गुरु में सभी शक्तियाँ होती हैं
- प्रस्तुति : प्रकाश दांडेकर
हमारे जीवन में गुरु का अत्यंत महत्व है। बालक की प्रारंभिक शिक्षा ही माता के समान वात्सल्यमय एवं शिक्षक के समान अनुशासन प्रिय, परंतु अपने विद्यार्थी का सर्वस्व हित चाहने वाले शिक्षक के मार्गदर्शन में पूर्ण होती है। वेद, पुराण और पंडितों द्वारा लिखित शास्त्रों में भी स्पष्ट किया गया है कि सद्गुरु के दर्शन एवं प्रवचन एक बार सुनने से हजार बार किए गए समस्त तीर्थों के दर्शन से भी अधिक पुण्य प्राप्त होता है। जहाँ पर गुरु का आश्रम होता है वहाँ पर शक्तियुक्त मंत्रों के करोड़ों जाप हो जाने से वह स्थान सिद्ध स्थल एवं शक्तिपीठ बन जाता है। सामान्यतया मनुष्य के मन में विचार उठता है कि मैं किसकी पूजा करूँ? कोई राम को पूजता है, कोई कृष्ण को तो कोई शंकर को पूजता है। कुछ लोग देवी माँ की पूजा करते हैं तो कोई अल्लाह, महावीर, बुद्ध या ईसा मसीह में अपनी आस्था रखता है, परंतु सिर्फ गुरु ही एकमात्र स्थान है, जिसमें समस्त शक्तियों का समावेश है।
इसी शाश्वत सत्य के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने कुलगुरु श्री वशिष्ठ एवं पूज्यनीय विश्वामित्र आदि ऋषियों के आश्रमों में शिक्षा ग्रहण करके शक्तियाँ अर्जित की थीं, अगस्त्य मुनि ने तो समुद्र को ही अपनी अंजली में भर लिया था। उन्होंने भगवान श्रीराम को अपराजेय मंत्र की शिक्षा दी थी। इस मंत्र का उपयोग रामचंद्रजी ने लंका विजय के समय खरदूषण से युद्ध में किया था और इसी शिक्षा से उन्होंने खरदूषण का वध किया और अन्य राक्षसों का विनाश किया। इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में सांदीपनि मुनि के आश्रम में रहकर तप किया। उन्होंने वहाँ पर गुरुदेव एवं गुरुमाता की सेवा करके अनेक प्रकार की शक्तियाँ दीक्षा रूप में अर्जित कीं। इसके अतिरिक्त अन्य गुरुओं से अनेक प्रकार की शिक्षा ग्रहण की और वे चौंसठ कलाओं में परिपूर्ण हुए एवं जगतगुरु कहलाए, क्योंकि वे इस योग्य ही थे। प्रत्येक गोपी यह समझती थी कि कृष्ण मेरे हैं तथा मुझसे सबसे अधिक प्रेम करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने सोलह हजार एक सौ आठ रानियों के साथ एक समय में ही रासलीला की अर्थात इतने अधिक रूप एकसाथ रख लेना यह उन्हीं का सामर्थ्य था। इतनी रानियों को जीवन प्रदान करने के लिए ही उन्होंने ऐसी लीलाएँ कीं अन्यथा जरासंध के कारागृह से मुक्त हुई नारियाँ समाज में जीवित नहीं रह पातीं। वे सभी कृष्ण की भक्त थीं और कृष्ण को कृपा तो करना ही थी, क्योंकि वे सच्चे गुरु थे। उनको जिस नारी ने जैसे रूप में देखा, वे उसे वैसे ही दिखे।