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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: tana on March 03, 2008, 09:22:45 PM

Title: Maha ShivRatri~~~महाशिवरात्रि ~~~
Post by: tana on March 03, 2008, 09:22:45 PM
ॐ साईं राम~~~


महाशिवरात्रि पांच मार्च को ~~~
 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसे काशी में उनका विवाहोत्सव महाशिवरात्रि का पर्व आगामी पांच मार्च को मनाया जाएगा। महाशिवरात्रि की तिथि को लेकर अभी भी उहापोह बरकरार है। हालांकि कुछ ज्योतिषियों के अनुसार अधिकांश पंचांगों में यह पर्व इस वर्ष पांच मार्च को पड रहा है।

ज्योतिषी पंडित कामेश्वर उपाध्याय के अनुसार हजारों वर्षोसे महाशिवरात्रि पर्व मध्य रात्रि में चतुर्दशी तिथि होने पर मनाया जाता है। इस बार भी मध्यरात्रि में चतुर्दशी का आगमन पांच मार्च को हो रहा है। छह मार्च को मध्यरात्रि में अमावस्या होने के कारण महाशिवरात्रि का पर्व उसके पहले ही होगा।

संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय के आचार्य प्रो. नागेंद्र पांडेय के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को पडने वाला महाशिवरात्रि का पर्व पांच मार्च को अ‌र्द्धरात्रि में 1.31बजे के बाद आरंभ होकर छह तारीख को रात्रि 12.35बजे तक रहेगा। कई पंचांगों में यह समय कुछ आगे पीछे होने के बावजूद पांच मार्च को ही यह पर्व पड रहा है। काशी विश्वनाथ मंदिर में यह पर्व पांच को आयोजित करने का निर्णय लिया है। 

जय साईं राम~~~
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: tana on March 03, 2008, 09:31:46 PM
ॐ साईं राम~~~

शिव कौन हैं और उनसे सम्बन्धित चिन्हों का क्या अर्थ है??

जगत पिता के नाम से हम भगवान शिव को पुकारते हैं। भगवान शिव को सर्वव्यापी व लोग कल्याण का प्रतीक माना जाता है जो पूर्ण ब्रह्म है। धर्मशास्त्रों के ज्ञाता ऐसा मानते हैं कि शिव शब्द की उत्पत्ति वंश कांतौ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है- सबको चाहने वाला और जिसे सभी चाहते है। शिव शब्द का ध्यान मात्र ही सबको अखंड, आनंद, परम मंगल, परम कल्याण देता है।.

शिव भारतीय धर्म, संस्कृति, दर्शन ज्ञान को संजीवनी प्रदान करने वाले हैं। इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में शिवलिंग की व साकार रूप में शिवमूर्ति की पूजा होती है। शिवलिंग को सृष्टि की सर्वव्यापकता का प्रतीक माना जाता है। भारत में भगवान शिव के अनेक ज्योतिलिंग सोमनाथ, विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैधनाथस नागेश्वर, रामेश्वर हैं। ये देश के विभिन्न हिस्सों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में स्थित हैं, जो महादेव की व्यापकता को प्रकट करते हैं शिव को उदार ह्रदय अर्थात् भोले भंडारी कहा जाता है। कहते हैं ये थोङी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। अतः इनके भक्तों की संख्या भारत ही नहीं विदेशों तक फैली है। यूनानी, रोमन, चीनी, जापानी संस्कृतियों में भी शिव की पूजा व शिवलिंगों के प्रमाण मिले हैं। भगवान शिव का महामृत्जुंजय मंत्र पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी को दीर्घायु, समृद्धि, शांति, सुख प्रदान करता रहा है और चिरकाल तक करता रहेगा। भगवान शिव की महिमा प्रत्येक भारतीय से जूङा है। मानव जाति की उत्पत्ति भी भगवान शिव से मानी जाती है। अतः भगवान शिव के स्वरूप को जानना प्रत्येक मानव के लिए जरूरी है।

जटाएं- शिव को अंतरिक्ष का देवता कहते हैं, अतः आकाश उनकी जटा का स्वरूप है, जटाएं वायुमंडल का प्रतीक हैं।

चंद्र- चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन भोला, निर्मल, पवित्र, सशक्त है, उनका विवेक सदा जाग्रत रहता है। शिव का चंद्रमा उज्जवल है।

त्रिनेत्र- शिव को त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव के ये तीन नेत्र सत्व, रज, तम तीन गुणों, भूत, वर्तमान, भविष्य, तीन कालों स्वर्ग, मृत्यु पाताल तीन लोकों का प्रतीक है।

सर्पों का हार- सर्प जैसा क्रूर व हिसंक जीव महाकाल के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक वृत्ति का जीव है, जिसे शिव ने अपने अधीन किया है।

त्रिशूल- शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है। त्रिशुल सृष्टि में मानव भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।

डमरू- शिव के एक हाथ में डमरू है जिसे वे तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्म रुप है।

मुंडमाला- शिव के गले में मुंडमाला है जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में कर रखा है।

छाल- शिव के शरीर पर व्याघ्र चर्म है, व्याघ्र हिंसा व अंहकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा व अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।

भस्म- शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से करते हैं। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है शरीर नश्वरता का प्रतीक है।

वृषभ- शिव का वाहन वृषभ है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। वृषभ का अर्थ है, धर्म महादेव इस चार पैर वाले बैल की सवारी करते है अर्थात् धर्म, अर्थ, काम मोक्ष उनके अधीन है। सार रूप में शिव का रूप विराट और अनंत है, शिव की महिमा अपरम्पार है। ओंकार में ही सारी सृष्टि समायी हुई है।

जय साईं राम~~~
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: MANAV_NEHA on March 03, 2008, 10:46:58 PM
आरती भगवान शिव की:

ॐ जय शिव  ओमकारा , प्रभु  जय शिव ओमकारा
ब्रह्मा विष्णु    सदाशिवा , अर्धांगी धारा 
ॐ जय शिव ओमकारा...

एकानन चतुरानन  पंचानन  राजे
हंसानन , गरुरासन  वृषवाहन  साजे
ॐ जय शिव ओमकारा...

दो भुजा , चार  चतुर्भुज  दशाभुज ते  सोहे
तीनों  रूप  निरखते  त्रिभुवन  जन मोहे
ॐ जय शिव ओमकारा...

अक्समाला  वनमाला  मुन्दमाला  धारी
चंदन  मृगमादा  सोहाई  भाले  शाशिधारी
ॐ जय शिव ओमकारा...

श्वेताम्बर  पीताम्बर  बाघंबर  अंगे
ब्रह्मादिक  सनकादिक  प्रेतादिक  संगे
ॐ जय शिव ओमकारा...

कर  मध्ये  कमंदालू  औ  त्रिशूला  धारी
सुखकारी  दुखाहारी  जगपाल अनाकारी
ॐ जय शिव ओमकारा...

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव  जानत  अविवेका
प्रनावाक्सर  में शोभित  ये तिनोंह  एका
ॐ जय शिव ओमकारा...

चोसट योगिनी गावत नर्त्य करत भेरो
बाजत ताल म्रदुंगा और बाजत डमरू
ॐ जय शिव ओमकारा...

लक्ष्मी वर सावित्री श्री पार्वती संगे
अर्धांगी गायत्री सिरे सोहे गंगे
ॐ जय शिव ओमकारा...

काशी में विश्नाथ विराजे ननदों ब्रम्चारी
नित उठ भोग लगावे महिमा अति भारी
ॐ जय शिव ओमकारा...

त्रिगुण  स्वामी जी  की आरती  जो कोई  नर गावे
कहत  शिवानंद  स्वामी  मन  वांछित  फल  पावे
ॐ जय शिव ओमकारा...

ॐ जय शिव  ओमकारा , प्रभु  जय शिव ओमकारा
ब्रह्मा विष्णु    सदाशिवा , अर्धांगी धारा           
ॐ जय शिव ओमकारा...

  ॐ साई राम
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: tana on March 04, 2008, 04:31:27 AM
ॐ सांई राम ~~~

श्रीरुद्राष्टकम् ~~~

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥1॥

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।

करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो हं॥2॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।

त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे हं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥

कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।

चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।

जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो।

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।

ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥

 


जय सांई राम ~~~

Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: meghadeep on March 04, 2008, 05:37:56 AM
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE


Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: MANAV_NEHA on March 04, 2008, 01:06:13 PM
Om Shri Somnathaya Namah
Om Shri Rameshwaraya Namah
Om Shri Mallikarjunaya Namah
Om Shri Mahakalaya Namah
Om Shri Amleshwaraya Namah
Om Shri Baidnathaya Namah
Om Shri Bhimshankaraya Namah
Om Shri Nageshwaraya Namah
Om Shri Vishweshwaraya Namah
Om Shri Triyambakeshwaraya Namah
Om Shri Kedarashwaraya Namah
Om Shri Dushmeshwaraya Namah
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: tana on March 04, 2008, 08:56:10 PM
ॐ साईं राम~~~

ॐ साईं शिव साईं~~~

श्री शिव-पार्वती स्तुति~~~

कर्पूरगौरं करूणावतारं संसारसारं  भुजगेन्द्रहारम्~~ 
सदा वसन्तमं हृदयारविन्दे भवं भवानी-सहितं नमामि~~~

जय साईं राम~~~
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: dayalvasnani on March 04, 2008, 09:10:59 PM
Om Namah Shivaya

Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: tana on March 04, 2008, 09:18:07 PM
Om Sai Ram~~~

108 Names of Shiva~~~


1~ Aashutosh ~~~One Who Fulfills Wishes Instantly

2 ~Aja ~~~Unborn

3 ~Akshayaguna ~~~God With Limitless Attributes

4~ Anagha~~~Without Any Fault

5 ~Anantadrishti~~~Of Infinite Vision

6~ Augadh ~~~One Who Revels All The Time

7~ Avyayaprabhu ~~~Imperishable Lord

8 ~Bhairav ~~~Lord Of Terror

9~ Bhalanetra ~~~One Who Has An Eye In The Forehead

10 ~Bholenath ~~~Kind Hearted Lord

11~ Bhooteshwara ~~~Lord Of Ghosts And Evil Beings

12~ Bhudeva ~~~Lord Of The Earth

13~ Bhutapala ~~~Protector Of The Ghosts

14 ~Chandrapal ~~~Master Of The Moon

15 ~Chandraprakash ~~~One Who Has Moon As A Crest

16 ~Dayalu ~~~Compassionate

17 ~Devadeva ~~~Lord Of The Lords

18~ Dhanadeepa ~~~Lord Of Wealth

19 ~Dhyanadeep ~~~Icon Of Meditation And Concentration

20 ~Dhyutidhara ~~~Lord Of Brilliance

21~ Digambara ~~~Ascetic Without Any Clothes

22~ Durjaneeya ~~~Difficult To Be Known

23 ~Durjaya~~~Unvanquished

24~ Gangadhara ~~~Lord Of River Ganga

25 ~Girijapati ~~~Consort Of Girija

26~ Gunagrahin~~~Acceptor Of Gunas

27 ~Gurudeva ~~~Master Of All

28 ~Hara ~~~Remover Of Sins

29~ Jagadisha ~~~Master Of The Universe

30 ~Jaradhishamana ~~~Redeemer From Afflictions

31~ Jatin ~~~One Who Has Matted Hair

32 ~Kailas~~~One Who Bestows Peace

33 ~Kailashadhipati ~~~Lord Of Mount Kailash

34~ Kailashnath ~~~Master Of Mount Kailash

35 ~Kamalakshana ~~~Lotus-Eyed Lord

36~ Kantha ~~~Ever-Radiant

37~ Kapalin ~~~One Wears A Necklace Of Skulls

38 ~Khatvangin ~~~One Who Has The Missile Khatvangin In His Hand

39 ~Kundalin ~~~One Who Wears Earrings

40~ Lalataksha ~~~One Who Has An Eye In The Forehead

41 ~Lingadhyaksha ~~~Lord Of The Lingas

42 ~Lingaraja ~~~Lord Of The Lingas

43~ Lokankara ~~~Creator Of The Three Worlds

44 ~Lokapal ~~~One Who Takes Care Of The World

45~ Mahabuddhi ~~~Extremely Intelligent

46 ~Mahadeva ~~~Greatest God

47 ~Mahakala ~~~Lord Of All Times

48 ~Mahamaya Of Great~~~Illusions

49~ Mahamrityunjaya ~~~Great Victor Of Death

50 ~Mahanidhi ~~~Great Storehouse

51~ Mahashaktimaya ~~~One Who Has Boundless Energies

52~ Mahayogi ~~~Greatest Of All Gods

53~ Mahesha ~~~Supreme Lord

54~ Maheshwara ~~~Lord Of Gods

55 ~Nagabhushana ~~~One Who Has Serpents As Ornaments

56~ Nataraja ~~~King Of The Art Of Dancing

57~ Nilakantha ~~~Blue Necked Lord

58~ Nityasundara ~~~Ever Beautiful

59~ Nrityapriya ~~~Lover Of Dance

60 ~Omkara~~~Creator Of OM

61~ Palanhaar ~~~One Who Protects Everyone

62~ Parameshwara~~~First Among All Gods

63 ~Paramjyoti ~~~Greatest Splendour

64~ Pashupati ~~~Lord Of All Living Beings

65~ Pinakin ~~~One Who Has A Bow In His Hand

66 ~Pranava ~~~Originator Of The Syllable Of OM

67 ~Priyabhakta ~~~Favourite Of The Devotees

68 ~Priyadarshana ~~~Of Loving Vision

69~ Pushkara ~~~One Who Gives Nourishment

70~ Pushpalochana ~~~One Who Has Eyes Like Flowers

71 ~Ravilochana ~~~Having Sun As The Eye

72~ Rudra ~~~The Terrible

73~ Rudraksha ~~~One Who Has Eyes Like Rudra

74 ~Sadashiva ~~~Eternal God

75 ~Sanatana ~~~Eternal Lord

76 ~Sarvacharya ~~~Preceptor Of All

77 ~Sarvashiva ~~~Always Pure

78~ Sarvatapana ~~~Scorcher Of All

79 ~Sarvayoni ~~~Source Of Everything

80~ Sarveshwara ~~~Lord Of All Gods

81~ Shambhu~~~ One Who Bestows Prosperity

82~ Shankara ~~~One Who Gives Happiness

83~ Shiva ~~~Always Pure

84 ~Shoolin ~~~One Who Has A Trident

85 ~Shrikantha ~~~Of Glorious Neck

86~ Shrutiprakasha ~~~Illuminator Of The Vedas

87 ~Shuddhavigraha ~~~One Who Has A Pure Body

88 ~Skandaguru~~~Preceptor Of Skanda

89~ Someshwara~~~Lord Of All Gods

90~ Sukhada ~~~Bestower Of Happiness

91 ~Suprita ~~~Well Pleased

92 ~Suragana ~~~Having Gods As Attendants

93 ~Sureshwara ~~~Lord Of All Gods

94 ~Swayambhu ~~~Self-Manifested

95 ~Tejaswani ~~~One Who Spreads Illumination

96 ~Trilochana ~~~Three-Eyed Lord

97~ Trilokpati ~~~Master Of All The Three Worlds

98 ~Tripurari ~~~Enemy Of Tripura

99 ~Trishoolin ~~~One Who Has A Trident In His Hands

100~ Umapati ~~~Consort Of Uma

101~ Vachaspati~~~ Lord Of Speech

102~ Vajrahasta ~~~One Who Has A Thunderbolt In His Hands

103 ~Varada ~~~Granter Of Boons

104 ~Vedakarta ~~~Originator Of The Vedas

105~ Veerabhadra ~~~Supreme Lord Of The Nether World

106 ~Vishalaksha~~~ Wide-Eyed Lord

107 ~Vishveshwara ~~~Lord Of The Universe

108 ~Vrishavahana ~~~One Who Has Bull As His Vehicle

Jai Sai Ram~~~
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: tana on March 04, 2008, 09:20:46 PM
ॐ साईं राम~~~

श्री शिव मूल मंत्र~~~

ॐ नमः शिवाय~~~ॐ नमः शिवाय~~~ॐ नमः शिवाय~~~
ॐ नमः शिवाय~~~ॐ नमः शिवाय~~~ॐ नमः शिवाय~~~
ॐ नमः शिवाय~~~ॐ नमः शिवाय~~~ॐ नमः शिवाय~~~

जय साईं राम~~~
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: Ramesh Ramnani on March 04, 2008, 10:16:10 PM
जय सांई राम।।।

हे नटराज ! गंगाधर शंभो भोलेनाथ जय हो !

जय-जय-जय विश्वनाथ जय-जय कैलाशनाथ
हे शिव शंकर तुम्हारी जय हो!

हे दयानिधान ! गौरीनाथ चन्द्रभान अंगभस्म ज्ञानमाल
मैं रहूं सदा शरण तुम्हारी जय हो !

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।



Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: meghadeep on March 04, 2008, 10:33:53 PM
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE
OM NAMHA SHIVAYE

MERE SAI
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: Ramesh Ramnani on March 05, 2008, 04:42:28 AM
जय सांई राम।।।

शिवरात्री के लिए फलाहारी व्यंजन

कल शिवरात्री है और शिवरात्री के बारे में सोचकर बहुत सी यादें ताजा हो आईं हैं मुझे याद आए कुछ अपने बचपन में माँ द्बारा बनाये कुछ विशेष उपवास के व्यंजन!

आप भी आज़मायें अगर समय हो आपके पास। चूंकि मुझे भिन्न भिन्न व्यजंन बनाकर खिलाने का शौक है तो आईये मैं आपको इस दिन से जुड़े कुछ व्यजंनों के बारे में व उन्हें बनाने की विधि बता दूँ ।

आलू के गुटके

आलुओं को छीलकर बड़ा बड़ा काट लें। थोड़ा अदरक बारीक पीस लें। थोड़े अदरक को कद्दूकस कर लें। कटे आलू में अदरक,  धनिया पावडर,  मिर्च व नमक डाल दें। अब इन्हें अच्छे से मिला लें। एक घंटे तक ऐसे ही रहने दें । आलू में मसाला अच्छे से मिल जाएगा । एक मोटे तले की कड़ाही या पतीले में बघार लायक तेल गरम करें । यदि हींग जीरा उपवास में खाते हैं तो वह डालें अन्यथा ऐसे ही आलू इसमें पलटकर अच्छे से मिला लें । हलकी आँच में नरम होने तक पकाएँ।

मखानों की खीर

मखानों को तोड़कर, ना टूटें तो चाकू से काटकर अन्दर से साफ कर लें । कभी कभी इनके बीच में जाला या कीड़ा हो सकता है । दूध को उबालकर कम आँच पर मखाने डालकर पकने दीजिये । जब दूध काफी गाढ़ा हो जाए तो किशमिश, कटे बादाम व शक्कर डाल दें । ठंडा होने पर यह खीर चौलाई के लड्डू के साथ बहुत अच्छी लगती है ।

समाँ के चावल (उपवास के चावल जो बहुत बारीक व छोटे होते हैं ) की खीर

दूध को उबाल लें । चावल बीनकर धो लें और दूध में डालकर पकने दें । जब यह चावल की खीर सा गाढ़ा हो जाए तो किशमिश, कटे बादाम व शक्कर डालकर ठंडा होने को रख दें ।

समाँ के चावल की फिरनी

चावल धोकर सुखा लैं । अब बारीक पीस लें । दूध उबालकर गाढ़ा होने दें । कस्टर्ड की तरह एक कटोरी में ठंडे दूध में चावल का पावडर मिला लें । अब इस मिश्रण को गरम दूध में डालकर पकाएँ । चावल अच्छे से मिल जाए व दानेदार कस्टर्ड सा बन जाए । चाहें तो अलग अलग कटोरी या मिट्टी के सकोरों में डालकर ठंडा करें । ऊपर से बारीक कटे बादाम डाल दें ।

साबूदाने की खिचड़ी

एक कटोरी साबूदाने को आधा कटोरी से थोड़े कम पानी में भिगोएँ । चार पाँच घंटे भीगने दें । एक कटोरी कच्ची मूँगफली को मोटे तले वाली कड़ाही में कम आँच में बराबर चलाते हुए भून लें । मूँगफली जलनी या काली नहीं होने देनी चाहिये । भुन जाने पर ठंडी होने दें । एक कपड़े पर रखकर इनपर बेलन चलाएँ । छिलके उतर जाने पर सूप या थाली में डाल फटककर छिलके हटा लें । अब इन्हें दरदरा पीस लें । जब साबूदाना भीगकर नरम हो जाए तो उसमें यह पावडर मिला लें । नमक ,मिर्च, अमचूर या चाटमसाला मिला लें । एक कड़ाही में तीन बड़े चम्मच तेल गरम करने रखें, दो तीन सूखी लाल मिर्च बीच में से दो टुकड़े कर तेल में डालकर भून लें । (साबुत मिर्च भूनने से फटकर उड़ती है व चाहरे पर आती है। ) इन्हें बाहर निकाल लें और गरम तेल में सरसों, हींग फोड़ें और साबूदाने का मिश्रण डालकर चलाएँ । बीच बीच में पलटते रहें । ढक्कन ना लगाएँ । करीब दस मिनट में पक जाने पर आग से उतार लें । खाने से पहले भूनी मिर्च डाल दें।

साबूदाने की वड़ियाँ

एक कटोरी साबूदाने का आधा कटोरी से थोड़े कम पानी में भिगोएँ । चार पाँच घंटे भीगने दें । आधा किलो आलू उबालें । गरम आलुओं को ही छील लें । अब इन्हें जब गरम हों तभी कांटे या मैशर से मैश कर लें । ध्यान रहे मैश करें ना कि कचूमर बनाएँ । (चाहे कटलेट के लिये हों या टिक्की या बोंडों के लिए, इन्हें कभी भी चिपचिपा नहीं होने देना चाहिये।) मैश किए आलू में छोटे छोटे से कण दिखने चाहिए। नमक मिर्च मिलाएँ । अब १/4 साबूदाना छोड़कर बाकी को आलू में मिलाएँ । हाथ से गोल गोल टिक्कियाँ बना लें । कड़ाही में तलने के लिए तेल गरम करें । बचे हुए साबूदाने को एक छोटी थाली में बिछा लें । अब हर टिक्की को हलके से बिछाए हुए साबूदाने पर दबाएँ । साबूदाने टिक्की की सतह पर चिपक जाएँगे । तेल गरम होने पर एक टिक्की डालें थोड़ी पक जाए तो दूसरी फिर तीसरी । एक साथ डालने से ये आपस में चिपक जाती हैं । सुनहरा होने पर पेपर नैपकिन पर निकालें । अलग से जो साबूदाना लगाया गया था वह फूलकर वड़ी के ऊपर कुरकुरा व सफेद दिखता है खाने में स्वाद व देखने में सुन्दर भी ।

कहने को ये सब उपवास का भोजन है परन्तु यह आम दिन के भोजन से अधिक गरिष्ठ व कैलोरी वाला हो जाता है । अतः केवल शिवरात्री, जन्माष्टमी जैसे त्यौहारों के लिए उपयुक्त हे आम उपवास के लिए नहीं।

फलों की चाट...

सेब, केले, अमरूद, के छोटे छोटे टुकड़े कर लीजिये । सबको एक बर्तन में डालकर नमक, काला नमक, मिर्च,शक्कर (या शूगर फ्री )मिला दीजिये । नींबू का रस निचोड़ कर अच्छे से मिला लीजिये । अब चाहें तो संतरे का केसर और अंगूर पूरे या काटकर आधे करके डाल दीजिये । फ्रिज में रखिये । दो घंटे बाद काफी रसीला बन जाएगा तब खाइये ।

यदि कोई भी इनमें से कुछ भी बनाए व पसन्द आये तो मुझे बताना ना भूलियेगा।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~महाशिवरात्रि की व्रत-कथा~~~
Post by: tana on March 05, 2008, 11:02:59 PM
ॐ साईं राम~~~

महाशिवरात्रि की व्रत-कथा~~~ 
 
एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?'

उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।

अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।

एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।'

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।'

शिकारी हँसा और बोला, 'सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।'

उत्तर में मृगी ने फिर कहा, 'जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।'

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा।

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,' हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।'

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।'

उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।

देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।' 

जय सांई राम~~~
 
 
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: tana on March 05, 2008, 11:08:21 PM
ॐ साईं राम~~~

शिवरात्रि की अन्य कथा~~~ 
 
किसी गाँव में एक ब्राह्मण परिवार रहता था। ब्राह्मण का लड़का चंद्रसेन दुष्ट प्रवृत्ति का था। बड़ा होने पर भी उसकी इस नीच प्रवृत्ति में कोई अंतर नहीं आया, बल्कि उसमें दिनों-दिन बढ़ोतरी होती गई। वह बुरी संगत में पड़कर चोरी-चकारी तथा जुए आदि में उलझ गया।

चंद्रसेन की माँ बेटे की हरकतों से परिचित होते हुए भी अपने पति को कुछ नहीं बताती थी। वह उसके हर दोष को छिपा लिया करती थी। इसका प्रभाव यह पड़ा कि चंद्रसेन कुसंगति के गर्त में डूबता चला गया।

एक दिन ब्राह्मण अपने यजमान के यहाँ से पूजा कराके लौट रहा था तो अपने मार्ग में दो लड़कों को सोने की अँगूठी के लिए लड़ते पाया। एक कह रहा था कि यह अँगूठी चंद्रसेन से मैंने जीती है। दूसरे का तर्क यह था कि अँगूठी मैंने जीती है। यह सब देख-सुनकर ब्राह्मण बड़ा दुःखी हुआ। उसने दोनों लड़कों को समझा-बुझाकर अँगूठी ले ली।

घर आकर ब्राह्मण ने पत्नी से चंद्रसेन के बारे में पूछा। उत्तर में उसने कहा, 'यहीं तो खेल रहा था अभी?' जबकि हकीकत यह थी कि चंद्रसेन पिछले पाँच दिनों से घर नहीं आया था।

ब्राह्मण ऐसे घर में क्षणभर भी नहीं रहना चाहता था जहाँ जुआरी-चोर बेटा रह रहा हो तथा उसकी माँ अवगुणों पर हमेशा परदा डालती हो। अपने घर से कुछ चुराने के लिए चंद्रसेन जा ही रहा था कि दोस्तों ने सारी नाराजगी उस पर जाहिर कर दी। वह उल्टे पाँव भाग निकला। रास्ते में एक मंदिर के पास कीर्तन हो रहा था।

भूखा चंद्रसेन कीर्तन में बैठ गया, उस दिन शिवरात्रि थी। भक्तों ने शंकर पर तरह-तरह का भोग चढ़ा रखा था। चंद्रसेन इसी भोग सामग्री को उड़ाने की ताक में लग गया। कीर्तन करते-करते भक्तगण धीरे-धीरे सो गए। तब चंद्रसेन ने मौके का लाभ उठाकर भोग की चोरी की और भाग निकला।

मंदिर से बाहर निकलते ही किसी भक्त की आँख खुल गई। उसने चंद्रसेन को भागते देख 'चोर-चोर' कहकर शोर मचा दिया। लोगों ने उसका पीछा किया। भूखा चंद्रसेन भाग न सका और डंडे के प्रहार से चोट खाकर गिरते ही उसकी मृत्यु हो गई।

अब मृत चंद्रसेन को लेने शंकरजी के गण तथा यमदूत एक साथ वहाँ आ पहुँचे। यमदूतों के अनुसार चंद्रसेन नरक का अधिकारी था, क्योंकि उसने आज तक पाप ही पाप किए थे, लेकिन शिव के गणों के अनुसार चंद्रसेन स्वर्ग का अधिकारी था, क्योंकि वह शिवभक्त था। चंद्रसेन ने पिछले पाँच दिनों से भूखे रहकर व्रत तथा शिव का जागरण किया था।

चंद्रसेन ने शिव पर चढ़ा हुआ नैवेद्य नहीं खाया था। वह तो नैवेद्य खाने से पूर्व ही प्राण त्याग चुका था, इसलिए भी शिव के गणों के अनुसार वह स्वर्ग का अधिकारी था। ऐसा भगवान शंकर के अनुग्रह से ही हुआ था। अतः यमदूतों को खाली ही लौटना पड़ा। इस प्रकार चंद्रसेन को भगवान शिव के सत्संग मात्र से ही मोक्ष मिल गया। 

जय सांई राम~~~
 
 
Title: Re: महाशिवरात्रि ~~~
Post by: tana on March 05, 2008, 11:21:52 PM
ॐ सांई राम~~~

शिव स्तुति~~~

श्री गौरीशंकर खङे हैं किंकर,दर्शन आपका पायेंगे।
ये दास आशा हैं कर रहें,भवसागर पार हो जायेंगे।
त्राहिमाम-त्राहिमाम कृपा अब कीजिये,श्री गोविन्द गुण ही गायेंगे।
आरती लेकर स्तुति कर के,चरणों में सीस नवायेंगे।
देवी सहाय के दिल को निश्चय आनन्द फल पायेंगे।
जो नर शिव का ध्यान धरते,वे भक्ति-मुक्ति फल पायेंगे~~~

जय सांई राम~~~