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Author Topic: Bhakti  (Read 141804 times)

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Offline ShAivI

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  • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
Re: Bhakti
« Reply #15 on: July 27, 2015, 03:22:10 AM »
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  • ॐ साई राम !!!

    भक्ति 

    एक भक्त हर रोज प्रभु के मंगला दर्शन अपने नजदीकी मंदिर में करता है,
    और फिर अपने नित्य जीवन कार्य में लग जाता है।
    कई वर्षो तक यह नियम चलता रहा।
    एक दिन वह भक्त मंदिर पहुँचा तो श्री प्रभु के मंदिर के द्वार बंद पाये,
    वह आकुल-व्याकुल हो गया।
    "अरे ऐसा कैसे हो सकता है?"
    मंदिर के द्वार समयानुसार ही बंद किये गये थे, उन्हें मंदिर आने मे थोडी देर हूई थी
    इस वजह से उनको बहुत खेद पहुंचा।
    वह नजदीक एक जगह पर बैठ गया, उनकी आँखों से आँसू बहने लगे,
    और आंतरिक पुकार उठी।
    "ओ मुझसे कहाँ लगी इतनी देर अरे ओ साँवरिया,
    साँवरिया साँवरिया मेरे मन बसिया..."
    बहते आंसू और दिल की बैचेनी ने उन्हें तडपता दिया,
    पूरे तन में विरह की आग लग गई।
    इतने में कहीं से पुकार आयी "ओ तुने कहाँ लगायी इतनी देर,
    अरे ओ बांवरिया, बांवरिया! बांवरिया मेरे प्रिय प्यारा..."
    वह भक्त आसपास देखने लगा, कौन पुकारता है,
    पर न कोई आस और न कोई पास था।
    वह इधर उधर देखने लगा, पर वहा कोई नहीं था,
    वह बैचेन हो कर बेहोश हो गया।
    काफी देर हुई, उनके पैर को जल की धारा छूने लगी,
    और वह होश में आ गया।
    वह सोचने लगा यह जल आया कहां से?
    धीरे-धीरे उठ कर वह जल के स्त्रोत को ढूंढने लगा तो देखा कि
    वह स्त्रोत श्री प्रभु के द्वार से आ रहा था।
    इतने में फिर से आवाज आई-
    " ओ तुने क्युं लगायी इती देर, अरे ओ बांवरिया..."
    वह सोच में पड गया "यह क्या, यह कौन पुकारता है,
    यहाँ न कोई है, तो यह पुकार कैसी?"
    वह फूट फूट कर रोने लगा और कहने लगा -
    "प्रभु ओ प्रभु..." और फिर से बेहोश हो गया।
    बेहोशी में उन्होंने श्रीप्रभु के दर्शन पाये और उनका मुखडा आनंद पाने लगा,
    उनके चेहरे की आभा तेज होने लगी।
    इतने में मंदिर में आरती का घंटा बजा,
    आये हूऐ अन्य दर्शनार्थी ने उन्हें जगाया।
    उन्होंने श्रीप्रभु के जो दर्शन पाये,
    वहीं दर्शन थे जो उन्होंने बेहोशी में पाये थे।
    इतने में उनकी नजर श्रीप्रभु के नयनों पर पहुंची,
    और वह भक्त स्थिर हो गया।
    श्रीप्रभु के नयनों में आंसू.....
    वह अति गहराई में जा पहुँचा...
    ओहहह....
    जो जल मुझे स्पर्श किया था वह श्रीप्रभु के अश्रु....
    नहीं-नहीं मुझसे यह क्या हो गया?
    श्रीप्रभु को कष्ट...
    वह बहुत रोया और बार-बार क्षमा माँगने लगा।
    श्रीप्रभु ने मुस्कराते दर्शन से कहा, तुने कयुं करदी देर?
    अरे अब पल की भी न करना देर ओ मेरे बांवरिया.!



    ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!

    JAI SAI RAM !!!

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    Re: Bhakti
    « Reply #16 on: September 19, 2015, 10:41:55 AM »
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  • ॐ साई राम !!!

    भक्ति 

    एक बार ऋषि नारद भगवान विष्णु के पास गए।
    उन्होंने शिकायती लहजे में भगवान से कहा
    "पृथ्वी पर अब आपकाप्रभाव कम हो रहा है।
    धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहा,
    जो पाप कर रहे हैं उनका भला हो रहा है"।

    भगवान ने कहा नहीं, "ऐसा नहीं है, जो भी हो रहा है,
    सब नियति के मुताबिक ही हो रहा है। "

    नारद नहीं माने।

    उन्होंने कहा" मैं तो देखकर आ रहा हूं,
    पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और भला करने वाले,
    धर्म केरास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।"

    भगवान ने कहा "कोई ऐसी घटना बताओ।"

    नारद ने कहा "अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं,
    वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी।
    कोई उसे बचाने वाला नहीं था।"

    तभी एक चोर उधर से गुजरा,
    "गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुका,
    उलटे उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया।
    आगे जाकर उसे सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिल गई। "

    "थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा।
    उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की।
    पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया
    लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद
    वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया। "

    "भगवान बताइए यह कौन सा न्याय है।"

    भगवान मुस्कुराए, फिर बोले "नारद यह सही ही हुआ। "

    "जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था,
    उसकी किस्मत में तो एक आगे खजाना लिखा था
    लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरे ही मिलीं।"

    "वहीं उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा
    क्योंकि उसके भाग्य में आगे मृत्यु लिखी थी
    लेकिन गाय के बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए
    और उसे मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। "

    "इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। "

    अब नारद संतुष्ट थे |

    ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!


    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: Bhakti
    « Reply #17 on: September 21, 2015, 03:33:17 AM »
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  • ॐ साई राम !!!

    भक्ति 

    एक संत थे जिनका नाम था जगन्नाथदास महाराज।
    वे भगवान को प्रीतिपूर्वक भजते थे।
    वे जब वृद्ध हुए तो थोड़े बीमार पड़ने लगे।
    उनके मकान की ऊपरी मंजिल पर वे स्वयं और
    नीचे उनके शिष्य रहते थे। चलने फिरने में कठिनाई होती थी,
    रात को एक-दो बार बाबा शौच जाना पड़ जाता,इसलिए
    "खट-खट" की आवाज करते तो कोई शिष्य आ जाता
    और उनका हाथ पकड़कर उन्हें शौचालय ले जाता।
    बाबा की सेवा करने वाले वे शिष्य जवान लड़के थे।

    एक रात बाबा ने खट-खटाया तो कोई आया नही।
    बाबा बोले- "अरे, कोई आया नही !
    बुढापा आ गया, प्रभु !" इतने में एक युवक आया
    और बोला "बाबा ! मैं आपकी सहायता करता हूं"
    बाबा का हाथ पकड़कर वह उन्हें शौचालय मै ले गया।
    फिर हाथ-पैर धुलाकर बिस्तर पर लेटा दिया।

    जगन्नाथदासजी सोचने लगे "यह कैसा सेवक है कि इतनी जल्दी आ गया !
    और इसके चेहरे पर ये कैसा अद्भुत तेज है..
    ऐसी अस्वस्थता में भी इसके स्पर्श से अच्छा लग रहा है,
    आनंद ही आनंद आ रहा है" जाते-जाते वह युवक पुनः लौटकर
    आ गया और बोला
    "बाबा! जब भी तुम ऐसे 'खट-खट' करोगे न, तो मैं आ जाया करूंगा।
    तुम केवल विचार भी करोगे कि 'वह आ जाए' तो मैं आ जाया करूँगा"
    बाबा: "बेटा तुम्हे कैसे पता चलेगा ?"
    युवक: "मुझे पता चल जाता है"
    बाबा: "अच्छा ! रात को सोता नही क्या?"
    युवक: "हां, कभी सोता हूं, झपकी ले लेता हूं।
    मैं तो सदा सेवा में रहता हूं"

    जब भी बाबा जगन्नाथ महाराज रात को 'खट-खट' करते तो
    वह युवक झट आ जाता और बाबा की सेवा करता।
    ऐसा करते करते कई दिन बीत गए।

    जगन्नाथदासजी सोचते की 'यह लड़का सेवा करने तुरंत कैसे आ जाता है?'
    एक दिन उन्होंने उस युवक का हाथ पकड़कर पूछा की
    "बेटा ! तेरा घर किधर है?"
    युवक: "यही पास में ही है। वैसे तो सब जगह है"
    बाबा: "अरे ! ये तू क्या बोलता है, सब जगह तेरा घर है?"

    बाबा की सुंदर समझ जगी।
    उनको संदेह होने लगा कि 'कहीं ये मेरे भगवान् जगन्नाथ तो नहीं,
    जो किसी का बेटा नहीं लेकिन सबका बेटा बनने को तैयार है,
    देखते-देखते भगवान् जगन्नाथ का दिव्य विग्रह प्रकट हो गया।

    " देवाधिदेव! सर्वलोकैकनाथ !
    सभी लोकों के एकमात्र स्वामी !
    आप मेरे लिए इतना कष्ट सहते थे, रात्रि को आना,
    शौचालय ले जाना, हाथ-पैर धुलाना..प्रभु !
    जब मेरा इतना ख्याल रख रहे थे तो मेरा रोग क्यों नही मिटा दिया?"

     तब मंद मुस्कुराते हुए भगवान् जगन्नाथ बोले
    "महाराज ! तीन प्रकार के प्रारब्ध होते है:
    मंद, तीव्र और तर-तीव्र।

    मंद प्रारब्ध तो सत्कर्म से, दान-पुण्य से भक्ति से मिट जाता है।

    तीव्र प्रारब्ध अपने पुरुषार्थ और भगवान् के, संत महापुरुषों के आशीर्वाद से मिट जाता है।

    परन्तु तर - तीव्र प्रारब्ध तो मुझे भी भोगना पड़ता है।

    रामावतार मै मैंने बाली को छुपकर बाण से मारा था तो
    कृष्णावतार में उसने व्याध बनकर मेरे पैर में बाण मारा।

    तर-तीव्र प्रारब्ध सभी को भोगना पड़ता है।
    आपका रोग मिटाकर प्रारब्ध दबा दूँ,
    फिर क्या पता उसे भोगने के लिए आपको दूसरा जन्म लेना पड़े
    और तब कैसी स्थिति हो जाय?
    इससे तो अच्छा है कि आप अपना प्रारब्ध अभी भोग लें..
    और मुझे आपकी सेवा करने में किसी कष्ट का अनुभव नहीं होता-
    भक्त तो मेरे मुकुटमणि, मैं भक्तन का दास"

    "प्रभु ! प्रभु ! प्रभु ! हे देव हे देव" कहते हुए
    जगन्नाथ दास महाराज भगवान के चरणों में गिर पड़े
    और भगवन्माधुर्य में भगवत्शांति में खो गए..भगवान अंतर्धान हो गए।

    चाहे कितना ही दुख मिले भगवान को कोसने की बजाय नित्य
    भगवान का दर्शन, नाम-स्मरण और भजन करते करते चलेते जाइये.........

    ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!

    « Last Edit: September 21, 2015, 03:50:00 AM by ShAivI »

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: Bhakti
    « Reply #18 on: September 24, 2015, 03:53:03 AM »
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  • OM SAI RAM !!!

    Bhakti

    In Bhakti there are four letters.
    It's made up of "bha", "ka", "ta", and "i" (ee).
    "Bha" stands for fulfillment and nourishment.
    "Ka" stands for knowing - a means of knowing.
    "Ta" stands for redeeming, for saving, for salvation.
    "I" (ee) stands for shakti.

    So in Bhakti four things are there:

    fulfillment and nourishment;
    means of knowing;
    "tarana" or salvation; and energy.
    Bhakti saves you.
    Bhakti nourishes you.
    Bhakti is the means of knowing, the right knowledge.

    When Bhakti is there the doubts don't come.

    It gives the most energy.
    So Bhakti contains the seed all the four qualities.

    All the emotional upheavals one undergoes is because one doesn't know Bhakti.

    When all intense feelings flow in one direction that is Bhakti, it becomes Bhakti.

    What is the difference between a canal and a flooded field?
    In a flood what happens is the water does not have a bank to flow in.
    When the water flows within banks you call it "river".
    When water is scattered all over, it's all flooded.

    So, when the emotions get flooded everywhere, mind is in a mess.
    If it is intensely flowing in a direction, then that is Bhakti.
    And that is most powerful.
    A sign of Intelligence is Surrender or Bhakti.

    OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM !!!

    « Last Edit: September 29, 2015, 05:25:32 AM by ShAivI »

    JAI SAI RAM !!!

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    Re: Bhakti
    « Reply #19 on: January 17, 2016, 04:01:26 AM »
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  • ॐ साई राम !!!

    भक्ति

    भक्ति में कामना जरा भी नहीं रहती.....
    अगर भक्ति में कामना रहे, तो भक्ति का प्रश्न ही नहीं।
    अगर आपने परमात्मा से कुछ मांगा, तो चूक गए...कुछ भी मांगा तो चूक गए।
    आपने कहा कि मेरी पत्नी बीमार है ठीक हो जाए,
    कि मेरे बेटे को नौकरी नहीं लगती नौकरी लग जाए,
    तो समझो आप चूक रहे हो,अवसर को खो रहे हो...
    फिर तो यह प्रार्थना न रही, यह तो वासना हो गयी।

    भक्ति तो तभी है जब कोई भी मांग न हो, जब कोई अपेक्षा न हो,
    जब स्वयं का कोई विचार ही न हो, सब कुछ मौन में परिवर्तित हो जाये क
    हने को कुछ शेष रहे ही ना शब्द उनकी कृपा में विलीन हो जाये।
    भक्ति शुद्ध धन्यवाद है, मांग का सवाल ही नहीं है..जो दिया वह इतना ज्यादा है
    कि हम अनुगृहीत हैं। जो दिया, वह हमारी पात्रता से कहीँ अधिक है,
    जिस संसार सागर के गर्त में हम गिरे हुए है हम तो जरा सी कृपा के
    अधिकारी भी नहीँ फिर भी हम भक्ति के अधिकारी हुए ये उनकी कृपा नही तो
    और क्या है।ऐसी कृतज्ञता का नाम ही तो भक्ति है, भक्ति सौ प्रतिशत प्रीति है..!

    ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!


    JAI SAI RAM !!!

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    Re: Bhakti
    « Reply #20 on: April 13, 2016, 01:53:15 AM »
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  • OM SAI RAM !!!

    What is the true nature of a devotee?
    A powerful thought to ponder upon,
    quoting a conversation
    between Lord Narayana and Sage Narada.


    Once Lord Narayana told Sage Narada,
    “Narada, there are many devotees like you.
    You find them in every house and in every place.
    They will offer worship and chant My Name.
    But this is not true devotion.
    True devotion is that which finds expression
    in every thought, word and deed of man.

    Just as the food partaken gets digested
    in the stomach and its essence is supplied
    to all limbs of the body, likewise, when you fill
    your heart with the divine name, its effect should
    spread to your eyes, ears, tongue, hands, feet, etc.
    When the sacred effect of the divine name spreads
    to your eyes, you will develop sacred vision.

    Likewise your speech will become sacred,
    and you will listen only to sacred words.
    Your hands will undertake sacred deeds
    and your feet will take you to sacred places.
    Thus a true devotee will sanctify each of
    his limbs with sacred activity.”.

    OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM !!!


    JAI SAI RAM !!!

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    आस्था
    « Reply #21 on: May 29, 2016, 07:22:57 AM »
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  • ॐ साई राम !!!

    आस्था

    एक व्यक्ति बहुत परेशान था।
    उसके दोस्त ने उसे सलाह दी कि कृष्ण भगवान की पूजा शुरू कर दो।
    उसने एक कृष्ण भगवान की मूर्ति घर लाकर
    उसकी पूजा करना शुरू कर दी।

    कई साल बीत गए लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।

    एक दूसरे मित्र ने कहा कि तू काली माँ कीपूजा कर,
    जरूर तुम्हारे दुख दूर होंगे।

    अगले ही दिन वो एक काली माँ की मूर्ति घर ले आया।

    कृष्ण भगवान की मूर्ति मंदिर के ऊपर बने एक टांण पर रख दी
    और काली माँ की मूर्ति मंदिर में रखकर पूजा शुरू कर दी।

    कई दिन बाद उसके दिमाग में ख्याल आया कि
    जो अगरबत्ती, धूपबत्ती काली जी को जलाता हूँ,
    उसे तो श्रीकृष्ण जी को धुँआ लगता होगा
    ऐसा करता हूँ कि श्रीकृष्ण का मुँह बाँध देता हूँ।

    जैसे ही वो ऊपर चढ़कर श्रीकृष्ण का मुँह बाँधने लगा
    कृष्ण भगवान ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    वो हैरान रह गया और भगवान से पूछा -
    इतने वर्षों से पूजाकर रहा था तब नहीं आए!
    आज कैसे प्रकट हो गए?

    भगवान श्रीकृष्ण ने समझाते हुए कहा,
    "आज तक तू एक मूर्ति समझकर मेरी पूजा करता था।
    किन्तु आज तुम्हें एहसास था कि कृष्ण साँस ले रहा है
    इसलिए मैं आ गया।"

    भगवान तो सर्वत्र हैं, कण-कण में हैं।
    जरूरत है तो सिर्फ आस्था रखने की..!

    ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
    « Last Edit: May 29, 2016, 09:04:03 AM by ShAivI »

    JAI SAI RAM !!!

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    Re: Bhakti
    « Reply #22 on: October 03, 2016, 07:37:10 AM »
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    भक्ति क्या है जानिए

    एक सासु माँ और बहू थी।
    सासु माँ हर रोज ठाकुर जी पूरे नियम और श्रद्धा के साथ सेवा करती थी। .
    एक दिन शरद रितु मेँ सासु माँ को किसी कारण वश शहर से बाहर जाना पडा।

    सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी को साथ ले जाने से रास्ते मेँ
    उनकी सेवा-पूजा नियम से नहीँ हो सकेँगी। सासु माँ ने विचार किया के
    ठाकुर जी की सेवा का कार्य अब बहु को देना पड़ेगा लेकिन बहु को तो
    कोई अक्कल है ही नहीँ के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी हैँ।

    सासु माँ ने बहु ने बुलाया ओर समझाया के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है।
    सासु माँ ने बहु को समझाया के बहु मैँ यात्रा पर जा रही हूँ
    और अब ठाकुर जी की सेवा पूजा का सारा कार्य तुमको करना है।

    सासु माँ ने बहु को समझाया देख ऐसे तीन बार घंटी बजाकर सुबह ठाकुर जी को जगाना।
    फिर ठाकुर जी को मंगल भोग कराना।
    फिर ठाकुर जी स्नान करवाना।
    ठाकुर जी को कपड़े पहनाना।
    कैसे ठाकुर जी को लाड लडाना है।
    फिर ठाकुर जी का श्रृंगार करना ओर
    फिर ठाकुर जी को दर्पण दिखाना।
    दर्पण मेँ ठाकुर जी का हंस्ता हुआ मुख देखना बाद मेँ ठाकुर जी राजभोग लगाना।

    इस तरह सासु माँ बहु को सारे सेवा नियम समझाकर यात्रा पर चली गई।

    अब बहु ने ठाकुर जी की सेवा कार्य उसी प्रकार शुरुकिया जैसा सासु माँ ने समझाया था।
    ठाकुर जी को जगाया नहलाया कपड़े पहनाये श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया।

    सासु माँ ने कहा था की दर्पण मेँ ठाकुर जी का हस्ता हुआ देखकर ही राजभोग लगाना।
    दर्पण मेँ ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख ना देखकर बहु को बड़ा आशर्चय हुआ।
    बहु ने विचार किया शायद मुझसे सेवा मेँ कही कोई गलती हो गई हैँ
    तभी दर्पण मे ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिख रहा।
    बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया दर्पण दिखाया।
    लेकिन ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा।
    बहु ने फिर विचार किया की शायद फिर से कुछ गलती हो गई।
    बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया दर्पण दिखाया।
    जब ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नही दिखा बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया ।
    ऐसे करते करते बहु ने ठाकुर जी को 12 बार स्नान किया।
    हर बार दर्पण दिखाया मगर ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा।
    अब बहु ने 13वी बार फिर से ठाकुर जी को नहलाने की तैयारी की।

    अब ठाकुर जी ने विचार किया की जो इसको हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा तो
    ये तो आज पूरा दिन नहलाती रहेगी।

    अब बहु ने ठाकुर जी को नहलाया कपड़े पहनाये श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया।
    अब बहु ने जैसे ही ठाकुर जी को दर्पण दिखाया तो
    ठाकुर जी अपनी मनमोहनी मंद मंद मुस्कान से हंसे।
    बहु को संतोष हुआ की अब ठाकुर जी ने मेरी सेवा स्वीकार करी।

    अब यह रोज का नियम बन गया ठाकुर जी रोज हंसते।
    सेवा करते करते अब तो ऐसा हो गया के बहु जब भी ठाकुर जी के
    कमरे मेँ जाती बहु को देखकर ठाकुर जी हँसने लगते।

    कुछ समय बाद सासु माँ वापस आ गई।
    सासु माँ ने ठाकुर जी से कहा की प्रभु क्षमा करना अगर बहु से
    आपकी सेवा मेँ कोई कमी रह गई हो तो अब मैँ आ गई हूँ
    आपकी सेवा पूजा बड़े ध्यान से करुंगी।
    तभी सासु माँ ने देखा की ठाकुर जी हंसे और बोले की
    मैय्या आपकी सेवा भाव मेँ कोई कमी नहीँ हैँ
    आप बहुत सुंदर सेवा करती हैँ लेकिन मैय्या दर्पण दिखाने की सेवा तो
    आपकी बहु से ही करवानी है इस बहाने मेँ हँस तो लेता हूँ।




    ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
    « Last Edit: October 03, 2016, 07:38:46 AM by ShAivI »

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    भगवान् सबके हैं और सबमें हैं
    « Reply #23 on: November 23, 2016, 01:50:31 AM »
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  • ॐ साई राम !!!

    भगवान् सबके हैं और सबमें हैं

    भगवान् सबके हैं और सबमें हैं,
    पर मनुष्य उनसे विमुख हो गया है ।
    संसार रात-दिन नष्ट होता जा रहा है,
    फिर भी वह उसको अपना मानता है
    और समझता है कि मेरे को संसार मिल गया ।

    भगवान् कभी बिछुड़ते हैं ही नहीं, पर उनके लिये कहता है कि
    वे हैं ही नहीं, मिलते हैं ही नहीं ;
    भगवान्से मिलना तो बहुत कठिन है,
    पर भगवान् तो सदा मिले हुए ही रहते हैं । भाई !

    आप अपनी दृष्टि उधर डालते ही नहीं, उधर देखते ही नहीं ।
    जहाँ-जहाँ आप देखते हो , वहाँ-वहाँ भगवान् मौजूद हैं ।
    अगर यह बात स्वीकार कर लो, मान लो कि सब देश में,
    सब काल में, सब वस्तुओं में, सम्पूर्ण घटनाओं में, सम्पूर्ण परिस्थितियों में,
    सम्पूर्ण क्रियाओं में भगवान् हैं, तो भगवान् दीखने लग जायेंगे ।
    दृढ़तासे मानोगे तो दीखेंगे, संदेह होगा तो नहीं दीखेंगे ।
    जितना मानोगे, उतना लाभ जरूर होगा ।
    दृढ़ता से मान लो तो छिप ही नहीं सकते भगवान् !

    क्योंकि‒

    यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
    तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥
    (गीता ६ । ३०)

    ‘जो सब में मेरे को देखता है और
    सब को मेरे अन्तर्गत देखता है,
    मैं उसके लिये अदृश्य नहीं होता और
    वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।’

    जहाँ देखें, जब देखें, जिस देश में देखें, वहीं भगवान् हैं ।
    परन्तु जहाँ राग-द्वेष होंगे, वहाँ भगवान् नहीं दीखेंगे ।
    भगवान् के दीखने में राग-द्वेष ही बाधक हैं ।
    जहाँ अनुकूलता मान लेंगे, वहाँ राग हो जायगा और
    जहाँ प्रतिकूलता मान लेंगे, वहाँ द्वेष हो जायगा ।

    एक आदमी की दो बेटियों थीं ।
    दोनों बेटियाँ पास-पास गाँव में ब्याही गयी थीं ।
    एक बेटी वालों का खेती का काम था
    और एक का कुम्हार का काम था ।

    वह आदमी उस बेटी के यहाँ गया, जो खेतीका काम करती थी
    और उससे पूछा कि क्या ढंग है बेटी ?

    उसने कहा ‒ पिताजी ! अगर पाँच-सात दिनों में वर्षा नहीं हुई तो
    खेती सूख जायगी, कुछ नहीं होगा ।

    अब वह दूसरी बेटीके यहाँ गया और उससे पूछा कि क्या ढंग है ?
    तो वह बोली ‒ पिताजी ! अगर पाँच-सात दिनों में वर्षा आ गयी
    तो कुछ नहीं होगा;
    क्यों कि मिट्टीके घड़े धूप में रखे हैं और कच्चे घड़ों पर
    यदि वर्षा हो जायगी तो सब मिट्टी हो जायगी !

    अब आप लोग बतायें कि भगवान् वर्षा करें या न करें !
    दोनों एक आदमी की बेटियों हैं ।

    माता-पिता सदा बेटी का भला चाहते हैं ।
    अब करें क्या ?

    एक ने वर्षा होना अनुकूल मान लिया और
    एक ने वर्षा होना प्रतिकूल मान लिया ।
    एक ने वर्षा न होना अनुकूल मान लिया और
    एक ने वर्षा न होना प्रतिकूल मान लिया ।

    उन्होंने वर्षा होने को ठीक - बेठीक मान लिया ।
    परन्तु वर्षा न ठीक है न बेठीक है ।
    वर्षा होने वाली होगी तो होगी ही ।
    अगर कोई वर्षा होने को ठीक मानता है
    तो उसका वर्षा में ‘राग’ हो गया
    और वर्षा होने को ठीक नहीं मानता तो
    उसका वर्षा में ‘द्वेष’ हो गया ।

    ऐसे ही यह संसार तो एक - सा है, पर इस में ठीक और
    बेठीक‒ये दो मान्यताएँ कर लीं तो फँस गये !

    ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!

    JAI SAI RAM !!!

     


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