DwarkaMai - Sai Baba Forum

Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: JR on April 21, 2007, 01:02:32 AM

Title: सच्ची इबादत
Post by: JR on April 21, 2007, 01:02:32 AM
सच्ची इबादत
 
इबादत के मानी दरअसल बंदगी (प्रार्थना) के हैं। हम बंदे हैं और अल्लाह, खुदा, ईश्वर या हमारे इष्टदेव हमारे माबूद हैं। बंदा अपने माबूद की खुशी के लिए जो कुछ करे इबादत है। मसलन हम लोगों से बातें करते हैं, उन बातों के दौरान अगर हमने झूठ से, गीबत (चुगली) से,अश्लीलता से इसलिए परहेज किया कि यह सब हमारे माबूद को पसंद नहीं है और हमेशा सचाई, इंसाफ, नेकी और पाकीजगी की बातें कीं, इसलिए कि हमारा माबूद उसे पसंद करता है तो यह सब बातें इबादत होगी, भले वह सब दुनिया के मामलात में ही क्यों ना हो!

हम लोगों सेलेन-देन करते हैं, अपने घर में माँ-बाप और भाई बहनों के साथ रहते हैं। अपने अजीजों और दोस्तों से मिलते-जुलते हैं, अगर अपनी जिंदगी के तमाम मामलात में हम खुदा के हुक्म और उसके कानून को सर आँखों पर उठाए, हर एक के हुकूक अदा करें। यह समझकर कि खुदा ने इसका हुक्म दिया है और किसी का हक ना मारा हो, यह समझकर कि खुदा ने मना किया है तो गोया यह सारी जिंदगी खुदा की इबादत में ही गुजरी है।

अगर हमने किसी गरीब की मदद की, किसी भूखे को खाना खिलाया, किसी बीमार की खिदमत की और इन सब कामों में हमने अपने किसी जाति मफाद या इज्जत या नामवरी को नहीं बल्कि खुदा की रजामंदी को ध्यान में रखा तो यह सब इबादत है। व्यापार-व्यवसाय किया हो या मेहनत-मजदूरी की हो और उसमें खुदा का खौफ करके पूरी लगन और ईमानदारी से काम किया हो तो यह सच्ची इबादत है। यदि हमने हलाल की रोटी कमाई और हराम से बचे तो यह रोजी-रोटी कमाना भी खुदा की इबादत में लिखा जाएगा।

गरज यह कि दुनिया की जिंदगी में हर वक्त हर मामले में खुदा से डरना, उसकी खुशी-नाखुशी का ख्याल रखना, उसके कानून की पैरवी करना ही इबादत का असली मफहूम है। इस्लाम का असल मकसद मुसलमान को ऐसा ही इबादत गुजार बंदा बनाना है।