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हैजे की क्या औकात, जब साईं बाबा है साथ (Real Story Shri Sai Baba Ji with mp3 audi
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Topic: हैजे की क्या औकात, जब साईं बाबा है साथ (Real Story Shri Sai Baba Ji with mp3 audi (Read 1592 times)
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हैजे की क्या औकात, जब साईं बाबा है साथ (Real Story Shri Sai Baba Ji with mp3 audi
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December 23, 2011, 07:05:01 AM »
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[youtube=480,360]http://www.youtube.com/watch?v=ZWfwmHuNGKY[/youtube]
एक बार शिरडी में हैजे का प्रकोप हो गया| जिससे शिरडीवासियों में भय फैल गया| अन्य गांवों से उनका सम्पर्क समाप्त-सा हो गया| तब गांव के पंचों ने यह आदेश जारी किया कि गांव में कोई भी आदमी बकरे की बलि न देगा और दूसरा यह कि गांव में लकड़ी की एक भी गाड़ी वगैरा बाहर से न आये| जो कोई भी इन आदेशों का पालन नहीं करेगा, उसे जुर्माना भरना पड़ेगा| सारे गांव में यह घोषणा कर दी गई|
साईं बाबा तो अंतर्यामी थे| बाबा इस बात को जानते थे कि यह सब कोरा अंधविश्वास है| इसलिए बाबा के लिए कौन-सा कानून और कैसा जुर्माना? इस दौरान शिरडी में एक दिन लकड़ियों से भरी एक गाड़ी आयी, तो उसे गांववालों ने गांव के बाहर ही रोक दिया और उसे वापस भगाने लगे| जबकि सब लोग इस बात को जानते थे कि इस समय गांव में लकड़ियों की सख्त आवश्यकता है| जुर्माने के डर से वह उसे गांव में प्रवेश करने से रोक रहे थे| साईं बाबा को जब इस बात का पता चला तो वे स्वयं वहां आए और गाड़ीवान से गाड़ी मस्जिद की ओर ले जाने को कहा| बाबा को रोक पाने या उन्हें कुछ कह पाने का साहस किसी में न था| फिर गाड़ीवान गाड़ी लेकर मस्जिद पर पहुंच गया|
मस्जिद में रात-दिन धूनी प्रज्जवलित रहती थी और उसके लिए लकड़ियों की आवश्यकता थी| बाबा ने लकडियां खरीद लीं| मस्जिद बाबा का ऐसा घर था, जो सभी जाति-धर्मों के लोगों के लिए हर वक्त खुला रहता था| गांव के गरीब लोग अपनी आवश्यकतानुसार मस्जिद से लकडियां ले जाते थे| बाबा कभी भी किसी से कुछ नहीं कहते थे| वे पूर्ण विरक्त थे|
पंचों के दूसरे आदेश 'बकरे की बलि न दी जाए' की भी बाबा ने कोई परवाह नहीं की| एक दिन एक व्यक्ति दुबला-पतला, मरियल-सा बकरा लाया| मालेगांव के फकीर पीर मोहम्मद उर्फ बड़े बाबा भी उस समय वहां पर मौजूद थे| वो साईं बाबा का बहुत आदर किया करते थे| सदैव बाबा के दाहिनी ओर बैठते थे| बाबा ने उन्हें बकरे को काटकर बलि चढ़ाने को कहा|
इन बड़े बाबा का भी बहुत महत्व था| साईं बाबा के चिलम भरने पर चिलम भी सबसे पहले बड़े बाबा पीते और बाद में साईं बाबा को देते थे| बाद में अन्य भक्तों को चिलम मिलती थी| दोपहर में भोजन के समय भी साईं बाबा बड़े बाबा को आदरपूर्वक बुलाकर अपनी दायीं ओर बैठाते थे और तब सब लोग भोजन करते थे| इसकी वजह थी साईं बाबा और बड़े बाबा का आपसी प्यार| जब भी बड़े बाबा साईं बाबा से मिलने के लिये आते थे, बाबा उनकी मेहमाननवाजी में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ते थे| बाबा के पास जितनी भी दक्षिणा इकट्ठी होती थी, बाबा उसमें से 50 रुपये रोजाना बड़े बाबा को दिया करते थे और जब वे शिरडी से विदा लेते तो बाबा उन्हें कुछ दूर तक छोड़ने उनके साथ जाते थे|इतना सम्मान करने पर भी जब साईं बाबा ने उनसे बकरा काटने को कहा, तो उन्होंने कहा कि बलि देना निरर्थक है| बेवजह किसी जीव की जान क्यों ली जाए? तब साईं बाबा ने शामा से कहा - "अरे शामा ! तू छुरी लाकर इस बकरे को काट दे|" यह सुनते ही शामा राधाकृष्णा माई के घर से एक छुरी उठा लाया| छुरी लाकर बाबा के सामने रख दी| लेकिन जब राधाकृष्णा माई को यह पता चला कि आज मस्जिद में बकरे की बलि दी जा रही है तो वह अपना छुरा उठाकर ले गयी| फिर शामा दूसरा छुरा लाने के गया तो लौटा ही नहीं| बहुत देर तक इंतजार देखने के बाद शामा मस्जिद नहीं लौटा| तब साईं बाबा ने काका साहब दीक्षित से कहा - "काका ! तुम छुरा लाकर इस बकरे को काट दो| इसको दर्दभरी जिंदगी से मुक्त कर दो|" जबकि वास्तव में बाबा उनकी परीक्षा लेना चाहते थे| काका साहब जाति के ब्राह्मण थे और नियम-धर्म का पालन करने वाले अहिंसा के पुजारी थे| सब लोग यह बड़ी उत्सुकता के साथ देख रहे थे कि आगे क्या होने वाला है?
काका साहब साठेवाड़ा से एक छुरा ले आये और बाबा की आज्ञा से बकरा काटने को तैयार हो गये| लोग बड़े आश्चर्य से यह देख रहे थे कि काका साहब ब्राह्मण होकर बकरे की बलि देने को तैयार हैं| फिर काका साहब ने बकरे पास खड़े होकर साईं बाबा से पूछा - "बाबा ! इसे काट दूं क्या?" बाबा बोले - "देखता क्या है, कर दे इसका काम-तमाम|" काका ने अपने छुरेवाला दाहिना हाथ ऊपर उठाया और वार करने ही वाले थे कि दौड़कर साईं बाबा ने उनका हाथ पकड़ा और बोले - "काका ! क्या तू सचमुच इसे मारेगा? ब्राह्मण होकर भी तुम बकरे की बलि दे रहे हो? तुम कितने निर्दयी हो? इस निरीह जीव को मारते हुए तुम्हें जरा भी बुरा नहीं लगा?"
यह सुनते ही काका ने छुरे को जमीन पर फेंक दिया| फिर बाबा ने पूछा - "काका ! इतना धार्मिक होने पर भी तेरे मन में इतनी बेहरमी कैसे?" इस पर काका बोले - "बाबा ! मैं कोई धर्म, अहिंसा नहीं जानता| आपके आदेश का पालन करना यही मेरा धर्म है, यही मेरे लिए सर्वोपरी है| यदि आपके आदेश पर मैं अच्छे-बुरे का विचार करूंगा तो मैं अपने सेवक धर्म से गिर जाऊंगा| गुरु का आदेश ही मेरा धर्म है| उसके आगे मैं कुछ भी नहीं जानता| आपका प्रत्येक शब्द मेरे सिर-आँखों पर है| आपकी आज्ञा का पालन करते हुए मेरे प्राण भी चले जायें तो कोई चिन्ता नहीं| आप मेरे गुरु हैं और मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है|"
इस पर बाबा ने कहा कि वे स्वयं बकरे की बलि देंगे| तब वे तकिए के पास, जहां पर अनेक फकीर बैठते थे, वहां बकरे को बलि के लिए ले जाने लगे, लेकिन रास्ते में गिरकर ही बकरे ने प्राण त्याग दिये|
बाबा ने गुरु-आज्ञा की महत्ता दिखाने के लिए ही यह सब लीला रची थी| बड़े बाबा जैसे मुसलमान भक्त भी जहां इस परीक्षा में खरे न उतर सके, वहीं एक शुद्ध शाकाहारी ब्राह्मण बिना किसी बात की परवाह किए परीक्षा में सफल रहा|
Source:
http://spiritualworld.co.in/an-introduction-to-shirdi-wale-shri-sai-baba-ji-shri-sai-baba-ji-ka-jeevan/shri-sai-baba-ji-ki-lilaye/1633-sai-baba-ji-real-story-haije-ki-kya-aukat-jab-sai-baba-hain-sath.html
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Last Edit: May 28, 2012, 06:52:16 AM by spiritualworld
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