जहाँ जन्म है वहाँ दुःख भी है
विश्व यात्रा पर जब गुरुनानक निकले तो उनसे पूछा कि आपका घर कहाँ है? आप कहाँ निवास करते हैं तो उन्होंने कहा- ये संपूर्ण आकाश, सभी धरतियाँ जो उस अकाल पुरख द्वारा निर्मित हैं, ही मेरा घर है। अपने उपदेश को सार्थक करते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपना घर वहाँ बनाना है जहाँ न जन्म हो और न मृत्यु हो। उस घर में हमें रहना है, जहाँ हमें जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल सके। तभी हमारे दुःखों का अंत होगा।
'नानक बधा घर तहा
जिथै मिरत न जनम जरा'
गुरु साहेब कहते हैं- हे प्राणी तू यह अच्छी तरह समझ ले कि जहाँ जन्म है, वहाँ मृत्यु भी होगी और जहाँ जन्म है, वहाँ दुःख भी होंगे। दर्द, संताप, विछोह, रोग, भय, लगाव, तनाव और कई समस्याएँ होंगी। जन्म है तो जीवन की कोई निश्चितता नहीं है। जन्म लेते ही दुःख शुरू हो जाते हैं और मृत्यु पर जाकर समाप्त होते हैं और अगर आपने जन्म लिया है तो दुःखों से बचना नामुमकिन है। अतः हमें एसे घर की तलाश करना है ताकि हम इन दुःखों से बच सकें। वे कहते हैं कि 'कितने ही जन्म, हे प्राणी, तूने पेड़-पौधे, कीड़े-पतंगों, पशु-पक्षीकी योनियों में बिताए हैं और दुःख ही दुःख पाया है। अब तुझे ये मानव जीवन मिला है तो अपना लक्ष्य यह निर्धारित करो कि इस जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाए।' हम जीवन में कितने ही लक्ष्य निर्धारित करते हैं कि हमें ये पाना है, वह करना है, परंतु ऐसे व्यक्ति बहुत ही दुर्लभ होते हैं जो जीवन का लक्ष्य इस जन्म-मृत्यु के चक्र से बचने का बनाते हैं। जीवन का ऐसा ही लक्ष्य कबीर साहेब ने बनाया। वे श्री गुरु ग्रंथ साहब में कहते हैं-
'इक दुःख राम राय काटो मेरा
अगन दहे अर गरभ बसेरा।'
कबीर साहेब कहते हैं-'हे प्रभु! एक ही दुःख है, एक ही परेशानी है कि इस जीवन-मृत्यु के चक्र से कैसे मुक्ति पाऊँ और प्रभु आप में विलीन हो जाऊँ?' वे प्रमु से कहते हैं कि ये बार-बार मेरे गर्भ में आना और बार-बार चिता पर अग्नि को प्राप्त होना, ये एक ही दुःख है मेरा। मैं अब इस शरीर रूपी नगरी में नहीं आना चाहता, क्योंकि यहाँ दुःख ही दुःख हैं और फिर जिस तरह के मैं कर्म करता हूँ इस सांसारिक जीवन में कोई न कोई कर्म ऐसा हो ही जाता है जिनके परिणाम भुगतने के लिए मुझे पुनः जन्म लेना पड़ता है। यहाँ गौर करें तो देखेंगे कि हम सांसारिक जीवों का लक्ष्य इन महापुरुषों के लक्ष्यों से कितना अलग है। हम अपने जीवन में सांसारिक लक्ष्य को पाने में ही लगे हैं और आत्मिक लक्ष्य के बगैर हमारे जीवन में न तो स्वाद है, न ही सादगी, न ही नम्रता, न ही जीवन की सुंदरता है और गुरु साहेब कहते हैं, यही हम लोगों के जीवन में दुःख का मूल कारण है।