जय सांई राम।।।
इस जीवन से क्या बटोरें, क्या ले जाएं...
हमारे आसपास दो प्रकार की स्थितियाँ नजर आती हैं, दो तरह के वातावरण मिलते हैं। या तो ग्रामीण जीवन की शान्ति, जहाँ रोज की तू-तू, मैं-मैं और सुबह उठने से रात को बिस्तर पर गिर पड़ने तक तनावपूर्ण और मशीनी जीवन नहीं है। वहाँ शांति है, पर समृद्धि नहीं है। वहाँ लोग अवसर व हुनर के अभाव में मुश्किल से दो समय पेट भर पाते हैं। जीवन नीरस या एकरस सा लगता है। दूसरी तरफ शहरी जीवन है। वहाँ दिन-रात काम की मारामारी है, दौड़-भाग मची रहती है। वैसे जीवन में समृद्धि है, तड़क-भड़क है, पर चैन से बिताने वाली जिंदगी नहीं है।
मनुष्य के कर्म साधारणतया तीन प्रकार के होते हैं। स्वार्थ और अहंकारपूर्ण कामनाओं की तृप्ति के लिए किए जाने वाले कर्म। अहंकार रहित कामनाओं की पूर्ति के लिए किए जाने वाले कर्म। और बिना किसी कामना के नि:स्वार्थ भाव से किए जाने वाले कर्म।
पहली श्रेणी के कर्म करने वाला मनुष्य महज अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए रात-दिन दौड़ लगाता है, एड़ी-चोटी का जोर लगाता है। उसे सिर्फ अपने एशो-आराम के लिए ही धन कमाने की इच्छा रहती है। वह सारा जीवन समाज से लेता रहता है, वापस समाज को कुछ देने की, उसके लिए कुछ करने की कोई भावना तक उसके मन में नहीं उठती। उसके जीवन में परोपकार, समाज सेवा, राष्ट्रहित आदि का कोई आदर्श या लक्ष्य नहीं होता।
ऐसा व्यक्ति खूब धन कमाने और इन्द्रिय सुख भोगने के बावजूद जीवन में शान्ति और समृद्धि एक साथ नहीं पा सकता। ऊपर दिए गए कर्म सिद्धान्त से उसे अगला जीवन बिना शांति के ही मिलेगा, क्योंकि वह उसी के लायक है। लेकिन दुर्भाग्य से अधिकांश लोगों की जीवन शैली ऐसी ही है।
दूसरी श्रेणी का व्यक्ति बिना स्वार्थ व अहंकार के कार्य करता है। वह अपनी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के बाद अपने समाज, देश या पूरी मानवता के हित में कार्य करने का लक्ष्य रखता है। अपनी मेहनत द्वारा वह समाज को अपना ऋण लौटाता है। अपने जीवन और अपनी प्रगति के लिए वह पूरे समाज के प्रति कृतज्ञ महसूस करता है और जो पाता है उसके बदले कुछ लौटाना और बाँटना चाहता है।
इस प्रकार के व्यक्ति को अवश्य ही जीवन से समृद्धि के साथ सुख की भी प्राप्ति होगी। यही पुण्य है। यही उसके जीवन की दिशा निर्धारित करता है- जीवन की दिशा और भविष्य ज्योतिषियों व कर्मकाण्डियों की बातों पर नहीं निर्भर करता। सुख-समृद्धि में जीवन पाकर यदि कोई सदाचार व परोपकार को अपने जीवन का मार्ग बनाता है, तो फिर उसे बुद्धिमान साधकों में स्थान मिलता है, ताकि वह शेष यात्रा भी उसी तरह पूरी कर सके।
लेकिन यदि सुख संपत्ति के वातावरण में पैदा होकर कोई वापस स्वार्थ व भोग-विलास में पड़ जाए, जैसा कि अक्सर सामान्य जनों के साथ होता ही है, तो फिर उसका पतन अवश्यंभावी है। कर्म का सिद्धान्त किसी का लिहाज नहीं करता। तीसरी श्रेणी के लोग इस दुनिया में मुट्ठी भर ही होते हैं। अपने जीवन में बिना किसी कामना के अपना कर्त्तव्य पूरा करते हैं, जिसे निष्काम कर्म कहा गया है। इस प्रकार के लोग जीवन में अध्यात्म साधना करते रहते हैं। ऐसे ही लोगों को मोक्ष मिलता है।
मोक्ष का अर्थ है जन्म मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाना। ईश्वर व हमारे बीच का पर्दा असल में हमारी कामनाओं का पर्दा होता है। यदि उचित गुरु के निर्देश में हम नि:स्वार्थ भाव से अपना कर्म करें और साथ ही अध्यात्म की साधना भी करते रहें, तो अपने साधारण पारिवारिक जीवन में रहते हुए भी, सारे सांसारिक दायित्व निभाते हुए भी हम मोक्ष पा सकते हैं।
आश्चर्य यही है कि प्राय: सभी लोग जीवन भर रात दिन परिश्रम कर ऐसी निधियों का संकलन करते हैं जो यहीं संसार में रह जाती हैं, साथ नहीं जातीं। साथ जाने वाले आध्यात्मिक संस्कार कोई नहीं जुटाता ताकि आगे का भविष्य सुरक्षित हो। न बैंक बैलेंस साथ जाता है न परिवार।
ॐ सांई राम।।।