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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: JR on April 19, 2007, 12:24:36 AM
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मन को साधने की साधना
मन के साधे साधना है, संपदा है। मन न सधे तो बाधा है, विपदा है। अद्भुत है मनुष्य का मन। यही रहस्य है सांसारिक सफलताओं का और आध्यात्मिक विभूतियों का। पाप-पुण्य, बंधन-मोक्ष, स्वर्ग-नरक सभी कुछ इसी में समाए हैं। अँधेरा और उजाला सब इसी में है। इसी में जन्म और मृत्यु के कारण हैं। यही है द्वार बाहरी दुनिया का। यही है सीढ़ी अंतस की। इसको साधने की साधना बन पड़े तो मनुष्य सबसे पार हो जाता है। जिनके जीवन में साधना का सच है, उनकी अनुभूति यही कहती है कि मन सब कुछ है। सब उसकी ही लीला और कल्पना है।
यह खो जाए तो सारी लीला विलीन हो जाती है। एक बार महाकाश्यप ने तथागत से पूछा था- 'भगवन! मन तो बड़ा चंचल है, यह सधे कैसे, खोए कैसे, मन तो बड़ा गंदा है, यह निर्मल कैसे हो?' इन प्रश्नों के उत्तर में भगवान चुप रहे। हाँ, अगले दिन वे महाकाश्यप के साथ एकयात्रा के लिए निकले। इस यात्रा में दोपहर के समय वे एक वृक्ष की छाँव में विश्राम के लिए रुके। उन्हें प्यास लगी तो महाकाश्यप पास के पहाड़ी झरने से पानी लेने के लिए गए, लेकिन झरने में से अभी-अभी बैलगाड़ियाँ निकली थीं और उसका सब पानी गंदा हो गया था। महाकाश्यप ने सारी बात भगवान को बताते हुए कहा- 'प्रभु! झरने का पानी गंदा है, मैं पीछे जाकर नदी से पानी ले आता हूँ।' बुद्ध ने हँसते हुए कहा- 'नदी दूर है, तुम वापस झरने के मूल में जाओ और पानी लेकर आओ।'
भगवान के कहने पर महाकाश्यप से वापस लौटे, उन्होंने देखा अपने मूलस्रोत में झरने का पानी बिलकुल साफ है, वे जल लेकर वापस आ गए। उनके लाए जल को पीते हुए भगवान ने उन्हें बोध दिया- महाकाश्यप, मन की दशा भी कुछ इसी तरह से है। जिंदगी की गाड़ियाँ इसे विक्षुब्धकरती रहती हैं। यदि कोई शांति और धीरज से उसे देखता रहे, उसके मूलस्रोत में प्रवेश करने की कोशिश करे तो सहज ही निर्मलता उभर आती है। बस, बात मन को साधने की है। मन को साधने की साधना करते हुए ही जीवन निर्मलता, सफलता एवं आध्यात्मिक विभूतियों काभंडार बन जाता है।