जय सांई राम।।।
मंदिर होये मूरत, हृदय बसे भगवन
ये छोटी सी कहानी हमारी माँ काफ़ी बार हम सारे भाई बहनो को दोहराती रहती थी। एक कस्बे में सुखी नामक बहू, अपने पति और साँस के संग रहा करती थी। उनकी ईश्वर पर अटल श्रद्धा थी! लेकिन सांसजी को प्रभु पर कोई भरोसा ना था | किसी हादसे वश वो अपना विश्वास प्रभु पर से खो चुकी थी! हालाकी पती जी ईश्वर को मानते थे!
जब भी सुखी बहू ईश्वर का नाम स्मरण करने लगती, सांसजी टोक दिया करती, गुस्सा हो जाती! सुखी बहू की जीवन में बस एक ही इच्छा थी, के पास के गांव जाकर, वंहा के हरी नारायण मंदिर के दर्शन करे, जो की काफ़ी जागृत देव स्थान माना जाता था! मगर अपनी नास्तिक साँस से कभी अनुमति नही माँग पाई!
एक बार पती जी लंबे अरसे से बाहर देश गये! सुखी बहू दिन भर काम करती, प्रभु को याद करती, मिलके आने दो की रट सुनाती! सासू मां ने गुस्से में सुखी बहू को पेड़ के साथ बँधवा दिया, कस कर रस्सिया बँधी! सुखी को ना वो खाना देती ना पानी! ’अपने ईश्वर को बुलाओ मदद के लिए’ सुखी भी नारायण का जाप करे जा रही थी!
आख़िर प्रभु को दया आ ही गयी सुखी पर! उन्होने पति का रूप धरा और पहुँचे, जंहा सुखी को बाँध रखा था! हालचाल पूछा, क्यों बँधा पूछा? सुखी ने प्रभु मिलन की इच्छा प्रगट की! पति रूप में जो प्रभु थे बोले “ठीक है, तुम सांसु मा को बिना बताए ही चली जाओ, तुम्हारी जगह यंहा हम रहेंगे, सब संभाल लेंगे! तुम जाओ और उस पत्थर की मूरत के दर्शन कर आओ”
जैसे ही सुखी चली गयी, प्रभु ने सुखी का रूप धारण किया, खुद बँध गये,पेड़ से! सासू मां समझती,सुखी ही है, रोज ताने कसती उस पर! प्रभु बस मिथ्या हंस पड़ते!
इधर सुखी बहू मूरत के दर्शन कर खुश हुई! पर पत्थर की मूरत में, उसे भगवान का तेज ना दिखाई दिया! कुछ गांववाले जो तीर्थ से आए, उन्होने सुखी बहू मंदिर में होने की खबर सांसुजी तक पहुँचा दी!
सांसुजी विश्वास ना करे, कहे सुखी तो पेड़ से ही बँधी है |लोग भी जाते, देख कर हैरान हो जाते!
सुखी बहू घर लौटी, तो दो दो सुखी को देख कर सारे लोग भ्रम में पड़ गये! दोनो कहती मैं असली बहू हूँ! आख़िर हार कर असली सुखी बोली ’प्रभु अब खेल खत्म करो, मैं मंदिर दर्शन तो कर आई, पर आप मुझे वंहा नही मिले, बस आपकी मूरत थी” और रो पड़ी !
प्रभु प्रकट हुए बोले सुखी बहू, इसलिए तो हमने कहा था, जाओ और उस पत्थर के मूरत के दर्शन करो, अरे जब हम यंहा है, आपके मन में है, वंहा कैसे मिलेंगे इतना कह चले गये !
प्रभु दर्शन पाकर सारे लोग धन्य हो चुके थे! सासु मां को भी अपनी ग़लती का एहसास हुआ! सुखी बहू को भी समझ आ गया के प्रभु, हर हृदय में बसते है! चाहे वो इंसान का हो या किसी और प्राणी मात्र का! दिल से उन्हे याद करो, प्रभु ज़रूर भक्तो की पुकार सुनते है!
हमारी मां अक्सर कहती, कि प्रभु से मिलना हो तो मदिर जाओ ना जाओ, मगर किसी की मदद जरूर करो!
किसीसे दो मीठे लफ्ज़ कहो! किसी और के लिए भी कभी दुआ करो, किसी की खोई मुस्कान लौटाओ, किसीकी तकलीफ़ को समझो, प्रभु तुम्हे वंही मिल जाएँगे!
ॐ सांई राम।।।