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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: Ramesh Ramnani on February 18, 2007, 01:02:42 AM

Title: श्रीहनुमानचालीसा
Post by: Ramesh Ramnani on February 18, 2007, 01:02:42 AM
जय साँई राम।।।

श्रीहनुमानचालीसा  

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही। जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त  कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढै़ हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

दोहा

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥


मेरा साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा मेरा साँई


ॐ साँई राम।।।
Title: Re: श्रीहनुमानचालीसा
Post by: tana on April 02, 2007, 03:05:29 AM
OM SAI RAM ...

Ram ram jai raja ram
Ram ram jai sita ram...
Ram ram jai raja ram
Ram ram jai sita ram...
Ram ram jai raja ram
Ram ram jai sita ram...


HANUMAAN JAYANTI KA SHUBH DIN... AAP SAB KO BAHUT BAHUT MUBARAK HO.....

OM SAI RAM...JAI SAI RAM...OM SAI RAM...JAI SAI RAM...
OM SAI RAM...JAI SAI RAM...OM SAI RAM...JAI SAI RAM...
OM SAI RAM...JAI SAI RAM...OM SAI RAM...JAI SAI RAM...
OM SAI RAM...JAI SAI RAM...OM SAI RAM...JAI SAI RAM...


JAI SAI RAM...
Title: Re: श्रीहनुमानचालीसा
Post by: Admin on April 02, 2007, 03:16:12 AM
Jai Sai Ram

Please see this link:

http://www.spiritualindia.org/wiki/Sri_Hanuman_Chalisa

Jai Sai Ram
Title: Re: श्रीहनुमानचालीसा.....HAPPY HANUMAN JAYANTI
Post by: Ramesh Ramnani on April 02, 2007, 04:24:25 AM
JAI SAI RAM!!!

HAPPY HANUMAN JAYANTI

The character of Hanuman teaches us of the unlimited power that lies unused within each one of us.  Hanuman directed all his energies towards the worship of Lord Rama, and his undying devotion made him such that he became free from all physical fatigue.  And Hanuman's only desire was to go on serving Rama.... and through HIM serve all.

OM SAI RAM!!!
Title: Re: श्रीहनुमानचालीसा
Post by: Ramesh Ramnani on April 10, 2007, 02:59:14 AM
जय सांई राम।।।

हनुमान जी कौन हैं, कहाँ रहते हैं  
 
हर मंगलवार और शनिवार को हिंदू जन हनुमान जी की पूजा करते हैं। ये हनुमान जी कौन हैं, कहाँ रहते हैं? हमारे शास्त्रों में जो वर्णन मिलता है उससे ऐसी छवि बनती है कि हनुमान एक ऐसे महावानर थे जिन्होंने रामायण काल में राम के साथ उनके महान कार्यों में सहयोग दिया और उनकी निष्काम भाव से सेवा की। बचपन से हम रामलीलाएँ देखते आ रहे हैं और हमने हनुमान को एक अवतार मान लिया जो कि आज केवल मंदिरों में, तीर्थस्थलों में, मूर्ति के रूप में ही सुशोभित व प्रासंगिक हैं।

अंधविश्वास व धार्मिक आस्था के बीच अत्यंत पतली रेखा होती है। राम चरित मानस में तुलसीदास ने जनसाधारण को समझाने के उद्देश्य से ही हनुमान का एक व्यक्ति के रूप में वर्णन किया है और उन्हें अपने गुरु का दर्जा दिया है।

हनु का अर्थ होता है ग्रीवा, चेहरे के नीचे वाला भाग अर्थात ठोड़ी, मान का अर्थ होता है गरिमा, बड़ाई, सम्मान। इस प्रकार हनुमान का मतलब ऐसा व्यक्ति जिसने अपने मान-सम्मान को अपनी ठोड़ी के नीचे रखा है अर्थात जीत लिया है। जिसने अपने मान-सम्मान को जीत लिया है, उसके प्रभाव से जो मुक्त हो चुका है, वही हनुमान हो सकता है। हनुमान का एक नाम बालाजी है, जिसका तात्पर्य है बालक। हमारे ग्रंथों में हनुमान जी को हमेशा बालक ही दिखलाया गया है। बालक के समान निष्कलुष हृदय वाला व्यक्ति ही सम्मान पाने की लालसा से मुक्त रह सकता है और सही अर्थों में ब्रह्माचर्य का पालन कर सकता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भी हनुमान जी ने कभी अपनी शक्ति व सामर्थ्य का गर्व नहीं किया। राम दरबार के चित्र में उन्होंने सबसे नीचे भूमि पर, सेवक वाली जगह पर ही हाथ जोड़े बैठे दिखाया जाता है।

ऐसे महान चरित्र को वानर के रूप में क्यों चित्रित किया गया? ऐसा प्रश्न आपके मन में भी जरूर उठता होगा। कहाँ ऐसा महान व्यक्तित्व और कहाँ वानर रूप, जो एक निकृष्ट व उद्दण्ड जानवर माना जाता है। वास्तव में वानर प्रतीक है मनुष्य के अविवेकी व चंचल मन का। हमारा मन वानर के समान ही कभी भी कहीं भी टिक कर नहीं बैठ सकता, अत्यंत ही चलायमान है। और मन का नियंत्रण अत्यंत ही दुष्कर कार्य है। हनुमान पवनपुत्र हैं अर्थात पवन से भी अधिक तेज गति से चलने वाले इस मन के वे पुत्र हैं। अब बताइए, एक तो वानर की उपमा व दूसरी पवन की- दोनों ही अत्यंत चंचल। उनको वानराधीश कहने का तात्पर्य यही है कि वे मन रूपी वानर के अधिपति हैं, स्वामी हैं। उनका अपनी चंचल इंद्रियों पर नियंत्रण है। केवल मन का स्वामी ही राम रूपी ईश्वर का सवोर्त्तम भक्त हो सकता है और धर्म के कार्यों में निष्काम भाव से भाग ले सकता है।

यहाँ राम का तात्पर्य है उस रमण करने वाले तत्व से जो कि हर जगह समान रूप से व्याप्त है। दशरथ नंदन राम तो उसे व्यक्त करने के प्रतीक मात्र हैं। याद रखें कि निष्कामता सभी महान गुणों की जननी है। हनुमान निष्काम गुण की प्रतिमूर्ति हैं, इसीलिए वे कहते हैं, 'रामकाज किए बिनु मोहि कहाँ विश्राम।' वे पूरी तरह समर्पित हैं राम के प्रति, बिना किसी प्रतिफल की आशा के। यही है निष्काम भक्ति की पराकाष्ठा।

हनुमान माता अंजना व पिता केसरी के पुत्र हैं, शास्त्रों में ऐसा ही वर्णित है। माता अंजना अर्थात आँख व पिता केसरी अर्थात सिंह के समान अभूतपूर्व साहस व अभय की भावना। मनुष्य में अच्छाई या बुराई आँख से ही प्रवेश करती है- आँखों का मतलब सिर्फ दैहिक आँखें नहीं, बल्कि मन की आँखें भी, हमारा नजरिया, दृष्टिकोण। हनुमान का जन्म विशुद्ध चिंतन व सिंह के समान अभय व्यक्तित्व द्वारा ही संभव है। डरा हुआ व्यक्ति अपनी बात पर अडिग नहीं रह सकता और भय वश कुछ भी कर सकता है। हनुमान अपने जीवनकाल में न किसी से डरे न ही अभिमान किया। इसलिए वे न कभी पराजित हुए और न ही उनकी मृत्यु हुई। 

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: श्रीहनुमानचालीसा
Post by: tana on April 10, 2007, 04:06:43 AM
ॐ सांई राम !~!

बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आप ने रमेश भाई....


 अंनजनीय  वीर  हनुमनत्  शूर  वायु  कुमार  वानर  धीर ~~~


श्री राम दूत जय हनुमनत् !~!

जय बोलो सियाराम की जय बोलो हनुमान की !~!

राम लखन सिया जनकी जय बोलो हनुमान की !~!
जय सियाराम जय जय सियाराम !~!
जय हनुमान जय जय हनुमान !~!
जय सांई राम जय जय सांई राम  !~!


जय सांई राम !~!
Title: Re: श्रीहनुमानचालीसा
Post by: Ramesh Ramnani on April 21, 2007, 01:44:50 AM
जय सांई राम

श्री हनुमान जी की आरती
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आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥ आरती……

जाके बल से गिरिवर काँपै। रोग-दोष जाके निकट न झाँपै ॥1॥

अंजनी पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई ॥2॥

दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए ॥3॥

लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई ॥4॥

लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सँवारे ॥5॥

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि सजीवन प्रान उबारे ॥6॥

पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावन की भुजा उखारे ॥7॥

बाएं भुजा असुर दल मारे। दहिने भुजा संतजन तारे ॥8॥

सुर नर मुनि आरती उतारें। जै जै जै हनुमान उचारें ॥9॥

कंचन थार कपूर लौ छाई। आरति करत अंजना माई ॥10॥

जो हनुमानजी की आरति गावै। बसि बैकुण्ठ परम पद पवै ॥11॥

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।