मैंने गलती से ये पोस्ट Spiritual Discussion room मे करने की बजाये Welcome section मे कर दिया था .
मै इसे फिर से दुबारा पोस्ट कर रहा हू चर्चा के लिए
साईं राम
रविजी नमस्कार ,
अपने मन के साईं मे 5th January 2008 को एक बहुत ही सुंदर ओर महत्पूर्ण लेख "मिलकर करे एक अच्छा और नेक काम " लिखा था .
मै आज आपके लेख को बहुत ही ध्यान से पढ़ा ओर समझने की कोशिस भी की है. आपने अपने पहले अनुच्छेद (पेराग्राफ ) मे जो भी विचार
रखे है सब सच की पराकाष्टा को छुते है. मै आपके विचारो से पूर्णता सहमत हु . हमलोग साईं प्रेमी साधारणता : जेसा आपने अपने लेख मे
संबोधित किया है प्रतिदिन कार्यप्रणाली का ही अनुसरण करते है. वेहस्पतिवार को जो श्री साईंनाथ का वार है हमलोग प्राय :मंदिर जाके कुछ भोग
वितरण कर देते है , कुछ दान दान पेटी या बाबा के चरणों मे चड़ा देते है ओर कुछ पैसे भिखारियों को दान मे दे देते है . बस सम्पूर्ण हो जाती है
अपनी भक्ति ओर बाबा के प्रति जिमेदारिया . सप्ताह के बाकि दिनों मे हमारे अन्दर का साईं प्रतीक्षा करता रहता है की मुझे कोई याद करे ओर
फिर मायूस होके अगले वेहस्पतिवार का इन्तेजार करने लगता है. इन ६ दिनों मे प्राय:हम ना कोई भूखे को खाना देते है ना ही भिखारी को दान
उलटे दुत्कारके भगा देते है.छमा करियेगा मै किसी भी साईं प्रेमी को व्यक्तिगत रूप से कोई भी दोषारोपण नहीं कर रहा हु क्योकि मै भी आपके ही
समाज का एक हिस्सा हु . केवल वही कह रहा हु जो प्रतिदिन देख रहा हु . आम तौर पर प्राय :कोई भी बाबा के विचारो ओर उनके वचनों को पालन
करने या फेलाने का प्रयास नहीं कर रहा है आपतु बाबा के नाम का सहारा लेके गलत-गलत भ्रांतियों को पहलने मे आपनी पूरी शक्ति लगा रहे है.
बाबा के नाम से अप्भ्रन्तिया,अंधविश्वास ,अविचार , द्रव्य उपार्जन व नाना प्रकार के कार्य जो कही भी बाबा के वचनों ओर विचारो से मेल नहीं कहते
समाज मे फेला रहे है . प्राय::सभी बाबा के भक्त कहलाने मे आपनी शोभा ओर सम्मान समझते है पर भक्त की क्या नैतिक ,अधत्यामिक , सामाजिक
जिमेदारिया होती है सम्पूर्णता प्राय: भूल ही जाते है. बाबा के अनमोल वचनों ओर विचारो को यदा -कदा कोई सम्मलेन के मंच पर , भजन संध्या ,
मंदिर उत्सव या साईं समाज मे अवश्य बोला जाता है ओर बहुत ही गंभीरता से वर्णन भी किया जाता है पर रोज की दैनिक वेवहार मे वचन ओर विचार
अछूते ही रह जाते है. भक्त कहलाना मुझे भी शोभा ओर सम्मानित लगता है पर मै अभी केवल सेवक की ही योग्यता रखता हु भक्त की नहीं .ना मै
अभी एक भक्त की तरह सम्पूर्ण रूप से खुद को बाबा को समर्पित ही कर पाया हु ना ही सम्पूर्णता उनके वचनों ओर विचारो का ही पालन कर सका हु .
मै अभी भी नाना प्रकार की व्याधियो से ग्रषित हु .अहंकार,लोभ ,लालच, घृणा ,परनिंदा ,परचर्चा इत्यादि नाना प्रकार की कुरितियो का शिकार हु .
ऐसा नहीं है की मै इनसे छुटकारा पाने की कोशिस ही नहीं कर रहा हु . पर मुझे विश्वास है की बाबा मेरे एक ना एक दिन मेरे सभी विकारो का नाश
करेगे . उसदिन ही मै एक भक्त के श्रेणी मे आने की योगता आर्जित करूंगा . बाबा ने मुझे सोते हुये से जगा दिया है ओर मै बाबा का सदा के लिए
ऋणी हु. मै भली-भात जनता हु ओर समझता हु की मेरे प्रयास से अगर एक भी साईं प्रेमी लाभान्वित होता है तो मेरा मेरे गुरु को ये सबसे बड़ी पूजा होगी .
मै एक अज्ञानी हु जो अभी भी अज्ञानता के अन्धकार से निकलने की कोशिस कर रहा है. सागर से भी गहरे बाबा के वचन ओर विचार है . मै मूर्ख
अभीतक केवल चंद कुछ बुँदे ही संचित कर सका हु.
वेसे रविजी कुछ दिन पहले मैंने भी इसी फोरम मे आपके विचारो से प्राय : मिलते जुलते कुछ ऐसे ही विचार मैंने भी रखने की कोशिस की थी पर
हमेहा की तरह फिर ना कोई सकारात्मक ओर ना ही नकारात्मक उतर प्राप्त हुआ . शायद बाबा ने मुझे अभी उपयुक ही ना समझा हो . मुझे अभी
ओर भी परिक्षाये देनी बाकी है.
रविजी आपने अपने दुसरे अनुच्छेद मे पूछा है की कोनसे दो नेक काम मेने आज किये है .:
प्रथमता: इस फोरम के माध्यम से आज शायद पहली बार बिना हिचक के मैंने बाबा को नहीं बाबा की बताने की कोशिस की है ओर बाबा की कृपा से
मै काफी हदतक अपनी बाते कह सका हु.
द्वितीय आज मेने फोरम के माध्यम से जानकारी हासिल की है ओर उसके बाद एक संकल्प लिया है की मै अपनी छमता के तेहत गुप्त -रूप से किसी की सहायता करूगा .वेसे भी मै कोन हु जो किसी की सहायता कर सकू. ये बाबा ही है जो खुद ही प्रेरणा देते है ओर खुद ही कार्य करते है . कर्ता बाबा खुद ही है मै तो केवल एक माध्यम हु.
अंत: मे आज हमेशा की तरह छमा-याचना नहीं मांगूगा कारण आज मेरे मन के साईं ने कहा की तूने सच कह कर किसी का दिल नहीं दुखाया है पर
हाथ जोड़ कर निवेदन अवश्य करूँगा की बाबा के अनमोल वचनों ओर विचारो को ही केवल ओर केवल ग्रहण करना चाहिए . हम अगर 5% भी
बाबा के वचनों का अनुसार चल सके तो भी ये समाज साईं-साईं हो जायेगा .
साईं राम