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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: JR on April 11, 2007, 09:37:13 PM

Title: धर्मों के सार की नई परिभाषा
Post by: JR on April 11, 2007, 09:37:13 PM
जय सांई राम,

धर्मों के सार की नई परिभाषा
 
हम नए युग में प्रवेश कर गए हैं। नया वातावरण, नया अंदाज, नई आशाएँ और नए युग की परिभाषा। विश्व सिमट गया है, छोटा हो गया है, हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं। हमारी अपेक्षाएँ बढ़ गई हैं। हमारे अपने-अपने नव वर्ष हैं। एक नव वर्ष हिन्दू धर्म का, एक ईसाई धर्म का, सिखधर्म का, मुस्लिम धर्म का आदि। वर्ष बदलते रहते हैं, कैलेंडर बदलते रहते हैं, अब 21वीं सदी में आवश्यकता है, हम बदलें। हम धर्म, जाति, संप्रदाय, राष्ट्र, समाज के झगड़ों से दूर रहकर मानव से मानव को पहचानने की कोशिश करें। हम मनुष्य का क्लोन बनाने की तैयारी कर रहे हैं, परंतु हम अपने आप में संपूर्ण, प्यार भरा, शांत मनुष्य आज तक नहीं बना पाए हैं। मनुष्य को सही अर्थों में एक नेक इंसान बनाना ही सब धर्मों का सार है। हर धर्म में ऊँचे बौद्धिक विचार हैं, सुंदरता है और समानता है।

धर्म को इस प्रकार प्रसारित, प्रचारित किया जाना चाहिए, जिससे हर व्यक्ति उस धर्म से सर्वेष्ठ चुन ले। किसी गरीब, उपेक्षित व्यक्ति की सहायता, भूखे को भोजन, दुखी व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान- यह धर्म की सही परिभाषा होना चाहिए। संसार के सभी दुखों, घावों को प्यार से ही भरा जा सकता है। खुद के लिए जिए तो क्या जीना, जीवन ही वही है जो दूसरों के काम आए।

सर्वेः भवंतु सुखीनाः सर्वे संतु निरामयाः का पाठ आज की आवश्यकता है। नदी, पहाड़, झरने, सूर्य, चंद्र, तारे, वायु, आप और हम पूरे विश्व में एक समान हैं। यह जीवन का सत्य है। शांति एवं खुशी के लिए विश्व एक परिवार है, की भावना पैदा करना आज की आवश्यकता है।यह तब ही संभव होगा जब हम अपने धर्म से प्यार करें और विश्व के सभी धर्मों, संप्रदायों का सम्मान करें, आदर करें और हर व्यक्ति को अपने-अपने धर्मों को पालने में सहयोग करें, सहायता करें। यह तब ही संभव होगा जब हम अपने अहं को, अपने ईगो को नष्ट करें।

अहं का मतलब अपने अंदर से भगवान को बाहर करना। अहंकार को त्यागो, विनय का पथ स्वीकारो और जीवन का कोई अवसर व्यर्थ न जाने दो, प्यार बाँटते चलो और शांति का कारवाँ पूरे विश्व में फैला दो तथा संसार का घृणा व दुश्मनी का वातावरण प्रेम व भाईचारे में बदल डालो।