तन-मन से भक्ति में लीन हो जाओ
जी हाँ, यह तो सभी जानते हैं कि वेद मर्म जानना कोई सरल कार्य नहीं है। सामान्य व्यक्ति के बस का यह कार्य है ही नहीं। फिर क्या साधारण मानव 'वेद' का अर्थ कभी भी ज्ञात नहीं कर सकेगा?...जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। महाराष्ट्र् के संत शिरोमणि तुकारामजी ने यह कार्य सहज ही कर दिखाया है।
ज्ञानी जिज्ञासु वेदांत का आशय समझने के लिए 'ब्रह्मसूत्रों' पर श्री शंकराचार्यजी के लिखे विस्तृत भाष्य का सहारा लेते हैं। लेकिन यह सहारा तो संस्कृत भाषा जानने वालों के लिए ही है। वैसे तो हर भारतीय सामान्य- रूपेण इतना जरूर जानता है कि उसकी जीवात्मा परमात्मा काही एक अंश है। जीवात्मा तथा परमात्मा का सत्य स्वरूप... इन दोनों का सनातनत्व आदि जानने का प्रयास वह करने की जरूरत नहीं समझता है।
शायद इसीलिए महाराष्ट्र्र के संतश्रेष्ठ श्री तुकारामजी कहते हैं- 'वेद का सच्चा अर्थ हम ही जानते हैं, तत्वज्ञ विद्वान तो बस तत्वचर्चा ही करते रहते हैं और स्वयं को धन्य समझते हैं- 'वेदांचा अर्थ आम्हासी ठावा। आणिकांनी वहावा भार माथा॥'... सर्वसाधारण को आश्वस्त करते हुएवे आगे चलकर कहते हैं- 'वेद अनंत हैं... लेकिन संक्षेप में उसका सार है कि तुम ईश्वर के प्रति स्वयं को समर्पित कर दो और तन-मन से उसकी भक्ति में लीन हो जाओ।'संत शिरोमणि श्री तुकारामजी ईश्वर के... श्री विट्ठल के... परम भक्त थे। उन्होंने वेद अपने व्यावहारिक आचरण में ही क्रियान्वित किया था। इसीलिए वे वेद का मर्म जानने वाले अधिकारी कहे जाते हैं। वेद का अर्थ तत्वचर्चा से नहीं, अपितु आत्मा-परमात्मा का अभिन्ना स्वरूप मानकर, परमात्मा में जीवात्मा को समर्पित करके भक्तिभाव में लीन होकर ही ज्ञात हो सकता है। इस सत्य को तुकारामजी ने अंत्यत सरल शब्दों में प्रस्तुत किया है।
भला बताइए, क्या अब भी वेद का अर्थ जानना सर्वसाधारण के लिए कठिन है।