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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: JR on April 16, 2007, 09:00:14 PM

Title: संगठन में ही शक्ति है
Post by: JR on April 16, 2007, 09:00:14 PM
संगठन में ही शक्ति है
 
एक विभूति आज से 107 साल पहले अहमदनगर जिले के चिंचोड़ी गाँव में देवीचंदजी गुगलिया की धर्मपत्नी सौ. हुलसाबाई की रत्नकुक्षी से श्रावण सुदी प्रतिपदा के दिन इस धरा पर अवतरित हुई थी। पुत्ररत्न को पाकर गुगलिया परिवार में आनंद का सागर लहलहा उठा। बालक का नाम नेमीचंद रखा गया। नेमीचंद अत्यंत सुंदर था। बालक पूरे गाँव का लाड़ला था। पढ़ने के लिए स्कूल गया, बुद्धि प्रखर थी, शिक्षकगण भी उस बालक से प्रसन्ना थे। लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। सिर से पिता का साया उठ गया। माँ विलाप करने लगी। घर का माहौल देखकर बालक व्यथित हो गया। बालक नेमीचंद मृत्यु के बारे में सोचने लगा- क्या है मृत्यु, क्यों आती है मृत्यु?

ऐसे ही करीब डेढ़ वर्ष निकल गया। एक दिन गाँव में जैन संत पूज्यश्री रत्नऋषिजी म.सा. का पदार्पण हुआ। माता को दर्शन देने के लिए गुरुदेव स्वयं घर पधारे। बालक नेमीचंद ने गुरु की वंदना की। उस बालक को देखकर पूज्यश्री समझ गए, यह बालक बड़ा पुण्यशाली एवं होनहार होगा। पूज्यश्री ने माँ से कहा- बहन! प्रवचन में दया पालना व बालक को साथ लाना। नेमीचंद माँ की आज्ञा का पालन करने के लिए गुरुदेव की सेवा में पहुँचा। वंदना कर गुरुदेव से कहा कि माँ ने कहा है- तुम प्रतिक्रमण सीखो, क्या आप मुझे प्रतिक्रमण सिखाओगे।

गुरुदेव ने कहा- क्यों नहीं। 'शुभस्य शीघ्रम' तुरंत पाठ दिया अतः थोड़े ही दिनों में प्रतिक्रमण हृदयंगम कर लिया। साथ ही कुछ छोटे-छोटे थोकड़े भी। अनेक स्तवन आदि भी कंठस्थ कर लिए। अब तो गुरुदेव के सान्निध्य में रहकर जन्म-मृत्यु एवं संसार की नश्वरता का बोध होने लगा। अब हर वक्त बालक त्याग वैराग्य में रहने लगा। दीक्षा के बाद बालक नेमीचंद श्री आनंदऋषि बन गए। दीक्षित होने के बाद वे अध्ययन में जुट गए। संस्कृत, प्राकृत, आगम साहित्य का गहन अध्ययन किया। कुछ ही वर्षों में नौ भाषा के ज्ञाता बन गए। गुरु की सेवा करते हुए ज्ञानार्जन करने लगे। अनायास ही वर्धा जिले के अलीपुर गाँव में गुरु का साया सिर से उठ गया। विपत्ति में संपत्ति खोज ले, वही युगपुरुष होते हैं। आपकी प्रतिभा को देखते हुए आपको पहले ऋषि संप्रदाय का युवाचार्य एवं बाद में आचार्य बनाया गया। उसके बाद पाँच संप्रदाय काब्यावर में विलीनीकरण हुआ। उसमें भी आपको प्रधानाचार्य पद से गौरवान्वित किया गया।

आचार्य भगवंत ने जीवन के अंतिम समय तक समाज को एक माला में पिरोए रखने का भगीरथ प्रयत्न किया। वे कहते थे- संगठन है इसलिए हम खड़े हैं। जिस दिन संघ बिखरा, हम बिखर जाएँगे। संगठन में ही शक्ति है। स्वयं भगवान णमो संघस्स कहकर संघ को नमन करते हैं। आपकी जीवनयात्रा श्रद्धा की गाथा है, साधनामय जीवन की गाथा है, बीज से वटवृक्ष बनने की कहानी है, बिंदु से सिंधु बनने का संकल्प है।