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Author Topic: आज का चिन्तन  (Read 169059 times)

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Offline tana

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Re: आज का चिन्तन
« Reply #150 on: April 29, 2008, 12:00:52 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    उदार दृष्टि~~~

    पुराने जमाने की बात है। ग्रीस देश के स्पार्टा राज्य में पिडार्टस नाम का एक नौजवान रहता था। वह पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान बन गया था।

    एक बार उसे पता चला कि राज्य में तीन सौ जगहें खाली हैं। वह नौकरी की तलाश में था ही, इसलिए उसने तुरन्त अर्जी भेज दी।

    लेकिन जब नतीजा निकला तो मालूम पड़ा कि पिडार्टस को नौकरी के लिए नहीं चुना गया था।

    जब उसके मित्रों को इसका पता लगा तो उन्होंने सोचा कि इससे पिडार्टस बहुत दुखी हो गया होगा, इसलिए वे सब मिलकर उसे आश्वासन देने उसके घर पहुंचे।

    पिडार्टस ने मित्रों की बात सुनी और हंसते-हंसते कहने लगा, “मित्रों, इसमें दुखी होने की क्या बात है? मुझे तो यह जानकर आनन्द हुआ है कि अपने राज्य में मुझसे अधिक योग्यता वाले तीन सौ मनुष्य हैं।”

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #151 on: April 29, 2008, 10:06:26 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    ईंट ...


    जिन्दगी में कुछ घटनायें ऐसी होती हैं जिन्हें मनुष्य जीवन प्रयन्त नहीं भूल पाता. एक ऐसी ही कहानी जो मैंने पढी आप सब तक पहुंचाना चाहूंगा.

    एक जवान सफ़ल उद्यमी अपनी चमचमाती नई कार में बैठ कर तेजी से सडक पर गुजर रहा था...साथ ही वह सावधान भी था कि सडक के किनारे खडी गाड़ियों की कतार के बीच में से कोई बच्चा निकल कर सडक पर न आ जाये. तेजी से गुजरते हुये उसे लगा कि कोई गाड़ियों के बीच है मगर जब तक वह कुछ और सोचता एक ईंट हवा में लहराती हुई उसकी गाड‌ी के दरवाजे से टकराई और एक निशान छोडती हुई सडक पर गिरी. उद्यमी ने गाडी में ब्रेक लगाई और गाडी को रिवर्स गियर में लगा कर उस जगह पहुंच गया जहां से एक ईटं आई थी. वह अपनी गाडी से उतरा और ईंट फ़ैंकने वाले लडके को एक कार के साथ धकियाते हुये चिल्ला कर पूछा... यह सब क्या है, तुम कौन हो और तुमने मेरी कार पर ईंट क्यों फ़ैंकी ? तुम्हें शायद पता नहीं कि यह ईंट मुझे कितनी मंहगी पडेगी.

    लडका घिघियाते हुये बोला, मुझे क्षमा कर दीजिये, मुझे बहुत अफ़सोस है मगर मेरे पास इसके सिवा कोई चारा नहीं था. मैं बहुत देर से किसी को रोकने की कोशिश कर रहा हूं मगर कोई रुकता नहीं. लडके की आंखो से आंसू बह रहे थे. रोते रोते वह बोला मेरा अपाहिज बडा भाई अपनी व्हील चेयर से गिर पडा है... उसे चोट लगी है .. मैं उसे उठा कर व्हील चेअर पर नहीं बिठा पा रहा क्योंकि वह भारी है.. क्या आप मेरी मदद करेंगे.

    लडके के शब्द सुन कर उद्यमी के क्रोध भरे शब्द उसके गले में ही घुट कर रह गये... उसने लडके के भाई को उठा कर व्हील चेयर पर बिठाया और उसके जख्मों को अपने रुमाल से पोंछा. लडका धन्यवाद कह अपने भाई को ले कर चल पडा. उद्यमी को अपनी कार तक का छोटा सा रास्ता बहुत लम्बा प्रतीत हो रहा था. उस उद्यमी नें अपनी कार पर पडी उस खरोंच को ठीक नही करवाया ताकि उसे यह हमेशा याद रहे कि उसे इतना तेज नहीं चलना है कि किसी को उसे रोकने या उसका ध्यान आकर्षित करने के लिये उस पर ईंट फ़ैंकनी पडे.

    कुछ ईंटे दूसरी ईंटों की अपेक्षा नर्म होती हैं..आवाज या निशान नहीं छोडती...अपने जीवन में आने वाली हर ऐसी ईंट का ध्यान रखें.

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #152 on: April 30, 2008, 12:36:15 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    परिणाम~~~

    प्रत्येक कार्य का परिणाम अच्छाई और बुराई का मिश्रण है।कोई भी अच्छा काम नहीं जिसमें थोडी बहुत बुराई न हो।अग्नि के साथ धुएँ की तरह बुराई भी प्रत्येक कार्य में रहती है।लेकिन हमें अपनेआप को अधिक से अधिक ऐसे कामों में लगाना चाहिये जिनका अच्छा परिणाम अधिक हो और बुरा काम से कम।

    जय सांई राम~~~
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #153 on: May 01, 2008, 08:47:02 AM »
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  • जय सांई राम।।।
     
    एक नदी के किनारे लगे हुए लकड़ी के तख्ते पर चार मेंढक बैठे हुए थे, तभी एक लहर आयी और वह तख्ता नदी की धारा में बह चला। मेंढक मस्त हो गए, क्योंकि ऐसी जलयात्रा उन्होंने अपने जीवन में कभी नही की थी।

    कुछ देर बाद पहला मेंढक बोला - 'सचमुच यह बड़ा अजीब लकड़ी का तख्ता है, यह तों जिंदा लोगो की तरह चल रहा है। ऐसा तख्ता मैंने अपने जिन्दगी में न कभी देखा था और न ही कभी सुना था।'

    तब दूसरा मेंढक बोला - 'नही दोस्त! यह तख्त और तख्तों जैसा ही हैं,य ह नही चल रहा है ,चल तों नदी रही है समुन्दर की ओर और इस तख्ता को भी अपने साथ लिए जा रही है।'

    इस पर तीसरा मेंढक बोला - 'न तो तख्ता चल रहा है और न ही नदी। गति तो हमारे विचारों में है क्योंकि विचार के बगैर कोई चीज नही चलती,  इसलिए चल तो हमारे विचार रहे हैं।

    तीनो मेंढक इसी बात पर झगड़ने लगे कि आख़िर कौन सी चीज चल रही है बात बढ़ती गयी पर कोई फैसला न हो पा रहा था।
    अंत में उनका ध्यान चौथे मेंढक पर गया जो कि सब सुन रहा था फिर भी शांत बैठा था। उनलोंगो ने उसकी राय मांगी।

    चौथा मेंढक बोला - 'तुममे से हर एक कि बात सही है, ग़लत कोई नही है। गति तख्ते में भी है, नदी में भी है और हमारे विचारों में भी है।'

    इस बात पर तीनो मेंढक को बड़ा गुस्सा आया, क्योंकि कोई भी यह बात मानने के लिए तैयार नही था कि उसकी बात पूर्ण रूप से सत्य नही है और बाकि दोनों कि बात सर्वथा झूठी नही है।

    तभी अजीब घटना हुयी तीनो मेंढक मिल गए और मिलकर चौथे को नदी में धकेलकर गिरा दिया।

    गौरतलब : यदि तीन लोगों के विचार समान हो तो वे चौथे को भी नष्ट कर सकते है। तीन ग़लत विचार मिलकर एक सही विचार को मार सकते है। इसलिए तर्क विवेकपूर्ण माहौल में ही संभव है वरना चुप रहकर सुनना ही बेहतर होता है।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #154 on: May 04, 2008, 09:20:44 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    मुश्किलों में अकेला इन्सान डगमगाता है....
    कांटों से मत धबराना मेरे दोस्तो.....
    क्योंकि प्यारे मित्रो, कांटों मे ही तो अकेला...
    गुलाब मुस्कराता है.....है ना?
     
    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #155 on: May 04, 2008, 01:14:41 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~


    गुल से हौसला सीखो ,
    गम में मुस्कराने का,
    कैद है वो कान्टों में,
    फिर भी मुस्कराता है~~~


    जय सांई राम~~~
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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #156 on: May 06, 2008, 09:52:43 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    मक्खियाँ और शीरा...

     एक बार एक रेलवे स्टेशन पर मालगाड़ी से शीरे के बड़े-बड़े ड्रम उतारे जा रहे थे। उन ड्रमों से थोड़ा-थोड़ा शीरा मालगाड़ी के पास नीचे ज़मीन पर गिर कर टपक रहा था।
    जहाँ शीरा गिरा था मक्खियाँ आकर बैठ गई और शीरा चाटने लगीं। ऐसा करने से उनके छोटे-छोटे मुलायम पंख उस शीरे में ही चिपक गए, फिर भी मक्खियों ने उधर ध्यान न देकर शीरे का लालच न छोड़ा और काफ़ी देर तक शीरा चाटने में ही मगन रहीं।

    कुछ समय बाद वहाँ एक कुत्ता भी आ गया। कुत्ते को देखकर वे मक्खियाँ डरीं और वहाँ से उड़ने की कोशिश करने लगीं, परंतु पंख शीरे में चिपक जाने के कारण वे उड़ नहीं सकीं और शीरे के साथ-साथ वे सब भी कुत्ते का भोजन बनती गई।

    उसी समय उड़ते-उड़ते और कई मक्खियाँ भी आयी उनलोगों ने उस नज़ारे को देखने के बावजूद भी उसे नजरंदाज करती रही और शीरे पर आकर बैठती गई। थोडी देर में उन सबके पंख भी शीरे में चिपक गए और वे भी उस कुत्ते का भोजन बन गई। उन्होंने पहले से पड़ी मक्खियों की दुर्गति और विनाश देखकर भी उनसे कोई सीख नहीं ली, जबकि वही विनाश उनकी भी प्रतीक्षा कर रहा था।

    गौरतलब : यही दशा इस संसार की है। मनुष्य देखता है कि लोभ-मोह किस तरह आदमी को दुर्गति में, संकट में डालता है, फिर भी वह दुनिया के इन दुर्गुणों से बचने की कोशिश कम ही करता है। परिणामत: अनेक मनुष्यों की भी वही दुर्गति होती है, जो उन लोभी मक्खियों की हुई।

    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #157 on: May 07, 2008, 12:21:33 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    जो पुरुष प्रयत्नपूर्वक अपनी स्त्री की रक्षा करता है वही अपनी संतान, चरित्र, परिवार तथा अपने साथ अपने धर्म की रक्षा कर पाता है।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #158 on: May 12, 2008, 11:39:47 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    मनुष्य मन को हंस भी कहा जाता है पर उसे कोई उड़ने दे सके तभी समझा जा सकता है। हर कोई अपने विचार और लक्ष्यों का दायरा संकीर्ण कर लेता है। अपने और परिवार के हित के आगे उसे कुछ नहीं सूझता। कई लोग मन में शांति न होने की बात कहते हैं पर उसके लिये कोई यत्न नहीं करते। मन एकरसता से ऊब जाता है। स्वार्थ सिद्धि की एक ऐसा रस है जिसमें डूबे रहने से बोरियत लगती है-अगर थोड़ा परमार्थ भी कर लें तो एक सुख का अनुभव होता है। परमार्थ का यह आशय कतई नहीं है कि अपना सर्वस्व लुटा दें बल्कि हम किसी सुपात्र व्यक्ति की सहायता करें ने किसी बेबस का सहारा बने। वैसे लुटाने को लोग लाखों लुटा रहे हैं। अपने परिवार के नाम प्याऊ या किसी मंदिर में बैच या पंखा लगवाकर उस पर अपने परिवार का परिचय अंकित करवा देते हैं और स्वयं ही दानी होने का प्रमाणपत्र ग्रहण करते हैं। इससे मन को शांति नहीं मिलती। दूसरों से दिखावा कर सकते हो पर अपने आप से वह संभव नहीं है। हम हर जगह अपने कुल की परिवार की प्रतिष्ठा लिये घूमते हैं पर अपनी आत्मा से कभी परिचित नहीं होते। इसके लिये जरूरी है कि समय निकालकर भक्ति और संत्संग के कार्यों में बिना किसी दिखावे के निष्काम भाव से सम्मिलित हों।.

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #159 on: May 17, 2008, 03:13:05 AM »
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  • जय सांई राम़।।।

    प्रीति उसी से करना चाहिए, जो अपने समान ही हृदय में प्रेम धारण करने वाले हों। यह प्रेम इस तरह का होना चाहिए कि समय-असमय किसी से भूल हो जाये तो उसे प्रेमी क्षमा कर भूल जायें।

    वर्तमान संदर्भ में व्याख्या - प्रेम किया नहीं हो जाता है यह फिल्मों द्वारा संदेश इस देश में प्रचारित किया जाता है। सच तो यह है कि ऐसा प्रेम केवल देह में स्थित काम भावना की वजह से किया जाता है। प्रेम हमेशा उस व्यक्ति के साथ किया जाना चाहिए जो वैचारिक सांस्कारिक स्तर पर अपने समान हो। जिनका हृदय भगवान भक्ति में रहता है उनको सांसरिक विषयों की चर्चा करने वाले लोग विष के समान प्रतीत होते हैं। यहां दिन में अनेक लोग मिलते है पर सभी प्रेमी नहीं हो जाते। कुछ लोग छल कपट के भाव से मिलते हैं तो कुछ लोग स्वार्थ के भाव से अपना संपर्क बढ़ाते हैं। भवावेश में आकर किसी को अपना सहृदय मानना ठीक नहीं है। जो भक्ति भाव में रहकर निष्काम से जीवन व्यतीत करता है उनसे संपर्क रखने से अपने आपको सुख की अनुभूति मिलती है।

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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #160 on: May 17, 2008, 05:18:30 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    धर्म का रहस्य आचरण से ही जाना जा सकता है, व्यर्थ के मतवादों से नहीं। सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करना, इसमें ही समग्र धर्म निहित है। जो केवल प्रभु-प्रभु की रट लगाता है, वह नहीं, किन्तु जो उस परम पिता के इच्छानुसार कार्य करता है वही धार्मिक है। यदि कभी कभी संसार का थोडा-बहुत धक्का भी खाना पडे, तो उससे विचलित नहीं होना चाहिए, मुहूर्त भर में वह दूर हो जायगा तथा सारी स्थिति पुनः ठीक हो जायगी।

    जय सांई राम~~~
           
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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #161 on: May 19, 2008, 01:26:07 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    जब तक हम लोगों को भगवान तथा गुरू में, भक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक हमें कोई भी नुक़सान नहीं पहुँचा सकता। किन्तु इनमें से एक के भी नष्ट हो जाने पर परिणाम विपत्तिजनक है।

    जय सांई राम~~~
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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #162 on: May 22, 2008, 09:19:45 AM »
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  • जय सांई राम़।।।

    आशा एक नदी की भांति है। इसमे हमारी कामनाओं के रूप में जल भरा रहता है और तृष्णा रूपी लहरें ऊपर उठतीं है। यह नदी राग और अनुराग जैसे भयावह मगरमच्छों से भरी हुई हैं। तर्क-वितर्क रूपी पंछी इस पर हमेशा डेरा डाले रहते हैं। इसकी एक ही लहर मनुष्य के धैर्य रूपी वृक्ष को उखाड़ फैंकती है। मोह माया व्यक्ति को अज्ञान के रसातल में खींच ले जाती हैं, जहा चिंता रूपी चट्टानों से टकराता हैं। इस जीवन रूपी नदी को कोई शुद्ध हृदय वाला कोई योगी तपस्या, श्रद्धा सबूरी, साधना और ध्यान से शक्ति अर्जित कर और बाबा सांई से संपर्क जोड़कर ही सहजता से पार कर पाता है।

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    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #163 on: June 05, 2008, 01:54:47 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    सच वही नही होता जिसे हम जानते हैं या जिसे हम देखते हैं. हम हर चीज को अपने नजरिये से देखते हैं इसी लिये उसके बाकी आयाम छुपे रह जाते हैं. कभी कभी आंखों देखी भी गलत हो सकती है

    ..उदाहरण देख लीजिये :)

    एक दिन मेरी मुलाकात रुपये से हुई.... मैने उससे कहा... तुम सिर्फ़ एक कागज भर हो.........रुपया मुस्कराया और बोला.......हां मैं एक कागज भर हूं... कहो तो रद्दी कह लो मगर मैने आज तक डस्ट बिन नहीं देखा.
     
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    Re: आज का चिन्तन
    « Reply #164 on: June 07, 2008, 12:11:44 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    सत्य और स्वयं में जो सत्य को चुनता है, वह सत्य को पा लेता है और स्वयं को भी। और, जो स्वयं को चुनता है, वह दोनो को खो देता है।

    मनुष्य को सत्य होने से पूर्व स्वयं को खोना पड़ता है। इस मूल्य को चुकाये बिना सत्य में कोई गति नहीं है। उसका होना ही बाधा है। वही स्वयं सत्य पर पर्दा है। उसकी दृष्टिं ही अवरोध है- वह दृष्टिं जो कि 'मैं' के बिंदु से विश्व को देखती है। 'अहं-दृष्टिं' के अतिरिक्त उसे सत्य से और कोई भी पृथक नहीं किये है। मनुष्य का 'मैं' हो जाना ही, परमात्मा से उसका पतन है। 'मैं' की पार्थिवता में ही वह नीचे आता है और 'मैं' के खोते ही वह अपार्थिव और भागवत-सत्ता में ऊपर उठ आता है। 'मैं' होना नीचे होना है। 'न मैं' हो जाना ऊपर उठ जाना है।

    किंतु, जो खोने जैसा दीखता है, वह वस्तुत: खोना नहीं-पाना है। स्वयं की, जो सत्ता खोनी है, वह सत्ता नहीं स्वप्न ही है और उसे खेकर जो सत्ता मिलती है, वही सत्य है।

    बीज जब भूमि के भीतर स्वयं को बिलकुल खो देता है, तभी वह अंकुरित होता है और वृक्ष बनता है।
     
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