बुद्धिजीवी करते हैं दया
निःसंदेह सभी धर्मों में दया और करुणा को महत्व दिया गया है। ये भाव मनुष्यों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। उनमें प्रेम और भाईचारा बढ़ाते हैं तथा उन्हें समाज में सम्मान देकर ऊँचा उठाते हैं। दया और करुणा के भाव रखने वाला दूसरे की पीड़ा समझता है। उन्हें दूर करने में सहायक बनता है। कह सकते हैं दया और करुणा के भाव रहने से ही यह संसार चल रहा है। इसी के कारण मानवता जीवित है और लोगों के बीच प्रेम और भाईचारा दिखाई देता है।
इसके विपरीत अभिमान को समस्त पापों का मूल कहा जाता है। देखा गया है कि अभिमान मनुष्य को पाप और पतन के मार्ग पर ले जाता है। इसके कारण मनुष्यों के बीच घृणा और शत्रुता के भाव पनपते हैं। उनके बीच दूरियाँ बढ़ती हैं। यह अभिमान कई प्रकार का हो सकताहै। शरीर की शक्ति का अभिमान। धन-संपत्ति का अभिमान। पद और प्रतिष्ठा का अभिमान। जाति, वंश और परिवार का अभिमान। अभिमान मनुष्य के मन-मस्तिष्क और शरीर में 'मद' की तरह काम करता है। इस 'मद' में डूबकर वह उचित-अनुचित और पुण्य-पाप में भेद नहीं कर पाता है। वहउन्हीं कामों को करता है जो उसे ठीक लगते हैं। वह उन सभी कामों को करता है जो उसके अभिमान को चोट पहुँचाते हैं। वह शास्त्रसम्मत कार्यों की ओर ध्यान नहीं दे पाता और न लोक निंदा की परवाह करता है। वह यह भूल जाता है कि संसार में कोई भी साधन सदैवसाथ नहीं देते। एक दिन सभी साथ छोड़ देते हैं। इस हालत में बुरे कामों के लिए पश्चाताप करना पड़ता है। रावण जैसे विद्वान का पतन दुष्कर्म और अभिमान के कारण हुआ। अनगिनत दृष्टांत हैं, जिनसे पता चलता है कि अभिमान करने वालों का एक दिन पतन होता ही है। ऐसे लोग शिखर से गिरते हैं और लोक निंदा के पात्र बन जाते हैं। अहंकार के मद में उनसे जो दुष्कर्म और पाप कर्म हो जाते हैं, उनका फल भी भोगना पड़ता है।
इसलिए बुद्धिमान सदैव दया और करुणा से भरा आचरण करते हैं। प्रारंभ में इसके कारण भले ही कष्ट मिले, परंतु ये गुण सम्मान और महानता के शिखर पर भी पहुँचाते हैं।