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Author Topic: मानस ही प्रेरणा-शक्ति है  (Read 2508 times)

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Offline JR

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मानस ही प्रेरणा-शक्ति है
 
रामचरितमानस भारतीय जनता का एक महान धार्मिक ग्रंथ है, जिसमें ज्ञान, भक्ति और धर्म की विभिन्ना धार्मिक धाराओं का समन्वय स्थापित कर आर्य धर्म का पुनः प्रतिपादन किया गया है।

कितना ही पथभ्रष्ट व्यक्ति हो, रामचरितमानस के प्रताप से महान बन सकता है। मानस के धार्मिक उपदेश दुराचारी, पापी, अत्याचारी और अधार्मिक व्यक्ति को भी सन्मार्ग पर लाकर श्रेष्ठ व्यक्ति बना सकते हैं। मानस का गंभीरतापूर्वक मनन करने वाला व्यक्ति एक श्रेष्ठ नागरिक, श्रेष्ठ गृहस्थ, श्रेष्ठ समाज- सुधारक और श्रेष्ठ राजनीतिक नेता बन सकता है। एक परम विनम्र भगवत भक्त एक उच्च ज्ञानी तथा एक कुशल कर्मकांडी बन सकता है। पाठक इसका धार्मिक दृष्टि से वाचन करें या राजनीतिक दृष्टि से, ऐतिहासिक दृष्टि से पढ़ें या ज्ञान की दृष्टि से, इससे समानरूप से लाभान्वित होते हैं। यह एक रसायन है जिसका सेवन करने के बाद संसार के भयावह रोग भी मनुष्य पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकते। मानस को जीवन का पथ- प्रदर्शक मानने से तथा उसकी बताई रीति और नीतियों पर चलने से काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, ईर्ष्या, द्वेष व्यक्ति के पास नहीं फटकते। यह एक ऐसा अनमोल रत्न है जिसे प्राप्त करके मनुष्य को और कुछ प्राप्त करने की अभिलाषा नहीं रहती। यह ग्रंथ केवल धार्मिक महत्व का ही नहीं है इसमें मानव को प्रेरणा देने की असीम शक्ति है। रामचरितमानस में तुलसी ने भक्ति, ज्ञान और कर्म के तालमेल पर बल दिया। इसमें जीवन की प्रत्येक रस्म का भी संचार किया गया है और लोकमंगल की उच्च भावना का भी समावेश है।
 
लोकनायक, समाज-सुधारक, महाकवि तुलसीदास ने राम के रूपक द्वारा जनता को आत्मकल्याण और आत्मरक्षा के अमोघ मंत्र प्रदान किए। रामचरितमानस साहित्यिक तथा धार्मिक दृष्टि से उच्च कोटि की रचना है जो अपनी उच्चता तथा भव्यता की कहानी स्वयं कहती है। रामचरितमानस के अनुसार जीवनयापन करने वाला धीरता, वीरता, कृतज्ञता आदि गुणों को स्वयं ही अपनाने लगता है। रामचरितमानस को पढ़ने से प्रतिदिन की पारिवारिक, सामाजिक आदि समस्याओं को दूर करने की प्रेरणा मिलती है। मानस ही वह प्रेरणा-शक्ति है जो महात्मा गाँधी में रामराज्य स्थापित करने की भावना जागृत कर सकी।

यह वह चिंतामणि है जिसके हाथ में आते ही मनुष्य के आगे प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है, अंधकार ठहरता ही नहीं। मानस की ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने से कल्याण का मार्ग दिखाई देता है। मन में शांति का सागर उमड़ता है। बार-बार पढ़ने को मन चाहता है। लोकमंगल की उच्च भावना जागृत होती है। रामचरितमानस केवल लौकिक उन्नति का साधन मात्र ही नहीं वरन पारलौकिक उन्नति और समृद्धि का भी साधन है। संसाररूपी समुद्र के संतरण के लिए रामचरितमानस एक विशाल नौका है जिसके अनुसार चलकर मनुष्य सरलता से ही भवसागर से पार उतर जाता है। त्याग और तपस्या, दया और दान, संतोष और शांति, समन्वय, कर्तव्यनिष्ठा, शुद्धाचरण और मर्यादित जीवन ही इस कृति का मूल संदेश है। आज भी यदि लोकनायक तुलसीदास की सूक्तियों के आधार पर हम अपने कर्तव्यों की दिशा का निर्धारण करें तो समाज में संगठन और सामंजस्य की भावना जागृत कर रामराज्य स्थापित कर सकते हैं।

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