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Author Topic: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।  (Read 25478 times)

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Offline tana

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  • ~सांई~~ੴ~~सांई~
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ॐ साईं राम....

दो रंगी छोङ दे एक रंग हो जा ,
या तो बेरंग हो जा , या फिर रंगारंग हो जा....

जय साईं राम...
"लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

" Loka Samasta Sukino Bhavantu
Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

Offline Ramesh Ramnani

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जय सांई राम।।।

भूत-पिशाच निकट नहीं आवे... 
 
स्वप्न कुछ और नहीं, नींद के दौरान पैदा होने वाले विचारों, तस्वीरों और भावनाओं से जुड़ी मानसिक क्रिया है। मेडिकल साइंस के अनुसार स्वप्न दबी इच्छाओं के लिए एक तरह का सेफ्टी वाल्व है। सामान्यत: हर व्यक्ति हर रात करीब 2 घंटे स्वप्न देखता है।

हमारी नींद कई चक्रों में बंटी होती है और हर चक्र कई चरणों में। हर चक्र की शुरुआत हल्की नींद से होती है। अंतिम 2 चरणों में गहरी नींद और रेम (रैपिड आई मूवमेंट) का नंबर आता है। हम हर रात 4 से 5 रेम पीरियड से गुजरते हैं। इनकी अवधि 5 से लेकर 45 मिनट तक की होती है। सारे सपने सिर्फ रेम पीरियड में ही दिखते हैं और सिर्फ स्तनधारियों को ही। रेंगने वाले जन्तुओं और कोल्ड ब्लडेड (ठंडे खून वाले) जीव-जन्तुओं को सपने नहीं आते, क्योंकि नींद के दौरान वे रेम पीरियड से नहीं गुजरते हैं।

नींद की शुरुआत में रेम पीरियड काफी छोटा होता है, लेकिन जैसे-जैसे नींद की अवधि लंबी होती जाती है, रेम पीरियड की अवधि भी बढ़ती जाती है। यही वजह है कि हम ज्यादातर सपने सुबह या नींद के आखिरी चक्र में देखते हैं। इसी वजह से कई बार जब हमारी नींद सुबह में खुलती है तो हम रेम पीरियड में होते हैं और थोड़े समय पहले देखे गए सपने दिमाग में मौजूद रहते हैं। अक्सर जो बुरे सपने याद रहते हैं, वह भी सुबह के वक्त ही देखे गए होते हैं। इसकी एकमात्र वजह है रेम पीरियड में नींद का खुलना। रेम पीरियड के बाद नींद खुलने पर व्यक्ति को कुछ भी याद नहीं रहता है। न ही अच्छा न ही बुरा।

डॉक्टर होने के नाते अक्सर हमारा सामना ऐसे मरीजों से होता रहता है, जो दु:स्वप्न के शिकार होते हैं। ऐसे लोगों की अमूमन डर और चिंता के मारे नींद खुलने की शिकायत होती है। नींद खुलने के पीछे अधिकतर का यही कहना होता है कि स्वप्न में वे किसी मृत या जिंदा (जाने-अनजाने) व्यक्ति को देखते हैं। ऐसी स्थितियों को साधारण लोग भूत-प्रेत या पिशाच से जोड़ देते हैं। फिर अशिक्षा या अंधविश्वास के कारण वे ओझा, पुजारी, बाबा, तांत्रिक या किसी ठग के चक्कर में फंस जाते हैं।

मेडिकल साइंस के हिसाब से देखें तो बुरे सपने (दु:स्वप्न) कुछ और नहीं बल्कि बढ़-चढ़ कर देखे गए सपने ही हैं। ऐसे सपने देखने का मतलब यह नहीं है कि कोई भूत, प्रेत या पिशाच पीछे पड़ा है। दरअसल ये सपने हम भीतरी तनाव, निराशा, व्याकुलता, मदिरा या फिर ड्रग्स के प्रभाव के कारण देखते हैं। इन चीजों के कारण रेम पीरियड बढ़ जाता है और हम लंबे-लंबे और ऊटपटांग सपने देखते हैं। वहीं कैफिनयुक्त पेय पदार्थों और कुछ दूसरे ड्रग्स का प्रभाव ठीक इसके विपरीत होता है। ये रेम पीरियड को छोटा कर देते हैं। कैफिन या रेम पीरियड को घटाने वाले ड्रग ऊटपटांग सपने देखने वालों के लिए काफी फायदेमंद साबित होते हैं।

बार-बार दु:स्वप्न देखने को ड्रीम एंग्जाइटी डिसॉर्डर कहा जाता है। इसके इलाज की जरूरत होती है। ठीक तरह से इलाज न होने पर इनसे फैमिली लाइफ के लिए भी परेशानी पैदा होने का खतरा रहता है। दु:स्वप्न देखने की बीमारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा पाई जाती है। महिलाओं में यह समस्या युवा अवस्था में शुरू हो जाती है।

दु:स्वप्न या मृत प्राणियों को सपने में देखना कोई नई बात नहीं है। आयुर्वेद में इसकी विस्तार से चर्चा है। वात असंतुलन को इसका कारण माना गया है और वात को संतुलित करने वाली जीवन शैली को अपनाना इसका इलाज माना गया है। प्राणायाम, सम्मोहन, काउंसलिंग, ध्यान, योग, जलनेति और नियमित रूप से कसरत वगैरह से दु:स्वप्न के शिकार लोगों को काफी मदद मिलती है। हनुमान चालीसा में 1 दोहा है: भूत पिशाच निकट नहीं आवे...। मिथकीय संदर्भ में देखें तो हनुमान को ऐसे रूप में दर्शाया गया है जिसे प्राणायाम और उससे जुड़ी दूसरी सिद्धियों पर अधिकार प्राप्त है। दोहे का मूल अर्थ यह है कि प्राणायाम आदि से खुद को जोड़ कर इन व्याधियों से मुक्ति पाई जा सकती है। 

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।

 
 
अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

Offline Ramesh Ramnani

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जय सांई राम।।।

इस जीवन से क्या बटोरें, क्या ले जाएं... 
 
हमारे आसपास दो प्रकार की स्थितियाँ नजर आती हैं, दो तरह के वातावरण मिलते हैं। या तो ग्रामीण जीवन की शान्ति, जहाँ रोज की तू-तू, मैं-मैं और सुबह उठने से रात को बिस्तर पर गिर पड़ने तक तनावपूर्ण और मशीनी जीवन नहीं है। वहाँ शांति है, पर समृद्धि नहीं है। वहाँ लोग अवसर व हुनर के अभाव में मुश्किल से दो समय पेट भर पाते हैं। जीवन नीरस या एकरस सा लगता है। दूसरी तरफ शहरी जीवन है। वहाँ दिन-रात काम की मारामारी है, दौड़-भाग मची रहती है। वैसे जीवन में समृद्धि है, तड़क-भड़क है, पर चैन से बिताने वाली जिंदगी नहीं है।

मनुष्य के कर्म साधारणतया तीन प्रकार के होते हैं। स्वार्थ और अहंकारपूर्ण कामनाओं की तृप्ति के लिए किए जाने वाले कर्म। अहंकार रहित कामनाओं की पूर्ति के लिए किए जाने वाले कर्म। और बिना किसी कामना के नि:स्वार्थ भाव से किए जाने वाले कर्म।

पहली श्रेणी के कर्म करने वाला मनुष्य महज अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए रात-दिन दौड़ लगाता है, एड़ी-चोटी का जोर लगाता है। उसे सिर्फ अपने एशो-आराम के लिए ही धन कमाने की इच्छा रहती है। वह सारा जीवन समाज से लेता रहता है, वापस समाज को कुछ देने की, उसके लिए कुछ करने की कोई भावना तक उसके मन में नहीं उठती। उसके जीवन में परोपकार, समाज सेवा, राष्ट्रहित आदि का कोई आदर्श या लक्ष्य नहीं होता।

ऐसा व्यक्ति खूब धन कमाने और इन्द्रिय सुख भोगने के बावजूद जीवन में शान्ति और समृद्धि एक साथ नहीं पा सकता। ऊपर दिए गए कर्म सिद्धान्त से उसे अगला जीवन बिना शांति के ही मिलेगा, क्योंकि वह उसी के लायक है। लेकिन दुर्भाग्य से अधिकांश लोगों की जीवन शैली ऐसी ही है।

दूसरी श्रेणी का व्यक्ति बिना स्वार्थ व अहंकार के कार्य करता है। वह अपनी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के बाद अपने समाज, देश या पूरी मानवता के हित में कार्य करने का लक्ष्य रखता है। अपनी मेहनत द्वारा वह समाज को अपना ऋण लौटाता है। अपने जीवन और अपनी प्रगति के लिए वह पूरे समाज के प्रति कृतज्ञ महसूस करता है और जो पाता है उसके बदले कुछ लौटाना और बाँटना चाहता है।

इस प्रकार के व्यक्ति को अवश्य ही जीवन से समृद्धि के साथ सुख की भी प्राप्ति होगी। यही पुण्य है। यही उसके जीवन की दिशा निर्धारित करता है- जीवन की दिशा और भविष्य ज्योतिषियों व कर्मकाण्डियों की बातों पर नहीं निर्भर करता। सुख-समृद्धि में जीवन पाकर यदि कोई सदाचार व परोपकार को अपने जीवन का मार्ग बनाता है, तो फिर उसे बुद्धिमान साधकों में स्थान मिलता है, ताकि वह शेष यात्रा भी उसी तरह पूरी कर सके।

लेकिन यदि सुख संपत्ति के वातावरण में पैदा होकर कोई वापस स्वार्थ व भोग-विलास में पड़ जाए, जैसा कि अक्सर सामान्य जनों के साथ होता ही है, तो फिर उसका पतन अवश्यंभावी है। कर्म का सिद्धान्त किसी का लिहाज नहीं करता। तीसरी श्रेणी के लोग इस दुनिया में मुट्ठी भर ही होते हैं। अपने जीवन में बिना किसी कामना के अपना कर्त्तव्य पूरा करते हैं, जिसे निष्काम कर्म कहा गया है। इस प्रकार के लोग जीवन में अध्यात्म साधना करते रहते हैं। ऐसे ही लोगों को मोक्ष मिलता है।

मोक्ष का अर्थ है जन्म मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाना। ईश्वर व हमारे बीच का पर्दा असल में हमारी कामनाओं का पर्दा होता है। यदि उचित गुरु के निर्देश में हम नि:स्वार्थ भाव से अपना कर्म करें और साथ ही अध्यात्म की साधना भी करते रहें, तो अपने साधारण पारिवारिक जीवन में रहते हुए भी, सारे सांसारिक दायित्व निभाते हुए भी हम मोक्ष पा सकते हैं।

आश्चर्य यही है कि प्राय: सभी लोग जीवन भर रात दिन परिश्रम कर ऐसी निधियों का संकलन करते हैं जो यहीं संसार में रह जाती हैं, साथ नहीं जातीं। साथ जाने वाले आध्यात्मिक संस्कार कोई नहीं जुटाता ताकि आगे का भविष्य सुरक्षित हो। न बैंक बैलेंस साथ जाता है न परिवार।
 

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।
अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

Offline Ramesh Ramnani

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जय सांई राम।।।

आँसू......  

आँसू वो अनमोल मोती हैं जो पत्थर दिल को भी मोंम कर देते हैं।  आँसू का तालुक आँख से बिलकुल ऐसा है जैसा फूल का खुशुबू से, ज़िन्दगी का आस से, आँसू ऐसे मोती हैं, जो आँख के अन्दर ही अच्छे लगते है। इन मोतियों की कदर और कीमत आँख के अन्दर रह कर और ज्यादा हो जाती है। फिर यही मोती अगर एक दफा आँख में से निकल जाऐं तो उस के बाद दोबारा वापस नही आते।

कहने को ये एक छोटा सा कतरा है मगर दुख और दर्द के तमाम अहसास को अपने अन्दर जब्त कर लेते है, कभी ग़म की हालात में ये छोटा सा कतरा आँख से निकल कर ग़मों के बोझ को हलका कर देते हैं तो कभी खुशी की कैफियत को हकीकी मायनों में बयान करते है।  ना किसी से कोई गिला करो और ना ही कोई शिकायत। ये आँसू ही है जो नई रोशिनी लिये जीने का अहसास हमेशा इन्सान को कराते रहते हैं और मुफलिस दोस्त की तरह दुख दर्द बांटते है।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

ॐ सांई राम।।।
अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

Offline Ramesh Ramnani

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Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
« Reply #19 on: December 01, 2007, 11:22:56 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    मस्त रहो, सब कुछ जानना ज़रूरी नहीं... 

    कभी-कभी इच्छा होती है कि सब कुछ जान लें। दुनिया की अनंत सैर पर निकल जाएं। पुरानी सभ्यताओं के अवशेष देखें, नए का निर्माण देखें। घूम-घूमकर और पढ़कर राजनीति भी जान लें,  अर्थनीति भी। साइंस, साहित्य, खगोलशास्त्र से लेकर इतिहास-भूगोल समेत दुनिया की कोई भी चीज़ ऐसी न हो जिनकी जानकारी हमें न हो। यानी, पूरे एनसाइक्लोपीडिया बन जाए। फिर लगा कि तब किसी कंप्यूटर की फाइल और हम में अंतर क्या रह जाएगा?  इसी दौरान पुरानी डायरी पलटते-पलटते मुझे किसी विचारक की चंद लाइनें लिखी हुई नज़र आ गईं

    न सब कुछ देखना-पढ़ना उचित है,  न अनिवार्य। व्यक्ति को प्रतिपल चुनाव करना चाहिए। ...हम अंधों की तरह टटोलते रहते हैं। एक हाथ ऊपर भी मारते हैं। एक हाथ नीचे भी मारते हैं। ...इस तरह हम अपनी ज़िंदगी को अपने ही हाथों काटते रहते हैं। हम अपनी ज़िंदगी को दोनों तरफ फैलाए रहते हैं और कहीं भी नहीं पहुंच पाते। ...हम सब कन्फ्यूज्ड हैं क्योंकि हम अनर्गल, असंगत चुनाव करते रहते हैं। अनेक तरह की नांव पर सवार हो जाते हैं। फिर जीवन टूटता है, जीवन नष्ट होता है और हम कहीं नहीं पहुंच पाते।

    मैं सोचने लगा कि फिर रास्ता क्या है?  मुझे एक पुराने साथी की बात याद आ गई कि हमारा 90 फीसदी से ज्यादा ज्ञान अप्रत्यक्ष होता है। हम आग को छूकर नहीं देखते कि वह जलाती है या नहीं। संत कबीर भी कह चुके हैं कि ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय। लेकिन आज के संदर्भों में प्रेम का ये ढाई आखर है क्या?  मैं उलझन में पड़ गया कि करूं क्या?  यहीं पर मुझे किसी और विद्वान-विचारक की लाइनें अपनी डायरी में दिख गईं -  वह मत करो जो तुम चाहते हो और तब तुम वह कर सकते हो जो तुम्हें अच्छा लगता है।

    यानी मन के राजा बनो, मस्त रहो। लेकिन मन के राजा ही बन पाते तो चिंतित और परेशान और साथ ही कन्फ्यूज्ड क्यों रहते?  अपने को हर पल आधा-अधूरा क्यों महसूस करते? है ना?

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
    « Reply #20 on: December 05, 2007, 07:52:04 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    उदासी और आनंद... 

    उदासी उतना उदास नहीं करती, जितना उदासी आ गई, यह बात उदास करती है। उदासी की तो अपनी कुछ खूबियाँ हैं, अपने कुछ रहस्य हैं। अगर उदासी स्वीकार हो तो उदासी का भी अपना मजा है। मुझे कहने दो इसी तरह, कि उदासी का भी अपना मजा है। क्योंकि उदासी में एक शांति है, एक शून्यता है। उदासी में एक गहराई है। आनंद तो छिछला होता है। आनंद तो ऊपर-ऊपर होता है। आनंद तो ऐसा होता है जैसे नदी भागी जाती है और उसके ऊपर पानी का झाग। उदासी ऐसी होती है जैसी नदी की गहराई--अंधेरी और काली। आनंद तो प्रकाश जैसा है। उदासी अंधेरे जैसी है। अंधेरी रात का मजा देखा? अमावस की रात का मजा देखा? अमावस की रात का रहस्य देखा? अमावस की रात की गहराई देखी? मगर जो अंधेरे से डरता है, वह तो आँख ही बंद करके बैठ जाता है, अमावस को देखना ही नहीं चाहता। जो अंधेरे से डरता है, वह तो अपने द्वार-दरवाजे बंद करके खूब रोशनी जला लेता है। वह अंधेरे को झुठला देता है। अमावस की रात आकाश में चमकते तारे देखे? दिन में वे तारे नहीं होते। दिन में वे तारे नहीं हो सकते। दिन की वह क्षमता नहीं है। वे तारे तो रात के अंधेरे में, रात के सन्नाटे में ही प्रकट होते हैं। वे तो रात की पृष्ठभूमि में ही आकाश में उभरते हैं और नाचते हैं। ऐसे ही उदासी के भी अपने मजे हैं, अपने स्वाद हैं, अपने रस हैं।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
    « Reply #21 on: December 05, 2007, 09:36:02 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    उदासी और आनंद... 

    उदासी उतना उदास नहीं करती, जितना उदासी आ गई, यह बात उदास करती है। उदासी की तो अपनी कुछ खूबियाँ हैं, अपने कुछ रहस्य हैं। अगर उदासी स्वीकार हो तो उदासी का भी अपना मजा है। मुझे कहने दो इसी तरह, कि उदासी का भी अपना मजा है। क्योंकि उदासी में एक शांति है, एक शून्यता है। उदासी में एक गहराई है। आनंद तो छिछला होता है। आनंद तो ऊपर-ऊपर होता है। आनंद तो ऐसा होता है जैसे नदी भागी जाती है और उसके ऊपर पानी का झाग। उदासी ऐसी होती है जैसी नदी की गहराई--अंधेरी और काली। आनंद तो प्रकाश जैसा है। उदासी अंधेरे जैसी है। अंधेरी रात का मजा देखा? अमावस की रात का मजा देखा? अमावस की रात का रहस्य देखा? अमावस की रात की गहराई देखी? मगर जो अंधेरे से डरता है, वह तो आँख ही बंद करके बैठ जाता है, अमावस को देखना ही नहीं चाहता। जो अंधेरे से डरता है, वह तो अपने द्वार-दरवाजे बंद करके खूब रोशनी जला लेता है। वह अंधेरे को झुठला देता है। अमावस की रात आकाश में चमकते तारे देखे? दिन में वे तारे नहीं होते। दिन में वे तारे नहीं हो सकते। दिन की वह क्षमता नहीं है। वे तारे तो रात के अंधेरे में, रात के सन्नाटे में ही प्रकट होते हैं। वे तो रात की पृष्ठभूमि में ही आकाश में उभरते हैं और नाचते हैं। ऐसे ही उदासी के भी अपने मजे हैं, अपने स्वाद हैं, अपने रस हैं।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।



    Jai Sai Ram!!!

    My dearest Ramesh Bhai, thank you so much for this immensely beautiful thought! An excellent way to look at darkness of sadness indeed. Andhairay se pyaar ho gaya yeh pad kar :) :D  May Baba bless my Bhai always, and me with my Bhai's wonderful thoughts forever!!

    Om Sai Ram!!
    Om Sai Ram!!
     :-*

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
    « Reply #22 on: December 05, 2007, 09:56:45 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    मैं अपनी सबसे प्रियतम बहन सुनीता के हौसला अफज़ाई पर ज्यादा नही पर सिर्फ अपने बाबा से दुआऐं ही कर सकता हूँ...

    जो खुशी तुम्हारे करीब हो
    वो सदा तुम्हे नसीब हो...

    तुझे वो खुलूस मिले कि जो
    तेरी ज़िन्दगी पे मुहीत हो...

    जो मयार तुझको पसंद हो
    जो तुम्हारे दिल की उमंग हो...

    तेरी ज़िन्दगी जो तलब करे
    तेरे हमसफर का वो रंग हो...

    जो ख्याल दिल में असीर हो
    और दुआ में भी तासीर हो...

    तेरे हाथ उठते ही बाबा करे
    तेरे सामने ताबीर हो...

    तुझे वो जंहा मिले जिधर
    गमों का कोई गुज़र ना हो...

    जिधर रोशिनी हो खुलूस की
    और नफरतों को खबर ना हो...

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
    « Reply #23 on: December 06, 2007, 09:12:58 AM »
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  • Jai Sai Ram!

    Subhaan Allah dearest Bhai! Itni khubsurat dua ke liye aap ka shukriya. Baba aap par hamesha meharbaan rahain, yeh dua hai meri unsay!

    Om Sai Ram!
     :) :)

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
    « Reply #24 on: December 09, 2007, 06:49:49 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्यालों की कड़ी में एक और ख्याल।।

    बनाने में कुछ जाता है
    नष्ट करने में नहीं
    बनाने में मेहनत लगती है. बुद्धि लगती है, वक्त लगता है
    तो़ड़ने में बस थोड़ी सी ताकत
    और थोड़े से मंसूबे लगते हैं।
    इसके बावजूद बनाने वाले तोड़ने वालों पर भारी पड़ते हैं
    वे बनाते हुए जितना हांफते नहीं,
    उससे कहीं ज्यादा तोड़ने वाले हांफते हैं।
    कभी किसी बनाने वाले के चेहरे पर थकान नहीं दिखती
    पसीना दिखता है, लेकिन मुस्कुराता हुआ,
    खरोंच दिखती है, लेकिन बदन को सुंदर बनाती है।

    लेकिन कभी किसी तोड़ने वाले का चेहरा
    आपने ध्यान से देखा है?
    वह एक हांफता, पसीने से तर-बतर बदहवास चेहरा होता है
    जिसमें सारी दुनिया से जितनी नफरत भरी होती है,
    उससे कहीं ज्यादा अपने आप से।

    असल में तोड़ने वालों को पता नहीं चलता
    कि वे सबसे पहले अपने-आप को तोड़ते हैं
    जबकि बनाने वाले कुछ बनाने से पहले अपने-आप को बनाते हैं।
    दरअसल यही वजह है कि बनाने का मुश्किल काम चलता रहता है
    तोड़ने का आसान काम दम तोड़ देता है।

    तोड़ने वालों ने बहुत सारी मूर्तियां तोड़ीं, जलाने वालों ने बहुत सारी किताबें जलाईं
    लेकिन बुद्ध फिर भी बचे रहे, ईसा का सलीब बचा रहा, कालिदार और होमर बचे रहे।
    अगर तोड़ दी गई चीजों की सूची बनाएं तो बहुत लंबी निकलती है
    दिल से आह निकलती है कि कितनी सारी चीजें खत्म होती चली गईं-
    कितने सारे पुस्तकालय जल गए, कितनी सारी इमारतें ध्वस्त हो गईं,
    कितनी सारी सभ्यताएं नष्ट कर दी गईं, कितने सारे मूल्य विस्मृत हो गए

    लेकिन इस हताशा से बड़ी है यह सच्चाई
    कि फिर भी चीजें बची रहीं
    बनाने वालों के हाथ लगातार रचते रहे कुछ न कुछ
    नई इमारतें, नई सभ्यताएं, नए बुत, नए सलीब, नई कविताएं
    और दुनिया में टूटी हुई चीजों को फिर से बनाने का सिलसिला।

    ये दुनिया जैसी भी हो, इसमें जितने भी तोड़ने वाले हों,
    इसे बनाने वाले बार-बार बनाते रहेंगे
    और बार-बार बताते रहेंगे
    कि तोड़ना चाहे जितना भी आसान हो, फिर भी बनाने की कोशिश के आगे हार जाता है।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
    « Reply #25 on: December 11, 2007, 03:38:35 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    ना किसी रावण को भगाने की.....ना लंका को जलाने की सोचो... मै तो कहता हूँ सिर्फ सांई राम सांई राम करते मेरे सांई को गले लगाओ। ये सब सांई राम का काम है। अपने सांई हैं ना फिर काहे का ग़म है मेरी बहना! क्यों कैसी कही????

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
    « Reply #26 on: December 11, 2007, 10:34:34 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    अन्नु मन से हारने वाली बात मत करो। प्रभु की रीत को समझने के लिये हमारे पास 'वो'  नज़र इनायत होनी चाहिये। जब हम अपनी दो आँखों से देखते है, तो जो वो दिखाती है वो हमे दिखाई पड़ता है। लेकिन जब इन्ही दो आँखों के पीछे बैठे 'उस'  कलाकार की नज़रों से देखेंगे तो सब रीतों में प्रीत की रीत ही दिखेगी।

    ये तुमने कैसे जाना कि जो अच्छे होते है उनकी दशा अच्छी नही होती?  कभी ना अच्छे लगने वालों के घर के भीतर गई हो याँ उनके साथ कुछ समय गुज़ारा है?  क्या उनसे कभी पूछा है कि उनकी रातों की नींद कैसी होती है? उनको नींद की गोलियां खाकर सारी रात करवटें बदलते नही देखा शायद तुमने।  खैर इस विषय पर बहुत ही लम्बी चर्चा की जा सकती है। पर मेरा तो मानना है कि हमे प्रभु की रीत के विषय मे कोई भी प्रश्न चिन्ह लगाने का कोई अधिकार ही नही है क्योकि उसकी लीला को समझने के लिये हमारे पास वो बुद्धि ही नही है।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
    « Reply #27 on: December 11, 2007, 11:07:35 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    रमेश भईया....ऐसा नहीं है कि मैं मन हार रही हूँ ...ये तो बस मेरे मन के कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल है बस....आप तो जानते ही है कि मैं कितनी मस्त हूँ...वैसे भी बाबा है साथ में हमेशा तो कैसी सोचना....
    मैं प्रभु की रीत पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगा रही हूँ, इस बात का कोई अधिकार क्या...कुछ भी नहीं है हमारे पास....ये जानने की तो चाह भी नहीं है....

    हम इंसान तो ऐसे है.....
    वाह रे वाह ओ समझदार इंसान,
    इतना कुछ मिला तुझे शुक्र ना हुआ,
    कुछ एक आध रह गया फट गिला दे दिया....

    और वैसे भी रमेश भाई,आप जानते है मेरी सोच यही है...
    रख भरोसा सांई पर किये जा अपना काम,
    सांई का ले कर नाम शुभ बस जपे जा सांई राम सांईराम~~~

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline Ramesh Ramnani

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      • Sai Baba
    Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
    « Reply #28 on: December 14, 2007, 02:43:27 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    अपेक्षा
    जंगली घास की तरह
    उग आती है
    रिश्तों के बीच
    जगह बना लेती है
    स्नेह से रिक्त स्थान पर
    टिक जाती है

    तुम सोचते हो
    सींचते हो
    फिर भी जिन्दगी
    हरी क्यों नहीं
    जिन्दा पलों से
    लदी क्यों नहीं

    सूत्र पुराना ही है
    बेहतर फसल
    के खातिर
    घास खींचनी होगी
    काटनी होगी

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल।।
    « Reply #29 on: December 16, 2007, 08:05:00 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    बड‌़े बद-नसीब
    होते हैं वो
    ढ़ूढ़ते है समान अपना
    दूसरों के घरों मे जो

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

     


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