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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: Admin on April 02, 2007, 09:20:22 AM

Title: दैव-दैव आलसी पुकारा
Post by: Admin on April 02, 2007, 09:20:22 AM
दैव-दैव आलसी पुकारा..

कुछ लोग यह समझते हैं कि 'वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा' और अकर्मण्य बन जाते हैं। ऐसे लोग भाग्यवाद में विश्वास करते हैं और प्रयत्न से कोसों दूर रह जाते हैं। केवल आलसी लोग ही हमेशा 'दैव-दैव' करते रहते हैं और कर्मशील लोग 'दैव-दैव आलसी पुकारा' कहकर उनका उपहास करते हैं।

जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता कठिन परिश्रम से ही मिलती है। अकर्मण्य व्यक्ति देश, जाति, समाज और परिवार के लिए एक भार बन जाते हैं। जो व्यक्ति दूसरों का मुँह ताकते रहते हैं, वह पराधीन हैं- दास हैं। जो 'अपना हाथ जगन्नाथ' का अनुसरण करते हैं वे ही स्वावलंबी व्यक्ति बड़े से बड़ा काम कर गुजरते हैं।

जो पुरुष उद्यमी होते हैं, स्वावलंबी होते हैं, वे शेर के समान होते हैं। लक्ष्मी उन्हीं का साथ देती है। 'जो भाग्य में होगा, मिल जाएगा'- यह तो डरपोक लोग मानते हैं। जो परिश्रम करेगा उसका ही भाग्य बनेगा। पंडित जवाहरलाल नेहरू का सिंहनाद 'आराम हराम है' इसी तथ्य की प्रेरणा देता है।

इतिहास में ऐसे ही स्वावलंबी पुरुषों की कहानियाँ हैं, जो कर्मरत रहे और जीवन में महान सफलताओं को प्राप्त किया। सिकंदर महान विजय का स्वप्न लेकर यूनान से बाहर निकला और कई देशों को जीतता गया। यह क्या था? पुरुषार्थ, मेहनत, प्रयत्न और प्रयास।
 
(स्रोत - वेबदुनिया)
Title: Re: दैव-दैव आलसी पुकारा
Post by: nimmi_sai on April 03, 2007, 03:36:39 AM
ravi ji,
sai ram
lovely thoughts . thanx for sharing such good thoughts .
regards
Nimmi (nimisha )
Title: Re: दैव-दैव आलसी पुकारा
Post by: Ramesh Ramnani on April 07, 2007, 12:45:49 AM
जय सांई राम।।।

मंत्र का मकसद   

पुराने जमाने की बात है। एक फकीर किसी गांव में पहुंचा। वहां की आबोहवा उसे रास आ गई और उसने उसी गांव में डेरा डाल दिया। कुछ दिनों बाद लोग उसके पास आने लगे और अपने दुख-दर्द से मुक्ति के उपाय पूछने लगे। धीरे-धीरे फकीर की ख्याति फैल गई। उसके बारे में यह बात प्रचारित हो गई कि वह जो कहता है, सच हो जाता है।

एक दिन एक व्यक्ति उसके पास आया और बोला, 'महात्मा जी! सुना है आप जो कहते हैं सच हो जाता है।'

' सब परमात्मा की कृपा है।' फकीर ने कहा। यह सुनकर व्यक्ति बोला, 'इन पत्थर की ईंटों को सोने की बना दो।'

उस फकीर ने मंत्र पढ़ा तो ईंटें सोने की बन गई। व्यक्ति चकित होकर फकीर के पैरों में गिर गया और बोला, 'बाबा, यह मंत्र मुझे भी सिखा दो।' फकीर ने पहले तो उसे मना किया, फिर बहुत जिद करने पर उसे मंत्र सिखा दिया। मंत्र सीख कर वह अपने घर पहुंचा और गांव के लोगों को इकट्ठा कर बोला, 'मैं आप सब को एक चमत्कार दिखाता हूं। यह सामने ईंटें पड़ी हैं। इसे मैं सोने की बना दूंगा।' उसकी बात सुनकर लोग हंसने लगे। उसने मंत्र पढ़ कर फूंक मारी पर कुछ नहीं हुआ। उसने कई बार ऐसा किया, फिर भी कोई असर नहीं हुआ। लोगों को लगा कि यह व्यक्ति पागल हो गया है इसलिए ऐसी हरकत कर रहा है। लोग उस पर हंसने लगे और उसे भला-बुरा कहने लगे। वह व्यक्ति भागा-भागा फकीर के पास पहुंचा और बोला, 'महात्मा जी, आपका बताया मंत्र मैंने पढ़ा, लेकिन ईंट सोने की नहीं बनी।'

तब फकीर ने कहा, 'बेटा! मंत्र जान लेने से ही कुछ नहीं होता। मंत्र उसी के काम आता है, जिसका उद्देश्य पवित्र होता है। मैंने लंबी साधना से इसे हासिल किया है, फिर भी मैंने कभी इसका दुरुपयोग करने के बारे में नहीं सोचा। तुम मंत्र द्वारा लोगों को चमत्कृत करके उन पर धाक जमाना चाहते थे। यह मंत्र तभी काम आएगा, जब मकसद साफ होगा।'

उस व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने फकीर से क्षमा मांगी और चला गया।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई  


ॐ सांई राम।।  
Title: Re: दैव-दैव आलसी पुकारा
Post by: sai ji ka narad muni on June 26, 2016, 02:02:35 AM
जय साईं राम

इसके साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य हैं की :


देव देव आलसी पुकारा ये शब्द किसके हैं?
ये शब्द उस शेष नाग के हैं जो पूरी पृथ्वी हिला देने का सामर्थ्य रखते हैं।उन्होंने ये बात त्रिलोकाधिपति मेरे श्री हरी श्री राम जी से कही हैं, किसी मनुष्य से नहीं।
और किसके लिय कही हैं?? समुद्र देव के लिय।।।
भगवान श्री कृष्ण आसक्ति रहित निष्काम भाव से भगवद प्राप्ति के लिय किय गये कर्म को श्रेष्ठ बतलाते हैं।(गीता ३.८)
कर्म में विश्वास केवल गृहस्थियो के लिय ही ठीक हैं, निवृति मार्ग में यह एक कलंक हैं।
जो सिर्फ कर्म में विश्वास करके रह जाता हैं वह पतन को प्राप्त होता हैं,