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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: JR on June 06, 2007, 01:13:31 AM

Title: साधक मंत्रों के दोषों को भी समझें
Post by: JR on June 06, 2007, 01:13:31 AM
साधक मंत्रों के दोषों को भी समझें

- प्रस्तुति : लक्ष्मीकांत दुबे
 
जीवन में मंत्रों का बहुत महत्व है। कई साधक मंत्रों के दोषों को जाने बिना मंत्र जाप करते हैं, उनको कोटि कल्प में भी सिद्धि नहीं मिलती है। मंत्रों के चार दोष हैं- कीलन, युगधर्म, अरिष्टग्रह और पितृदोष। इनमें से कोई भी एक हो तो परिश्रमी साधक परिहार के बिना सिद्धि नहीं प्राप्त कर सकता। परम सिद्ध महायोगिराज पं. दुर्गादास मालवी का मानना है कि आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ पाने के लिए जरूरी है कि साधक मंत्रों का सही-सही और रीति से जाप करे। जब तक मंत्र में प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती, तब तक कलि के दोषों के कारण मंत्रजाप में सिद्धि भी नहीं हो सकती।

पं. दुर्गादासजी ने बिना प्रचार-प्रसार से सर्वथा दूर रहकर आध्यात्मिक ऊँचाइयों को न केवल छुआ वरन अपने संपर्क में आने वाले साहित्यकारों, राजनेताओं, प्रशासकों व समाजसेवियों को सुसंस्कार प्रदान किए। जलूद आश्रम के सुप्रसिद्ध संत व मनीषी स्व. पं. दुर्गादास तांत्रिक का जन्म तिल्लौर खुर्द (इंदौर) में 1900 में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ। सिर्फ 14 वर्ष की वय में आपके आध्यात्मिक गुरु पं. नारायणजी ओझा के साये में काशीपुर में उनकी शिक्षा-दीक्षा संपन्न हुई। 'अल्पकाल विद्या सब आई' को चरितार्थ करते हुए अल्पायु में ही उन्हें संत स्वरूप प्राप्त हुआ। माँ भगवती के अनन्य आराधक पं. दुर्गादासजी तांत्रिक का साधना क्षेत्र अमरकंटक से लेकर कामाक्षा तक रहा। गृहस्थ जीवन में उनकी आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ कमल की पत्तियों पर जल की निर्मल बूँदों की तरह रहीं। मात्र 24 वर्ष की आयु में उन्हें माँ भगवती का साक्षात्कार हुआ। 1962 से वे जलूद आश्रम (मंडलेश्वर) में साधना स्वरूप रहे। गुरुदेव ने अपनी देहलीला सन्‌ 1980 में समाप्त की।

देशभर में फैले उनके शिष्य व अनुयायी चमत्कार व प्रचार से परे स्व. पं. दुर्गादासजी तांत्रिक का स्मरण करने में जुटे हैं। आज भी नर्मदातीरे जलूद के उस जागृत एवं सिद्धस्थान पर उनकी उपस्थिति महसूस की जाती है, जो उनके अनुयायियों में एक अद्भुत जीवनदायिनी शक्ति का संचार करती है।