जय सांई राम।।।
कर्तव्यपरायणता से चित्त शुद्ध होता है और चित्त शुद्ध होने पर शांति मिलती है। शांति से आवश्यक सामर्थ्य, आत्म-संतुष्टि और प्रभु-प्रेम की प्राप्ति होती है। शांति में कोई श्रम नहीं होता। इसका बाह्य रूप है-बुराई रहित होना। अपने आप होने वाली भलाई का फल मत चाहो, अभिमान मत करो। जिस वस्तु, योग्यता, सामर्थ्य के द्वारा भलाई की जाए, उसे अपनी मत मानो, क्योंकि सचमुच ये अपनी नहीं हैं, मिली हैं सदुपयोग के लिए। इस सृष्टि में व्यक्तिगत कुछ नहीं है इसलिए भलाई का अभिमान कदापि नहीं करना चाहिए। की हुई भलाई का फल न चाहने पर हम अचाह होते हैं। अचाह होने से शांति मिलती है। बुराई-रहित होने से आप संसार के काम आ गए। मेरा कुछ नहीं है, मुझे कुछ नहीं चाहिए, इससे आप स्वाधीन हो गए। स्वाधीन हो गए तो शांत हो गए। शांति अपने लिए, उदारता संसार के लिए और प्रेम प्रभु के लिए होता है।
ॐ सांई राम।।।