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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: rajiv uppal on January 08, 2008, 08:56:06 AM

Title: नीम के तले बाबा
Post by: rajiv uppal on January 08, 2008, 08:56:06 AM
नामदेव भीमरथी नदी के तीर पर गोनाई को और कबीर भागीरथी नदी के तीर पर तमाल को पड़े हुए मिले थे और ऐसा ही श्री साँई बाबा के संबंध में भी है।

वे शिर्डी में नीम-वृक्ष के तले सोलह वर्ष की तरुणावस्था में स्वयं भक्तों के कल्याणार्थ प्रकट हुए थे। उस समय भी वे पूर्ण ब्रह्मज्ञानी प्रतीत होते थे। स्वप्न में भी उनको किसी लौकिक पदार्थ की इच्छा नहीं थी।
शिर्डी ग्राम की एक वृद्ध स्त्री नाना चोपदार की माँ ने उनका इस प्रकार वर्णन किया है- एक तरुण, स्वस्थ, फुर्तीला तथा अति रूपवान बालक सर्वप्रथम नीम वृक्ष के नीचे समाधि में लीन दिखाई पड़ा। सर्दी व गर्मी की उन्हें जरा भी चिंता न थी। उन्हें इतनी अल्प आयु में इस प्रकार कठिन तपस्या करते देखकर लोगों को महान आश्चर्य हुआ।

दिन में वे किसी से भेंट नहीं करते थे और रात्रि में निर्भय होकर एकांत में घूमते थे। लोग आश्चर्यचकित होकर पूछते फिरते थे कि इस युवक का कहाँ से आगमन हुआ है? उनकी बनावट तथा आकृति इतनी सुंदर थी कि एक बार देखने मात्र से ही लोग आकर्षित हो जाते थे।

वे सदा नीम वृक्ष के नीचे बैठे रहते थे और किसी के द्वार पर न जाते थे। यद्यपि वे देखने में युवक प्रतीत होते थे, परन्तु उनका आचरण महात्माओं के सदृश था।

वे एक त्याग और वैराग्य की साक्षात प्रतिमा थे। एक बार एक आश्चर्यजनक घटना हुई। एक भक्त को भगवान खंडोबा का संचार हुआ। लोगों ने शंका-निवारणार्थ उनसे प्रश्न किया कि 'हे देव! कृपया बतलाइए कि ये किस भाग्यशाली पिता की संतान है और इनका कहाँ से आगमन हुआ है?' भगवान खंडोबा ने एक कुदाली मँगवाई और एक निर्दिष्ट स्थान पर खोदने का संकेत किया।

जब वह स्थान पूर्ण रूप से खोदा गया तो वहाँ एक पत्थर के नीचे ईंटें पाई गईं। पत्थर को हटाते ही एक द्वार दिखा, जहाँ चार दीप जल रहे थे। उन दरवाजों का मार्ग एक गुफा में जाता था, जहाँ गौमुखी आकार की इमारत, लकड़ी के तख्ते, माला आदि दिखाई पड़ीं।

भगवान खंडोबा कहने लगे कि इस युवक ने इस स्थान पर बारह वर्ष तपस्या की है तब लोग युवक से प्रश्न करने लगे। परन्तु उसने यह कहकर बात टाल दी कि यह मेरे श्रीगुरुदेव की पवित्र भूमि है तथा मेरा पूज्य स्थान है और लोगों से उस स्थान की भली भाँति रक्षा करने की प्रार्थना की।

तब लोगों ने उस दरवाजे को पूर्ववत बंद कर दिया। जिस प्रकार अश्वत्थ तथा औदुम्बर वृक्ष पवित्र माने जाते हैं, उसी प्रकार बाबा ने भी इस नीम वृक्ष को उतना ही पवित्र माना और प्रेम किया। साँई बाबा के भक्त इस स्थान को बाबा के गुरु का समाधि-स्थान मानकर सदैव नमन किया करते हैं।