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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: JR on April 13, 2007, 01:59:42 AM

Title: शुभ कार्यों का चिंतन जीवन सँवारता है
Post by: JR on April 13, 2007, 01:59:42 AM
शुभ कार्यों का चिंतन जीवन सँवारता है
 
जब हम प्रकृति और इंसान के बीच के रिश्तों का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि प्रकृति के आगे इंसान बहुत बौना प्राणी है। लगता है जैसे वह उसकी दया पर जीवित है। प्रकृति यदि उससे नाराज हो जाए तो उसका अस्तित्व मिटते देर नहीं लगेगी। प्राकृतिक हादसों में उसके नाराज होने की झलक दिखाई देती है। ऐसे समय जीवन की चिंता होने लगती है। जीवन की सार्थकता समझ में आने लगती है। इस हालत में यह विचार भी आता है कि जब जीवन अनिश्चित है तो उसे किस तरह बेहतर ढंग से जिया जाए? प्रायः इस स्थिति में पहुँचकर इंसान 'धर्म' की ओरमुड़ता है। यह सच समझ में आता है कि धर्म ही जीवन जीने का सही मार्ग बताता है। धर्म के आधार पर ही वह उस 'परम शक्ति' को 'ईश्वर', 'अल्लाह', 'मालिक' या 'गॉड' आदि नामों से पुकारता है और उससे जीवन को खुशहाल बनाए रखने की प्रार्थना करता है।

महापुरुषों का कथन है कि जीवन का प्रत्येक क्षण मूल्यवान है इसलिए उसका सदुपयोग करना चाहिए। उसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। बीता हुआ क्षण करोड़ों स्वर्ण मुद्राएँ देकर भी वापस नहीं मिल सकता इसलिए बहुत सोच-समझकर उसका उपयोग करना चाहिए। जहाँ तक संभव हो उसका उपयोग शुभ कार्यों में करना चाहिए। कहा जाता है कि मनुष्य जीवन बड़े भाग्य से मिलता है। अन्य जन्मों में पूर्वकृत कर्मों के फल भोगे जाते हैं परंतु मनुष्य योनि में नवीन कर्मों को करने का भी अधिकार है। इन नवीन कर्मों को बहुत सोच-समझकर करना चाहिए। यह सचहै कि वह परम पिता परमेश्वर प्रत्येक मनुष्य की अंतरात्मा में विद्यमान है। सच्चे मन से पूछने पर वह बता देता है कि कर्म सही किया जा रहा है या गलत।

परंतु देखा गया है कि मनुष्य लोभ, कामना और क्रोध के वशीभूत होकर अंतरात्मा की ओर ध्यान नहीं दे पाता और अनुचित कार्य कर बैठता है और उसके फल के रूप में अनेक कष्ट पाता है। विद्वानों का कथन है कि ईश्वर ने गुण और दोषों को मिलाकर इस संसारकी रचना की है। इसलिए कोई सज्जन ऐसा नहीं है जिसमें कोई दोष न हो और कोई दुर्जन ऐसा नहीं जिसमें कोई गुण न हो। इसलिए दूसरे में केवल दोष ढूॅँढने की प्रवृत्ति से बचा जाना चाहिए। अपने दुर्गुणों का त्याग कर सद्गुणों को बढ़ाना चाहिए।
 
Title: Re: शुभ कार्यों का चिंतन जीवन सँवारता है
Post by: Ramesh Ramnani on April 13, 2007, 10:39:19 PM
जय सांई राम।।।

प्रिय ज्योति बहुत सुन्दर लेख है यह।  सच में सही मायने में इस लेख में जिन्दगी का सार है।  सांई सचरित्र का निचोड़ भी कह सकता हूँ।  काश हर इन्सान इतनी छोटी सी बात को समझ सके।

"जीवन का प्रत्येक क्षण मूल्यवान है इसलिए उसका सदुपयोग करना चाहिए। उसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। बीता हुआ क्षण करोड़ों स्वर्ण मुद्राएँ देकर भी वापस नहीं मिल सकता इसलिए बहुत सोच-समझकर उसका उपयोग करना चाहिए"।

एक बार फिर मेरा सलाम तुम्हें।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: शुभ कार्यों का चिंतन जीवन सँवारता है
Post by: Ramesh Ramnani on April 16, 2007, 08:26:09 AM
जय सांई राम।।।

कर्तव्यपरायणता से चित्त शुद्ध होता है और चित्त शुद्ध होने पर शांति मिलती है। शांति से आवश्यक साम‌र्थ्य, आत्म-संतुष्टि और प्रभु-प्रेम की प्राप्ति होती है। शांति में कोई श्रम नहीं होता। इसका बाह्य रूप है-बुराई रहित होना। अपने आप होने वाली भलाई का फल मत चाहो, अभिमान मत करो। जिस वस्तु, योग्यता, साम‌र्थ्य के द्वारा भलाई की जाए, उसे अपनी मत मानो, क्योंकि सचमुच ये अपनी नहीं हैं, मिली हैं सदुपयोग के लिए। इस सृष्टि में व्यक्तिगत कुछ नहीं है इसलिए भलाई का अभिमान कदापि नहीं करना चाहिए। की हुई भलाई का फल न चाहने पर हम अचाह होते हैं। अचाह होने से शांति मिलती है। बुराई-रहित होने से आप संसार के काम आ गए। मेरा कुछ नहीं है, मुझे कुछ नहीं चाहिए, इससे आप स्वाधीन हो गए। स्वाधीन हो गए तो शांत हो गए। शांति अपने लिए, उदारता संसार के लिए और प्रेम प्रभु के लिए होता है।

अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।