जय सांई राम
चरित्र का आकलन
पुराने जमाने की बात है। एक ही मोहल्ले में एक वेश्या और संन्यासी आमने-सामने रहते थे। संयोग से दोनों की मृत्यु एक दिन हुई। यमराज ने अपने यमदूतों से कहा, 'संन्यासी को नरक में और वेश्या को स्वर्ग में डाल दो।' यमदूतों को लगा कि अवश्य कोई गलती हुई है। वे अपनी शंका के समाधान के लिए चित्रगुप्त जी के पास पहुंचे। चित्रगुप्त जी ने कहा, 'इसमें कुछ भी गलत नहीं है। बिल्कुल सही आदेश दिया गया है। सत्य यह है कि जब प्रात:काल संन्यासी के घर से प्रार्थना और मंत्रोच्चार की आवाज आती थी तो सड़क के पार वेश्या रोने लगती थी। वह सोचती कि काश! वह भी प्रार्थना में शामिल हो पाती। कई बार तो वह सफेद कपड़े पहनकर घर से बाहर आ जाती और संन्यासी के घर की दीवार से कान सटाकर खड़ी हो जाती। लेकिन वह अंदर जाने का साहस नहीं कर पाती थी। वह सोचती थी कि इस पापी शरीर को कैसे अंदर ले जाऊं। जबकि संन्यासी का मामला अलग था। जब भी वेश्या के घर से गाने-बजाने की आवाज आती थी संन्यासी व्याकुल हो जाता और अपने को कोसने लगता कि उसने क्यों भगवा वस्त्र पहने, वह क्यों संन्यासी बना। व्यक्ति के चरित्र का आकलन उसके आंतरिक विचारों से होता है उसकी बाहरी गतिविधियों से नहीं।'
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।