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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: MANAV_NEHA on June 01, 2008, 02:35:22 AM
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जय साई राम
संसार में बहुत सी जाती और धर्मो के लोग है {हिंदू सिख मुस्लिम इसाई} चार मुख्य जाती है हिंदू में भाग्वात्गीता,सीखो में गुरु गरंथ साहेब,मुस्लिमों में कुरान शरीक,ईसायो में बाइबल को उच्च पूजनिये समान स्थान प्राप्त है,पर मनुष्य इसमे भेद समजता है,इन्हे भिन मानता है,क्या इन ग्रंथो और पुरानो का अर्थ मनुष्य में एक दूसरे के प्रति प्रेम भावना जगाना नही है,सच की राह दिखाना नही है ,फ़िर जब इसका अर्थ एक है तोह इसका स्वरूप भिन कैसे हो सकता है,यह हमारी मानसिकता पर निर्भर करता है,ईश्वर तोह एक है पर उसके रूप अनेक है,हमे सिर्फ़ उसके रूप को पहचानना है!
जय साई राम
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प्रेम ही ईश्वर है,यह ही नशवर है,यह ही नर को नारायण से जोड़ता है
प्रेम ही बाबा का सरूप है,बाबा प्रेम की ही परिभाषा है,वो समाज में प्रेम ही तोह बाटने आए थे,उनका अहम् तत्पर्ये समाज में फेले भेद भाव को हटाकर प्रेम की ज्योत परजालित करना था,वेह चारो और प्यार बाटते चाहे हिंदू हो या मुस्लमान,सिख या ईसाई,सबको समान नज़र से देखते,सभी के सुख दुःख बाटते,अगर कोई दुखी होता तोह बाबा के समक्ष आते ही बाबा उसके दुःख हर लेते और चारो और प्रेम का वातावरण कर देते ,बाबा का यह भी कहना था कि
जितना हम प्रेम को समाज में फेलायेगे ,उतना ही अपने निकट हम मालिक को पाएंगे
जय साई राम
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