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छोटा सा अंतर
छोटा सा अंतरएक बुद्धिमान व्यक्ति ,जो लिखने का शौकीन था ,लिखने के लिए समुद्र के किनारे जा कर बैठ जाता था और फिर उसे प्रेरणायें प्राप्त होती थीं और उसकी लेखनी चल निकलती थी । लेकिन ,लिखने के लिए बैठने से पहले वह समुद्र के तट पर कुछ क्षण टहलता अवश्य था । एक दिन वह समुद्र के तट पर टहल रहा था कि तभी उसे एक व्यक्ति तट से उठा कर कुछ समुद्र में फेंकता हुआ दिखा ।जब उसने निकट जाकर देखा तो पाया कि वह व्यक्ति समुद्र के तट से छोटी -छोटी मछलियाँ एक-एक करके उठा रहा था और समुद्र में फेंक रहा था । और ध्यान से अवलोकन करने पर उसने पाया कि समुद्र तट पर तो लाखों कि तादात में छोटी -छोटी मछलियाँ पडी थीं जो कि थोडी ही देर में दम तोड़ने वाली थीं ।अंततः उससे न रहा गया और उस बुद्धिमान मनुष्य ने उस व्यक्ति से पूछ ही लिया ,"नमस्ते भाई ! तट पर तो लाखों मछलियाँ हैं । इस प्रकार तुम चंद मछलियाँ पानी में फ़ेंक कर मरने वाली मछलियों का अंतर कितना कम कर पाओगे ?इस पर वह व्यक्ति जो छोटी -छोटी मछलियों को एक -एक करके समुद्र में फेंक रहा था ,बोला,"देखिए !सूर्य निकल चुका है और समुद्र की लहरें अब शांत होकर वापस होने की तैयारी में हैं । ऐसे में ,मैं तट पर बची सारी मछलियों को तो जीवन दान नहीं दे पाऊँगा । " और फिर वह झुका और एक और मछली को समुद्र में फेंकते हुए बोला ,"किन्तु , इस मछली के जीवन में तो मैंने अंतर ला ही दिया ,और यही मुझे बहुत संतोष प्रदान कर रहा है । "इसी प्रकार ईश्वर ने आप सब में भी यह योग्यता दी है कि आप एक छोटे से प्रयास से रोज़ किसी न किसी के जीवन में 'छोटा सा अंतर' ला सकते हैं । जैसे ,किसी भूखे पशु या मनुष्य को भोजन देना , किसी ज़रूरतमंद की निःस्वार्थ सहायता करना इत्यादि । आप अपनी किस योग्यता से इस समाज को , इस संसार को क्या दे रहे हैं ,क्या दे सकते हैं ,आपको यही आत्मनिरीक्षण करना है और फिर अपनी उस योग्यता को पहचान कर रोज़ किसी न किसी के मुख पर मुस्कान लाने का प्रयास करना है ।और विश्वास जानिए ,ऐसा करने से अंततः सबसे अधिक लाभान्वित आप ही होंगे । ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपको अपने भीतर महसूस होगा । ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपके ही जीवन में पड़ेगा ।[/color]
स्त्रोत-- http://inspiringstories-hindi.blogspot.com/
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"हिम्मत मत हारो"
एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया ।वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है ,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।
ध्यान रखो ,तुम्हारे जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी तुम पर गिरेगी। जैसे कि ,तुम्हे आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही तुम्हारी आलोचना करेगा ,कोई तुम्हारी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई तुमसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो तुम्हारे आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में तुम्हे हतोत्साहित होकर कुएँ में ही नहीं पड़े
रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।
अतः याद रखो !जीवन में सदा आगे बढ़ने के लिए
१)नकारात्मक विचारों को उनके विपरीत सकारात्मक विचारों से विस्थापित करते रहो।
२)आलोचनाओं से विचलित न हो बल्कि उन्हें उपयोग में लाकर अपनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करो।
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"संतोष का पुरस्कार"
आसफउद्दौला नेक बादशाह था। जो भी उसके सामने हाथ फैलाता, वह उसकी झोली भर देता था। एक दिन उसने एक फकीर को गाते सुना- जिसको न दे मौला उसे दे आसफउद्दौला। बादशाह खुश हुआ। उसने फकीर को बुलाकर एक बड़ा तरबूज दिया। फकीर ने तरबूज ले लिया, मगर वह दुखी था। उसने सोचा- तरबूज तो कहीं भी मिल जाएगा। बादशाह को कुछ मूल्यवान चीज देनी चाहिए थी।
थोड़ी देर बाद एक और फकीर गाता हुआ बादशाह के पास से गुजरा। उसके बोल थे- मौला दिलवाए तो मिल जाए, मौला दिलवाए तो मिल जाए। आसफउद्दौला को अच्छा नहीं लगा। उसने फकीर को बेमन से दो आने दिए। फकीर ने दो आने लिए और झूमता हुआ चल दिया। दोनों फकीरों की रास्ते में भेंट हुई। उन्होंने एक दूसरे से पूछा, 'बादशाह ने क्या दिया?' पहले ने निराश स्वर में कहा,' सिर्फ यह तरबूज मिला है।' दूसरे ने खुश होकर बताया,' मुझे दो आने मिले हैं।' 'तुम ही फायदे में रहे भाई', पहले फकीर ने कहा।
दूसरा फकीर बोला, 'जो मौला ने दिया ठीक है।' पहले फकीर ने वह तरबूज दूसरे फकीर को दो आने में बेच दिया। दूसरा फकीर तरबूज लेकर बहुत खुश हुआ। वह खुशी-खुशी अपने ठिकाने पहुंचा। उसने तरबूज काटा तो उसकी आंखें फटी रह गईं। उसमें हीरे जवाहरात भरे थे। कुछ दिन बाद पहला फकीर फिर आसफउद्दौला से खैरात मांगने गया। बादशाह ने फकीर को पहचान लिया। वह बोला, 'तुम अब भी मांगते हो? उस दिन तरबूज दिया था वह कैसा निकला?' फकीर ने कहा, 'मैंने उसे दो आने में बेच दिया था।' बादशाह ने कहा, 'भले आदमी उसमें मैंने तुम्हारे लिए हीरे जवाहरात भरे थे, पर तुमने उसे बेच दिया। तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि तुम्हारे पास संतोष नहीं है। अगर तुमने संतोष करना सीखा होता तो तुम्हें वह सब कुछ मिल जाता जो तुमने सोचा भी नहीं था। लेकिन तुम्हें तरबूज से संतोष नहीं हुआ। तुम और की उम्मीद करने लगे। जबकि तुम्हारे बाद आने वाले फकीर को संतोष करने का पुरस्कार मिला।'[/size]
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Sai Ram
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Om Sai Ram
Thanks Ravi Bhaiya
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संतों की संगत का असर
एक नगर के बाहर जंगल में कोई साधु आकर ठहरा। संत की ख्याति नगर में फैली तो लोग आकर मिलने लगे। प्रवचनों का दौर शुरू हो गया।
संत की ख्याति दिन रात दूर-दूर तक फैलने लगी। लोग दिनभर संत को घेरे रहते थे। एक चोर भी दूर से छिपकर उनको सुनता था। रात को चोरी करता और दिन में लोगों से छिपने के लिए जंगल में आ जाता। वह रोज सुनता कि संत लोगों से कहते हैं कि सत्य बोलिए। सत्य बोलने से जिंदगी सहज हो जाती है। एक दिन चोर से रहा नहीं गया, लोगों के जाने के बाद उसने अकेले में साधु से पूछा-आप रोजाना कहते हो कि सत्य बोलना चाहिए, उससे लाभ होता है लेकिन मैं कैसे सत्य बोल सकता हूं।संत ने पूछा-तुम कौन हो भाई?चोर ने कहा-मैं एक चोर हूं।संत बोले तो क्या हुआ। सत्य का लाभ सबको मिलता है। तुम भी आजमा कर देख लो।
चोर ने निर्णय लिया कि आज चोरी करते समय सभी से सच बोलूंगा। देखता हूं क्या फायदा मिलता है। उस रात चोर राजमहल में चोरी करने पहुंचा। महल के मुख्य दरवाजे पर पहुंचते ही उसने देखा दो प्रहरी खड़े हैं। प्रहरियों ने उसे रोका-ऐ किधर जा रहा है, कौन है तूं।
चोर ने निडरता से कहा-चोर हूं, चोरी करने जा रहा हूं। प्रहरियों ने सोचा कोई चोर ऐसा नहीं बोल सकता। यह राज दरबार का कोई खास मंत्री हो सकता है, जो रोकने पर नाराज होकर ऐसा कह रहा है। प्रहरियों ने उसे बिना और पूछताछ किए भीतर जाने दिया।
चोर का आत्म विश्वास और बढ़ गया। महल में पहुंच गया। महल में दास-दासियों ने भी रोका। चोर फिर सत्य बोला कि मैं चोर हूं, चोरी करने आया हूं। दास-दासियों ने भी उसे वही सोचकर जाने दिया जो प्रहरियों ने सोचा। राजा का कोई खास दरबारी होगा।अब तो चोर का विश्वास सातवें आसमान पर पहुंच गया, जिससे मिलता उससे ही कहता कि मैं चोर हूं। बस पहुंच गया महल के भीतर।
कुछ कीमती सामान उठाया। सोने के आभूषण, पात्र आदि और बाहर की ओर चल दिया। जाते समय रानी ने देख लिया। राजा के आभूषण लेकर कोई आदमी जा रहा है। उसने पूछा-ऐ कौन हो तुम, राजा के आभूषण लेकर कहां जा रहे हो।चोर फिर सच बोला-चोर हूं, चोरी करके ले जा रहा हूं। रानी सोच में पड़ गई, भला कोई चोर ऐसा कैसे बोल सकता है, उसके चेहरे पर तो भय भी नहीं है। जरूर महाराज ने ही इसे ये आभूषण कुछ अच्छा काम करने पर भेंट स्वरूप पुरस्कार के रूप में दिए होंगे। रानी ने भी चोर को जाने दिया। जाते-जाते राजा से भी सामना हो गया। राजा ने पूछा-मेरे आभूषण लेकर कहां जा रहे हो, कौन हो तुम?
चोर फिर बोला- मैं चोर हूं, चोरी करने आया हूं। राजा ने सोचा इसे रानी ने भेंट दी होगी। राजा ने उससे कुछ नहीं कहा, बल्कि एक सेवक को उसके साथ कर दिया। सेवक सामान उठाकर उसे आदर सहित महल के बाहर तक छोड़ गया।
अब तो चोर के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसने सोचा झूठ बोल-बोलकर मैंने जीवन के कितने दिन चोरी करने में बरबाद कर दिए। अगर चोरी करके सच बोलने पर परमात्मा इतना साथ देता है तो फिर अच्छे कर्म करने पर तो जीवन कितना आनंद से भर जाएगा।चोर दौड़ा-दौड़ा संत के पास आया और पैरों में गिर पड़ा। चोरी करना छोड़ दिया और उसी संत को अपना गुरू बनाकर उन्हीं के साथ हो गया।संत की संगत ने चोर को बदल दिया। कथा का सार यही है कि जो सच्चा संत होता है वह हर जगह अपना प्रभाव छोड़ता ही है।
स्त्रोत - जीवन मंत्र, दैनिक भास्कर
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आत्मवत सर्वभूतेषू
धर्म में एक बड़ी अच्छी बात कही गई है- 'आत्मवत सर्वभूतेषू' यानी कि सभी में चाहे वह पशु-पक्षी हो या मनुष्य हो उनमें अपना ही रूप देखना। अध्यात्म भी यही कहता है कि ऊपर से देखने पर पेड़ की डालियां भले ही अलग-अलग नज़र आती हों, लेकिन मूल रुप से यानी कि जड़ों से वे एक-दूसरे के साथ अभिन्न रूप से जुड़ी होती है। ठीक वैसे ही सृष्टि से सभी प्राणी आपस अभिन्न रूप में जुड़े होते हैं।
सभी का सभी के साथ कितना गहरा और अटूट रिश्ता है जिसे इस कथा के द्वारा और भी आसानी से समझा जा सकता है :-
प्रसिद्ध संत केवलराम एक बार बैलगाड़ी में बैठ कर किसी गांव कथा करने के लिये जा रहे थे। वे जिस गांव के लिये बैलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे उसकी दूरी काफी ज्यादा थी। पूरे 12 घंटों की यात्रा थी इसीलिये केवलराम जी के मन में समय का कुछ सदुपयोग करने का विचार आया। संत ने यात्रा के साथ-साथ गाड़ीवन यानी बैलगाड़ी चलाने वाले को 'श्रीकृष्ण चरित कथामृत' की कथा सुनाने लगे।
कथा इतनी रसभरी थी कि गाड़ीवान पूरी तरह से कथा में खो गया। अचानाक उसका ध्यान गया कि बैल बहुत धीमी गति से चलने लगे हैं। बैलों की धमी चाल को देखकर गाड़ीवान को गुस्सा आ गया और अपने स्वभाव के अनुसार ही उसने एक बैल की पीठ पर जोर-जोर से 2-4 डन्डे जड़ दिये। लेकिन इतने में ही एक अजीब घटना हुई। जैसे ही गाड़ीवान ने बैल की पीठ पर सोटे मारे गाड़ी मे बैठे हुए संत केवलरामजी अपनी जगह से अचानक गिर पड़े और कराहने लगे। अचानक हुई संत की इस हालत को देखकर गाड़ीवान आश्चर्य और घबराहट से भर गया। वह दौड़कर संत के पास पहुंचा तो यह देख कर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई कि बैल को मारे गए डन्डों की चोट के निशान उन संत की पीठ पर भी बन गए हैं। गाड़ीवान का ध्यान गया कि संत केवलराम एकटक उस बैल को ही देखे जा रहे थे।
सभी को अपना ही रूप मानने की ज्ञान भरी बातें तो गाड़ीवान ने कई बार सुन रखी थी लेकिन उसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखकर संत की अद्भुत करुणा और अपनेपन के आगे उसने बारम्बार प्रणाम किया और अपने कर्म के लिये बेहद दुखी होकर क्षमायाचना भी की।
स्त्रोत - जीवन मंत्र, दैनिक भास्कर
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तन-मन-धन की शुद्धि
अपनी असफलता और सफलता को दूसरों की सफलता-असफलता से तुलना करने में बुराई नहीं है। एक स्वस्थ विश्लेषण करना अहंकार से बचने का आसान तरीका हो सकता है। पूरी ईमानदारी से और पूर्वाग्रह से मुक्त होकर दूसरों की अच्छाई को देखें और समझें।
फिर लगातार विचार करें कि ऐसी अच्छाई अपने भीतर है या नहीं, और यदि नहीं है तो किन प्रयासों से ये खूबियां हमारे भीतर उतर सकती हैं। भक्ति का एक लक्षण यह भी है कि दूसरों की अच्छाइयों को आत्मसात करें। जो सच्चे भक्त हैं वे इस मामले में बहुत सदाशय होते हैं। भक्ति में कथा-सत्संग का महत्व ही इसलिए है कि वहां जाकर हम अच्छाइयों को स्वीकार करते हैं और ग्रहण भी।
कथा के लिए कहा जाता है वहां जाकर सुनते हुए दो बातें होना चाहिए देह की विस्मृति और दोष का भान। इन दोनों के बिना हम अच्छे विचार, आचरण अपने भीतर उतार ही नहीं पाएंगे। ध्यान दीजिए हम स्वस्थ तब ही होते हैं जब हम शरीर को भूले हुए रहते हैं।
सिर दुखा, पैरों में तकलीफ हुई तो शरीर याद आया। जितना शरीर अधिक याद होगा उतने हम अधिक बीमार होंगे। शरीर की विस्मृति और मन का अभाव हमें आत्मा की अनुभूति कराता है। यहीं से हम थोड़े हल्के होंगे, हमारी ग्राह्यता बढ़ेगी अच्छी बातें स्वीकार करने में, शरीर और मन जो बाधा पहुंचाते हैं, बल्कि दीवार बनकर खड़े हो जाते हैं वह दूर होगी।
इसके लिए नियमित प्राणायाम-ध्यान बड़े काम के हैं। जिसके पास जितना समय हो उस हिसाब से योग करें, लेकिन करे जरूर। देह की शुद्धि स्नान से, धन की शुद्धि दान से और मन की शुद्धि ध्यान से हो ही जाती है।
स्त्रोत - जीवन मंत्र, दैनिक भास्कर
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प्रशन्नता और संतुष्टि का राज
प्रसिद्ध राजा अश्वघोष के मन में वैराग्य हो गया यानी संसार और दुनियादारी से उसे अरुचि हो गई। घर-परिवार को छोड़कर वे यहां-वहां ईश्वर और सच्ची शांति की खोज में भटकने लगे। कई दिनों के भूखे प्यासे अश्वघोष एक दिन भटकते हुए एक किसान के खेत पर पहुंचे। अश्वघोष ने देखा कि वह किसान बड़ा ही प्रशन्न, स्वस्थ व चेहरे से बड़ा ही संतुष्ट लग रहा था। अश्वघोष ने किसान से पूछा- ''मित्र तुम्हारी इस प्रशन्नता और संतुष्टि का राज क्या है? देखने में तो तुम थोड़े गरीब या सामान्य ही लगते हो। ''किसान ने जवाब दिया कि-'' सभी जगह ईश्वर के दर्शन और परिश्रम में ही परमात्मा का अनुभव करना ही मेरी इस प्रशन्नता और संतुष्टि का कारण है।''
अश्वघोष ने कहा-''मित्र उस ईश्वर के दर्शन और अनुभव मुझे भी करा दोगे तो मुझपर बड़ी कृपा होगी।'' अश्वघोष की इच्छा जानकर किसान ने कहा- ''ठीक है... पहले आप कुछ खा-पी लें, क्योंकि तुम कई दिनों के भूखे लग रहे हो।''
किसान ने घर से आई हुई रोटियां दो भागों में बांटीं। दोनों ने नमक मिर्ची की चटनी से रोटियां खाईं। फिर किसान ने उन्हें खेत में हल चलाने के लिये कहा। थोड़ी देर में ही श्रम से थके हुए और कई दिनों बाद मिले भोजन की तृप्ति के कारण राजा अश्वघोष को नींद आने लगी। किसान ने आम के पेड़ के नीचे छाया में उन्हें सुला दिया। जब राजा अश्वघोष सो कर उठे, तो उस दिन जो शांति और हलकेपन का अहसास हुआ वह महल की तमाम सुख-सुविधाओं में भी आज तक नहीं हुआ था।
राजा को किसान से पूछे गए अपने प्रश्र का जवाब खुद ही मिल गया। जिसकी तलाश में राजा दर-दर भटक रहा था वह शांति का रहस्य राजा को मिल गया कि ईश्वर पर अटूट आस्था और परिश्रम ही सारी समस्याओं का हल है।
स्त्रोत - जीवन मंत्र, दैनिक भास्कर
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‘‘तीन प्रश्न’’
अकबर का नाम तो आप सबने सुना ही होगा।
भारत में अंग्रेजों से पहले मुगलों का राज्य था और अकबर एक मुगल शासक था। उसके नवरत्नों में उसका मन्त्री बीरबल भी था। वह बहुत बुद्धिमान था।
एक बार अकबर दरबार में यह सोच कर आये कि आज बीरबल को भरे दरबार में शरमिन्दा करना है। इसके लिए वो बहुत तैयारी करके आये थे।
आते ही अकबर ने बीरबल के सामने अचानक 3 प्रश्न उछाल दिये।
प्रश्न थे- ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है? और वह करता क्या है?’’
बीरबल इन प्रश्नों को सुनकर सकपका गये और बोले- ‘‘जहाँपनाह! इन प्रश्नों के उत्तर मैं कल आपको दूँगा।"
जब बीरबल घर पहुँचे तो वह बहुत उदास थे।
उनके पुत्र ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया- ‘‘बेटा! आज अकबर बादशाह ने मुझसे एक साथ तीन प्रश्न ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है? और वह करता क्या है?’ पूछे हैं। मुझे उनके उत्तर सूझ नही रहे हैं और कल दरबार में इनका उत्तर देना है।’’
बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘पिता जी! कल आप मुझे दरबार में अपने साथ ले चलना मैं बादशाह के प्रश्नों के उत्तर दूँगा।’’
पुत्र की हठ के कारण बीरबल अगले दिन अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार में पहुँचे। बीरबल को देख कर बादशाह अकबर ने कहा- ‘‘बीरबल मेरे प्रश्नों के उत्तर दो।
बीरबल ने कहा- ‘‘जहाँपनाह आपके प्रश्नों के उत्तर तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।’’
अकबर ने बीरबल के पुत्र से पहला प्रश्न पूछा- ‘‘बताओ! ‘ईश्वर कहाँ रहता है?’’
बीरबल के पुत्र ने एक गिलास शक्कर मिला हुआ दूध बादशाह से मँगवाया और कहा- जहाँपनाह दूध कैसा है?
अकबर ने दूध चखा और कहा कि ये मीठा है। परन्तु बादशाह सलामत या आपको इसमें शक्कर दिखाई दे रही है। बादशाह बोले नही। वह तो घुल गयी।
जी हाँ, जहाँपनाह! ईश्वर भी इसी प्रकार संसार की हर वस्तु में रहता है। जैसे शक्कर दूध में घुल गयी है परन्तु वह दिखाई नही दे रही है।
बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब दूसरे प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर मिलता केसे है?’’
बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह थोड़ा दही मँगवाइए।’’
बादशाह ने दही मँगवाया तो बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! क्या आपको इसमं मक्खन दिखाई दे रहा है।
बादशाह ने कहा- ‘‘मक्खन तो दही में है पर इसको मथने पर ही दिखाई देगा।’’
बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! मन्थन करने पर ही ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं।’’
बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब अन्तिम प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर करता क्या है?’’
बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘महाराज! इसके लिए आपको मुझे अपना गुरू स्वीकार करना पड़ेगा।’’
अकबर बोले- ‘‘ठीक है, तुम गुरू और मैं तुम्हारा शिष्य।’’
अब बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह गुरू तो ऊँचे आसन पर बैठता है और शिष्य नीचे।’’
अकबर ने बालक के लिए सिंहासन खाली कर दिया और स्वयं नीचे बैठ गये।
अब बालक ने सिंहासन पर बैठ कर कहा- ‘‘महाराज! आपके अन्तिम प्रश्न का उत्तर तो यही है।’’
अकबर बोले- ‘‘क्या मतलब? मैं कुछ समझा नहीं।’’
बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! ईश्वर यही तो करता है।
पल भर में राजा को रंक बना देता है और भिखारी को सम्राट बना देता है।
source - http://uchcharandangal.blogspot.com/2009/05/blog-post_28.html
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ॐ साईं राम
http://uchcharandangal.blogspot.com
ये ब्लागस्पाट really कमाल का है.. इसमें बहुत सारी रोचक कहानिया है जिन्हें मैं यहाँ post नहीं करना चाहती कृपया direct इस blogspot से आप इन्हें पढ़ सकते है और इन कहानियों का आनंद ले सकते है और मन ही मन मुझे thank u कह सकते है... :D ;) ;D
जय साईं राम
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एक गांव में दो दोस्त रहते थे। एक का नाम मोहन था और दूसरे का सोहन। मोहन मेहनती था। वह हमेशा अपने खेतों में काम करता। खाली समय में भी वह कुछ न कुछ करता ही रहता था। जबकि सोहन आलसी था। वह भाग्य पर अधिक भरोसा करता था। उसने खेतों में काम करने के लिए नौकर रखे थें। वह सोचता था जितना किस्मत में लिखा है उतना तो मिल ही जाएगा। वह कभी-कभी ही खेतों में जाता था। पूरा दिन घर में रहता या फिर इधर-उधर घुमते रहता।वह मोहन से भी यही कहता था कि खेतों में काम करने के लिए नौकर रख ले और खुद आराम करो। भाग्य में जो लिखा है उतना ही मिलेगा। लेकिन मोहन हमेशा यही कहता कि कर्म भाग्य से भी ऊपर है। काम करेंगे तो उसका फल अवश्य ही मिलेगा।
सोहन कई-कई दिनों तक खेत पर नहीं जाता तो नौकर भी खेतों का ध्यान ठीक से नहीं रखते और अपनी मनमर्जी से काम करते। न तो ठीक से बुआई करते और न ही सिंचाई। जबकि मोहन दिन-रात खेतों में काम करता। थोड़े दिनों बाद जब फसल कटने का समय आया तब सोहन खेत पर गया। उसने वहां देखा कि समय पर सिंचाई न होने के कारण फसल मुरझा गई है। उसने अपन नौकरों को बहुत डांटा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वहीं दूसरी ओर मोहन के खेत में शानदार फसल लहलहा रही थी।
यह देखकर सोहन को मोहन की बात याद आने लगी। वह मोहन के पास गया और उससे माफी मांगी और वादा किया कि वह आगे से भाग्य पर निर्भर नहीं रहेगा। क्योंकि भाग्य भी उन्हीं लोगों का साथ देता है जो कर्म करते हैं।
स्त्रोत - जीवन मंत्र, दैनिक भास्कर