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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: tana on April 19, 2008, 03:59:44 AM

Title: HAPPY HANUMAN JAYANTI~~~
Post by: tana on April 19, 2008, 03:59:44 AM
ॐ सांई राम~~~

अंनजनीय  वीर  हनुमनत्  शूर  वायु  कुमार  वानर  धीर ~~~


श्री राम दूत जय हनुमनत्~~~

जय बोलो सियाराम की जय बोलो हनुमान की ~~

राम लखन सिया जनकी जय बोलो हनुमान की ~~
जय सियाराम जय जय सियाराम ~~
जय हनुमान जय जय हनुमान ~~
जय सांई राम जय जय सांई राम ~~


जय सांई राम~~~

Title: Re: HAPPY HANUMAN JAYANTI~~~
Post by: tana on April 19, 2008, 04:02:23 AM
ॐ साँई राम~~~

श्री हनुमान चालीसा~~~  

दोहा~~

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

चौपाई~~

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही। जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त  कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढै़ हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

दोहा

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥



जय साँई राम~~~
Title: Re: HAPPY HANUMAN JAYANTI~~~
Post by: tana on April 19, 2008, 04:04:02 AM
ॐ सांई राम~~~


बजरंग बाण~~~

 
~~~दोहा~~~

निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।।

जय हनुमन्त सन्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।
जैसे कूदि सुन्धु वहि पारा । सुरसा बद पैठि विस्तारा ।।
आगे जाई लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।
बाग उजारी सिन्धु महं बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।
अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेट लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर मे भई ।।
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु उन अन्तर्यामी ।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता । आतुर होय दुख हरहु निपाता ।।
जै गिरिधर जै जै सुखसागर । सुर समूह समरथ भटनागर ।।
जय हनु हनु हनुमंत हठीले । बैरिहि मारु बज्र की कीले ।।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो । महाराज प्रभु दास उबारो ।।
ऊँ कार हुंकार महाप्रभु धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।।
ऊँ हीं हीं हनुमन्त कपीसा । ऊँ हुं हुं हनु अरि उर शीशा ।।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के । रामदूत धरु मारु जाय के ।।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।
पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ।।
वन उपवन, मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।।
पांय परों कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।
जय अंजनि कुमार बलवन्ता । शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।।
बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रति पालक ।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बेताल काल मारी मर ।।
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की । राखु नाथ मरजाद नाम की ।।
जनकसुता हरि दास कहावौ । ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।
जय जय जय धुनि होत अकाशा । सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ।।
चरण शरण कर जोरि मनावौ । यहि अवसर अब केहि गौहरावौं ।।
उठु उठु उठु चलु राम दुहाई । पांय परों कर जोरि मनाई ।।
ऊं चं चं चं चपल चलंता । ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ।।
ऊँ हं हं हांक देत कपि चंचल । ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल ।।
अपने जन को तुरत उबारो । सुमिरत होय आनन्द हमारो ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहो फिर कौन उबारै ।।
पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्राम की ।।
यह बजरंग बाण जो जापै । ताते भूत प्रेत सब कांपै ।।
धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेशा ।।

~~~दोहा~~~

प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।।

जय सांई राम~~~

Title: Re: HAPPY HANUMAN JAYANTI~~~
Post by: MANAV_NEHA on April 19, 2008, 05:52:14 AM
आरती श्री हनुमान जी की

आरती कीजे हनुमान लला की! दुष्टदलन रघुनाथ कला की!!
जाके बलसे गिरिवर कापे! रोग दोष जाके निकट न झापे!!

अंजनिपुत्र महा बलदायी! सन्तन के प्रभु सदा सहाई!!
दे बीरा रघुनाथ पठाये! लंका जारि सिया सुधि लाये!!

लंका-सो कोट समुद्र-सी खाई! जात पवनसुत बार न लाई!!
लंका जारि असुर संहारे! सियारामजी के काज सँवारे!!

लक्ष्मण मुर्चित पड़े संकारे! आनि संजीवन प्राण उबारे!!
पेठी पाताल तोरि जम-कारे! अहिरावन की भुजा उखारे!!

बाये भुजा असुरदल मारे! दाहिने भुजा संतजन तारे!!
सुर नर मुनि आरती उतारे! जय जय जय हनुमान उचारे!!

कंचन थाल कपूर लों छाई! आरती करत अंजना माई!!
जो हनुमान जी की आरती गावे! बसि वेकुन्ट परम पद पावे!!

लंख विद्वंश किए रघुराई ! तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई!!

  ॐ साई राम
Title: Re: HAPPY HANUMAN JAYANTI~~~
Post by: Ramesh Ramnani on April 19, 2008, 06:44:11 AM
जय सांई राम।।।

What is hanuman's original name?  

Scholars argue that immediately after the birth of Hanuman his mother Anjana named him Sunder (handsome boy) as he was extremely charming owing to the Divine Power imbibed in him.   In support of this supposition a number or scholars say that the fifth chapter of the Ramcharitmanas which abounds in great and glorious deeds of Hanuman has been entitled as Sunder Kand (so also in Valmiki  Ramayana).               
 
Anjaneya : Son of Anjana
Anjanagarbhasambhoota : Born of Anjani
Ashokavanikachhetre : Destroyer of Ashoka Grove
Akshahantre : Slayer of Aksha
Balarka Sadrushanana : Like the Rising Sun
Bheemasenasahayakrute : Helper of Bheema
Batnasiddhikara : Granter of Strength
Bhakthavatsala : Protector of Devotees
Bajrangbali : With strength of diamod
Bhavishya Chaturanana : Aware of Future Happenings
Chanchaladwala : Glittering Tail Suspended Above The Head.
Chiranjeevini : Eternal Being
Chaturbahave : Four-Armed
Dashabahave : Ten-Armed
Danta : Calm
Dheera : Valiant
Deenabandhave : Protector of the Downtrodden
Daithyakulantaka : Destroyer of Demons
Daityakarya Vidhyataka : Destroyer of All Demons' Activities
Dhruddavrata : Strong-Willed Meditator.
Dashagreevakulantaka : Slayer of the Ten-Headed Ravana Race
Gandharvavidya Tatvangna : Exponent in the Art of Celestials
Gandhamadhana Shailastha : Dweller of Gandhamadhana
Hanumanta : Puffy Cheeks
Indrajit Prahitamoghabrahmastra Vinivaraka : Remover of the Effect of Indrajit's Brahmastra
Jambavatpreeti Vardhana : Winning Jambavan's Love
JaiKapeesh : Hail Monkey
Kapeeshwara : Lord of Monkeys
Kabalikruta : Swallower of the Sun
Kapisenanayaka : Chief of the Monkey Army
Kumarabrahmacharine : Youthful Bachelor
Kesarinandan : Son of Kesari
Kesarisuta : Son of Kesari
Kalanemi Pramathana : Slayer of Kalanemi
Harimarkatamarkata : Lord of Monkeys
Karagrahavimoktre : One who Frees from Imprisonment
Kalanabha : Controller of Time
Kanchanabha : Golden-Hued Body
Kamaroopine : Changing Form at Will
Lankineebhanjana : Slayer of Lankini
Lakshmanapranadatre : Reviver of Lakshmana's Life
Lankapuravidahaka : He Who Burnt Lanka
Lokapujya : Worshipped by the Universe
Maruti :Son of Marut (wind god)
Mahadhyuta : Most Radiant
Mahakaya : Gigantic
Manojavaya : Speed Like Wind
Mahatmane : Supreme Being
Mahavira : Most Valiant
Marutatmaja : Most Beloved Like Gems
Mahabala Parakrama : Of Great Strength
Mahatejase : Most Radiant
Maharavanamardana : Slayer of the Famous Ravana
Mahatapase : Great Meditator
Navavyakruti Pandita : Skilful Scholar
Parthadhwajagrasamvasine : Having Foremost Place on Arjuna's Flag
Pragnya : Scholar
Prasannatmane : Cheerful
Pratapavate : Known for Valour
Paravidhyaparihara : Destroyer of Enemies Wisdom
Parashaurya Vinashana : Destroyer of Enemy's Valour
Parijata Tarumoolastha : Resider Under the Parijata Tree
Prabhave : Popular Lord
Paramantra Nirakartre : Acceptor of Rama's Mantra Only
Pingalaksha : Pink-Eyed
Pavanputra : Son of Wind god
Panchavaktra : Five-Faced
Parayantra Prabhedaka : Destroyer of Enemies' Missions
Ramasugreeva Sandhatre : Mediator between Rama and Sugreeva
Ramakathalolaya : Crazy of listening Rama's Story
Ratnakundala Deeptimate : Wearing Gem-Studded Earrings
Rudraveerya Samudbhava : Born of Shiva
Ramachudamaniprada : Deliverer of Rama's Ring
Ramabhakta : Devoted to Rama
Ramadhuta : Ambassador of Rama
Rakshovidhwansakaraka : Slayer of Demons
Sankatamochanan :  Reliever of sorrows
Sitadevi Mudrapradayaka : Deliverer of the Ring of Sita
Sarvamayavibhanjana : Destroyer of All Illsions
Sarvabandha Vimoktre : Detacher of all Relationship
Sarvagraha Nivashinay : Killer of Evil Effects of Planets
Sarvaduhkhahara : Reliever of all Agonies
Sarvalolkacharine : Wanderer of all Places
Sarvamantra Swaroopavate : Possessor of all Hymns
Sarvatantra Sawaroopine : Shape of all Hymns
Sarvayantratmaka : Dweller in all Yantras
Sarvarogahara : Reliever of all Ailments
Sarvavidhyasampath Pradayaka : Granter of Knowledge and Wisdom
Shrunkalabandhamochaka : Reliever from a Chain of Distresses
Sitashoka Nivarana : Destroyer of Sita's Sorrow
Shrimate : Revered
Simhikaprana Bhanjana : Slayer of Simhika
Sugreeva Sachiva : Minister of Sugreeva
Shoora : Bold
Surarchita : Worshipped by Celestials
Sphatikabha : Crystal-Clear
Sanjeevananagahatre : Bearer of Sanjeevi Mount
Shuchaye : Chaste
Shanta : Very Composed
Shatakanttamadapahate : Destroyer of Shatakantta's Arrogance
Sitanveshana Pandita : Skilful in finding Sita's Whereabouts
Sharapanjarabhedaka : Destroyer of the Nest made of Arrows
Sitaramapadaseva : Always Engrossed in Rama's Service
Sagarotharaka : Leapt Across the Ocean
Tatvagyanaprada : Granter of Wisdom
Vanara : Monkey
Vibheeshanapriyakara : Beloved of Vibheeshana
Vajrakaya : Sturdy Like Metal
Vardhimainakapujita : Worshipped by Mynaka Hill
Vagmine : Spolesman
Vijitendriya : Controller of the Senses
Vajranakha : Strong-Nailed
Vagadheeksha : Lord of Spokesmen
Yogine : Saint

     
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: HAPPY HANUMAN JAYANTI~~~
Post by: MANAV_NEHA on April 20, 2008, 06:24:06 AM
JAI SIYA RAM

OM HANUMATHAY NAMAH

HANUMAN JAYANTI KI SABKO BAHUT BAHUT SHUBKAMNAYE

BABA BAJRANG BALI HUM SAB PUR KRIPA KARE AUR SABKI RAKSHA KARE

JAI SAI RAM
Title: Re: HAPPY HANUMAN JAYANTI~~~
Post by: priyanka_goel on April 20, 2008, 08:05:29 AM
om shri sai nathay namah

om hanumataye namah
om hanumataye namah

om shri sai nathay namah
Title: Re: HAPPY HANUMAN JAYANTI~~~
Post by: tana on April 21, 2008, 01:04:29 AM
ॐ सांई राम~~~

भक्ति के महाद्वार हैं हनुमान ~~~
 
विश्व-साहित्य में हनुमान के सदृश पात्र कोई और नहीं है। हनुमान एक ऐसे चरित्र हैं जो सर्वगुण निधान हैं। अप्रतिम शारीरिक क्षमता ही नहीं, मानसिक दक्षता तथा सर्वविधचारित्रिक ऊंचाइयों के भी यह उत्तुंग शिखर हैं। इनके सदृश मित्र, सेवक ,सखा, कृपालु एवं भक्तिपरायणको ढूंढनाअसंभव है। हनुमान के प्रकाश से वाल्मीकि एवं तुलसीकृतरामायण जगमग हो गई। हनुमान के रहते कौन सा कार्य व्यक्ति के लिए कठिन हो सकता है?

दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरेतेते॥


तो आप अगर किसी कष्ट से ग्रस्त हैं, किसी समस्या से पीडित हैं, कोई अभाव आपको सता रहा है तो देर किस बात की! हनुमान को पुकारिए, सुंदर कांड का पाठ कीजिए, वह कठिन लगे तो हनुमान-चालीसा का ही परायण कीजिए और आप्तकामहो जाइए। हनुमान की प्रमुख विशेषताओं को गोस्वामी ने इन चार पंक्तियों में समेटने का प्रयास किया है-

अतुलितबलधामंहेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुंज्ञानिनामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानंवानरणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तंवातजातंनमामि।।


अतुलित बलशाली, सोने के पर्वत के सदृश विशाल कान्तिमान् शरीर, दैत्य (दुष्ट) रूपी वन के लिए अग्नि-समान, ज्ञानियोंमें अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के खान, वानराधिपति,राम के प्रिय भक्त पवनसुतहनुमान का मैं नमन करता हूं।

अब ढूंढिएऐसे चरित्र को जिसमें एक साथ इतनी विशेषताएं हों। जिसका शरीर भी कनक भूधराकारहो, जो सर्वगुणोंसे सम्पन्न भी हो, दुष्टों के लिए दावानल भी हो और राम का अनन्य भक्त भी हो। कनक भूधराकारकी बात कोई अतिशयोक्ति नहीं, हनुमान के संबंध में यह यत्र-तत्र-सर्वत्र आई है।

आंजनेयंअति पाटलाननम्

कांचनाद्रिकमनीयविग्रहम्।

पारिजाततरुमूलवासिनम्

भावयामिपवननन्दनम्॥


अंजना पुत्र,अत्यन्त गुलाबी मुख-कान्ति तथा स्वर्ण पर्वत के सदृश सुंदर शरीर, कल्प वृक्ष के नीचे वास करने वाले पवन पुत्र का मैं ध्यान करता हूं। पारिजात वृक्ष मनोवांछित फल प्रदान करता है। अत:उसके नीचे वास करने वाले हनुमान स्वत:भक्तों की सभी मनोकामनाओंकी पूर्ति के कारक बन जाते हैं। आदमी तो आदमी स्वयं परमेश्वरावतारपुरुषोत्तम राम के लिए हनुमान जी ऐसे महापुरुष सिद्ध हुए कि प्रथम रामकथा-गायक वाल्मीकि ने राम के मुख से कहलवा दिया कि तुम्हारे उपकारों का मैं इतना ऋणी हूं कि एक-एक उपकार के लिए मैं अपने प्राण दे सकता हूं, फिर भी तुम्हारे उपकारों से मैं उऋण कहां हो पाउंगा?

एकैकस्योपकारस्यप्राणान्दास्यामितेकपे।शेषस्येहोपकाराणांभवामऋणिनोवयम्।

उस समय तो राम के उद्गार सभी सीमाओं को पार कर गए जब हनुमान के लंका से लौटने पर उन्होंने कहा कि हनुमान ने ऐसा कठिन कार्य किया है कि भूतल पर ऐसा कार्य सम्पादित करना कठिन है, इस भूमंडल पर अन्य कोई तो ऐसा करने की बात मन में सोच भी नहीं सकता।

कृतंहनूमताकार्यसुमहद्भुविदुलर्भम्।मनसापियदन्येनन शक्यंधरणी तले॥

गोस्वामी जी हनुमान के सबसे बडे भक्त थे। वाल्मीकि के हनुमान की विशेषताओं को देखकर वह पूरी तरह उनके हो गए। हनुमान के माध्यम से उन्होंने राम की भक्ति ही नहीं प्राप्त की, राम के दर्शन भी कर लिए। हनुमान ने गोस्वामी की निष्ठा से प्रसन्न होकर उन्हें वाराणसी में दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। तुलसी को अपने राम के दर्शन के अतिरिक्त और क्या मांगना था? हनुमान ने वचन दे दिया। राम और हनुमान घोडे पर सवार, तुलसी के सामने से निकल गए। हनुमान ने देखा उनका यह प्रयास व्यर्थ गया। तुलसी उन्हें पहचान ही नहीं पाए। हनुमान ने दूसरा प्रयास किया। चित्रकूट के घाट पर वह चंदन घिस रहे थे कि राम ने एक सुंदर बालक के रूप में उनके पास पहुंच कर तिलक लगाने को कहा। तुलसीदास फिर न चूक जाएं अत:हनुमान को तोते का रूप धारण कर ये प्रसिद्ध पंक्तियां कहनी पडी-

चित्रकूट के घाट पर भई संतनकी भीर।तुलसीदास चन्दन रगरैतिलक देतराम रघुबीर॥

हनुमान ने मात्र तुलसी को ही राम के समीप नहीं पहुंचाया। जिस किसी को भी राम की भक्ति करनी है, उसे प्रथम हनुमान की भक्ति करनी होगी। राम हनुमान से इतने उपकृत हैं कि जो उनको प्रसन्न किए बिना ही राम को पाना चाहते हैं उन्हें राम कभी नहीं अपनाते। गोस्वामी ने ठीक ही लिखा-

राम दुआरेतुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनुपैसारे॥


अत:हनुमान भक्ति के महाद्वारहैं। राम की ही नहीं कृष्ण की भी भक्ति करनी हो तो पहले हनुमान को अपनाना होगा। यह इसलिए कि भक्ति का मार्ग कठिन है। हनुमान इस कठिन मार्ग को आसान कर देते हैं, अत:सर्वप्रथम उनका शरणागत होना पडता है। भारत में कई ऐसे संत व साधक हुए हैं जिन्होंने हनुमान की कृपा से अमरत्व को प्राप्त कर लिया। रामायण में राम और सीता के पश्चात सर्वाधिक लोकप्रिय चरित्र हैं हनुमान जिनके मंदिर भारत ही नहीं भारत के बाहर भी अनगिनत संख्या में निर्मित हैं। धरती तो धरती तीनों लोकों में इनकी ख्याति है-

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।

जय कपीसतिहूंलोक उजागर॥


जय सांई राम~~~
 
 
Title: Re: HAPPY HANUMAN JAYANTI~~~
Post by: tana on April 21, 2008, 01:05:55 AM
ॐ सांई राम~~~

अनूठे रामभक्त हनुमान  
 
पुराणों की मान्यतानुसारवायुदेवताके औरस पुत्र श्रीहनुमानशिवजी के अवतार हैं, जो रामकार्यके निमित्त वानर योनि में अवतरित हुए। श्रीमद्भागवत में भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धवजीसे किम्पुरुषों(सेवकों) में स्वयं के हनुमान होने की बात स्वीकारी है। मानस-पीयूष के अनुसार अगस्त्य-संहिता में उल्लिखित श्रीसीताजीकी अन्तरंग अष्ट-सखियों में से जानकीजीको श्रीराम से मिलवाने वाली सखी श्रीचारुशीलाके रूप में श्रीहनुमानजीही हैं। वे आजन्म नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं। तेज, धैर्य, यश, दक्षता, शक्ति, विनय,नीति, पुरुषार्थ, पराक्रम और बुद्धि जैसे गुण उनमें नित्य विद्यमान हैं। बल अन्तक-काल के समान है, तभी कोई शत्रु सम्मुख टिक नहीं सकता। शरीर वज्र के समान सुदृढ (वज्रांगी) है और गति गरुड के समान तीव्र। वे सभी के लिए अजेय व सभी आयुधों से अवध्य हैं। भक्ति के आचार्य, संगीत-शास्त्र के प्रवर्तक, चारों वेद एवं छह वेदांग शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष) के मर्मज्ञ हैं। अष्टसिद्धि एवं नवनिधि के दाता हैं।

केवल त्रेतायुगही नहीं, द्वापर भी हनुमानजी की पराक्रम-गाथा से गौरवान्वित हैं। महाभारत में कथानक है कि हनुमान जी ने गन्धमादनपर्वत पर कदली-वनमें अस्वस्थतावशपूंछ फैलाकर मार्ग में स्वच्छंद पडे रहने का उपक्रम किया। भीम ने दोनों हाथों से पूंछ हटाने का असफल प्रयास किया। इस प्रकार बलगर्वितभीम का गर्व विगलित हुआ। अर्जुन की रथ-ध्वजा पर विराजकर युद्धकाल में बल प्रदान किया। आनन्द रामायण में वर्णन है कि अर्जुन द्वारा त्रेतामें राम-सेतु निर्माण की आलोचना करते हुए अहंकारवशशर-सेतु निर्मित कर श्रेष्ठता सिद्ध करते समय हनुमानजी के पग धरते ही सेतु भंग होने से अर्जुन का अहंकार नष्ट हुआ।

वे दास्य-भक्ति के सर्वोच्च आदर्श हैं। सीता- अन्वेषण एवं लंका-दहन के अत्यंत दुष्कर कृत्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न करके सो सब तब प्रताप रघुराई।नाथ न कछुमोरी प्रभुताई॥की दैन्यभावयुक्तस्वीकारोक्ति सहित प्रभु श्रीराम से नाथ भगतिअति सुखदायनी।देहुकृपा करिअनपायनी॥द्वारा मात्र निश्चल-भक्ति की याचना दास्यासक्तिका अनुपम उदाहरण है। जनुश्रुतिहै कि हनुमानजी द्वारा अनवरत श्रीराम की सेवा के कारण वंचित भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न द्वारा माता जानकी के सहयोग से प्रभु के शैया-त्यागसे शयन-काल तक की सेवा-तालिका बनाई गई, जिसमें हनुमान का नाम न था। हनुमानजी के अनुरोध पर उनके लिए प्रभु श्रीराम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने की सेवा नियत हुई। तब प्रभु के मुखारविन्दको अपलक निहारते हुए भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर प्रतिक्षण चुटकी ताने सेवा को तत्पर रहते। रात्रि में माता जानकी की आज्ञावशप्रभु से विलग होने पर उनके शयनागार के समीप उच्चस्थछज्जेपर बैठकर प्रभु का नामोच्चारणकरते हुए अनवरत चुटकी बजाने लगे। संकल्पबद्ध भगवान् श्रीराम को भी निरन्तर जम्हाई-पर जम्हाई आने लगीं और अन्तत:थकित हो मुख खुला रह गया। तब दु:खी परिजनों के मध्य वशिष्ठजीहनुमान को न पाकर उन्हें ढूंढकर वहां लाए। प्रभु के नेत्रों से अविरल अश्रु-प्रवाह और खुला मुखारविन्ददेख दु:खित हनुमान की चुटकी बंद हो गई। तभी प्रभु की पूर्व स्थिति आते ही मर्म को जान सभी ने उन्हें पूर्ववत् प्रभु-सेवा सौंपी। सभी वैष्णव-सम्प्रदायों में उनका समुचित सम्मान है। गौणीय-सम्प्रदायमें चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख परिकर श्रीमुरारिगुप्तहनुमानजी के अवतार माने गए हैं। मध्वसम्प्रदाय में उन्हें हनु (परमज्ञान) का अधिकारी देवता मानते हैं। साथ ही वायु के तीन अवतार मान्य हैं- त्रेतायुगमें श्रीहनुमान,द्वापर में भीम और कलियुग में श्रीमध्व।रामानन्द-सम्प्रदाय में वे सम्प्रदायाचार्य, भगवान् के परिकर एवं नित्य-उपास्य के रूप में मान्य व पूजित हैं। वल्लभ-सम्प्रदाय में अष्टछापके भक्त-कवियों की वाणी भी श्रीहनुमद्गुणानुवादसे अलंकृत हैं। स्वयं महाप्रभु वल्लभाचार्यजीकी निष्ठा दृष्टव्य है-

अंजनिगर्भसम्भूतकपीन्द्रसचिवोत्तम।

रामप्रियनमस्तुभ्यंहनुमन्रक्ष सर्वदा॥


आनन्द रामायण में उल्लिखित अष्ट चिरजीवियोंअश्वत्थामा,बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य,परशुराम और मार्कण्डेय) में हनुमान भी सम्मिलित हैं। भगवान् श्रीराम से उन्हें चिरंजीवित्वव कल्पान्त में सायुज्य मुक्ति का वर मिला है- मारुते त्वंचिरंजीव ममाज्ञांमा मृषा कृथा।एवम्कल्पान्ते मम् सायुज्य प्राप्स्यसेनात्रसंशय:। (अध्यात्म रामायण)। श्रीरामकथाके अनन्य रसिक श्रीहनुमानजीकथा-स्थल पर अदृश्य रूप अथवा छद्मवेषमें विद्यमान रहकर सतत् कथा- रसास्वादन में निमग्न रहते हैं। अप्रतिम रामभक्त श्रीहनुमानसर्वथा प्रणम्य हैं-

प्रनवउंपवनकुमारखल बन पावक ग्यानघन।

जासुहृदय आगार बसहिंराम सर चाप धर॥


जय सांई राम~~~