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Author Topic: भगवान श्रीकृष्ण  (Read 7367 times)

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Offline Ramesh Ramnani

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भगवान श्रीकृष्ण
« on: February 12, 2007, 02:39:57 AM »
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  • जय साँई राम।।।

    त्रेतायुग में भगवान् राम का अवतार राक्षसों का अंत करने के लिये हुआ था तो द्वापर में भगवान् कृष्ण ने पृथ्वी पर सत्य और धर्म की मर्यादा की पुनस्र्थापना के लिये अवतार ग्रहण किया था। देवकी के गर्भ से उत्पन्न वसुदेव पुत्र की लीलाएँ अद्भुत थीं। कंस को मारने के लिये जिनका जन्म हुआ था, उसे कंस के भय से भाद्रकृष्ण अष्टमी की अ‌र्द्धरात्रि में यमुना के उस पार गोकुल में नंदबाबा के घर वसुदेव जी ने उन्हें पहुँचा दिया। पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण को पाकर यशोदा का जीवन धन्य हुआ।

    गोकुल की गलियों में आनन्द उमगा। कंस के क्रूर प्रयास उस प्रवाह में प्रवाहित हो गये। पूतना, शकटासुर, वात्याचक्र-सब विफल होकर भी कन्हैया के करों से सद्गति पा गये। मोहन चलने लगा, बड़ा हुआ और घर-घर धूम मच गयी-वह हृदयचोर नवनीत चोर हो गया था। गोपियों के उल्लसित भाव सार्थक करने थे उसे। यह लीला समाप्त हुई अपने घर का ही नवनीत लुटाकर। मैया ने ऊखल में बाँधकर दामोदर बना दिया। यमलार्जुन का उद्धार तो हुआ, किन्तु उन महावृक्षों के गिरने से गोप शङ्कित हो गये। वे गोकुल छोड़कर वृन्दावन जा बसे।

    वृन्दावन, गोवर्धन, यमुना-पुलिन, व्रज-युवराज की मधुरिम क्रीड़ा के चलने में सबने और सहायता दी। श्रीकृष्ण वत्स-चारक बने। कंस का प्रयत्‍‌न भी चलता रहा। बकासुर, वत्सासुर, प्रलम्ब, धेनुक, अघासुर, मयपुत्र व्योमासुर आदि आते रहे। श्यामसुन्दर तो सबके लिये मोक्ष का अनावृत द्वार है। कालिय के फणों पर उस व्रजविहारी ने रास का पूर्वाभ्यास कर लिया। ब्रह्माजी भी बछड़े चुराकर उस नटखट की स्तुति ही अन्त में कर गये। इन्द्र के स्थान पर गोवर्धन पूजन किया गोपों ने और गोपाल ने। देव-कोप की महावर्षा से गिरिराज को सात दिन अँगुली पर उठाकर व्रज को बचा लिया। देवेन्द्र उस गिरिधारी को गोविन्द स्वीकार कर गये। कंस के प्रेषित वृषासुर, केशी आदि जब गोपाल के करों से कर्मबन्धन मुक्त हो गये, तब उसने अक्रूर को भेजकर मथुरा बुलाया उन्हें। नन्दबाबा राम-श्याम तथा गोपों के साथ मधुपुरी पहुँचे।

    राजा को सन्देश मिला धोबी की मृत्यु से श्याम के पधारने का। उस दिन का उनका अङ्गराग मार्ग में ही उस चिर <न् द्धह्मद्गद्घ="द्वड्डद्बद्यह्लश्र:च@ल">च@ल ने स्वीकार करके कुब्जा का कूबर दूर कर दिया। कंस का आराधित धनुष उसके गर्व की भाँति तोड़ डाला गया। दूसरे दिन महोत्सव था कंस की कूटनीति का। रंगमण्डप के द्वार पर श्रीकृष्णचन्द्र ने महागज कुवलयापीड़ को मारकर उसका श्रीगणेश किया। अखाड़े में उन सुकुमार श्याम गौर अङ्गों से चाणूर, मुष्टिक, शल, तोशल से मल्ल चूर्ण हो गये। कंस के जीवन की पूर्णाहुति से उत्सव पूर्ण हुआ। महाराज उग्रसेन बन्दीगृह से पुन: राज्यसिंहासन पर आये।

    श्रीकृष्ण व्रज में कुल ग्यारह वर्ष, तीन मास रहे थे। इस अवस्था में उन्होंने जो दिव्य लीलाएँ की, वे भावुकों का जीवनपथ तो प्रशस्त करती हैं, पर आलोचक की कलुषित बुद्धि उनका स्पर्श नहीं कर सकती, फिर तो श्याम व्रज पधारे ही नहीं। उद्धव को भेज दिया एक बार आश्वासन देने।

    अवन्ती जाकर श्यामसुन्दर ने अग्रज के साथ शिक्षा प्राप्त की। गुरुदक्षिणा में गुरु का मृतपुत्र पुन: प्रदान कर आये। मथुरा लौटते ही कंस के श्वशुर जरासन्ध की चढ़ाइयों में उलझना पड़ा। वह सत्रह बार ससैन्य आया और पराजित होकर लौटा। अठारहवीं बार उसके आने की सूचना के साथ कालयवन भी आ धमका। कहाँ तक इस प्रकार युद्धमय जीवन सहा जाय। समुद्र के मध्य में दुर्गम दुर्ग द्वारिका नगर बना। यादवकुल को वहाँ पहुँचाकर श्रीकृष्ण पैदल यवन के सम्मुख से भागे। पीछा करता हुआ यवन गुफा में जाकर चिरसुप्त मुचुकुन्द की नेत्राग्नि से भस्म हो गया। उधर से लौटते ही जरासन्ध सेना लेकर आ पहुँचा। श्रीकृष्ण आज रणछोड़ हो रहे थे। बलरामजी को भी साथ भागना पड़ा। दोनों भाई प्रवर्षण पर चढ़कर भाग छूटे। पाण्डवों का परित्राण तो श्रीकृष्ण ही थे। महाभारत के युद्ध में अर्जुन का सारथी बनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने पांडवों को विजयश्री दिलाई।  इस महायुद्ध में उन्होंने अधर्म और असत्य का विनाश कर फिर से धर्म और सत्य की सत्ता स्थापित की। श्रीकृष्णचन्द्र पूर्णपुरुष लीलावतार कहे गये हैं। भगवान् वेदव्यास की वाणी ने श्रीमद्भागवत में उनकी दिव्य लीलाओं का वर्णन किया है।


    मेरा साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा मेरा साँई

    ॐ साँई राम।।।

    « Last Edit: February 12, 2007, 02:55:10 PM by Ravi »
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: भगवान श्रीकृष्ण
    « Reply #1 on: March 24, 2007, 01:38:12 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    कर्म योग

    भगवान श्री कृष्ण के वचनों को सुनकर अर्जुन ने कहा, "हे जनार्दन! जब आप कर्मों की अपेक्षा ज्ञान को श्रेष्ठ तथा मान्य बताते हैं तो फिर मुझे कर्म करने के लिये क्यों कह रहे हैं? आपकी बातें मेरी बुद्धि को भ्रमित कर रही हैं।" श्री कृष्ण बोले, "हे निष्पाप! इस संसार में दो प्रकार की निष्ठायें हैं, एक तो है ज्ञान जिसे सांख्य योगी करते हैं और दूसरा है कर्म जिसे कर्म योगी करते हैं। प्रत्येक मनुष्य के लिये ये दोनों अत्यावश्यक हैं। मनुष्य कर्म किये बिना कभी रह नहीं सकता, बिना कर्म के तो वह न तो सांख्य योग को प्राप्त होता है और न ही कर्म योग को। इन्द्रियों के राजा मन ही मनुष्य को कर्म करने के लिये बाध्य करती है। मनुष्य अपने कर्मों की जानकारी नहीं रख पाता किन्तु मैं घट-घट वासी होने के नाते उसके कर्मों को जानता हूँ। हे अर्जुन! जो मनुष्य केवल इन्द्रियों से प्रभावित होकर कर्म करता है वह मिथ्याचारी कहलाता है किन्तु जो मनुष्य इन्द्रियों को अपने वश में रखकर कर्मों में आसक्‍त होता है वही श्रेष्ठ है। इन्द्रियों को वश में रखकर केवल मन के अनुसार कर्म करने वाले कर्मयोगी कभी कर्म बन्धन मेँ नहीं बँधते। अतः हे पार्थ! तू आसक्‍तिरहित होकर कर्म कर। इस प्रकार कर्म करने पर तुझे तेरे कर्मों का अच्छा ही फल प्राप्त होगा। जनक आदि ज्ञानी जन भी आसक्‍तिरहित कर्म करके ही परम सिद्धि को प्राप्त हुये थे।

    "हे अर्जुन! इस संसार में कोई भी प्राप्त करने लायक वस्तु मुझे अप्राप्त नहीं है फिर भी मैं कर्म करते रहता हूँ। यदि मैं स्वयं इन्द्रियों से आसक्‍त होकर कर्म करूँगा तो बड़ी क्षति हो जायेगी। अज्ञानी मनुष्य इन्द्रियों से आसक्‍त होकर कर्म करते हैं किन्तु ज्ञानी जन संसार की भलाई का ध्यान रखते हुये अनास्क्‍तिपूर्वक कर्म करते हैं।"

    यह सुनकर अर्जुन ने पूछा, "हे माधव! मनुष्य न चाहता हुआ भी पाप कर्म किसकी प्रेरणा से करता है?" भगवान श्री कृष्ण बोले, "हे पार्थ! संसार में तीन प्रकार के गुण होते हैं - सत, रज और तम। जब मनुष्य सत गुन के अनुसार कर्म करता है तो उसके कर्म श्रेष्ठ होते हैं। रजोगुण के अनुसार किये गये कर्म उत्तम तथा निकृष्ट दोनों ही प्रकार के होते हैं। किन्तु तमोगुण के अनुसार किया गया कर्म सदैव निकृष्ट तथा पापयुक्‍त होता है।"

    इसलिये आप जो भी कर्म करें बाबा कृष्ण सांई को समर्पित होकर करें।  ऐसे किये गये कर्मों को करने से आप कर्मफलों के प्रभाव से हमेशा बचे रहेंगे।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

     ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline JR

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    Re: भगवान श्रीकृष्ण
    « Reply #2 on: March 26, 2007, 10:31:06 AM »
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  • Krishna jinka naam hai, Gokul jinka dhaam hai
    Aisa Shri Bhagwaan ko x2 Barambaar pranaam hai

    Yashoda jinki maiya hai, Nandji bapaiya hai
    Aise Shree Gopal ko x2 Barambaar pranaam hai

    Loot, loot dedhi makhan khayo, Gwaal baal sang dhenu cherayo
    Aise Leeladaam ko x2 Barambaar pranaam hai

    Drupad suta ko laaj bechayo, Grahase gajko phand churhayo
    Aise Kripadaam ko x2 Barambaar pranaam hai
     
    कृष्णा जिनका नाम है, गोकुल जिनका धाम है
    ऐसे श्री भगवान को बारम्बार प्रणाम है ।।

    यशोदा जिनकी मइया है नन्द जी जिनके बप्इया है
    ऐसे श्री गोपाल को बारम्बार प्रणाम है ।।

    लूट-लूट दही माखन खायो, ग्वाल-वाल संग धेनू चरायो
    ऐसे लीलाधाम को बारम्बार प्रणाम है ।।

    द्रुपद सुता को लाज बचायो, ग्रहेस गजको पन्ड छुड़ायो
    ऐसे कृपाधाम को बारम्बार प्रणाम है ।।
    « Last Edit: March 27, 2007, 01:03:22 AM by Jyoti Ravi Verma »
    सबका मालिक एक - Sabka Malik Ek

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    Re: MURLI BAJAAKE MOHANA
    « Reply #3 on: March 26, 2007, 10:36:26 AM »
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  • Murli bajaake Mohana, kyu kerliyaa kinaaraa
    Apnose haaye kaisaa, vyohaar hai tumharaa
    Kyu kerliyaa kinara x2

    Doonda gali galime, khojaa dagar dagarme
    Manme yahi lagan hai x2 darshan mile dubaaraa

    Madhuvan tumhi batao, Mohan kaha gaya hai
    Kaise jhulas gaya hai x2 komal badan tumharaa

    Yamunaa tumhi betaao, Cheliyaa kahaa gaya hai
    Tu bhi chaligayi hai x2 kehti hai neel dhaaraa

    Duniyaa kehe diwaani, pagal kehe zemaanaa
    Tumko na bhool janaa x2 hamko nahi gewaara

    HARE KRISHNA

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    Offline OmSaiRamNowOn

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    Re: भगवान श्रीकृष्ण
    « Reply #4 on: March 26, 2007, 10:57:51 AM »
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  • Jai Sai Krishna !

    Darashan Do Ghanashyam Nath Mori, Ankhiyan Pyasi Re
    Darashan Do Ghanashyam..

    Ma.Ndir Ma.Ndir Murat Teri
    Phir Bhi Naa Dikhe Surat Teri
    Yug Bite Na Ai Milan Ki
    Puranamasi Re ...

    Dvar Daya Ka Jab Tu Khole
    Pa.Ncham Sur Me.N Gu.Nga Bole
    A.Ndha Dekhe La.Nga.Da Chal Kar
    Pahu.Nche Kasi Re ...

    Pani Pi Kar Pyas Bujhau.N
    Naino.N Ko Kaise Samajhau.N
    A.Nkh Michauli Chho.Do Ab
    Man Ke Basi Re ...

    Darashan Do Ghanashyam Nath Mori, Ankhiyan Pyasi Re
    Darashan Do Ghanashyam..
    Om Sai Ram !

    -Anju

    "Abandon all varieties of religion and just surrender unto Me. I shall deliver you from all sinful reactions. Do not fear."

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    Re: भगवान श्रीकृष्ण
    « Reply #5 on: March 26, 2007, 11:04:57 AM »
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  • Jai Sai Ram.

    shri-krishna-chaitanya prabhu nityananda. shri-adwaita gadadhara shrivasadi-gaura-bhakta-vrinda !!
    Om Sai Ram !

    -Anju

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    Offline JR

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    Re: भगवान श्रीकृष्ण
    « Reply #6 on: April 05, 2007, 09:56:17 AM »
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  • Lilas of Lord Siva

    Lord Siva incarnated himself in the form of Dakshinamurti to impart knowledge to the four Kumaras. He took human form to initiate Sambandhar, Manikkavasagar, Pattinathar. He appeared in flesh and blood to help his devotees and relieve their sufferings. The divine Lilas or sports of Lord Siva are recorded in the Tamil Puranas like Siva Purana, Periya Purana, Siva Parakramam and Tiruvilayadal Purana.

    The eighteen Upa-Puranas are: Sanatkumara, Narasimha, Brihannaradiya, Sivarahasya, Durvasa, Kapila, Vamana, Bhargava, Varuna, Kalika, Samba, Nandi, Surya, Parasara, Vasishtha, Devi-Bhagavata, Ganesa and Hamsa.

    Study of the Puranas, listening to sacred recitals of scriptures, describing and expounding of the transcendent Lilas of the Blessed Lord—these form an important part of Sadhana of the Lord’s devotees. It is most pleasing to the Lord. Sravana is a part of Navavidha-Bhakti. Kathas and Upanyasas open the springs of devotion in the hearts of hearers and develop Prema-Bhakti which confers immortality on the Jiva.

    The language of the Vedas is archaic, and the subtle philosophy of Vedanta and the Upanishads is extremely difficult to grasp and assimilate. Hence, the Puranas are of special value as they present philosophical truths and precious teachings in an easier manner. They give ready access to the mysteries of life and the key to bliss. Imbibe their teachings. Start a new life of Dharma-Nishtha and Adhyatmic Sadhana from this very day, and attain Immortality.

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    Offline saisevika

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    Re: भगवान श्रीकृष्ण
    « Reply #7 on: February 07, 2009, 10:18:48 PM »
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  • shri krishna sai ab aajayo , ab der na kero .
    help me krishna sai
    help me krishna sai
    help me krishna sai

    Offline abhishek tripathi

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    Re: भगवान श्रीकृष्ण
    « Reply #8 on: May 14, 2009, 02:25:12 AM »
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  • भगवान श्री कृष्ण के वचनों को सुनकर अर्जुन ने कहा, "हे जनार्दन! जब आप कर्मों की अपेक्षा ज्ञान को श्रेष्ठ तथा मान्य बताते हैं तो फिर मुझे कर्म करने के लिये क्यों कह रहे हैं? आपकी बातें मेरी बुद्धि को भ्रमित कर रही हैं।" श्री कृष्ण बोले, "हे निष्पाप! इस संसार में दो प्रकार की निष्ठायें हैं, एक तो है ज्ञान जिसे सांख्य योगी करते हैं और दूसरा है कर्म जिसे कर्म योगी करते हैं। प्रत्येक मनुष्य के लिये ये दोनों अत्यावश्यक हैं। मनुष्य कर्म किये बिना कभी रह नहीं सकता, बिना कर्म के तो वह न तो सांख्य योग को प्राप्त होता है और न ही कर्म योग को। इन्द्रियों के राजा मन ही मनुष्य को कर्म करने के लिये बाध्य करती है। मनुष्य अपने कर्मों की जानकारी नहीं रख पाता किन्तु मैं घट-घट वासी होने के नाते उसके कर्मों को जानता हूँ। हे अर्जुन! जो मनुष्य केवल इन्द्रियों से प्रभावित होकर कर्म करता है वह मिथ्याचारी कहलाता है किन्तु जो मनुष्य इन्द्रियों को अपने वश में रखकर कर्मों में आसक्‍त होता है वही श्रेष्ठ है। इन्द्रियों को वश में रखकर केवल मन के अनुसार कर्म करने वाले कर्मयोगी कभी कर्म बन्धन मेँ नहीं बँधते। अतः हे पार्थ! तू आसक्‍तिरहित होकर कर्म कर। इस प्रकार कर्म करने पर तुझे तेरे कर्मों का अच्छा ही फल प्राप्त होगा। जनक आदि ज्ञानी जन भी आसक्‍तिरहित कर्म करके ही परम सिद्धि को प्राप्त हुये थे।

    "हे अर्जुन! इस संसार में कोई भी प्राप्त करने लायक वस्तु मुझे अप्राप्त नहीं है फिर भी मैं कर्म करते रहता हूँ। यदि मैं स्वयं इन्द्रियों से आसक्‍त होकर कर्म करूँगा तो बड़ी क्षति हो जायेगी। अज्ञानी मनुष्य इन्द्रियों से आसक्‍त होकर कर्म करते हैं किन्तु ज्ञानी जन संसार की भलाई का ध्यान रखते हुये अनास्क्‍तिपूर्वक कर्म करते हैं।"

    यह सुनकर अर्जुन ने पूछा, "हे माधव! मनुष्य न चाहता हुआ भी पाप कर्म किसकी प्रेरणा से करता है?" भगवान श्री कृष्ण बोले, "हे पार्थ! संसार में तीन प्रकार के गुण होते हैं - सत, रज और तम। जब मनुष्य सत गुन के अनुसार कर्म करता है तो उसके कर्म श्रेष्ठ होते हैं। रजोगुण के अनुसार किये गये कर्म उत्तम तथा निकृष्ट दोनों ही प्रकार के होते हैं। किन्तु तमोगुण के अनुसार किया गया कर्म सदैव निकृष्ट तथा पापयुक्‍त होता है।"

    इसलिये आप जो भी कर्म करें बाबा कृष्ण सांई को समर्पित होकर करें।  ऐसे किये गये कर्मों को करने से आप कर्मफलों के प्रभाव से हमेशा बचे रहेंगे।

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    Re: भगवान श्रीकृष्ण
    « Reply #9 on: May 14, 2009, 02:27:48 AM »
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  • Thanks a lot Abhishek for sharing this good hindi article.

    Sai Ram

     


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