जय सांई राम।।।
प्रिय ज्योति बहुत सुन्दर लेख है यह। सच में सही मायने में इस लेख में जिन्दगी का सार है। सांई सचरित्र का निचोड़ भी कह सकता हूँ। काश हर इन्सान इतनी छोटी सी बात को समझ सके।
"जीवन का प्रत्येक क्षण मूल्यवान है इसलिए उसका सदुपयोग करना चाहिए। उसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। बीता हुआ क्षण करोड़ों स्वर्ण मुद्राएँ देकर भी वापस नहीं मिल सकता इसलिए बहुत सोच-समझकर उसका उपयोग करना चाहिए"।
एक बार फिर मेरा सलाम तुम्हें।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
जय सांई राम।।।
कर्तव्यपरायणता से चित्त शुद्ध होता है और चित्त शुद्ध होने पर शांति मिलती है। शांति से आवश्यक सामर्थ्य, आत्म-संतुष्टि और प्रभु-प्रेम की प्राप्ति होती है। शांति में कोई श्रम नहीं होता। इसका बाह्य रूप है-बुराई रहित होना। अपने आप होने वाली भलाई का फल मत चाहो, अभिमान मत करो। जिस वस्तु, योग्यता, सामर्थ्य के द्वारा भलाई की जाए, उसे अपनी मत मानो, क्योंकि सचमुच ये अपनी नहीं हैं, मिली हैं सदुपयोग के लिए। इस सृष्टि में व्यक्तिगत कुछ नहीं है इसलिए भलाई का अभिमान कदापि नहीं करना चाहिए। की हुई भलाई का फल न चाहने पर हम अचाह होते हैं। अचाह होने से शांति मिलती है। बुराई-रहित होने से आप संसार के काम आ गए। मेरा कुछ नहीं है, मुझे कुछ नहीं चाहिए, इससे आप स्वाधीन हो गए। स्वाधीन हो गए तो शांत हो गए। शांति अपने लिए, उदारता संसार के लिए और प्रेम प्रभु के लिए होता है।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।