DwarkaMai - Sai Baba Forum

Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: Admin on December 04, 2013, 05:37:53 AM

Title: Bhakti
Post by: Admin on December 04, 2013, 05:37:53 AM
एक भक्त था वह हनुमान जी को
बहुत मनाता था,

बड़े प्रेम और भाव से उनकी सेवा किया
करता था.

एक दिन भगवान से
कहने लगा–
मैँ आपकी इतनी भक्ति करता हूँ
पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति
नहीं हुई.

मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे
दर्शन ना दे पर ऐसा कुछ कीजिये
की मुझे ये अनुभव हो की आप हो.
भगवान ने कहा ठीक है.

तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे
सैर पर जाते हो,
जब तुम रेत पर चलोगे तो तुम्हे
दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देँगे,

दो तुम्हारे पैर होगे और दो पैरो के
निशान मेरे होगे.

इस तरह तुम्हे मेरी अनुभूति होगी.
अगले दिन वह सैर पर गया,

जब वह रेत पर चलने लगा तो उसे
अपने पैरों के साथ-साथ दो पैर और
भी दिखाई दिये वह बड़ा खुश हुआ,

अब रोज ऐसा होने लगा.

एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ
सब कुछ चला गया,

वह कंगाल हो गया उसके अपनो
ने उसका साथ छोड दिया.

(देखो यही इस दुनिया की समस्या है,
मुसीबत मे सब साथ छोड देते है).

अब वह सैर पर गया तो उसे
चार पैरों की जगह दो पैर दिखाई दिये.
उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त
मेँ भगवान ने साथ छोड दिया.

धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा
फिर सब लोग उसके पास वापस आने लगे.

एक दिन जब वह सैर पर गया तो
उसने देखा कि चार पैर वापस
दिखाई देने लगे.

उससे अब रहा नही गया,
वह बोला-
भगवान जब मेरा बुरा वक्त था तो
सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर
मुझे इस बात का गम नहीं था
क्योकि
इस दुनिया में ऐसा ही होता है,
पर आप ने भी उस समय मेरा साथ
छोड़ दिया था,

ऐसा क्यों किया?

तो भगवान ने कहा – तुमने ये कैसे सोच लिया की मैँ तुम्हारा
साथ छोड़ दूँगा, तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैरोँ के निशान देखे वे तुम्हारे
पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे।
उस समय मैँ तुम्हे अपनी गोद में
उठाकर चलता था और आज जब
तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है।
इसलिए तुम्हे फिर से चार पैर
दिखाई दे रहे हैं।
Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on December 05, 2013, 01:56:32 AM
ॐ साई राम !!!

भक्ति क्या है जानिए

हे पुण्य आत्माओ भक्ति का अर्थ जानिए और समझिये कहीं कोई गलती तो नहीं हो रही है
भक्ति का अर्थ है भावनाओं की पराकाष्ठा .प्रभु और उनके असंख्य रूपों के प्रति प्रेम ..
ये प्रेम कोई सीमित नहीं होता बल्कि इसकी तो कोई सीमा ही नहीं होती ..
जब प्रभु की सच्ची भक्ति मिलती है तो घट घट में प्रभु का ही वास नजर आता है .
भक्ति का संगीत उसी दिल में बजता है जिसके अंतर में भूखे को देखकर करुणा जागती है ....
किसी पीड़ित को देखकर उसकी पीड़ा दूर करने की चेष्टा करता है....
जो किसी गलत राह पर जानेवाले को सन्मार्ग पर लाने की कोशिश करता है..
जो भक्त होता है उसका भक्तिपूर्ण ह्रदय जगत को भगवान की तरह देखता है...
और जिसके दिल में भक्ति नहीं उसका हृदय जगत को पत्थर की तरह देखता है...
जगत में वही दिखाई पड़ता है, जो हम हैं...
अगर भीतर भक्ति का भाव गहरा हुआ, तो जगत भगवान हो जाता है....
फिर ऐसा नहीं है कि भगवान कहीं बैठा होता है किसी मंदिर में;
फिर तो कण कण में भगवान् ही दीखते है ...
जिसे सच्ची भक्ति मिल जाए ऐसे सच्चे भक्त को सब में भगवान् ही दिखाई देते है
और शिवाय प्रभु के उसे कुछ चाहिए भी नहीं होता और प्रभु मिलते भी ऐसे ही भक्त को है ..
सच्ची भक्ति भगवान् के मंदिर में करोडो का सोना चढाने से या ढोल मंजीरा बजने से नहीं होती
बल्कि दीन दुखियो को उसी परम सत्ता का अंश मानकर उसकी सेवा करने से होती है..........

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on December 08, 2013, 11:53:52 PM
ॐ साई राम !!!

भक्ति क्या है जानिए

एक बार एक राजा था.
राजा ने एक संत से पूछा कि आप हमें ये बताईये कि लोग क्यों कहते हैं कि भक्ति करो.
आखिर भक्ति में क्या है तो संत ने कहा कि मै तुम्हे बता सकता हूँ कि भक्ति में क्या है.
पर तुम मुझे ये बताओ कि आम का स्वाद क्या है. राजा ने कहा कि आम का स्वाद मीठा है.
तो संत ने कहा हाँ,हाँ चीनी भी तो मीठी होती है तो क्या वो आम है.
राजा ने कहा - नही.
तो फिर बताओ न आम का स्वाद क्या है.
अब राजा को कुछ भी समझ नही आया कि क्या जबाव दे तो
फिर संत ने कहा कि ठीक है मै तुम्हे जबाव देता हूँ.
जाओ आम मंगाओ.
आम लाया गया. राजा ने वो आम लिया और संत को दिया.
संत ने कहा कि ये आप हमें मत दीजिए.
इसे आप छीलिये और खाईये.
राजा ने आम को छीला और उसे खाया.
खाकर कहा कि हाँ अब समझ आया कि आम का स्वाद कैसा है.

संत ने कहा-हाँ यही तो मै चाहता था.
तुम इसे खाओ तभी समझ आएगा कि आम का स्वाद क्या है.
आम का स्वाद कैसा है तुम इसे शब्दों में बयां नही कर सकते.
इसीप्रकार से भक्ति में काया रस है.भगवान में क्या रस है,
भगवान की भक्ति कैसे आपको विमल बना सकती है,
ये शब्दों में बयां नही कर सकते.इसके लिए हमें भक्ति करनी होगी.

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
Title: Re: Bhakti
Post by: Anupam on December 12, 2013, 11:11:09 AM
<<भगवान जब मेरा बुरा वक्त था तो
सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर
मुझे इस बात का गम नहीं था
क्योकि
इस दुनिया में ऐसा ही होता है,
पर आप ने भी उस समय मेरा साथ
छोड़ दिया था,
तो भगवान ने कहा – तुमने ये कैसे सोच लिया की मैँ तुम्हारा
साथ छोड़ दूँगा, तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैरोँ के निशान देखे वे तुम्हारे
पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे।
उस समय मैँ तुम्हे अपनी गोद में
उठाकर चलता था और आज जब
तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है।
इसलिए तुम्हे फिर से चार पैर
दिखाई दे रहे हैं।>>

ANY PRACTICAL PROOF OF THIS ABOVE CRAP.?? CHECK THE HISTORY SWAMI SHRADDHANANDA, GURU TEGH BAHADUR, SWAMI KESHWANANDA, NAMDEV, etc are examples of reverse, where was your God. Let us understand things rationally. God word itself falls short of GOOD by an O... When world is God means the entity is 99.999% evil

<<भक्ति का अर्थ है भावनाओं की पराकाष्ठा >>

Signs of Insanity...
Title: Re: Bhakti
Post by: Spiritual India on December 25, 2013, 03:40:20 AM


ॐ श्री साई नाथाय नमः

भगवान् को अपने भक्त सदैव ही प्रिये है, और अपने भक्तो पर सदैव ही उनकी करुणा बरसती रहती है!

ऐसा हीभक्त था, नाम था गोवर्धन!

गोवर्धन एक ग्वाला था,बचपन से दूसरों पे आश्रित,क्योंकि उसका कोई नहीं था,
जिस गाँव में रहता,वहां की लोगो की गायें आदि चरा कर जो मिलता,
उसी से अपना जीवन चलाता!पर गाँव के सभी लोग उस से बहुत प्यार करते थे!

एक दिन गाँव की एक महिला, जिसे वह काकी कहता था, के साथ उसे वृन्दावन जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ!
उसने वृन्दावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी जी के बारे बहुत कुछ सुना था,
सो दर्शन की इच्छा तो मन में पहले से थी! वृन्दावन पहुँच कर जब उसने बिहारी जी के दर्शन किये,
तो वो उन्हे देखता ही रह गया,और उनकी छवि मेंखो गया!एकाएक उसे लगा के जैसे ठाकुर जी उसको कह रहे है..
"आ गए मेरे गोवर्धन!मैं कब से प्रतीक्षा कररहा था,मैं गायें चराते थक गया हूँ,अब तू ही मेरी गायें चराने जाया कर!
"गोवर्धन ने मन ही मन"हाँ"कही! इतनी में गोस्वामी जी ने पर्दा दाल दिया, तो गोवर्धन का ध्यान टूटा!

जब मंदिर बंद होने लगा,तो एक सफाई कर्मचारी ने उसे बाहर जाने को कहा!गोवर्धन ने सोचा,
ठीक ही तो कह रहा है,सारा दिन गायें चराते हुए ठाकुर जी थक जाते होंगे,सो अब आराम करेंगे!
तो उसने सेवक से कहा,..ठीक है,पर तुम बिहारी जी से कहना,कि कल से उनकी गायें चराने मैं ले जाऊंगा!
इतना कह वो चल दिया!सेवक ने उसकी भोली सी बात गोस्वामी जी को बताई,गोस्वामी जी ने सोचा,
कोई बिहारी जी के लिए अनन्य भक्ति ले कर आया है,चलो यहाँ रह कर गायें भी चरा लेगा,और उसके खाने पीने,
रहने का इंतजाम मैं कर दूंगा!गोवर्धन गोस्वामी जी के मार्ग दर्शन में गायें चराने लगा!सारा सामान
और दोपहर का भोजन इत्यादि उसे वही भेज दिया जाता!

एक दिन मंदिर में भव्य उत्सव था,गोस्वामी जी व्यस्त होने के कारण गोवर्धन को भोजन भेजना भूल गए!
पर भगवान् को तो अपने भक्त का ध्यान नहीं भूलता!उन्होने अपने एक वस्त्र में कुछ मिष्ठान इत्यादि बांधे और
पहुँच गए यमुना पे गोवर्धन के पास..गोवर्धन ने कहा,आज बड़ी देर कर दी,बहुत भूख लगी हैं!गोवर्धन ने जल्दी से
सेवक के हाथ से पोटली ले कर भर पेट भोजन पाया!इतने में सेवक जाने कहाँ चला गया,अपना वस्त्र वहीँ छोड़ कर!

शाम को जब गोस्वामी जी को भूल का एहसास हुआ,तो उन्होने गोवर्धन से क्षमा मांगी,तो गोवर्धन ने कहा.
"अरे आप क्या कह रहे है,आपने ही तो आज नए सेवक को भेजा था,प्रसाद देकर,ये देखो वस्त्र,जो वो जल्दी
में मेरे पास छोड़ गया!"गोस्वामी जी ने वस्त्र देखा तो गोवर्धन पर बिहारी जी की कृपा देख आनंदित हो उठे!
ये वस्त्र स्वयं बिहारी जी का पटका(गले में पहनने वाला) था,जो उन्होने खुद सुबह उनको पहनाया था!..........
Title: Re: Bhakti
Post by: Spiritual India on December 25, 2013, 03:42:40 AM


ॐ श्री साई नाथाय नमः

"जो ये जानता है कि भौतिक सुख चाहे अच्छा हो या बुरा, इस जीवन में हो या अगले जीवन में,
इस लोक में हो या स्वर्गलोक में हो,क्षणिक तथा व्यर्थ है और ये जानता है कि बुद्धिमान पुरुष को
ऐसे ऐसी वस्तुओं को भोगने या सोचने का प्रयास नही करना चाहिए, वो आत्मज्ञानी है.

ऐसा स्वरुपसिद्ध व्यक्ति अच्छी तरह से जानता है कि भौतिक सुख बारम्बार जन्म और
अपने स्वाभाविक स्थिति के विस्मरण का एक मात्र कारण है." तो भगवान को जानने के लिए ही
ये मानव जीवन मिला है हमे . उन्हें जानिये, उन्हें मानिए और उनके हो जाईये...........

 
Title: Re: Bhakti
Post by: Spiritual India on February 17, 2014, 11:46:21 PM
ॐ श्री साई नाथाय नमः

--- यमराज और सरीर कि कहानी ---

एक आदमी मर गया. जब उसे महसूस हुआ तो उसने देखा कि भगवान उसके पास आ रहे हैं
और उनके हाथ में एक सूट केस है.

भगवान ने कहा --पुत्र चलो अब समय हो गया.

आश्चर्यचकित होकर आदमी ने जबाव दिया -- अभी इतनी जल्दी? अभी तो मुझे बहुत काम करने हैं.
मैं क्षमा चाहता हूँ किन्तु अभी चलने का समय नहीं है.

आपके इस सूट केस में क्या है?

भगवान ने कहा -- तुम्हारा सामान.

मेरा सामान? आपका मतलब है कि मेरी वस्तुएं, मेरे कपडे, मेरा धन?

भगवान ने प्रत्युत्तर में कहा -- ये वस्तुएं तुम्हारी नहीं हैं. ये तो पृथ्वी से सम्बंधित हैं.

आदमी ने पूछा -- मेरी यादें?

भगवान ने जबाव दिया -- वे तो कभी भी तुम्हारी नहीं थीं. वे तो समय की थीं.

फिर तो ये मेरी बुद्धिमत्ता होंगी?

भगवान ने फिर कहा -- वह तो तुम्हारी कभी भी नहीं थीं. वे तो परिस्थिति जन्य थीं.

तो ये मेरा परिवार और मित्र हैं?

भगवान ने जबाव दिया -- क्षमा करो वे तो कभी भी तुम्हारे नहीं थे. वे तो राह में मिलने वाले पथिक थे.

फिर तो निश्चित ही यह मेरा शरीर होगा?

भगवान ने मुस्कुरा कर कहा -- वह तो कभी भी तुम्हारा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो राख है.

तो क्या यह मेरी आत्मा है?

नहीं वह तो मेरी है --- भगवान ने कहा.

भयभीत होकर आदमी ने भगवान के हाथ से सूट केस ले लिया और
उसे खोल दिया यह देखने के लिए कि सूट केस में क्या है. वह सूट केस खाली था.

आदमी की आँखों में आंसू आ गए और उसने कहा -- मेरे पास कभी भी कुछ नहीं था.

भगवान ने जबाव दिया -- यही सत्य है. प्रत्येक क्षण जो तुमने जिया,
वही तुम्हारा था. जिंदगी क्षणिक है और वे ही क्षण तुम्हारे हैं.

इस कारण जो भी समय आपके पास है, उसे भरपूर जियें. आज में जियें. अपनी जिंदगी जिए.

खुश होना कभी न भूलें, यही एक बात महत्त्व रखती है.

भौतिक वस्तुएं और जिस भी चीज के लिए आप यहाँ लड़ते हैं, मेहनत करते हैं...
आप यहाँ से कुछ भी नहीं ले जा सकते हैं.......
Title: Re: Bhakti
Post by: Spiritual India on March 04, 2014, 11:05:09 AM

ॐ श्री साई नाथाय नमः

यहाँ बताया गया है कि भगवान बद्धजीवों के प्रति इतने दयालु हैं.बद्धजीव.आप जानते हैं कि
हम बद्धजीव हैं. हम बंधे हुए हैं.देखिये न हमें कितने-कितने सपने बाँध के रखते हैं.कितनी
इच्छाएं बाँध के रखती हैं.प्रकृति के तीन गुण और इनके कितने ही संयोजन.

"भगवान बद्धजीव के प्रति इतने दयालु हैं कि यदि जीव अनजाने में भी उनका नाम लेकर
उन्हें पुकारते है तो भगवान उनके हृदयों में असंख्य पापों को नष्ट करने के लिए उद्यत रहते हैं
इसलिए जब उनके चरणों की शरण में आया हुआ भक्त प्रेमपूर्वक भगवान के पवित्र नामों का
कीर्त्तन करता है तो भगवान ऐसे भक्त को कभी छोड़ नही पाते.इसतरह जिसने भगवान को
अपने ह्रदय के भीतर बाँध रखा है वो भागवत प्रधान कहलाता है.".

Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on March 05, 2014, 04:17:36 AM
OM SAI RAM !!!

There are people who visit a temple for a while for particular favours.
If the favour is not granted or delayed, they stop going to the temple.
They may even remove the photograph of God from the prayer room
and keep it elsewhere.

Bhakti is unconditional.

God knows what you need; that will be given and that alone will be given...

OM SAI RAM, SHREE SAI RAM, JAI JAI SAI RAM!!!
Title: Re: Bhakti
Post by: Spiritual India on March 17, 2014, 05:47:25 AM

भक्ति है संजीवनी बूटी

भक्ति है संजीवनी बूटी जो देती है जीवन,
भक्ति दान दो तुम भक्तों को भगवन,
भक्ति की दौलत के आगे फीके फीके सब धन,
भक्ति दान दो तुम भक्तों को भगवन.

जब प्रह्लाद को मारना चाहा दुनिया की हर शक्ति ने,
भक्ति शक्ति जब टकराई, जीती बाजी भक्ति ने.
उसको कौन मिटाए जिसने किया है भक्ति धारण.

भरी सभा में द्रोपदी की भक्ति ही तो काम आई,
भक्ति की शक्ति से मीरा, विष को अमृत कर पायी,
प्रभु को बस में कर लेता है, भक्ति भरा है जो मन.

शबरी की भक्ति के आगे हार गए पंडित विद्वान्,
सच्चे भक्तों की भक्ति पर बलिहारी जाते भगवान,
मुख उजला है प्रभु भगत का, धन्य धन्य है वो जन.

अगर, मगर, क्यों, किन्तु, लेकिन भक्ति में ये बाधक हैं,
प्रभु रजा में राजी रहने वाला सच्चा साधक है,
भक्ति वही कर पाया "जगत" में जिसने किया समर्पण.


Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on April 07, 2014, 04:49:59 AM
ॐ साई राम !!!

भक्ति क्या है जानिए

एक सूफी फकीर निरंतर कहा करता था,
कि परमात्मा तेरा धन्यवाद। अहोभाग्य है मेरे,
कि जब मेरी जो जरूरत होती है, तू तत्क्षण पूरी कर देता है।

उसके शिष्य उससे धीरे-धीरे परेशान हो गए।
यह बात सुन-सुन कर, क्योंकि वे कुछ देखते नहीं थे,
कि कौन सी जरूरत पूरी हो रही है? फकीर गरीब था।
शिष्य भूखे मरते थे। कुछ उपाय न था।
और यह रोज सुबह सांझ पांच बार मुसलमान फकीर पांच बार प्रार्थना करे
और पांच बार भगवान को धन्यवाद देता और ऐसे अहोभाव से!
तो शिष्यों को लगता कि यह भी क्या मामला है?

एक दिन हद हो गई।
यात्रा पर थे, तीर्थ-यात्रा के लिए जा रहे थे।
तीन दिन से भूखे-प्यासे थे।
एक गांव में सांझ थके-मांदे आए।
गांव के लोगों ने ठहराने से इनकार कर दिया।
तो वृक्षों के नीचे, भूखे, थके-मांदे पड़े हैं।
और आखिरी प्रार्थना का क्षण आया, कोई उठा नहीं।
क्या प्रार्थना करनी है?
किससे प्रार्थना करनी है?
हो गई बहुत प्रार्थना!
यह क्षण नहीं था प्रार्थना का।
लेकिन गुरु उठा, उसने हाथ जोड़े।
वही अहोभाव की धन्यवाद परमात्मा,
जब भी मेरी जो भी जरूरत होती है,
तू तभी पूरी कर देता है।

एक शिष्य से यह बर्दाश्त न हुआ,
उसने कहा, बंद करो बकवास।
यह हम बहुत सुन चुके।
अब आज तो यह बिलकुल ही असंगत है।
तीन दिन से भूखे-प्यासे हैं,
छप्पर सिर पर नहीं है।
ठंडी रेगिस्तानी रात में बाहर पड़े हैं,
किस बात का धन्यवाद दे रहे हो?

उस फकीर ने कहा, आज गरीबी मेरी जरूरत थी।
आज भूख मेरी जरूरत थी, वह उसने पूरी की।
आज नगर के बाहर पड़े रहना मेरी जरूरत थी।
आज गांव मुझे स्वीकार न करे, यह मेरी जरूरत थी।
और अगर इस क्षण में उसे धन्यवाद न दे पाया,
तो मेरे सब धन्यवाद बेकार हैं।
क्योंकि जब वह तुम्हें कुछ देता है,
जो तुम्हारी मन के अनुकूल है,
तब धन्यवाद का क्या अर्थ?
जब वह तुम्हें कुछ देता है,
जो तुम्हारे मन के अनुकूल नहीं है,
तभी धन्यवाद का कोई अर्थ है।

और जब उसने दिया है,
तो जरूर मेरी जरूरत होगी,
अन्यथा वह देगा ही क्यों?
आज यही जरूरी होगा मेरे जीवन-उपक्रम में,
मेरी साधना में, मेरी यात्रा में कि आज मैं भूखा रहूं,
कि गांव अस्वीकार कर दे,
कि रेगिस्तान में खुली रात, ठंडी रात पड़ा रहूं।
आज यही थी जरूरत।
और अगर इस जरूरत को उसने पूरा किया है
और मैं धन्यवाद न दूं, तो बात ठीक न होगी।

ऐसे व्यक्ति को ही परमात्मा उपलब्ध होता है।
तो तुम जब उदास हो तो समझ लो कि यही थी तुम्हारी जरूरत।
आज परमात्मा ने चाहा है कि उदासी में नाचो।
पर नाच रुके नहीं, धन्यवाद बंद न हो, उत्सव जारी रहे।

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
Title: कभी भगवान की प्रार्थना से मुंह फेरने की गलती न करें....
Post by: ShAivI on May 04, 2014, 04:37:12 AM
ॐ साई राम !!!

कभी भगवान की प्रार्थना से मुंह फेरने की गलती न करें....

(http://3.bp.blogspot.com/-myUkJKIrAyE/T1XI7qc9e_I/AAAAAAAAJ10/7VG4ZaQZmV8/s1600/248420293-19333b.jpg)

दुःख में भगवान को याद करना चाहिए, लोग गलती यह करते हैं कि जब बहुत दुखी होते हैं तो
भगवान् को भी भूल जाते हैं। दुख किसके जीवन में नहीं आता। बड़े से बड़ा और छोटे से
छोटा व्यक्ति भी दुखी रहता है। पहुंचे हुए साधु से लेकर सामान्य व्यक्ति तक सभी के
जीवन में दुख का समय आता ही है। कोई दुख से निपट लेता है और किसी को दुख
निपटा देता है। दुख आए तो सांसारिक प्रयास जरूर करें, पर हनुमानजी एक शिक्षा
देते हैं और वह है थोड़ा अकेले हो जाएं और परमात्मा के नाम का स्मरण करें।

सुंदरकांड में अशोक वाटिका में हनुमानजी ने सीताजी के सामने श्रीराम का गुणगान शुरू किया।
वे अशोक वृक्ष पर बैठे थे और नीचे सीताजी उदास बैठीं हनुमानजी की पंक्तियों को सुन रही थीं।
रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।।

वे श्रीरामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करने लगे, जिन्हें सुनते ही सीताजी का दुख भाग गया।
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ।। तब हनुमानजी पास चले गए।
उन्हें देखकर सीताजी मुख फेरकर बैठ गईं। हनुमानजी रामजी का गुणगान कर रहे थे।
सुनते ही सीताजी का दुख भाग गया। दुख किसी के भी जीवन में आ सकता है।

जिंदगी में जब दुख आए तो संसार के सामने उसका रोना लेकर मत बैठ जाइए।
परमात्मा का गुणगान सुनिए और करिए, बड़े से बड़ा दुख भाग जाएगा।
आगे तुलसीदासजी ने लिखा है कि हनुमानजी को देखकर सीताजी मुंह फेरकर बैठ गईं।
यह प्रतीकात्मक घटना बताती है कि हम भी कथाओं से मुंह फेरकर बैठ जाते हैं
और यहीं से शब्द अपना प्रभाव बदल लेते हैं। शब्दों के सम्मुख होना पड़ेगा,
शब्दों के भाव को उतारना पड़ेगा, तब परिणाम सही मिलेंगे।
इसी को सत्संग कहते हैं।

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!


(http://2.bp.blogspot.com/_OCu_uIvUaLs/TCbnhR343XI/AAAAAAAABfE/JZKKv8oUFCE/s1600/Ram+Navami.bmp)
Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on August 28, 2014, 04:25:15 AM
ॐ साई राम !!!

भक्ति क्या है जानिए

एक गरीब बालक था जो कि अनाथ था।
एक दिन वो बालक एक संत के आश्रम मेँ
आया और बोला के बाबा आप सबका ध्यान
रखते है,मेरा इस दुनिया मेँ कोई नहीँ हैँ
तो क्या मैँ यहाँ आपके आश्रम मेँ रह सकता हूँ?
बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम क्या है?
उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीँ हैँ।
तब संत ने उस बालक का नाम रामदास
रखा और बोले की अब तुम यहीँ आश्रम मेँ रहना।

रामदास वही रहने लगा और आश्रम के सारे काम
भी करने लगा।उन संत की आयु 80 वर्ष
की हो चुकी थी।

एक दिन वो अपने शिष्यो से बोले की मुझे
तीर्थ यात्रा पर जाना हैँ तुम मेँ से कौन कौन
मेरे मेरे साथ चलेगा और कौन कौन आश्रम मेँ
रुकेगा? संत की बात सुनकर सारे शिष्य बोले
की हमआपके साथ चलेंगे.!

क्योँकि उनको पता था की यहाँ आश्रम मेँ
रुकेंगे तो सारा काम करना पड़ेगा इसलिये
सभी बोले की हम तो आपके साथ
तीर्थयात्रा पर चलेंगे। अब संत सोच मेँ पड़ गये की किसे साथ
ले जायेऔर किसे नहीँ क्योँकि आश्रम पर
किसी का रुकना भी जरुरी था।

बालक रामदास संत के पास आया और
बोला बाबा अगर आपको ठीक लगे तो मैँ
यहीँ आश्रम पर रुक जाता हूँ। संत ने
कहा ठीक हैँ पर तुझे कामकरना पड़ेगा आश्रम
की साफ सफाई मे भले ही कमी रह जाये
पर ठाकुरजी की सेवा मेकोई कमी मत रखना।

रामदास ने संत से कहा की बाबा मुझे
तो ठाकुर जी की सेवा करनी नहीँ आती आप
बता दिजीये के ठाकुर जी की सेवा कैसे
करनी है? फिर मैँ कर दुंगा।

संत रामदास को अपने साथ मंदिर ले गये
वहाँ उस मंदिर मे राम दरबार
की झाँकी थी। श्रीराम जी,सीता जी,
लक्ष्मणजी और हनुमान जी थे।

संत ने बालक रामदास को ठाकुर
जी की सेवा कैसे करनी है सब
सिखा दिया। रामदास ने गुरु जी से
कहा की बाबा मेरा इनसेरिशता क्या होगा
ये भी बता दो क्योँकि अगर रिशता पता चल
जाये तो सेवा करने मेँ आनंद आयेगा।

उन संत ने बालक रामदास कहा की तु
कहता था ना की मेरा कोई नहीँ हैँ तो आज
से ये रामजी और सीताजी तेरे
माता-पिता हैँ।

रामदास ने साथ मेँ खड़े लक्ष्मण
जी को देखकर कहा अच्छा बाबा और
ये जो पास मेँ खड़े है वो कौन है?

संत ने कहा ये तेरे चाचा जी है और हनुमान
जी के लिये कहा की ये तेरे बड़े भैय्या है।

रामदास सब समझ गया और फिर उनकी सेवा करने लगा।

संत शिष्योँ के साथ यात्रा पर चले गये।
आज सेवा का पहला दिन था रामदास ने सुबह
उठकर स्नान किया और भिक्क्षा माँगकर
लाया और फिर भोजन तैयार किया फिर
भगवान को भोग लगाने के लिये मंदिर आया।

रामदास ने श्रीराम सीता लक्ष्मण और
हनुमान जी आगे एक-एक थाली रख दी और बोला
अब पहले आप खाओ फिर मैँ भी खाऊँगा।

रामदास को लगा की सच मेँ भगवान बैठकर
खायेंगे. पर बहुत देर हो गई रोटी तो वैसी की वैसी थी।

तब बालक रामदास ने सोचा नया नया रिशता बना हैँ
तो शरमा रहेँ होँगे।

रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद मेँ खोलकर देखा तब
भी खाना वैसे का वैसा पडा था।

अब तो रामदास रोने लगा की मुझसे सेवा मे
कोई गलती हो गई इसलिये खाना नहीँ खा रहेँ हैँ!

और ये नहीँ खायेंगे तो मैँ भी नहीँ खाऊँगा और
मैँ भुख से मर जाऊँगा..!

इसलिये मैँ तो अब पहाड़ से कूदकर ही मर
जाऊँगा।

रामदास मरने के लिये निकल जाता है तब
भगवान रामजी हनुमान जी को कहते हैँ
हनुमान जाओ उस बालक को लेकर आओ और बालक से
कहो की हम खाना खाने के लिये तैयार हैँ।

हनुमान जी जाते हैँ और रामदास कूदने
ही वाला होता हैँ की हनुमान जी पिछे से
पकड़ लेते हैँ और बोलते हैँ क्याँ कर रहे हो?

रामदास कहता हैँ आप कौन?

हनुमान जी कहते है मैँ तेरा भैय्या हूँ
इतनी जल्दी भूल गये?

रामदास कहता है अब आये हो इतनी देर से
वहा बोल रहा था की खाना खालो तब
आये नहीँ अब क्योँ आ गये?

तब हनुमान जी बोले पिता श्री का आदेश हैँ
अब हम सब साथ बैठकर खाना खायेँगे।

फिर रामजी,सीताजी, लक्ष्मणजी ,हनुमान
जी साक्क्षात बैठकर भोजन करते हैँ।

इसी तरह रामदास रोज उनकी सेवा करता और भोजन करता।

सेवा करते 15 दिन हो गये एक दिन रामदास ने
सोचा की कोई भी माँ बाप हो वो घर मेँ काम तो करते ही हैँ.
पर मेरे माँ बाप तो कोई काम नहीँ करते सारे दिन खाते रहते हैँ.

मैँ ऐसा नहीँ चलने दूँगा। रामदास मंदिर जाता हैँ
ओर कहता हैँ पिता जी कुछ बात करनी हैँ आपसे।

रामजी कहते हैँ बोल बेटा क्या बात हैँ?

रामदास कहता हैँ की अब से मैँ अकेले काम
नहीँ करुंगा आप सबको भी काम
करना पड़ेगा, आप तो बस सारा दिन खाते रहते हो
और मैँ काम करता रहता हूँ अब से ऐसा नहीँ होगा।

राम जी कहते हैँ तो फिर बताओ बेटा हमेँ क्या काम करना है?

रामदास ने कहा माता जी (सीताजी) अब से रसोई आपके हवाले.

और चाचा जी(लक्ष्मणजी) आप सब्जी तोड़कर लाओँगे.
और भैय्या जी (हनुमान जी) आप लकड़ियाँ लायेँगे.

और पिता जी(रामजी) आप पत्तल बनाओँगे।

सबने कहा ठीक हैँ।

अब सभी साथ मिलकर काम करते हुऐँ एक
परिवार की तरह सब साथ रहने लगेँ।

एक दिन वो संत तीर्थ यात्रा से लौटे तो सिधा मंदिर मेँ गये
और देखा की मंदिर सेप्रतिमाऐँ गायब हैँ.

संत ने सोचा कहीँ रामदास ने प्रतिमा बेच
तो नहीँ दी?

संत ने रामदास को बुलाया और पुछा भगवान कहा गये?

रामदास भी अकड़कर बोला की मुझे क्या पता
रसोई मेँ कही काम कर रहेँ होंगे।

संत बोले ये क्या बोल रहा?

रामदास ने कहा बाबा मैँ सच बोल रहा हूँ जबसे आप गये हैँ
ये चारोँ काम मेँ लगे हुऐँ हैँ।

वो संत भागकर रसोई मेँ गये और सिर्फ एक झलक
देखी की सीता जी भोजन बना रही हैँ

राम जी पत्तल बना रहे है और फिर वो गायब
हो गये और मंदिर मेँ विराजमान हो गये।

संत रामदास के पास गये और बोले आज तुमने मुझे
मेरे ठाकुर का दर्शन कराया तु धन्य हैँ।

और संत ने रो रो कर रामदास के पैर पकड़ लिये...!

भक्त मित्रोँ कहने का अर्थ यही हैँ की ठाकुरजी तो
आज भी तैयार हैँ दर्शन देने के लिये
पर कोई रामदास जैसा भक्त भी तो होना चाहीये ...!

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!

Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on April 22, 2015, 11:49:16 AM
ॐ साई राम !!!

भक्ति क्या है जानिए

भक्ति जब भोजन में प्रवेश करती है,
भोजन 'प्रसाद' बन जाता है।

भक्ति जब भूख में प्रवेश करती है,
भूख 'व्रत' बन जाती है।

भक्ति जब पानी में प्रवेश करती है,
पानी 'चरणामृत' बन जाता है।

भक्ति जब सफर में प्रवेश करती है,
सफर 'तीर्थयात्रा' बन जाता है।

भक्ति जब संगीत में प्रवेश करती है,
संगीत 'कीर्तन' बन जाता है।

भक्ति जब घर में प्रवेश करती है,
घर 'मन्दिर' बन जाता है।

भक्ति जब कार्य में प्रवेश करती है,
कार्य 'कर्म' बन जाता है।

भक्ति जब क्रिया में प्रवेश करती है,
क्रिया 'सेवा' बन जाती है।

और...

भक्ति जब व्यक्ति में प्रवेश करती है,
व्यक्ति 'मानव' बन जाता है।

(https://fbcdn-sphotos-b-a.akamaihd.net/hphotos-ak-xpf1/v/t1.0-9/p180x540/11065952_10202810472342714_3668783981524147607_n.jpg?oh=bc3be3f48e58cf14da786a98cbf015ab&oe=55DB81A7&__gda__=1436665265_fb0e2a65d536dd762a363f5386c52556)

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on June 05, 2015, 05:58:46 AM
ॐ साई राम !!!

टेढ़े मेढ़े नटखट कान्हा की कहानी

एक बार की बात है बॄन्दावन का एक साधु अयोध्या की गलियों मे
राधेकृष्ण राधेकृष्ण जप रहा था
तो एक अयोध्या का साधु बोला
- अरे भाई क्या राधेकृष्ण लगा रखा है,
अरे नाम ही जपना है तो सीताराम, सीताराम जपो ना।
क्या उस टेढ़े मेढ़े का नाम लेते हो?


यह सुन कर बृंदावन वाला साधु भड़क गया और बोला,
भाई जुबान संभाल कर बात कीजिए,
ये जुबान पान भी खिलाती है और लात भी खिलाती है,
आपने मेरे इष्टदेव को टेढ़ा कैसे बोला?

अयोध्या का साधु बोला :-भाई ये बिल्कुल सत्य है कि सच्चाई
बहूत कड़वी होती है, लोग सहन नही कर पाते हैं,
देखिए ना सच सुन कर आप कितने बौखला गये?
लेकिन,
सच्चाई छुप नही सकती बनावट के उसूलों से ,
कि खुश्बू आ नही सकती कभी कागज के फूलों से।

भाई हम यह साबित कर सकते हैं कि आपके कृष्ण तो टेढ़े मेढ़े हैं ही,
उनका कुछ भी सीधा नही है।

उसका नाम टेढ़ा, उसका धाम टेढ़ा, उसका काम टेढ़ा,
और वो खुद भी टेढ़ा है, और मेरे राम को देखो
कितने सीधे और कितने सरल हैं?

बृंदावन वाला साधु -अरे..अरे, ये आपने क्या कह दिया !
नाम टेढ़ा, धाम टेढ़ा, काम टेढ़ा।?

अयोध्या वाला साधु :- बिल्कुल, आप खुद ये काग़ज़ और कलम लो
और कृष्ण लिख कर देख लो………
अब बताओ ये नाम टेढ़ा है कि नही?

बृंदावन वाला साधु:- सो तो है!

अयोध्या वाला साधु :- ठीक इसी तरह उसका धाम भी टेढ़ा है
विश्वास नहीं है तो बृंदावन लिख कर देख लो।

बृंदावन का साधु बोला- चलो हम मानते हैं कि नाम और धाम
टेढ़ा है लेकिन उनका काम टेढ़ा है और
वो खुद भी टेढ़े है ये आपने कैसे कहा?

अयोध्या का साधु बोला-प्यारे……….ये भी बताना पड़ेगा,

अरे भाई जमुना मे नहाती गोपियों के वस्त्र चुराना,रास रचाना,
माखन चुराना ये सब कोई शरीफों का सीधा सादा काम है क्या,
और आज तक कोई हमें ये बता दें कि किसी ने भी
उनको सीधे खड़े देखा है क्या?

फिर क्या था, बृंदावन के साधु को अपने कृष्ण से बहुत नाराज़गी हुई।
वो सीधे बृंदावन पहुँचा और बाँकेबिहारी से लड़ाई तान दी।
बोला खूब ऊल्लू बनाया मुझे इतने दिनों तक,
यह लो अपनी लकुट कमरिया, यह लो अपनी सोटी।
अब हम तो चले अयोध्या सीधे सादे राम की शरण में।

कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले-लगता है
तुम्हें किसी ने भड़का दिया है, ठीक है जाना चाहते हो तो
जाओ पर यह बता तो दो कि हम टेढ़े और राम सीधे कैसे हुए ?

और कृष्ण कुँए पर नहाने के लिए चल पड़े

बृंदावन वाला साधु बोला:-अजी आपका नाम टेढ़ा है
आपका धाम टेढ़ा है और आपका तो सारा काम भी टेढ़ा है
आप खुद भी तो टेढ़े हो कभी आपको किसी ने सावधान में खड़े नही देखा होगा।

कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए कुँए से पानी निकाल रहे थे
कि अचानक पानी निकालने वाली बाल्टी कुएँ में गिर जाती है,
कृष्ण अपने नाराज भक्त को आश्रम से एक सरिया लाने को कहते है,
साधु सरिया लाकर देता है, और कृष्ण उस सरिए से बाल्टी को
निकालने की कोशिश करते हैं।

यह देखकर बृंदावन का साधु बोला- आज मुझे मालूम हुआ कि
आप को अक्ल भी कोई खास नही है।अजी सीधे सरिए से
बाल्टी कैसे निकलेगी, इतनी देर से परेशान हो रहे हो,
सरिए को थोड़ा टेढ़ा कर लो, फिर देखो बाल्टी कैसे बाहर आ जाती है?

कृष्ण अपने स्वाभाविक रूप से मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले :-
जरा सोचो जब सीधापन इस छोटे से कुएँ से एक छोटी सी बाल्टी
को नही निकाल सकता, तो तुम्हें इतने बड़े भवसागर से कैसे निकाल पायेगा।

अरे आजकल के इंसानो तुम सब तो इतने गहरे पाप के सागर मेँ
गिर चुके हो कि इससे तुम्हें निकाल पाना मेरे जैसे टेढ़े का ही काम रह गया है।

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!

Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on July 27, 2015, 03:22:10 AM
ॐ साई राम !!!

भक्ति 

एक भक्त हर रोज प्रभु के मंगला दर्शन अपने नजदीकी मंदिर में करता है,
और फिर अपने नित्य जीवन कार्य में लग जाता है।
कई वर्षो तक यह नियम चलता रहा।
एक दिन वह भक्त मंदिर पहुँचा तो श्री प्रभु के मंदिर के द्वार बंद पाये,
वह आकुल-व्याकुल हो गया।
"अरे ऐसा कैसे हो सकता है?"
मंदिर के द्वार समयानुसार ही बंद किये गये थे, उन्हें मंदिर आने मे थोडी देर हूई थी
इस वजह से उनको बहुत खेद पहुंचा।
वह नजदीक एक जगह पर बैठ गया, उनकी आँखों से आँसू बहने लगे,
और आंतरिक पुकार उठी।
"ओ मुझसे कहाँ लगी इतनी देर अरे ओ साँवरिया,
साँवरिया साँवरिया मेरे मन बसिया..."
बहते आंसू और दिल की बैचेनी ने उन्हें तडपता दिया,
पूरे तन में विरह की आग लग गई।
इतने में कहीं से पुकार आयी "ओ तुने कहाँ लगायी इतनी देर,
अरे ओ बांवरिया, बांवरिया! बांवरिया मेरे प्रिय प्यारा..."
वह भक्त आसपास देखने लगा, कौन पुकारता है,
पर न कोई आस और न कोई पास था।
वह इधर उधर देखने लगा, पर वहा कोई नहीं था,
वह बैचेन हो कर बेहोश हो गया।
काफी देर हुई, उनके पैर को जल की धारा छूने लगी,
और वह होश में आ गया।
वह सोचने लगा यह जल आया कहां से?
धीरे-धीरे उठ कर वह जल के स्त्रोत को ढूंढने लगा तो देखा कि
वह स्त्रोत श्री प्रभु के द्वार से आ रहा था।
इतने में फिर से आवाज आई-
" ओ तुने क्युं लगायी इती देर, अरे ओ बांवरिया..."
वह सोच में पड गया "यह क्या, यह कौन पुकारता है,
यहाँ न कोई है, तो यह पुकार कैसी?"
वह फूट फूट कर रोने लगा और कहने लगा -
"प्रभु ओ प्रभु..." और फिर से बेहोश हो गया।
बेहोशी में उन्होंने श्रीप्रभु के दर्शन पाये और उनका मुखडा आनंद पाने लगा,
उनके चेहरे की आभा तेज होने लगी।
इतने में मंदिर में आरती का घंटा बजा,
आये हूऐ अन्य दर्शनार्थी ने उन्हें जगाया।
उन्होंने श्रीप्रभु के जो दर्शन पाये,
वहीं दर्शन थे जो उन्होंने बेहोशी में पाये थे।
इतने में उनकी नजर श्रीप्रभु के नयनों पर पहुंची,
और वह भक्त स्थिर हो गया।
श्रीप्रभु के नयनों में आंसू.....
वह अति गहराई में जा पहुँचा...
ओहहह....
जो जल मुझे स्पर्श किया था वह श्रीप्रभु के अश्रु....
नहीं-नहीं मुझसे यह क्या हो गया?
श्रीप्रभु को कष्ट...
वह बहुत रोया और बार-बार क्षमा माँगने लगा।
श्रीप्रभु ने मुस्कराते दर्शन से कहा, तुने कयुं करदी देर?
अरे अब पल की भी न करना देर ओ मेरे बांवरिया.!

(https://scontent-lhr3-1.xx.fbcdn.net/hphotos-xap1/v/t1.0-9/11800348_1026319390738255_287104406273738065_n.jpg?oh=9fbf1b26fdab84e31bc597e7b26d193f&oe=5640FF81)

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on September 19, 2015, 10:41:55 AM
ॐ साई राम !!!

भक्ति 

एक बार ऋषि नारद भगवान विष्णु के पास गए।
उन्होंने शिकायती लहजे में भगवान से कहा
"पृथ्वी पर अब आपकाप्रभाव कम हो रहा है।
धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहा,
जो पाप कर रहे हैं उनका भला हो रहा है"।

भगवान ने कहा नहीं, "ऐसा नहीं है, जो भी हो रहा है,
सब नियति के मुताबिक ही हो रहा है। "

नारद नहीं माने।

उन्होंने कहा" मैं तो देखकर आ रहा हूं,
पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और भला करने वाले,
धर्म केरास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।"

भगवान ने कहा "कोई ऐसी घटना बताओ।"

नारद ने कहा "अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं,
वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी।
कोई उसे बचाने वाला नहीं था।"

तभी एक चोर उधर से गुजरा,
"गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुका,
उलटे उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया।
आगे जाकर उसे सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिल गई। "

"थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा।
उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की।
पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया
लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद
वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया। "

"भगवान बताइए यह कौन सा न्याय है।"

भगवान मुस्कुराए, फिर बोले "नारद यह सही ही हुआ। "

"जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था,
उसकी किस्मत में तो एक आगे खजाना लिखा था
लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरे ही मिलीं।"

"वहीं उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा
क्योंकि उसके भाग्य में आगे मृत्यु लिखी थी
लेकिन गाय के बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए
और उसे मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। "

"इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। "

अब नारद संतुष्ट थे |

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!

Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on September 21, 2015, 03:33:17 AM
ॐ साई राम !!!

भक्ति 

एक संत थे जिनका नाम था जगन्नाथदास महाराज।
वे भगवान को प्रीतिपूर्वक भजते थे।
वे जब वृद्ध हुए तो थोड़े बीमार पड़ने लगे।
उनके मकान की ऊपरी मंजिल पर वे स्वयं और
नीचे उनके शिष्य रहते थे। चलने फिरने में कठिनाई होती थी,
रात को एक-दो बार बाबा शौच जाना पड़ जाता,इसलिए
"खट-खट" की आवाज करते तो कोई शिष्य आ जाता
और उनका हाथ पकड़कर उन्हें शौचालय ले जाता।
बाबा की सेवा करने वाले वे शिष्य जवान लड़के थे।

एक रात बाबा ने खट-खटाया तो कोई आया नही।
बाबा बोले- "अरे, कोई आया नही !
बुढापा आ गया, प्रभु !" इतने में एक युवक आया
और बोला "बाबा ! मैं आपकी सहायता करता हूं"
बाबा का हाथ पकड़कर वह उन्हें शौचालय मै ले गया।
फिर हाथ-पैर धुलाकर बिस्तर पर लेटा दिया।

जगन्नाथदासजी सोचने लगे "यह कैसा सेवक है कि इतनी जल्दी आ गया !
और इसके चेहरे पर ये कैसा अद्भुत तेज है..
ऐसी अस्वस्थता में भी इसके स्पर्श से अच्छा लग रहा है,
आनंद ही आनंद आ रहा है" जाते-जाते वह युवक पुनः लौटकर
आ गया और बोला
"बाबा! जब भी तुम ऐसे 'खट-खट' करोगे न, तो मैं आ जाया करूंगा।
तुम केवल विचार भी करोगे कि 'वह आ जाए' तो मैं आ जाया करूँगा"
बाबा: "बेटा तुम्हे कैसे पता चलेगा ?"
युवक: "मुझे पता चल जाता है"
बाबा: "अच्छा ! रात को सोता नही क्या?"
युवक: "हां, कभी सोता हूं, झपकी ले लेता हूं।
मैं तो सदा सेवा में रहता हूं"

जब भी बाबा जगन्नाथ महाराज रात को 'खट-खट' करते तो
वह युवक झट आ जाता और बाबा की सेवा करता।
ऐसा करते करते कई दिन बीत गए।

जगन्नाथदासजी सोचते की 'यह लड़का सेवा करने तुरंत कैसे आ जाता है?'
एक दिन उन्होंने उस युवक का हाथ पकड़कर पूछा की
"बेटा ! तेरा घर किधर है?"
युवक: "यही पास में ही है। वैसे तो सब जगह है"
बाबा: "अरे ! ये तू क्या बोलता है, सब जगह तेरा घर है?"

बाबा की सुंदर समझ जगी।
उनको संदेह होने लगा कि 'कहीं ये मेरे भगवान् जगन्नाथ तो नहीं,
जो किसी का बेटा नहीं लेकिन सबका बेटा बनने को तैयार है,
देखते-देखते भगवान् जगन्नाथ का दिव्य विग्रह प्रकट हो गया।

" देवाधिदेव! सर्वलोकैकनाथ !
सभी लोकों के एकमात्र स्वामी !
आप मेरे लिए इतना कष्ट सहते थे, रात्रि को आना,
शौचालय ले जाना, हाथ-पैर धुलाना..प्रभु !
जब मेरा इतना ख्याल रख रहे थे तो मेरा रोग क्यों नही मिटा दिया?"

 तब मंद मुस्कुराते हुए भगवान् जगन्नाथ बोले
"महाराज ! तीन प्रकार के प्रारब्ध होते है:
मंद, तीव्र और तर-तीव्र।

मंद प्रारब्ध तो सत्कर्म से, दान-पुण्य से भक्ति से मिट जाता है।

तीव्र प्रारब्ध अपने पुरुषार्थ और भगवान् के, संत महापुरुषों के आशीर्वाद से मिट जाता है।

परन्तु तर - तीव्र प्रारब्ध तो मुझे भी भोगना पड़ता है।

रामावतार मै मैंने बाली को छुपकर बाण से मारा था तो
कृष्णावतार में उसने व्याध बनकर मेरे पैर में बाण मारा।

तर-तीव्र प्रारब्ध सभी को भोगना पड़ता है।
आपका रोग मिटाकर प्रारब्ध दबा दूँ,
फिर क्या पता उसे भोगने के लिए आपको दूसरा जन्म लेना पड़े
और तब कैसी स्थिति हो जाय?
इससे तो अच्छा है कि आप अपना प्रारब्ध अभी भोग लें..
और मुझे आपकी सेवा करने में किसी कष्ट का अनुभव नहीं होता-
भक्त तो मेरे मुकुटमणि, मैं भक्तन का दास"

"प्रभु ! प्रभु ! प्रभु ! हे देव हे देव" कहते हुए
जगन्नाथ दास महाराज भगवान के चरणों में गिर पड़े
और भगवन्माधुर्य में भगवत्शांति में खो गए..भगवान अंतर्धान हो गए।

चाहे कितना ही दुख मिले भगवान को कोसने की बजाय नित्य
भगवान का दर्शन, नाम-स्मरण और भजन करते करते चलेते जाइये.........

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!

Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on September 24, 2015, 03:53:03 AM
OM SAI RAM !!!

Bhakti

In Bhakti there are four letters.
It's made up of "bha", "ka", "ta", and "i" (ee).
"Bha" stands for fulfillment and nourishment.
"Ka" stands for knowing - a means of knowing.
"Ta" stands for redeeming, for saving, for salvation.
"I" (ee) stands for shakti.

So in Bhakti four things are there:

fulfillment and nourishment;
means of knowing;
"tarana" or salvation; and energy.
Bhakti saves you.
Bhakti nourishes you.
Bhakti is the means of knowing, the right knowledge.

When Bhakti is there the doubts don't come.

It gives the most energy.
So Bhakti contains the seed all the four qualities.

All the emotional upheavals one undergoes is because one doesn't know Bhakti.

When all intense feelings flow in one direction that is Bhakti, it becomes Bhakti.

What is the difference between a canal and a flooded field?
In a flood what happens is the water does not have a bank to flow in.
When the water flows within banks you call it "river".
When water is scattered all over, it's all flooded.

So, when the emotions get flooded everywhere, mind is in a mess.
If it is intensely flowing in a direction, then that is Bhakti.
And that is most powerful.
A sign of Intelligence is Surrender or Bhakti.

OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM !!!

Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on January 17, 2016, 04:01:26 AM
ॐ साई राम !!!

भक्ति

भक्ति में कामना जरा भी नहीं रहती.....
अगर भक्ति में कामना रहे, तो भक्ति का प्रश्न ही नहीं।
अगर आपने परमात्मा से कुछ मांगा, तो चूक गए...कुछ भी मांगा तो चूक गए।
आपने कहा कि मेरी पत्नी बीमार है ठीक हो जाए,
कि मेरे बेटे को नौकरी नहीं लगती नौकरी लग जाए,
तो समझो आप चूक रहे हो,अवसर को खो रहे हो...
फिर तो यह प्रार्थना न रही, यह तो वासना हो गयी।

भक्ति तो तभी है जब कोई भी मांग न हो, जब कोई अपेक्षा न हो,
जब स्वयं का कोई विचार ही न हो, सब कुछ मौन में परिवर्तित हो जाये क
हने को कुछ शेष रहे ही ना शब्द उनकी कृपा में विलीन हो जाये।
भक्ति शुद्ध धन्यवाद है, मांग का सवाल ही नहीं है..जो दिया वह इतना ज्यादा है
कि हम अनुगृहीत हैं। जो दिया, वह हमारी पात्रता से कहीँ अधिक है,
जिस संसार सागर के गर्त में हम गिरे हुए है हम तो जरा सी कृपा के
अधिकारी भी नहीँ फिर भी हम भक्ति के अधिकारी हुए ये उनकी कृपा नही तो
और क्या है।ऐसी कृतज्ञता का नाम ही तो भक्ति है, भक्ति सौ प्रतिशत प्रीति है..!

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!

Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on April 13, 2016, 01:53:15 AM
OM SAI RAM !!!

What is the true nature of a devotee?
A powerful thought to ponder upon,
quoting a conversation
between Lord Narayana and Sage Narada.

Once Lord Narayana told Sage Narada,
“Narada, there are many devotees like you.
You find them in every house and in every place.
They will offer worship and chant My Name.
But this is not true devotion.
True devotion is that which finds expression
in every thought, word and deed of man.

Just as the food partaken gets digested
in the stomach and its essence is supplied
to all limbs of the body, likewise, when you fill
your heart with the divine name, its effect should
spread to your eyes, ears, tongue, hands, feet, etc.
When the sacred effect of the divine name spreads
to your eyes, you will develop sacred vision.

Likewise your speech will become sacred,
and you will listen only to sacred words.
Your hands will undertake sacred deeds
and your feet will take you to sacred places.
Thus a true devotee will sanctify each of
his limbs with sacred activity.”.

OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM !!!

Title: आस्था
Post by: ShAivI on May 29, 2016, 07:22:57 AM
ॐ साई राम !!!

आस्था

एक व्यक्ति बहुत परेशान था।
उसके दोस्त ने उसे सलाह दी कि कृष्ण भगवान की पूजा शुरू कर दो।
उसने एक कृष्ण भगवान की मूर्ति घर लाकर
उसकी पूजा करना शुरू कर दी।

कई साल बीत गए लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।

एक दूसरे मित्र ने कहा कि तू काली माँ कीपूजा कर,
जरूर तुम्हारे दुख दूर होंगे।

अगले ही दिन वो एक काली माँ की मूर्ति घर ले आया।

कृष्ण भगवान की मूर्ति मंदिर के ऊपर बने एक टांण पर रख दी
और काली माँ की मूर्ति मंदिर में रखकर पूजा शुरू कर दी।

कई दिन बाद उसके दिमाग में ख्याल आया कि
जो अगरबत्ती, धूपबत्ती काली जी को जलाता हूँ,
उसे तो श्रीकृष्ण जी को धुँआ लगता होगा
ऐसा करता हूँ कि श्रीकृष्ण का मुँह बाँध देता हूँ।

जैसे ही वो ऊपर चढ़कर श्रीकृष्ण का मुँह बाँधने लगा
कृष्ण भगवान ने उसका हाथ पकड़ लिया।

वो हैरान रह गया और भगवान से पूछा -
इतने वर्षों से पूजाकर रहा था तब नहीं आए!
आज कैसे प्रकट हो गए?

भगवान श्रीकृष्ण ने समझाते हुए कहा,
"आज तक तू एक मूर्ति समझकर मेरी पूजा करता था।
किन्तु आज तुम्हें एहसास था कि कृष्ण साँस ले रहा है
इसलिए मैं आ गया।"

भगवान तो सर्वत्र हैं, कण-कण में हैं।
जरूरत है तो सिर्फ आस्था रखने की..!

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
Title: Re: Bhakti
Post by: ShAivI on October 03, 2016, 07:37:10 AM
ॐ साई राम !!!

भक्ति क्या है जानिए

एक सासु माँ और बहू थी।
सासु माँ हर रोज ठाकुर जी पूरे नियम और श्रद्धा के साथ सेवा करती थी। .
एक दिन शरद रितु मेँ सासु माँ को किसी कारण वश शहर से बाहर जाना पडा।

सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी को साथ ले जाने से रास्ते मेँ
उनकी सेवा-पूजा नियम से नहीँ हो सकेँगी। सासु माँ ने विचार किया के
ठाकुर जी की सेवा का कार्य अब बहु को देना पड़ेगा लेकिन बहु को तो
कोई अक्कल है ही नहीँ के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी हैँ।

सासु माँ ने बहु ने बुलाया ओर समझाया के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है।
सासु माँ ने बहु को समझाया के बहु मैँ यात्रा पर जा रही हूँ
और अब ठाकुर जी की सेवा पूजा का सारा कार्य तुमको करना है।

सासु माँ ने बहु को समझाया देख ऐसे तीन बार घंटी बजाकर सुबह ठाकुर जी को जगाना।
फिर ठाकुर जी को मंगल भोग कराना।
फिर ठाकुर जी स्नान करवाना।
ठाकुर जी को कपड़े पहनाना।
कैसे ठाकुर जी को लाड लडाना है।
फिर ठाकुर जी का श्रृंगार करना ओर
फिर ठाकुर जी को दर्पण दिखाना।
दर्पण मेँ ठाकुर जी का हंस्ता हुआ मुख देखना बाद मेँ ठाकुर जी राजभोग लगाना।

इस तरह सासु माँ बहु को सारे सेवा नियम समझाकर यात्रा पर चली गई।

अब बहु ने ठाकुर जी की सेवा कार्य उसी प्रकार शुरुकिया जैसा सासु माँ ने समझाया था।
ठाकुर जी को जगाया नहलाया कपड़े पहनाये श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया।

सासु माँ ने कहा था की दर्पण मेँ ठाकुर जी का हस्ता हुआ देखकर ही राजभोग लगाना।
दर्पण मेँ ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख ना देखकर बहु को बड़ा आशर्चय हुआ।
बहु ने विचार किया शायद मुझसे सेवा मेँ कही कोई गलती हो गई हैँ
तभी दर्पण मे ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिख रहा।
बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया दर्पण दिखाया।
लेकिन ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा।
बहु ने फिर विचार किया की शायद फिर से कुछ गलती हो गई।
बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया दर्पण दिखाया।
जब ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नही दिखा बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया ।
ऐसे करते करते बहु ने ठाकुर जी को 12 बार स्नान किया।
हर बार दर्पण दिखाया मगर ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा।
अब बहु ने 13वी बार फिर से ठाकुर जी को नहलाने की तैयारी की।

अब ठाकुर जी ने विचार किया की जो इसको हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा तो
ये तो आज पूरा दिन नहलाती रहेगी।

अब बहु ने ठाकुर जी को नहलाया कपड़े पहनाये श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया।
अब बहु ने जैसे ही ठाकुर जी को दर्पण दिखाया तो
ठाकुर जी अपनी मनमोहनी मंद मंद मुस्कान से हंसे।
बहु को संतोष हुआ की अब ठाकुर जी ने मेरी सेवा स्वीकार करी।

अब यह रोज का नियम बन गया ठाकुर जी रोज हंसते।
सेवा करते करते अब तो ऐसा हो गया के बहु जब भी ठाकुर जी के
कमरे मेँ जाती बहु को देखकर ठाकुर जी हँसने लगते।

कुछ समय बाद सासु माँ वापस आ गई।
सासु माँ ने ठाकुर जी से कहा की प्रभु क्षमा करना अगर बहु से
आपकी सेवा मेँ कोई कमी रह गई हो तो अब मैँ आ गई हूँ
आपकी सेवा पूजा बड़े ध्यान से करुंगी।
तभी सासु माँ ने देखा की ठाकुर जी हंसे और बोले की
मैय्या आपकी सेवा भाव मेँ कोई कमी नहीँ हैँ
आप बहुत सुंदर सेवा करती हैँ लेकिन मैय्या दर्पण दिखाने की सेवा तो
आपकी बहु से ही करवानी है इस बहाने मेँ हँस तो लेता हूँ।

(https://scontent.fbom1-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/14450002_1274027119294354_8046882031792271673_n.jpg?oh=dd6715e78147caa507bbf483116c0bc4&oe=586B235B)

(https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQsIN-KAR7-jCq248KAdbLRad4bVr3T3lcgt5qljCvgQ08u4fxh)
ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
Title: भगवान् सबके हैं और सबमें हैं
Post by: ShAivI on November 23, 2016, 01:50:31 AM
ॐ साई राम !!!

भगवान् सबके हैं और सबमें हैं

भगवान् सबके हैं और सबमें हैं,
पर मनुष्य उनसे विमुख हो गया है ।
संसार रात-दिन नष्ट होता जा रहा है,
फिर भी वह उसको अपना मानता है
और समझता है कि मेरे को संसार मिल गया ।

भगवान् कभी बिछुड़ते हैं ही नहीं, पर उनके लिये कहता है कि
वे हैं ही नहीं, मिलते हैं ही नहीं ;
भगवान्से मिलना तो बहुत कठिन है,
पर भगवान् तो सदा मिले हुए ही रहते हैं । भाई !

आप अपनी दृष्टि उधर डालते ही नहीं, उधर देखते ही नहीं ।
जहाँ-जहाँ आप देखते हो , वहाँ-वहाँ भगवान् मौजूद हैं ।
अगर यह बात स्वीकार कर लो, मान लो कि सब देश में,
सब काल में, सब वस्तुओं में, सम्पूर्ण घटनाओं में, सम्पूर्ण परिस्थितियों में,
सम्पूर्ण क्रियाओं में भगवान् हैं, तो भगवान् दीखने लग जायेंगे ।
दृढ़तासे मानोगे तो दीखेंगे, संदेह होगा तो नहीं दीखेंगे ।
जितना मानोगे, उतना लाभ जरूर होगा ।
दृढ़ता से मान लो तो छिप ही नहीं सकते भगवान् !

क्योंकि‒

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥
(गीता ६ । ३०)

‘जो सब में मेरे को देखता है और
सब को मेरे अन्तर्गत देखता है,
मैं उसके लिये अदृश्य नहीं होता और
वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।’

जहाँ देखें, जब देखें, जिस देश में देखें, वहीं भगवान् हैं ।
परन्तु जहाँ राग-द्वेष होंगे, वहाँ भगवान् नहीं दीखेंगे ।
भगवान् के दीखने में राग-द्वेष ही बाधक हैं ।
जहाँ अनुकूलता मान लेंगे, वहाँ राग हो जायगा और
जहाँ प्रतिकूलता मान लेंगे, वहाँ द्वेष हो जायगा ।

एक आदमी की दो बेटियों थीं ।
दोनों बेटियाँ पास-पास गाँव में ब्याही गयी थीं ।
एक बेटी वालों का खेती का काम था
और एक का कुम्हार का काम था ।

वह आदमी उस बेटी के यहाँ गया, जो खेतीका काम करती थी
और उससे पूछा कि क्या ढंग है बेटी ?

उसने कहा ‒ पिताजी ! अगर पाँच-सात दिनों में वर्षा नहीं हुई तो
खेती सूख जायगी, कुछ नहीं होगा ।

अब वह दूसरी बेटीके यहाँ गया और उससे पूछा कि क्या ढंग है ?
तो वह बोली ‒ पिताजी ! अगर पाँच-सात दिनों में वर्षा आ गयी
तो कुछ नहीं होगा;
क्यों कि मिट्टीके घड़े धूप में रखे हैं और कच्चे घड़ों पर
यदि वर्षा हो जायगी तो सब मिट्टी हो जायगी !

अब आप लोग बतायें कि भगवान् वर्षा करें या न करें !
दोनों एक आदमी की बेटियों हैं ।

माता-पिता सदा बेटी का भला चाहते हैं ।
अब करें क्या ?

एक ने वर्षा होना अनुकूल मान लिया और
एक ने वर्षा होना प्रतिकूल मान लिया ।
एक ने वर्षा न होना अनुकूल मान लिया और
एक ने वर्षा न होना प्रतिकूल मान लिया ।

उन्होंने वर्षा होने को ठीक - बेठीक मान लिया ।
परन्तु वर्षा न ठीक है न बेठीक है ।
वर्षा होने वाली होगी तो होगी ही ।
अगर कोई वर्षा होने को ठीक मानता है
तो उसका वर्षा में ‘राग’ हो गया
और वर्षा होने को ठीक नहीं मानता तो
उसका वर्षा में ‘द्वेष’ हो गया ।

ऐसे ही यह संसार तो एक - सा है, पर इस में ठीक और
बेठीक‒ये दो मान्यताएँ कर लीं तो फँस गये !

ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!