ॐ साईं नाथाय नमः
निष्ठा ओर श्रधा का महत्व
एक बार एक शिष्य आपने गुरु के साथ गुरु पिता के पास मिलने को उनके आश्रम को जा रहे थे.
गुरु का अनुसरण कर शिष्य उनके पीछे पीछे वियावान जंगल के रास्ते से गुरु का स्मरण करते हुये
रहा था . जंगल पार करने के पश्चात उन्होने देखा की आगे एक गहरी उफंती नदी है जो मार्ग अवरोध
कर रही है .कोइ ओर भी मार्ग नही नजर नही आ रह था उनको आश्रम तक पहुचने का. गुरु ने कहाँ
की पहुचना शिग्रह ही जरूरी है वरना गुरु के आदेश की अवहेलना होगी पर यहाँ तो दुर-दुर तक कोइ
नाव भी नही दिख रही है जिसपर सवार होगे इस उफन्ति नदी को पार किया जा सकता था .
शिष्य ने गुरु से कहाँ कि गुरुजी कुछ पेड़ से टुटी टेहनिओ को मैने नदी के पानी मे बेहते हुए देखा है .
क्यो ना हमलोग उसी टेह्नी का सहारा लेकर इस नदी को पार कर ले . गुरु को अपने शिष्य की बातो
से बहुत ही अच्चाम्भा हुआ ओर उसकी मुर्खता पर हसी भी. गुरु ने क्रोधित होके कहाँ की ठीक है तुम
पहले नदी को पार कर के दिखाओ .
शिष्य गुरु के आदेश को सर्वोपरी मानके एक बेहती हुइ टेह्नी को पकड लिया ओर आँखों को बांध कर
उसपर सवार हो गया . गुरु की आँखे विश्मय से खुली की खुली रह गई जब उन्होंने देखा कि शिष्य
बडी सहजता से उस टेह्नी पर सवार नदी पर कर दुसरे किनारे पहुच गया है .
शिष्य ने गुरु से निवेदन किया की गुरुजी आप भी मेरी भाति इस नदी को पार करके आ जाइये. गुरु ने
भी उसी तरह से प्रयास किये पर हर बार टेह्नी पर पैर रखते ही गुरूजी पानी मे तैयरने की जगाह डूब
जाते थे . गुरुजी बहुत परेशान की शिष्य ने तो बडी ही सहजता से इस कार्य को कर लिया मै क्यो नही
कर पा रहा हू.
संकोचित मन से गुरुजी ने शिष्य से पूछा कि तुमने कैसे ये सब किया ?
शिष्य ने बड़ी ही विनम्रता और छमा मांगते हुये कहाँ की गुरूजी वो आपही है. जिन्होंने मुझे नदी
के इस पार लाया है . मैने तो बस आपके आदेश को गुरु आदेश मानकर आपके प्रति दृढ़ता और श्रधा
रखते हुये आखे बांध कर आपको ही याद करता रहा . वो आपही थे जिन्होंने टेह्नी को थामे रखा
था ओर मुझे डूबने नही दिया .
आप भी अपने गुरु पर दृढ़ता,श्रधा ओर विस्वास करते हुये टेह्नी पर सवार हो जाइये.आपके गुरुजी भी
आपकी तरह आपको नदी पर करा देगे .
श्रधाऔर भक्ती मे वो शक्ति है जिसने ध्रुव प्रहलाद को महा आग्नि के लपटों के बीच मे भी सही सलामत रखा . .
साईं राम
राम रहे बन भीतरे गुरु की पूजा ना आस ।
रहे कबीर पाखंड सब, झूठे सदा निराश ॥
कामी, क्रोधी , लालची, इनसे भक्ती न होय ।
भक्ती करे कोइ सूरमा, जाती वरन कुल खोय ॥
मै अपराधी जन्म का, नख-सिख भरा विकार ।तुम दाता दु:ख भंजना, मेरी करो सम्हार ॥