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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: tana on March 19, 2008, 06:37:03 AM

Title: Happy Holi~~~होली के रंग~~~बाबा के संग~~~
Post by: tana on March 19, 2008, 06:37:03 AM
ॐ सांई राम~~~
 
देश में होली के विभिन्न रूप~~~

होली ऐसा पर्व है जो पूरे भारत में लगभग एक स्‍वरूप में मनाया जाता है। हाँ, थोड़ा बहुत रूप और मनाने के रीति और रिवाजों में जरूर बदलाव हैं। आइए एक नजर डालते है, होली के विभिन्न रूपों पर~~~


लट्ठमार होली~~~
 
होली की बात हो और ब्रज का नाम ना आए, ऐसा तो हो ही नही सकता। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूबता है। यहाँ भी सबसे ज्यादा मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली। बरसाना राधा का जन्मस्थान है। मथुरा (उत्तरप्रदेश) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है।

इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नन्दगाँव के पुरुषों (गोप) जो राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है।

महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रंगार इत्यादि करके उन्‍हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था।

दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की गोपियाँ, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है।


हरियाणा की धुलेंडी~~~
 
भारतीय संस्‍कृति में रिश्‍तों और प्रकृति के बीच सामंजस्‍य का अनोखा मिश्रण हरियाणा की होली में देखने को मिलता है। यहाँ होली धुलेंडी के रूप में मनाते हैं और सूखी होली - गुलाल और अबीर से खेलते हैं। भाभियों को इस दिन पूरी छूट रहती है कि वे अपने देवरों को साल भर सताने का दण्ड दें।

भाभियाँ देवरों को तरह-तरह से सताती हैं और देवर बेचारे चुपचाप झेलते हैं, क्योंकि इस दिन तो भाभियों का दिन होता है। शाम को देवर अपनी प्यारी भाभी के लिए उपहार लाता है और भाभी उसे आशीर्वाद देती है। लेकिन उपहार और आशीर्वाद के बाद फिर शुरू हो जाता है देवर और भाभी के पवित्र रिश्‍ते की नोकझोंक और एक-दूसरे को सताए जाने का सिलसिला। इस दिन मटका फोड़ने का भी कार्यक्रम आयोजित होता है।
 

बंगाल का वसन्तोत्सव~~~

गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने होली के ही दिन शान्ति निकेतन मे वसन्तोत्सव का आयोजन किया था, तब से आज तक इसे यहाँ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
 

बंगाल में डोल पूर्णिमा~~~
 
बंगाल में होली डोल पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। इस दौरान रंगों के साथ पूरे बंगाल की समृद्ध संस्‍कृति की झलक देखने को मिलती है। इस दिन लोग बसंती रंग के कपड़े पहनते हैं और फूलों से श्रंगार करते हैं। सुबह से ही नृत्‍य और संगीत का कार्यक्रम चलता है। घरों में मीठे पकवान और बनते हैं। इस पर्व को डोल जात्रा के नाम से भी जाना।

इस मौके पर राधा-कृष्‍ण की प्रतिमा झूले में स्‍थापित की जाती है और महिलाएँ बारी-बारी से इसे झुलाती हैं। शेष महिलाएँ इसके चारों ओर नृत्‍य करती हैं। पूरे उत्‍सव के दौरान पुरुष महिलाओं पर रंग फेंकते रहते हैं और बदले में महिलाएँ भी उन्‍हें रंग-गुलाल लगाती हैं।


महाराष्ट्र की रंग पंचमी और गोआ (कोंकण) का शिमगो~~~

महाराष्ट्र और कोंकण के लगभग सभी हिस्सों में इस त्योहार को रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। मछुआरों की बस्ती में इस त्योहार का मतलब नाच-गाना और मस्ती होता है। यह मौसम शादी तय करने के लिए ठीक माना जाता है क्योंकि सारे मछुआरे इस त्योहार पर एक-दूसरे के घरों को मिलने जाते हैं और काफी समय मस्ती में बीतता है।
 
महाराष्‍ट्र में पूरनपोली नाम का मीठा स्‍वादिष्‍ट पकवान बनाया जाता है, वहीं गोआ में इस मौके पर मांसाहार और मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। महाराष्‍ट्र में इस मौके पर जगह-जगह पर दही हांडी फोड़ने का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। दही-हांडी की टोलियों के लिए पुरस्‍कार भी दिए जाते हैं। इस दौरान हांडी फोड़ने वालों पर महिलाएँ अपने घरों की छत से रंग फेंकती हैं।


पंजाब का होला मोहल्ला~~~

पंजाब में भी इस त्योहार की बहुत धूम रहती है। सिखों के पवित्र धर्मस्थान आनन्दपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के लिए यह धर्म-स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। कहते हैं गुरु गोबिन्द सिंह (सिखों के दसवें गुरु) ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में सिख शौर्यता के हथियारों का प्रदर्शन किया जाता है और वीरता के करतब दिखाए जाते हैं। इस दिन यहाँ पर आनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है।


तमिलनाडु की कामन पोडिगई~~~
 
तमिलनाडु में होली का दिन कामदेव को समर्पित होता है। इसके पीछे भी एक किंवदन्ती है। प्राचीनकाल मे देवी सती (भगवान शंकर की पत्नी) की मृत्यु के बाद शिव काफी व्यथित हो गए थे। इसके साथ ही वे ध्यान में चले गए। उधर पर्वत सम्राट की पुत्री भी शंकर भगवान से विवाह करने के लिए तपस्या कर रही थी। देवताओं ने भगवान शंकर की निद्रा को तोड़ने के लिए कामदेव का सहारा लिया। कामदेव ने अपने कामबाण से शंकर पर वार किया।

भगवान ने गुस्से में अपनी तपस्या को बीच में छोड़कर कामदेव को देखा। शंकर भगवान को बहुत गुस्सा आया कि कामदेव ने उनकी तपस्या में विघ्न डाला है, इसलिए उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। अब कामदेव का तीर तो अपना काम कर ही चुका था, सो पार्वती को शंकर भगवान पति के रूप में प्राप्त हुए।

उधर कामदेव की पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की। ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। यह दिन होली का दिन होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रूप में गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने में पीड़ा ना हो। साथ ही बाद में कामदेव के जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है।


बिहार की फागु पूर्णिमा~~~

फागु मतलब लाल रंग और पूर्णिमा यानी पूरा चाँद। बिहार में इसे फगुवा नाम से भी जानते हैं। बिहार और इससे लगे उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्‍सों में इसे हिंदी नववर्ष के उत्‍सव के रूप में मनाते हैं। लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं। होली का त्‍योहार तीन दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन रात में होलिका दहन होता है, जिसे यहाँ संवत्‍सर दहन के नाम से भी जाना जाता है और लोग इस आग के चारों ओर घूमकर नृत्‍य करते हैं।

अगले दिन इससे निकले राख से होली खेली जाती है, जो धुलेठी कहलाती है और तीसरा दिन रंगों का होता है। स्‍त्री और पुरुषों की टोलियाँ घर-घर जाकर डोल की थाप पर नृत्‍य करते हैं, एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं और पकवान खाते हैं।

भीलों की होली~~~

राजस्‍थान और मध्‍यप्रदेश में रहने वाले भील आदिवासियों के लिए होली विशेष होती है। वयस्‍क होते लड़कों को इस दिन अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनने की छूट होती है। भीलों का होली मनाने का तरीका विशिष्‍ट है। इस दिन वो आम की मंजरियों, टेसू के फूल और गेहूँ की बालियों की पूजा करते हैं और नए जीवन की शुरुआत के लिए प्रार्थना करते हैं।
 

गुजरात के होली राजा~~~

होली के मौके पर गुजरात में मस्‍त युवकों की टोलियाँ सड़कों पर नाचते-गाते चलती हैं। गलियों में ऊँचाई पर दही की मटकियाँ लगाई जाती हैं और युवकों को यहाँ तक पहुँचने के लिए प्रेरित किया जाता है। इन मटकियों में दही के साथ ही पुरस्‍कार भी लटकते हैं। यह भगवान कृष्‍ण के गोपियों की मटकी फोड़ने से प्रेरित है। ऐसे में कौन युवक कन्‍हैया नहीं बनना चाहेगा और कौन होगी जो राधा नहीं बनना चाहेगी।

सो, राधारानी मटकी नहीं फूटे इसलिए इन टोलियों पर रंगों की बौझार करती रहती हैं। जो कोई इस मटकी को फोड़ देता है, वह होली राजा बन जाता है। होली के पहले दिन जलने वाली होलिका की राख गौरी देवी को समर्पित करते हैं।
 

मणिपुर में योसांग होली~~~

मणिपुर में होली पूरे 6 दिनों तक चलती है, जिसे योसांग कहते हैं। यहाँ होली की शुरुआत में होलिका न बनाकर एक घासफूस की एक झोपड़ी बनाई जाती है और इसमें आग लगाते हैं। अगले दिन लड़कों की टोलियाँ लड़कियों के साथ होली खेलती है, इसके बदले में उन्‍हें लड़की को उपहार देना होता है।

होली के दौरान लोग कृष्‍ण मंदिर में पीले और सफेद रंग के पारंपरिक परिधान पहनकर जाते हैं और संगीत और नृत्‍य करते हैं। इस दौरान थाबल चोंगा वाद्य बजाया जाता है और लड़के-लड़कियाँ नाचते हैं। वे एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं। इस त्‍योहार का उद्देश्‍य लड़के-लड़कियों को एक-दूसरे से मिलने के लिए मौका देना भी होता है।

जय सांई राम~~~
 
 
Title: Re: Holi~~~होली आई रे~~~
Post by: tana on March 20, 2008, 04:25:50 AM
ॐ सांई राम~~~

परंपरा के रंगों से सराबोर होली~~~

'रंग बरसे भीगे चुनरवाली... रंग बरसे...।' रंगों की बौछार, भाँग का गुमार और हँसी-ठिठोली का मौसम लाने वाला पर्व है होली। इसके रंगीले मिजाज और उत्साह की बात ही कुछ और है। मौज-मस्ती और प्रेम-सौहार्द से सराबोर यह त्योहार अपने भीतर परंपराओं के विभिन्न रंगों को समेटे हुए है, जो विभिन्न स्थानों में अलग-अलग रूपों में सजे-धजे नजर आते हैं।

विभिन्नता में एकता वाले इस देश में अलग-अलग क्षेत्रों में इस त्योहार को मनाने के अलग-अलग अंदाज हैं। मगर इन विविधताओं के बावजूद हर परंपरा में एक समानता अवश्य है, यह है प्रेम और उत्साह जो लोगों को आज भी सब कुछ भूल कर हर्ष और उल्लास के रंग में रंग देते हैं।

रंग-गुलाल से सजी होली का स्वागत विभिन्न क्षेत्रों के लोग अपने-अपने तरीके से करते हैं। वहीं कुछ स्थानों पर होली मनाने की परंपरा तो देश-विदेश में भी लोगों को आकर्षित करती है। कृष्ण और राधा के प्रेम के प्रतीक मथुरा-वृंदावन में होली की धूम 16 दिनों तक छाई रहती है, जिसमें इनके दैवीय प्रेम को याद किया जाता है। कहते हैं बचपन में कृष्ण राधा रानी के गोरे वर्ण और अपने कृष्ण वर्ण का कारण माता यशोदा से पूछा करते थे। एक बार उन्हें बहलाने के लिए माता यशोदा ने राधा के गालों पर रंग लगा दिया। तब से इस क्षेत्र में रंग और गुलाल लगाकर लोग एक-दूसरे से स्नेह बाँटते हैं।

मथुरा-वृंदावन के साथ ही इस पर्व की अनुपम छटा राधा मैया के गाँव बरसाने और नंदगाँव में भी नजर आती है। वहीं बरसाने की लठमार होली तो विश्व-प्रसिद्ध है। यहाँ पर महिलाएँ पुरुषों को लठ से मारती हैं और पुरुष उनसे बचते हुए उन पर रंग लगाते हैं। 
 
वहीं हरियाणा में होली (धुलेंडी) के दौरान भाभी-देवर के रिश्ते की मिठास की अनोखी मिसाल दिखती है, जब भाभियाँ अपने प्यारे देवरों को पीटती हैं और उनके देवर सारे दिन उन पर रंग डालने की फिराक में होते हैं। भाभियों का यह प्यारा सा बदला इस क्षेत्र में होली को 'धुलेंडी होली' का नाम देता है।

वहीं महाराष्ट्र और गुजरात के क्षेत्रों में मटकी-फोड़ होली की परंपरा बहुत प्रचलित है। पुरुष मक्खन से भरी मटकियों को फोड़ते हैं, जिसे महिलाएँ ऊँचाई पर बाँधती हैं। इसे फोड़कर रंग खेलने की परंपरा कृष्ण के बालरूप की याद दिलाती है। जब पुरुष इन मटकों को फोड़ने के लिए पिरामिड बनाते हैं, तब महिलाएँ होली के गीत गाते हुए इन पर बाल्टियों में रंग भरकर फेंकती हैं। मौज-मस्ती का यह पर्व अपने पूरे शबाब पर नजर आता है।

बंगाल में होली का 'डोल पूर्णिमा' नामक स्वरूप बेहद प्रचलित है। इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन को प्रसिद्ध वैष्णव संत महाप्रभु चैतन्य का जन्मदिन माना जाता है। डोल पूर्णिमा के अवसर पर भगवान की अलंकृत प्रतिमा का दल निकाला जाता है और भक्तगण पूरे उत्साह के साथ इस दल में भाग लेते हैं और हरि की उपासना करते हैं। वहीं गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शांति-निकेतन में होली को 'वसंत उत्सव' के रूप में मनाया जाता है।

सिख धर्मानुयायियों में भी होली की काफी महत्ता है। सिख धर्मानुयायी इस पर्व को शारीरिक व सैनिक प्रबलता के रूप में देखते हैं। होली के अगले दिन अनंतपुर साहिब में 'होला मोहल्ला' का आयोजन होता है। ऐसा मानते हैं कि इस परंपरा का आरंभ दसवें व अंतिम सिख गुरु, गुरु गोविंदसिंहजी ने किया था।

देश का हर कोना होली के रंगों से रंगा हुआ है। मणिपुर में यह रंगों का त्योहार छः दिनों तक मनाया जाता है। साथ ही इस पर्व पर यहाँ का पारंपरिक नृत्य 'थाबल चोंगबा' का आयोजन भी किया जाता है। इस तरह से होली का यह पर्व पूरे देश को प्रेम और सौहार्द के रंग में सराबोर रखता है। 
 
जय सांई राम~~~
 
Title: Re: Holi~~~होली आई रे~~~
Post by: tana on March 20, 2008, 04:30:13 AM
ॐ सांई राम~~~


होली की कहानियां~~~


होली का त्यौहार कई पौराणिक गाथाओं से जुडा हुआ है। इनमें कामदेव प्रह्लाद और पूतना की कहानियां प्रमुख है। प्रत्येक कहानी के अंत में सत्य की विजय होती है और राक्षसी प्रवृत्तियों का अंत होता है।

पहली कहानी शिव और पार्वती की है।  हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आये। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी।  शिवजी को बडा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी।  उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया।  फिर शिवजी ने पार्वती को देखा।  पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।  होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है। 

होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है।  प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यपु नास्तिक थे।  वह चाहते थे कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड दे।  परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद के साथ आग में बैठने को कहा।  होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी।  परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया।  होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।

होली का त्यौहार कई पौराणिक गाथाओं से जुडा हुआ है। इनमें कामदेव प्रह्लाद और पूतना की कहानियां प्रमुख है। प्रत्येक कहानी के अंत में सत्य की विजय होती है और राक्षसी प्रवृत्तियों का अंत होता है।

पहली कहानी शिव और पार्वती की है।  हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आये। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी।  शिवजी को बडा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी।  उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया।  फिर शिवजी ने पार्वती को देखा।  पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।  होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है। 

होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है।  प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यपु नास्तिक थे।  वह चाहते थे कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड दे।  परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था।  हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद के साथ आग में बैठने को कहा।  होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी।  परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया।  होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। 

कुछ लोग इस उत्सव का सम्बन्ध भगवान कृष्ण से मानते हैं।  राक्षसी पूतना एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर बालक कृष्ण के पास गयी।  वह उनको अपना जहरीला दूध पिला कर मारना चाहती थी।  दूध के साथ साथ बालक कृष्ण ने उसके प्राण भी ले लिये।  कहते हैं मृत्यु के पश्चात पूतना का शरीर लुप्त हो गया इसलिये ग्वालों ने उसका पुतला बना कर जला डाला।  मथुरा तब से होली का प्रमुख केन्द्र है। 

होली का त्योहार राधा और कृष्ण की पावन प्रेम कहानी से भी जुडा हुआ है।  वसंत के सुंदर मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है।  वृन्दावन की होली राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है।

जय सांई राम~~~
 
Title: Re: Holi~~~होली आई रे~~~
Post by: tana on March 20, 2008, 08:31:13 PM
ॐ सांई राम~~~

होली रंगों की टोली~~~

 
बसंत की हवा के साथ
रंगती मन को
मलती चेहरे पर हाथ
ये होली
लिए रंगों की टोली~~~


लाल गुलाबी बैंगनी हरी पीली
ये नवरंगी तितली है
आज तो जाएगी घर-घर
दर-दर ये मौज मनाएगी~~~


भूल पुराने झगड़े सारे
सबको गले लगाएगी
पीली फूली सरसों रानी
खेत खड़े हो केसर धानी~~~


देख रहे ढब आज निराले
गोरे आज हैं नीले काले
भीगी है एकदम गूजरिया
लाल है खुद धोती केसरिया~~~


लिए गुब्बारे बच्चे प्यारे
फेंक रहे हैं छिपे किनारे
होकर इस घर से उस घर पर
होली होली है कह कहकर~~~


आते चेहरे नए पुराने
गाते हँस हँस कई तराने
मट्ठी गुजिया रस और मलाई
अम्मा ने भरपूर बनाई~~~


लड्डू पेड़े और पकौड़े
जो भी देखे एक ना छोड़े
सच आज तो मस्त हैं सभी
महल गली घर चौबारे
झोपड़पट्टी और खोली
ये होली रंगों की टोली~~~

जय सांई राम~~~
   
Title: Re: Holi~~~होली आई रे~~~
Post by: priyanka_goel on March 21, 2008, 12:49:48 AM
om shri sai nathay namah

bahut khub

Sabse Pehle sai Ko mil kar bolo Happy Holi

happy holi to all devotee

om shri sai nathay namah
Title: Re: Happy Holi~~~होली के रंग~~~बाबा के संग~~~
Post by: tana on March 21, 2008, 08:44:25 AM
ॐ सांई राम~~~

होली के रंग~~~बाबा के संग~~~


होली के रंग बाबा के संग,
ऐसे रंग से खेले होली
तन मन रंग जाए सब का
ना उतरे कभी वो रंग सारी उम्र~~~


अब बस चढ़ जाए ऐसा रंग,
मेरे सांई के प्यार का रंग,
मेरे बाबा की प्रीत का रंग.
सांई की श्रद्धा का रंग,
बाबा की सबुरी का रंग~~~
मेरे बाबा का रंग,
शुद्धता का रंग ,
तन मन की पवित्रा का रंग~~~

सब तरफ बाबा का रंग ~~~

सांईमय हो जाए बस अब ये तन मन~~~


~~होली की शुभकामनाएँ~~


जय सांई राम~~~
Title: Re: Happy Holi~~~होली के रंग~~~बाबा के संग~~~
Post by: sai ji ka narad muni on March 22, 2016, 07:53:49 PM
Hey bhagwan aaj to rang hi do apni is babu ko apne prem k rang m..
Title: Re: Happy Holi~~~होली के रंग~~~बाबा के संग~~~
Post by: ShAivI on March 22, 2016, 11:06:22 PM
(http://www.hindugodwallpaper.com/downloadfiles.php?id=2041)

(http://3.bp.blogspot.com/-PdJz0-LzG6c/T1caRqSnkgI/AAAAAAAAUL4/D3jGbiki-_M/s1600/Holi+hai1.jpg)

(https://lh3.googleusercontent.com/-dakMWsljlgo/VPjFg6J-T4I/AAAAAAAAAMc/IFgze0mt-AY/w426-h392/happy-holi1-sai1-vck1.jpg)

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