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Author Topic: श्रद्धा और सबूरी  (Read 1856 times)

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Offline rahul jain

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श्रद्धा और सबूरी
« on: October 03, 2009, 10:53:36 AM »
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  • ॐ साईराम, आज हम बात करते हैं श्रद्धा के विषय में आखिर श्रद्धा है तो क्या है? श्रद्धा किस चीज़ से जुडी है? कभी सोचा है आपने की ऐसा क्यूँ होता है जब आपके ईष्ट, आपके भगवान्, आपके साईं, आपके सामने होते हैं तो आपका मन आपकी भावनाए आपके बाबा को उसी तरह देखेंगी. अगर आपको गर्मी लग रही है आपको पसीना आ रहा है तो आपको लगेगा आपके बाबा को पसीना आ रहा है, बाबा को भी गर्मी लग रही है. अगर आपको लगेगा की सर्दियों में ठण्ड हो रही है आपको ठण्ड लग रही है आपको कोई कम्बल कोई स्वेटर ले लेना चाहिए तो आपको लगेगा की आपको बाबा को भी कम्बल ओढ़ाना चाहिए, रजाई ओढा देनी चाहिए क्यूंकि बाबा को भी ठण्ड लग रही है. बाबा ने तो कभी आपसे आके नहीं कहा, बाबा तो फकीर थे बाबा को तो ठण्ड लगेगी तो भी वही भाव और गर्मी लगेगी तो भी वही भाव. तो फिर ऐसा क्या है जो बाबा को और आपको जोड़ रहा है? हम कहते हैं की वो श्रद्धा है, बाबा के लिए हमारी श्रद्धा है जो हमें बाबा को मानवीय रूप में देखने पर मजबूर कर देती है और हमें ये आश्वासन देती है की बाबा हमारे साथ सशरीर मोजूद हैं. मगर श्रद्धा बिना भावना के नहीं होती. श्रद्धा कोई मेकेनिकल चीज़ नहीं है, श्रद्धा कोई तंत्र नहीं है, श्रद्धा कोई मन्त्र भी नहीं है. वास्तव में श्रद्धा भावना है. हमारे मन में, हमारे अंतःकरण में एक भावना छिपी है, हमारे बाबा के लिए. एक प्रेम है, एक अनुभूति है, आप उसे बयान नहीं कर सकते. कोई भी बयान नहीं कर सकता. प्रेम की परिभाषाए कई दी जा सकती हैं मगर प्रेम को बयान नहीं किया जा सकता. आप ये नहीं कह सकते की मेरा प्रेम अधिक है और दूसरे का प्रेम कम है, तो आप श्रद्धा को कैसे आंकेंगे? हम कहते हैं पैसेवाले हैं बहुत पैसा खर्च करते हैं तो इनमे कुछ अधिक श्रद्धा है या कुछ कहते हैं इनमे श्रद्धा नहीं है ये दिखावा है, पर ऐसा नहीं है. जो पैसा खर्च कर रहा है उसमे भी श्रद्धा है, जो पैसा नहीं खर्च कर रहा है केवल भावना से प्रणाम कर रहा है बाबा को उसमे भी श्रद्धा है. अंतर क्या है? अंतर ये है की जिस पर पैसा है वो उस श्रद्धा को प्रकट करने के लिए उस धन का प्रयोग कर रहा है. जिसमे भावनाय अधिक हैं वो भावनाओं का प्रयोग कर रहा है एक गरीब आदमी पांच हज़ार रूपए कमाता है और उसका दस प्रतिशत पांच सौ रूपए वो बाबा को दे देता है, एक अमीर जो पचास लाख रूपए कमाता है अगर पांच हज़ार, पचास हज़ार दे भी दे तो उसके खजाने में फर्क नहीं पड़ेगा. श्रद्धा, भावनाय ये धन की भूखी नहीं हैं.
    तो मित्रो, श्रद्धा क्या है? श्रद्धा भावना है, और सबूरी उसका संबल है उसको रोकने के लिए. क्यूँ की भावनाय तो विचलित होती हैं और मानव की भावनाय सबसे ज्यादा विचलित होती हैं. मानव की भावनाय उसके आस-पास के क्षेत्र, उसकी आवश्यकता और ज़रुरत के हिसाब से बदलती रहती हैं. जब आपको लगेगा की कोई बहुत अच्छा आपके लिए कर रहा है, कोई भगवान् आपके लिए बहुत अच्छा कर रहा है तो आपको भावना उसके प्रति अलग होगी लेकिन जब आपको लगेगा की कुछ नहीं हो रहा है तो आपकी भावना अलग होगी. तो भावनाय विचलित होती रहती हैं. इसीलिए उनपर अंकुश लगाने की ज़रुरत है और बाबा ने वही अंकुश दिया सबूरी. बाबा ने सबूरी का अंकुश जो दिया वो इसलिए दिया की बाबा जानते थे की भावनाओं से श्रद्धा जुडी है और श्रद्धा विचलित हो जायेगी इसीलिए बाबा ने सबूरी का विषय दिया. तो श्रद्धा और सबूरी वास्तव में भावनाय हैं और भावनाओं के अतिरिक्त कुछ नहीं. ॐ साईराम

     


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