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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: JR on April 22, 2007, 12:56:03 AM

Title: ज्ञान का अंत प्रभु मिलन में
Post by: JR on April 22, 2007, 12:56:03 AM
ज्ञान का अंत प्रभु मिलन में   
 
ज्ञान की प्यास हम सब में है। हर अंतस में कुछ उबल रहा है, जो शांत होना चाहता है। इस शांति के लिए अनेक कोशिशें की जाती हैं। मनुष्य कितनी ही दिशाओं में इसे खोजता है। शायद अनगिनत जन्मों से यह खोज चल रही है। किसी माया-मृग की खोज में व्यक्ति का चित्त भटकता रहता है, किंतु हर कदम पर उसे निराशा के सिवा और कुछ हाथ नहीं आता। कोई राह उसे मंजिल पर पहुँचती हुई प्रतीत नहीं होती। गति होती है, पर गंतव्य नजर नहीं आता। क्या जिंदगी के ये टेढ़े-मेढ़े रास्ते उसे कहीं भी नहीं ले जाते?

इस सवाल के उत्तर में तर्कपूर्ण व्याख्याएँ प्रस्तुत नहीं करनी हैं। जीवन की गहराइयों में उतरकर ज्ञान का शीतल स्रोत खोजना है। समाधान के सुरीले स्वर सुनने हैं। ज्ञान वाग्जाल में नहीं है। तर्कपूर्ण शब्दों में भी इसे नहीं पाया जा सकता। सच तो यह है कि बौद्धिक उत्तर खोजने में उसके कुहासे में वास्तविक उत्तर खो जाता है। बुद्धि मौन हो तो अनुभूति बोलती है। विचार चुप हो तो विवेक जागता है।

सच तो यह है कि जिंदगी के मूलभूत प्रश्नों के उत्तर बौद्धिक तर्कों से नहीं मिलते। बौद्धिक तर्कों में ज्ञान का आभास तो है, पर ज्ञान नहीं है। ज्ञान के लिए तो ऋषिवाणी कहती है- 'न प्रवचनेन, न मेधया, न बहुना ुतेन' अर्थात 'न प्रवचन से, न मेधा से और न बहुत सुनने से।' ज्ञान तो अनंत निर्विकल्पम्‌ है। शांत और शून्य होने पर प्रकट होता है, तभी सारी समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं, सारे प्रश्न पेड़ के सूखे पत्तों की तरह झड़ जाते हैं।

समाधान समाधि के शून्य से आता है। ज्ञान की इस किरण के फूटते ही चेतना के एक नए आयाम में जीवन का प्रवेश हो जाता है। यही भावदशा तो समाधि है। इसके लिए पूछें और शांत हो जाएँ। गहरी शून्यता में डूबें। समाधि में समाधान को आने दें- फलने दें। चित्त की निःतरंग, निर्विकल्प स्थिति में उसका दर्शन करें, 'जो है- सो मैं हूँ।' स्वयं को जाने बिना ज्ञान की प्यास नहीं मिटती। स्वयं को खोजे बिना अंतस की जलन नहीं घटती। स्वयं को जानना ज्ञान है, बाकी सब जानकारी भर है।