जय सांई राम।।।
सुख एक सपना है, दुख एक मेहमान
परिवर्तन संसार का नियम है। कोई भी परिस्थिति सदा कायम नहीं रहती। मन को जो अनुकूल लगे उस परिस्थिति को हम सुख कहते हैं। और जिस परिस्थिति को मन प्रतिकूल समझता है, उसमें हम दुख का अनुभव करते हैं। यहाँ न सुख शाश्वत है, न दुख शाश्वत है। संसार से मिलने वाला दुख भी जाएगा और सुख भी जाएगा। इसीलिए संतों ने कहा है, सुख स्वप्न है और दुख मेहमान है। सुख स्वप्न है। अभिमान न करो, टूटेगा। सपना कब तक चलेगा? और दुख मेहमान है। रोओ नहीं। वह जाएगा, कितने दिन रहेगा? और मेहमान का तो ऐसा है जितना ज्यादा भाव दो, जितना ज्यादा प्रेम दो उतना ज्यादा टिकेगा। उसको प्रेम देना बंद कर दो। चला जाएगा।
दुख में जब तुम रोते हो तो तुम उसको भाव दे रहे हो, उसका सम्मान कर रहे हो, ऐसे में तो वह ज्यादा टिकेगा। सुख इसलिए सुख है, क्योंकि जीवन में दु:ख है। दु:ख न होता तो सुख सुख न होता। इसलिए जीवन का दु:ख भी शाश्वत नहीं है। मिटने वाला है।
एक राजा के घर एक संत आए। संतों के लिए राजा के मन में बड़ा प्रेम और श्रद्धा थी। संत कुछ दिन रुके। सत्संग हुआ। राजा को बड़ा आनंद आया। कुछ दिन बाद संत जाने के लिए तैयार हुए तो राजा ने कहा कि महाराज! बड़ा आनंद आया सत्संग में। साधु बोले, साधु तो चलता भला- महल हो या झोपड़ी, क्या फर्क पड़ता है? अब हम चले।
जा रहे हैं तो कम से कम कोई मंत्र तो देकर जाइए। संत बड़े सरल और सीधे स्वाभाव के थे। बोले हाँ, हाँ जरूर ले लो, क्यों नहीं। हम हैं ही मंत्र देने के लिए। और उसी को देते हैं जिसको लेने की इच्छा हो। राजा बैठ गए हाथ जोड़कर और बोले, दीजिए!
तो संत बोले, 'ये दिन भी चले जाएंगे।' इसको याद करते रहना, रटते रहना। इसी की माला जपना और अपने राजमहल की दीवारों पर भी लिखवा देना सब पर, ताकि बार-बार तुम्हारी दृष्टि जाए उस पर। राजा की बड़ी श्रद्धा थी उनके प्रति। बोले, ठीक है महाराज! राजा को पहले तो विचार हुआ कि ये कैसा मंत्र है? लेकिन लिखवा लिया सब जगह दीवारों पर। जब देखो राजा रटन करते रहते थे, ये दिन भी चले जाएंगे। तो हुआ ये कि सत्ता, संपत्ति और सुख में राजा बार-बार जब इस मंत्र का रटन करते थे तो धीरे-धीरे सावधान भी रहने लगे कि ये दिन भी चले जाएंगे तो अभिमान नहीं करना चाहिए। अपने समय का, अपनी संपत्ति का यथासंभव सदुपयोग करने लगे कि राज्य में कोई भूख या दु:ख से पीडि़त न रहे। राज्य समृद्ध होने लगा। राज्य को इतना सुखी देख करके शत्रु के मन में आया कि छीन लो। शत्रु बड़ा बलवान था, बड़ी सेना थी उसके पास तो उसने आक्रमण कर दिया और राज्य को जीत लिया।
तो राजा को अपना राज्य छोड़कर भागना पड़ा और वो जंगल में चले गए। सब कुछ चला गया। न महल था, न संपत्ति। थोडे़ सेवक साथ में थे। राजा और रानी थे। लेकिन तब भी गुरु का मंत्र याद रहा कि ये दिन भी चले जाएंगे। तो वहाँ जंगल में भी उसने बड़ी सी शिला पर लिखवा दिया कि ये दिन भी चले जाएंगे। दुख में भी उस मंत्र को बार-बार रटने से राजा को बड़ा आश्वासन मिला। और राजा ने हिम्मत नहीं गँवाई, क्योंकि ये दिन भी चले जाएंगे। नहीं तो आदमी डिप्रेशन में आत्महत्या कर लेता है। ये परिस्थिति थोड़े ही कायम रहने वाली है? ये दिन भी चले जाएंगे। तो फिर राजा ने अपनी सेना को एकत्र किया। फिर से उसने अपने राज्य को वापस जीत लिया।
तो यहाँ कोई भी परिस्थिति कायम नहीं है। संसार में परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तन इस संसार का नियम है। इसलिए सुख में अभिमान और दुख में विलाप नहीं करना चाहिए।
ॐ सांई राम।।।