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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: JR on May 27, 2007, 03:29:08 AM
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शनि की कृपा
- संत प्रियदर्शी
शनि रहस्यमयी देवता हैं। पृथ्वी से दिखाई पड़ने वाली आकाशगंगा के नवग्रहों में से सूर्य से दूरी के क्रम से छठवाँ, सात वलयों वाला शनि ग्रह भी रहस्यमयी है। शनि ग्रह को शनि देवता का प्रतीक रूप माना जाता है। इसलिए शनि की उपासना के लिए शनि ग्रह के पूजन का विधान है। आधुनिक विज्ञान के ज्ञान से लोग प्रश्न किया करते हैं कि शनि ग्रह के पूजन से शनिदेव किस प्रकार प्रसन्न हो सकते हैं? लेकिन संपूर्ण दृश्य जगत चिन्मय है और जड़ नाम का कोई तत्व विद्यमान नहीं है। देवता की प्रसन्नता के लिए प्रतीक का पूजन किया जा सकता है, जो फलदायी होता है। शनिदेव की कृपा के लिए शनि यंत्र के रूप में शनि ग्रह ब्रह्मांड में दृष्टिगोचर हैं।
शनि ग्रह की गति सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते अन्य ग्रहों की तुलना में बहुत कम है। इसलिए इन्हें शनैश्चर कहा गया है। शनि भगवान, शनिदेव भी इन्हें ही कहा जाता है। संस्कृत के 'शनये कर्मति सः' का अर्थ है 'जो धीरे चले'। शनि ग्रह सूर्य की पूरी प्रदक्षिणा करने में 30वर्ष लगाता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार सूर्य सहित 9 ग्रह और 12 प्रकार के आकार में दिखने वाले तारा समूह हैं, जिन्हें राशियाँ कहा जाता है। इस प्रकार शनि ग्रह प्रत्येक राशि पर 2.5 वर्ष व्यतीत करता है। ज्योतिष के अनुसार शनि अपनी धीमी चाल के कारण जिस राशि में रहता है उसके 2.5 वर्ष, उसकी पूर्व की राशि के 2.5 और पश्चात की राशि के 2.5 वर्ष, इस प्रकार एक राशि पर कुल साढ़े सात वर्ष (7.5) वर्ष तक प्रभाव डालता है। इसे ही शनि की 'साढ़ेसाती' कहते हैं। शनि का प्रभाव भी उसकी राशि पर स्थिति के अनुसार वर्ष के क्रम में कठोर होता चला जाता है। शनि की साढ़ेसाती से लोग भयभीत रहते हैं। यह आत्मावलोकन और कर्मों में सुधार का समय होना चाहिए।
शनि देवता और शनि ग्रह लोक मानस में इतना रचे-बसे हैं कि जब-जब शनिदेव की बात चलती है तो वह शनि ग्रह पर केंद्रित होकर रह जाती है। शनिदेव का भय भी लोगों को बहुत सताता है। यह प्रबुद्धजनों को तय करना चाहिए कि देवता की कृपा चाहिए कि ग्रह की कुदृष्टि से बचना है। संतों की राय में तो कृपा की विनय से सारे काम बना करते हैं।
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कहते हैं कि संसार मे देर है अन्धेर नही है,इसी देर का नाम शनि देव है,ढाई साल मे कितनी ही बार वक्री होते है और कितनी ही बार मार्गी,इस मार्गी और वक्री का मतलब भी बहुत ही अनौखा है,अगर आपने अपने घर मे सिल-बट्टा देखा है तो समझ में आ जायेगा,शनिदेव का खेल,जो वे इस जगत के प्राणियों के साथ खेलते हैं,अपन से जाने अन्जाने मे कोई न कोई गल्ती तो हो ही जाती है,उस गल्ती की सजा को भुगतने के लिये संसार के स्वामी ने एक जज नियुक्त किया है,उसी जज का नाम शनि है,इस जज के पास कोई सोर्स सिफ़ारिस नही चलती है,दंड तो भुगतना ही है,जब शनि कर्मों का लेखा जोखा लेते हैं तो बक्री होते हैं,और जो कुछ भी गलत किया है,सभी को पीछे से बटोर कर लाते है,अपने कर्मो रूपी बट्टे के नीचे रख कर,जैसा कर्म किया है उसी ताकत से पीसते हैं,बचता वही है,जो सांई की शरण मे आजाता है,और अपने को पिलपिला बना लेता है,गल्ती करने के बाद भी जो अहम के कारण कडक रहते हैं,वे बहुत ही महीन पीसे जाते हैं,अक्सर हमने देखा है कि पापी पाप करने के बाद भी बच जाते है,और बहुत खुश होते हैं,कि उनका क्या हो गया,मगर उअन्के लिये शनि देव जी जो दंड उसको मिला था,उससे भी बडा देने के लिये उसे छोड देते हैं,और फिर भी मानो बच जाते हैं,तो उसकी अगली पीढी को बहुत ही बेरहमी से पीसते हैं.