जिससे अंहकार नहीं होता उससे ना मान की फ़िक्र होती है ना अपमान की और जब इंसान मान और अपमान के बारे में सोचने लगता है तो समझ लेना चाहिए की अंहकार रूपी सांप उसके दिल में कुंडली मार के बैठ चूका होता है . मान और अपमान दोनों इंसान को बहकाते हैं , इंसान के दिल में अपने बारे में गलत फैमेयाँ पैदा करते हैं . जब कोई इंसान झुकता तो उसे अपना मान समझते है और जब कोई झुकता नहीं तो उसे अपना अपमान समझते हैं . इसलिए संत महात्मा कहते हैं की इंसान को हमेशा विनम्र होना चाहिए , हमेशा मालिक की भक्ति में मन को लगाये रखना चाहिए जिस से इंसान के दिल पर अंहकार हावी ना हो . फिर इंसान के दिल में अपने बारे में कोई गलत फैमी नहीं होती , ना उसे मान की फ़िक्र होती है ना अपमान की और ना ही वो किसी का अपमान करता है , उसे हर किसी में मालिक नज़र आता है , हर किसी के साथ विनम्र होता है .