I was studying about ' Schizoid personality disorder ' and was shocked to see that the traits of this mental disorder are so similar to the qualities of a yogi...
And the psychologist (during my internship in clinical psychology) said that i m kinda schizoid as i shows no interest in talking with them ( about things that are totally useless) and because my interest is only in Sai(nd not the things that interest her).
This inspired me to write something on it,I've observed many things around us which seems to be same but the reason are on the extremes, entirely different...
I wrote this few months back, now rewriting it with my new experiences im sharing it with u , my sisters n brothers;
1)
दीनता
आज महामन्द्लेश्वर अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने मेरी सबसे favorite character माँ मदालसा के चरित्र को सुनाते हुए बताया की माँ ने कहा की मै भिखमंगे पैदा नही करुंगी जो दुनिया में सबसे प्रेम, मीठे वचन , मुस्कान, सहानुभूति की भीक मांगते रहे, मै ऐसी भिखमंगी औलादे पैदा नही करुँगी जो रोय, मै रुलाने वालो को चुप कराने वाली सन्तान पैदा करूंगी।
अत: दीन एक भिखारी रुपी संसारी भी बना रहता हैं और एक भक्त भी परन्तु भेद बहुत ही बड़ा हैं ये की भक्त केवल अपने अराध्य के सामने ही दीन रहता हैं दीनता में बहुत ही रस हैं जब यह भक्ति में हो। सूरदास और भक्तराज हनुमान की भक्ति में दीनता भाव मिलता हैं। यह भक्ति में तब तो बहुत ही आवश्यक हैं अगर ऐश्वर्य भाव से भक्ति कर रहे हो
आजकल बहुत लोग खिसयानी बिल्ली खम्बा नोचे ,ऐसी बिल्ली जैसे status लगाये रहते हैं (like: nobody loves me, u will always regret leaving me n bla bla bla yes unfortunately there are many ppl like this in my whatsapp list , whom i nvr contact ) वे संसार के आगे status रुपी भीख का कटोरा फैलाय रहते हैं । हास्यप्रद। अत्यन्त हास्यप्रद।।।।
2)
स्वार्थ
स्वार्थी बनजाओ तो बहुत बढिया,(बल्कि मेने कही यह भी पढा की सबसे बड़ा परोपकार ही आत्म साक्षात्कार कर लेना हैं क्यू की तब ही आप बाकी लोगो का सच्चा कल्याण जान पाते हैं)
स्व = आत्मा जो आत्मा के अर्थ में लगा हैं ऐसा सच्चा स्वार्थी बनो , न की ऐसा जो देह को अपना मान नकली क्वालिटी का स्वार्थी हैं, जिससे न अपना कल्याण न ही दूसरो का।।।
3)
मौन
जिस मौन के कारण मुझे schizoid बोल दिया गया अब चलो उसकी कहानी देखे
शास्त्रों में अनेक स्थानों पर कामी और हरी कथा से विमुख पुरुषो का संग त्याज्य बताया गया हैं अब जब विषयी लोगो के पास भी नही जाना चाहिए तो बात करना तो दूर, जो फ़ालतू की बात में अपनी वाक शक्ति लगा देते हैं पर राम नाम लेते वक्त मुह बंद हो जाता ह एकनाथ महाराज नाथ भागवत में कहते हैं की ऐसे लोगो के मुह की दुर्गन्ध श्री कृष्ण से भी नही सही जाती।
अत: ऐसे लोगो का संग पाकर बोलना सर्वथ: शास्त्र आज्ञा के विरुद्ध हैं, अत: मौन ही मान्य हैं ।
परन्तु कुछ लोग मौन भजन कीर्तन में लगाते हैं जैसा की अभी कहा गया , इसिलिय कारण अत्यंत भिन्न और उनके फल भी।
शेष कल.......