ॐ साई राम !!!
भगवान् सबके हैं और सबमें हैं
भगवान् सबके हैं और सबमें हैं,
पर मनुष्य उनसे विमुख हो गया है ।
संसार रात-दिन नष्ट होता जा रहा है,
फिर भी वह उसको अपना मानता है
और समझता है कि मेरे को संसार मिल गया ।
भगवान् कभी बिछुड़ते हैं ही नहीं, पर उनके लिये कहता है कि
वे हैं ही नहीं, मिलते हैं ही नहीं ;
भगवान्से मिलना तो बहुत कठिन है,
पर भगवान् तो सदा मिले हुए ही रहते हैं । भाई !
आप अपनी दृष्टि उधर डालते ही नहीं, उधर देखते ही नहीं ।
जहाँ-जहाँ आप देखते हो , वहाँ-वहाँ भगवान् मौजूद हैं ।
अगर यह बात स्वीकार कर लो, मान लो कि सब देश में,
सब काल में, सब वस्तुओं में, सम्पूर्ण घटनाओं में, सम्पूर्ण परिस्थितियों में,
सम्पूर्ण क्रियाओं में भगवान् हैं, तो भगवान् दीखने लग जायेंगे ।
दृढ़तासे मानोगे तो दीखेंगे, संदेह होगा तो नहीं दीखेंगे ।
जितना मानोगे, उतना लाभ जरूर होगा ।
दृढ़ता से मान लो तो छिप ही नहीं सकते भगवान् !
क्योंकि‒
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥
(गीता ६ । ३०)
‘जो सब में मेरे को देखता है और
सब को मेरे अन्तर्गत देखता है,
मैं उसके लिये अदृश्य नहीं होता और
वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।’
जहाँ देखें, जब देखें, जिस देश में देखें, वहीं भगवान् हैं ।
परन्तु जहाँ राग-द्वेष होंगे, वहाँ भगवान् नहीं दीखेंगे ।
भगवान् के दीखने में राग-द्वेष ही बाधक हैं ।
जहाँ अनुकूलता मान लेंगे, वहाँ राग हो जायगा और
जहाँ प्रतिकूलता मान लेंगे, वहाँ द्वेष हो जायगा ।
एक आदमी की दो बेटियों थीं ।
दोनों बेटियाँ पास-पास गाँव में ब्याही गयी थीं ।
एक बेटी वालों का खेती का काम था
और एक का कुम्हार का काम था ।
वह आदमी उस बेटी के यहाँ गया, जो खेतीका काम करती थी
और उससे पूछा कि क्या ढंग है बेटी ?
उसने कहा ‒ पिताजी ! अगर पाँच-सात दिनों में वर्षा नहीं हुई तो
खेती सूख जायगी, कुछ नहीं होगा ।
अब वह दूसरी बेटीके यहाँ गया और उससे पूछा कि क्या ढंग है ?
तो वह बोली ‒ पिताजी ! अगर पाँच-सात दिनों में वर्षा आ गयी
तो कुछ नहीं होगा;
क्यों कि मिट्टीके घड़े धूप में रखे हैं और कच्चे घड़ों पर
यदि वर्षा हो जायगी तो सब मिट्टी हो जायगी !
अब आप लोग बतायें कि भगवान् वर्षा करें या न करें !
दोनों एक आदमी की बेटियों हैं ।
माता-पिता सदा बेटी का भला चाहते हैं ।
अब करें क्या ?
एक ने वर्षा होना अनुकूल मान लिया और
एक ने वर्षा होना प्रतिकूल मान लिया ।
एक ने वर्षा न होना अनुकूल मान लिया और
एक ने वर्षा न होना प्रतिकूल मान लिया ।
उन्होंने वर्षा होने को ठीक - बेठीक मान लिया ।
परन्तु वर्षा न ठीक है न बेठीक है ।
वर्षा होने वाली होगी तो होगी ही ।
अगर कोई वर्षा होने को ठीक मानता है
तो उसका वर्षा में ‘राग’ हो गया
और वर्षा होने को ठीक नहीं मानता तो
उसका वर्षा में ‘द्वेष’ हो गया ।
ऐसे ही यह संसार तो एक - सा है, पर इस में ठीक और
बेठीक‒ये दो मान्यताएँ कर लीं तो फँस गये !
ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!