी...तुम्हें कुछ नहीं होगा...| यह तुम्हारी आत्मा का सारा पाप खत्म कर देगा|"

पंडितजी लगभग बेहोश हो गये थे| उनके मुंह से झाग निकल रहा था| सारा शरीर लगभग नीला पड़ चुका था| बड़बड़ाना शुरू हो गया था| सबको पंडितजी की हालात देखकर यह विश्वास हो चला था कि अब पंडितजी का बचना संभव नहीं है| साईं बाबा ने पंडितजी का सिर अपनी गोद में रख रखा था और बार-बार बड़बड़ा रहे थे - "चला जा, चला जा|"

सब लोग आश्चर्य से यह दृश्य देख रहे थे|

कुछ ही देर बाद पंडितजी के शरीर का रंग पहले की तरह हो गया| उनकी बंद आँखें खुलने लगीं| शरीर में मानो चेतना का संचार शुरू हो गया| पंडितजी का यह रूप परिवर्तन देख सबको राहत मिली| अब उनको यह विश्वास हो गया कि पंडितजी की जान बच गयी|

साईं बाबा का चमत्कार सभी आँखें फाड़े आश्चर्य से देख रहे थे|

थोड़ा समय और बीता| पंडितजी उठकर बैठ गए, जैसे उन्हें कुछ हुआ ही न हो| तभी द्वारकामाई मस्जिद की गुम्बदें और मीनारें साईं बाबा की जय-जयकार भी गूंज उठीं|


Source: http://spiritualworld.co.in/an-introduction-to-shirdi-wale-shri-sai-baba-ji-shri-sai-baba-ji-ka-jeevan/shri-sai-baba-ji-ki-lilaye/1575-sai-baba-ji-real-story-dayalu-sai-baba.html