DwarkaMai - Sai Baba Forum

Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: JR on April 11, 2007, 09:35:56 PM

Title: आनंद की प्राप्ति
Post by: JR on April 11, 2007, 09:35:56 PM
जय सांई राम,

आनंद की प्राप्ति
 
 
मनुष्य जन्म से लेकर जीवन के अंत तक 'आनंद' की प्राप्ति की इच्छा रखता है। असली 'आनंद' कहाँ छिपा है, इसकी खोज में वह रहता है। सुख की प्राप्ति हेतु वह पढ़-लिखकर नौकरी एवं व्यवसाय में पैसा कमाकर ऊँची पदवी को प्राप्त करने की होड़ में 'आनंद' को ढूँढता है। क्या धन-दौलत से व्यक्ति की तृष्णा मिटी है? ज्यों-ज्यों व्यक्ति धन की प्राप्ति करता है, उसकी लालसा बढ़ती ही जाती है, उसे अंतर के सुख की प्राप्ति नहीं होती है। सांसारिक वैभव एवं विलास की वस्तुओं में मृगतृष्णा-सा भ्रमित होकर 'आनंद' को खोजता रहता है एवं इसी में जीवन की सफलता मानता है।

हर बात को देखने-समझने का हमारा अपना एक नजरिया होता है, जो हमारी बरसों की सोच से निर्मित होता है। जीवन में दुःख और सांसारिक संपन्नता तो अपना फेरा लगाते ही रहते हैं हरेक के घर पर। लेकिन व्यक्ति असली 'आनंद' को बगैर प्राप्त किए ही अपनी जीवन-लीला समाप्त कर लेता है। संसार में कई लोग अभावों-दुःखों के डेरे में बहुत लंबे समय तक बने रहते हैं एवं उधर वे संपन्न लोग जिन्हें हम बहुत सारे सांसारिक सुख-वैभव ओढ़े देखते हैं और समझते हैं कि शायद ही कभी दुःख का एक पल वे भोगते होंगे, उन्हें भी सच पूछिए तोसुकून या खुशी का अहसास मन से तो बहुत कम ही होता है।

'आनंद' की प्राप्ति ही मनुष्य जीवन की सफलता है। प्राणी मात्र 'आनंद' (जिसे ईश्वर, ब्रह्म या परमात्मा भी कहते हैं) का 'अंश' है एवं 'अंशी' को प्राप्त करना ही ध्येय है। भक्त के हृदय-देश में प्रभु का निवास है। प्राणिमात्र असल में यह समझ ले कि मेरे हृदय में प्रभु का निवास हैएवं प्रभु उस जीव के द्वारा किए जा रहे प्रत्येक कार्य की निगाह रखता है एवं जीव के विचारों को भी जानता है तो उससे जीवन में गलत काम नहीं होगा। ओशो कहते हैं- 'जो अपने आनंद को पकड़ लेता है, वह किसी को दुःख देने में इसलिए भी असमर्थ हो जाता है कि उससे उसका आनंद नष्ट होता है। 'आनंद' का मूर्त रूप कृष्ण ही है। कृष्ण ही आनंद मात्र कर -पाद-मुखोदरादि स्वरूप में शास्त्रों में प्रतिपादित हैं। श्रुति में भी ब्रह्म को आनंदमय कहा गया है 'आनंदो ब्रह्मेति व्यजानात्‌।' महाप्रभु श्री वल्लभाधीश ने चतुःश्लोकी में 'सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो व्रजाधिपः' की मति प्रकट की है। प्रभु स्मरण एवं सेवा से ही प्रभु प्रसन्न रहते हैं। 'गिरधर देखे ही सुख होय।'  

बाबा का दिन सभी को मुबारक हो ।