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Author Topic: श्री साईसच्चरित 1  (Read 8301 times)

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Offline saibhaktarenuka

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  • Shirdi Sai Baba
श्री साईसच्चरित 1
« on: July 08, 2016, 02:56:56 AM »
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  • साईनाथजी, आप ही सकल (सारे) खेल खेलते हो।
    और साथ ही अलिप्तता का ध्वज भी फहराते रहते हो।
    कर्ता होकर भी स्वयं को अकर्ता कहलवाते हो।
    न जान सके कोई चरित्र आपका ॥


    अर्थ: साईनाथजी, आप ही सारी लीलाएं करते हो, मगर ‘मैं कहां कुच करता हूं’ यह कहकर अलिप्तता का ध्वज भी फहराते रहते हो, कर्ता होकर भी स्वयं को अकर्ता कहलवाते हो, यह सच है साई कि आपका चरित्र किसी की भी समझ में नहीं आ सकता।

    अथ श्रीसाईसच्चरित प्रारंभः

    श्रीसाईसच्चरित का आरंभ ‘अथ श्रीसाईसच्चरितप्रारंभ:’ इस प्रकार हेमाडपंतजी करते हैं। ‘अथ’ यह शब्द मंगलवाचक है, इसी लिए ग्रंथ का आरंभ करते समय मंगलाचरण के लिए ‘अथ’ शब्द का प्रयोग शास्त्रों में किया जाता है। हेमाडपंतजी ने भी इस शास्त्र मर्यादा का सम्मान करते हुए, ध्यान रखते हुए साईसच्चरित का आरंभ ‘अथ’ इस मंगलवचन से किया है।

    ॐकारश्‍च अथशब्दश्‍च द्वौ एतौ ब्रह्मण: पुरा।
     कण्ठं भित्वा विनिर्यातौ तेन मांगलिकौ उभौ॥

    ॐकार एवं ‘अथ’ ये दो शब्द चतुरानन द्वारा उच्चारण किये गए शब्द हैं, ये शब्द सहज ही उनके कंठ से निकल पड़े थे और इसीलिए ये दोनों शब्द मंगलवाचक हैं। इसीलिए ‘ॐ’ एवं ‘अथ’ शब्द का किसी भी मंगलप्रसंग में, मंगलकार्य के आरंभ में उच्चारण करने की शास्त्राज्ञा है। हेमाडपंतने भी इस शास्त्र-मर्यादा के अनुसार ‘अथ श्रीसाईसच्चरित-प्रारंभ:’ कहकर ग्रंथलेखन कार्य का ‘श्रीगणेश’ किया है।
    पहले अध्याय के आरंभ में,

    ‘श्री गणेशाय नम:। श्रीसरस्वत्यै नम:। श्रीगुरुभ्यो नम:। श्रीकुलदेवतायै नम:। श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नम:। श्रीसद्गुरुसाईनाथाय नम:।’

    इस प्रकार से नमन किया है। इस ‘नम:’ की नींव पर ही यह ग्रंथरूपी इमारत खड़ी हैं। ‘नम:’ स्थिति में ही यानी पूर्ण निरहंकारी शारण्यभाव से ही हेमाडपंत हर एक अध्याय का आरंभ करते हैं। हेमाडपंत का ‘मन’ यह साईनाथजी के चित्त में पूरी तरह घुल मिल चुका मन है और इसीलिए साईनाथ हेमाडपंत की क्रियाओं के ‘कर्ता’ बन गए हैं | हेमाडपंत के इस ‘नमन’ से ही सारे अवरोधों को नष्ट कर अनिरुद्ध-गति से ये साईनाथजी  हेमाडपंत के संपूर्ण जीवन में प्रवाहित हो गये।[/size]

    श्री साईसच्चरित के पहले अध्याय की शुरवात का विवरण इस साईट बहुत अच्छी तरह से किया गया है।  इतनाही नही हर अध्याय की महत्त्वपूर्ण चौपाईपर विवरण किया गया है। जरुर पढीए।
    http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/shree-sai-satcharitra-01/[/size]

    Offline saibhaktarenuka

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    • Shirdi Sai Baba
    सबेरे के समय, दोपहर के समय तथा संध्या समय में सूरज भिन्न–भिन्न स्थानों पर भिन्न–भिन्न रूपों में दिखाई देता है, मग़र फिर भी सूरज तो सूरज ही होता है, वही होता है, वैसे ही मेरे साईनाथ इन देवाताओं के रूप में प्रकाशित हैं, यह हेमाडपंत का विश्वास हैं। मंगलाचरण की पंक्तियों का अध्ययन करने पर हमारा विश्वास दृढ़ हो जाता है।

    प्रथम कार्यारंभस्थिति। व्हावी निर्विघ्न परिसमाप्ति। इष्टदेवतानुग्रहप्राप्ति।शिष्ट करिती मंगलें॥


    श्रीसाईसच्चरित की इस ओवी (ओवी यह मराठी भाषा की पद्यरचना का एक छन्द है) की पहली पंक्ति में मंगलाचरण क्यों करते हैं, इसका स्पष्टीकरण किया है। कार्य का प्रारंभ करते समय कार्य निर्विघ्न रूप से सुफल संपूर्ण हो इस उद्देश्य से इष्ट देवता से अनुग्रह–प्रार्थना की जाती है, इसीलिए मंगलाचरण करते हैं, ऐसा कहकर हेमाडपंत सर्वप्रथम विघ्नहर्ता श्रीगजानन को वंदन करते हैं। गजानन के दोनों तरफ ऋद्धि–सिद्धि विराजमान हैं। ‘ऋद्धि–सिद्धि–सहित हे गजानन, विद्यादाता गिरिजानंदन, तुम मुझपर कृपादृष्टि बनाये रखना’, इस तरह हेमाडपंत प्रार्थना करते हैं। साथ ही तुरंत अगली दसवी तथा बारहवी पंक्तियों में ‘ये मेरे साई ही गजानन हैं, यही गणपती हैं’ यह हेमाडपंत विश्वास के साथ प्रतिप्रादित करते हैं।
    मंगलाचरण सच में बहुत अदभुत है। इसका सखोल विवरण हम यहा पढ सकते है।
    http://www.newscast-pratyaksha.com/hindi/mangalacharan/
    « Last Edit: July 08, 2016, 03:06:47 AM by saibhaktarenuka »

     


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