कहते हैं कि संसार मे देर है अन्धेर नही है,इसी देर का नाम शनि देव है,ढाई साल मे कितनी ही बार वक्री होते है और कितनी ही बार मार्गी,इस मार्गी और वक्री का मतलब भी बहुत ही अनौखा है,अगर आपने अपने घर मे सिल-बट्टा देखा है तो समझ में आ जायेगा,शनिदेव का खेल,जो वे इस जगत के प्राणियों के साथ खेलते हैं,अपन से जाने अन्जाने मे कोई न कोई गल्ती तो हो ही जाती है,उस गल्ती की सजा को भुगतने के लिये संसार के स्वामी ने एक जज नियुक्त किया है,उसी जज का नाम शनि है,इस जज के पास कोई सोर्स सिफ़ारिस नही चलती है,दंड तो भुगतना ही है,जब शनि कर्मों का लेखा जोखा लेते हैं तो बक्री होते हैं,और जो कुछ भी गलत किया है,सभी को पीछे से बटोर कर लाते है,अपने कर्मो रूपी बट्टे के नीचे रख कर,जैसा कर्म किया है उसी ताकत से पीसते हैं,बचता वही है,जो सांई की शरण मे आजाता है,और अपने को पिलपिला बना लेता है,गल्ती करने के बाद भी जो अहम के कारण कडक रहते हैं,वे बहुत ही महीन पीसे जाते हैं,अक्सर हमने देखा है कि पापी पाप करने के बाद भी बच जाते है,और बहुत खुश होते हैं,कि उनका क्या हो गया,मगर उअन्के लिये शनि देव जी जो दंड उसको मिला था,उससे भी बडा देने के लिये उसे छोड देते हैं,और फिर भी मानो बच जाते हैं,तो उसकी अगली पीढी को बहुत ही बेरहमी से पीसते हैं.