हरी ॐ
साईं राम
भगवान के अनंत नाम हैं
अनंत स्वरुप हैं
अनंत लीलाए हैं
उसका कभी जन्म ही नही हुआ यह बात ही सोचने में इतनी अद्भुत हैं
वह भगवान
जो हमेशा से हैं
और सदा रहेगा।।।।।
हांजी भाइयो और बहनों, सोचते रहिये, ऐसा कैसे सम्भव हैं। उसका स्वरुप हमारे चिन्तन सामर्थ्य से सर्वथा परे हैं।
विशेषण के पांच प्रकार हैं:-विशेषण
(१) गुणवाचक विशेषण
(२) संख्यावाचक विशेषण
(३) परिमाण-बोधक विशेषण, और
(४) सार्वनामिक विशेषण।
देखा जाए तो ये सभी विशेषण हरी नाम में प्रयोग किये जाते हैं।
कुछ उदाहरण - चतुर्भुज, अनंत, करुनानिधान, छिन्नसंशय, उदार, शेष, अयोनिज आदि।
यहाँ कुछ मेरे प्रिय विशेषण अथवा नाम जो बहुत गहन अर्थ रखते हैं
:-
आत्माराम
सर्वसमर्थ
भक्तवत्सल
सर्वज्ञ
अच्युत
ज्ञानमूर्ति
चैतन्यघन
अनंत
नित्यानंद
अज्ञेय
मायातीत
गुणातीत
अनादि
अजा
भर्ता
वह माया से परे हैं, गुणों से परे हैं हम अपने त्रिगुण दोषों के कारण उसपर माया का आरोप करते हैं जेसे एक ने बड़े गर्व से मुझसे कहा मै तो भगवान वगरह नि मानता, एक ने कहा भगवान् कहता हैं अपने बच्चे सम्भालो पहले एक औरत ने तो यहाँ तक कह दिया की राम सीता को कितने दुःख उठाने पड़े , सब अपनी बुद्धि के स्तर पर भगवद लीला समझते हैं। कोई उससे मोहित हो जाता हैं तो कोई उसको रहस्यमयी मानकर उसपर टिप्पणी करने में संकोच करता हैं।
जो भी हो यह तो निश्चित हैं की भगवान की लीलाओं के अनुसार उनके नाम रख दिए गये, जिसे जो नाम गुण लीला पसंद आये वह उसका चिन्तन मनन स्मरण करे, सभी नाम उनके हैं और उनका अपना कोई नाम भी नहीं
सभी उन्ही के स्वरुप हैं और उनका अपना कोई निश्चित स्वरुप भी नही। वह अव्यक्त हैं अगोचर हैं पर हमारा एकमेव आश्रय हैं
जय साईं राम
हम उसके वही हमारा हैं
न दूजा कोई सहारा हैं
उसे पल पल याद जो करते हैं
छिप छिप कर उसके ख्वाबो में खो जाते हैं
ढोंग रचते हैं अभक्त बनने का
सुनते चुप चाप भगवान को दी गाली
मै भी तुम में से ही हूँ
दिखाते रहो
संसारियो के संग hi हेल्लो करो न करो
बाबा हमारा बैठा हैं
उसपर गर भरोसा हैं
गधा को बाप बनाने की जरुरत नही
मूर्खो की सभा में ज्ञान वैराग्य भक्ति प्रकट करने की जरूरत नही