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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: JR on February 26, 2007, 12:57:03 AM

Title: समाज सुधारक देशभक्त गुरुनानक देव जी
Post by: JR on February 26, 2007, 12:57:03 AM
गुरु नानक देव जी ने एक ऐसे विकट समय में जन्म लिया जब भारत में कोई केंद्रीय संगठित शक्ति नहीं थी। विदेशी आक्रमणकारी देशवासियों का मानमर्दन कर देश को लूटने में लगे थे। धर्म के नाम पर अंधविश्वास और कर्मकांड का बोलबाला था। मतमतांतरों और विदेशी संस्कृति का हमला इस देश की संस्कृति पर हो रहा था। ऐसे कठिन समय में हुए गुरु जी के प्रकाश के बारे में भाई गुरुदास जी ने लिखा है।

सतगुरु नानक प्रगटिया, मिटी धुंध जग चानण होआ, ज्यूं कर सूरज निकलया, तारे छुपे अंधेर पलोआ गुरु नानक देव जी के जीवन के अनेक पहलू हैं। वे जन सामान्य की आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान करने वाले महान दार्शनिक, विचारक थे। अपनी सुमधुर सरल वाणी से जनमानस के हृदय को झंकृत कर देने वाले महान संत कवि भी। गुरु जी के अध्यात्मिक विचारक और संत कवि रूप की चर्चा बहुत हुई है, परंतु उनका एक और रूप है, जिसे उनके व्यक्तित्व का अभिन्न रूप माना जा सकता है। इस रूप में वे क्रांतिकारी कवि की तरह बाबर जैसे अत्याचारी शासक की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं, तो जाति वैमनस्य और धार्मिक रंजिशों  में फंसे समाज को सही दिशा दिखाते हैं। गुरु जी के समय हिंदुओं को बलात् धर्म परिवर्तन के लिए तत्कालीन कट्टरपंथी शासक मजबूर कर रहे थे। हिंदु धर्म के अंदर भी वर्णभेद, ऊंच-नीच का जातिगत भेदभाव चरम पर था। गुरु जी ने यह सब देखा। धर्म, समाज एवं देश की अधोगति को उन्होंने अनुभव किया। निरंतर छिन्न-भिन्न होते जा रहे सामाजिक ढांचे को अपने हृदयस्पर्शी उपदेशों से उन्होंने पुन: एकता के सूत्र में बांध दिया। उन्होंने लोगों को बेहद सरल भाषा में समझाया सभी इंसान एक दूसरे के भाई है। ईश्वर सबका साझा पिता है। फिर एक पिता की संतान होने के बावजूद हम ऊंच-नीच कैसे हो सकते है। अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बंदे एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले को मंदे।

उल्लेखनीय बात यह है कि गुरु जी ने इन उपदेशों को अपने जीवन में अमल में लाकर स्वयं एक आदर्श बन सामाजिक सद्भाव की मिसाल कायम की। उन्होंने लंगर की परंपरा चलाई। जहां कथित अछूत लोग जिनके सामीप्य से कथित उच्च जाति के लोग बचने की कोशिश करते थे, उन्हीं ऊंच जाति वालों के साथ बैठकर एक पंक्ति में  बैठकर भोजन करते थे। आज भी सभी गुरुद्वारों में गुरु जी द्वारा शुरू की गई यह लंगर परंपरा कायम है। लंगर में बिना किसी भेदभाव के संगत सेवा करती है।

इस जातिगत वैमनस्य को खत्म करने के लिए गुरू जी ने संगत परंपरा शुरू की। जहां हर जाति के लोग साथ-साथ जुटते थे, प्रभु आराधना किया करते थे। गुरु जी ने अपनी यात्राओं  के दौरान हर उस व्यक्ति का आतिथ्य स्वीकार किया, उसके यहां भोजन किया, जो भी उनका प्रेमपूर्वक स्वागत करता था। कथित निम्न जाति के समझे जाने वाले मरदाना को उन्होंने एक अभिन्न अंश की तरह हमेशा अपने साथ रखा और उसे भाई कहकर संबोधित किया। इस प्रकार तत्कालीन सामाजिक परिवेश में गुरु जी ने इस क्रांतिकारी कदमों से एक ऐसे भाईचारे को नींव रखी जिसके लिए धर्म-जाति का भेदभाव बेमानी था।

आध्यात्मिक विचारक, संत होने के साथ-साथ गुरु जी एक महान देश भक्त भी थे। वे सच्चे अर्थो में एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे। उस समय त्याग, वैराग्य और जंगलों में जाकर भजन करना मोक्ष प्राप्ति के लिए जरूरी समझा जाता था। ऋषि मुनि लोग समाज की मुख्य धारा से कटकर जंगल में जाकर तपस्या करते थे। इस प्रकार बुराईयों से ग्रस्त समाज को सुधारने में उनका कोई योगदान नहीं था। यहां पर गुरु जी ने आगे आकर इन एकांतवासियों को लताड़ा।

उन्हें समझाया कि एक ऐसे समय में जब बाबर जैसे लुटेरे देश को लूट खसोट रहे हैं, औरतों की बेइज्जती हो रही है, ऐसे समय में अपने परिचितों को अकेले छोड़कर जंगलों में तपस्या करके वे देश-धर्म और संस्कृति के प्रति कैसी वफादारी निभा रहे है। गुरुनानक देव जी ने उनके स्वाभिमान को सब हराम जेता कीछ खाये का उलाहना देकर राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित किया। उन्होंने शासन प्रशासन द्वारा किए जा रहे अत्याचार का करुण वर्णन अपनी वाणी में कर निर्भयता का परिचय दिया।

राजे सिंह मुकदम कुते, जाइ जगाइन बैठे सुत्ते चाकर तट दा पाइयन घाउ, रत-पितु कुतहि चरि जाहूं इस प्रकार गुरु जी ने जुल्म, अत्याचार का विस्तार सहित वर्णन कर जागरूकता, चेतना कायम की। जहां मधुर सारगुही उपदेशों से लोगों के हृदय में दया, ईश्वरीय प्रेम, सहिष्णुता के बीजे बोए वहीं क्रान्तिकारी उपदेशों से गुलामी और अत्याचार सहने को अपनी नियति मान चुके लोगों के सोए स्वाभिमान को जगाया। धर्म के नाम पर चल रहे पाखंड, अंधविश्वास और कर्मकाण्डों का गुरु जी ने सख्त विरोध किया। आधुनिक समय में भी गुरुनानक देव जी के उपदेश उतने ही प्रासंगिक हैं। हमें समाज में फैले वैमनस्य, कुरीतियों आडम्बरों के विरुद्ध तो संघर्ष करना ही है, साथ ही साम्प्रदायिकता,जातिवाद के विष से सचेत रहकर हर हालत में आपसी एकता, भाई-बंधुत्व भी बनाये रखना है।