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Author Topic: स्वयं को अच्छा साबित करने के कारण ही आज तक हम फसे हुए हैं  (Read 5693 times)

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Offline sai ji ka narad muni

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  • दाता एक साईं भिखारी सारी दुनिया
हरी ॐ
जय साईं राम
हर हर महादेव


हम आज हैं इसका मतलब हम पहले भी थे
क्या कारण हैं जो हम आज तक यही मृत्युलोक में फसे हुए हैं??
हमारा स्वभाव ही हैं की जब भी कोई हमारी कमी बताता हैं हम defensiveहो जाते हैं
हम आरती में तो गाते हैं
'मै मूर्ख खल कामी
मै सेवक तुम स्वामी"
परन्तु अगर कोई हमे मूर्ख कहदे
कामी  कहदे
तो घूसे चल जाते हैं
अगर कोई सामने जवाब न भी दे पाए तो भी मन में सदा के लिय द्वेष पाल लेते हैं
गुस्सेल आदमी से कहदो की आप जरा गुस्सा ज्यादा करते हैं तो वह गरज कर कहता हैं
क्या मै तुम्हारे दांत तोड़ दूंगा, मै गुस्सेल हूँ???
स्वयं को पवित्र और देवता साबित करते करते ये जीवन बीत गया पर हाथ कुछ न लगा।।।
साधको में भी स्वयं को भक्त ग्यानी दिखाने की होड़ लग जाती हैं,
साधन करने वाला अहंकार में रहता हैं की मै इतनी पूजा करता हूँ
साधन न करने वाला इस अहंकार में हैं की मै तो कोई पूजा वगरह नही करता बस मन में भगवान रखता हूँ
चरित्रहीन भी इस अहंकार में हैं की मै बहुत मॉडर्न हूँ advanced हूँ
चरित्रवान इस अहंकार में हैं की .... क्या?? नही नही , सच्चे चरित्रवान को कभी अहंकार नही होता।
इन सब की जननी हैं "देहबुद्धी"
इसिलिय संतो ने दैन्य का अदर्श स्थापित किया की हम समझ सके।
Let's get practical now, अगर आज हम दुनिया में दीन भाव से रहे तो, तो ये दुनिया हमारे सर पर बैठकर नाचेगी,
इस बात से एक कथानक याद आ रहा हैं
 " ek sadhak ne ek siddhi prapt ki , ki uski ek khoon ki bood se ek bachhe ka sukhe ka rog / bimari thik ho jaayegi, to vo village m logo ko btata h ki mene ye siddhi prapt ki h jan kalyaan k liy to log uske pas aane lge aur bachhe thik hone lge..agle din uske bht lambi line lag gai ab sadhu ko kamjori aane lagi to usne kaha ab aur khoon ni de skta m...to bhid ne us saadhu ko chaaro aur se gher liya aur sbne ek ek sui chubho di khoon nikaalne k liy...."

यही हालत होती हैं दुनिया में दीन बनने से इसिलिय आचरण भले ही कैसा हो परन्तु भीतर से अंत: करन में अपनी स्थिति के बारे में कोई गलत फहमी नही होनी चाहिए।।।
अपने को अच्छा समझना , सही समझना , अपनी सोच को सबसे परिपक्व मानना हमारा स्वाभाव बन चुका होता हैं। पर सोचने की बात हैं यदि हम इतने ही अच्छे होते तो क्या आज परमेश्वर की गोद में न होते!!!
Agr eknaath ji ki bhasha m bolu to sachha sadhak na kisi ki taarif krta h na kisi ki ninda, sadhak na tarif se khush hota h na ninda se dukhi.us pavitraatma ne to ek mlechh k thookne p bhi kuch nahi kaha.... isiliy unki baat hm kya kare... par haan apni taarif aur ninda sunkar apna dainya yaad aajaye aisa to kr hi skte hain.
Grihashti hokr agr hm kisi ki taarif na kare to sbhi hmse doori bna lenge  ( jo ki jyadatar logo ko psnd ni hoga) isiliy shayad grishthaashram sbse kathin h
...jisne eknathi achhe se pdhli h uske baski pati / ptni se romance krna kaha rha  , use to fir eknaath ki baat hi yaad ati h... jisne parikari devi ka pravachn sun liya fir vo ma baap ghrvaalo m kese aaskt rh skta h... aashram koi sa bhi ho apne ko achha maanna aur manvaane ki koshish krna fasa deta h... q ki sach bhi ye hi h ki jiv vakai tuchh h...
जिस कर्म से भगवद प्रेम और भक्ति बढ़े वही सार्थक उद्योग हैं।
ॐ साईं राम

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