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सरल है भक्तिमार्ग
परम लक्ष्य की सिद्धि के लिए मार्ग कौन श्रेष्ठ है, ज्ञान या भक्ति? गोस्वामी तुलसीदास का स्पष्ट मत है कि ज्ञानमार्गकी तुलना में भक्तिमार्ग अधिक सरल है, ऋजु है, अत:सामान्य साधक के लिए यही मार्ग वरेण्य है। मानस के उत्तर काण्ड में गोस्वामी जी लिखते हैं: जीव ईश्वर का ही निर्मल है। परन्तु माया के बंधन में फंसकर उसकी गति पिंजरे में पडे तोते और मदारी की डोर से बंधे बंदर जैसी हो गई है। अब प्रश्न यह है कि जीव माया के बंधन से छूटे कैसे? इसके लिए दो मार्ग हैं, ज्ञान और भक्ति। ज्ञानमार्गअति दुर्गम और दुरूह है। भक्तिमार्ग अति सुगम है। ज्ञान और भक्तिमार्ग का अन्तर स्पष्ट करने के लिए गोस्वामी जी एक लम्बा रूपक बांधते हैं।
माया के कारण जीव के हृदय में घोर अंधकार भरा रहता है। घने अंधकार के कारण जीव माया के बंधन की गांठ सुलझाने में अक्षम सिद्ध होता है। बंधन की गांठ खोलने के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है। प्रकाश पाने के लिए जीव को बडी लम्बी साधना करनी पडती है। ईश्वर की कृपा से जीव के हृदय में श्रद्धा रूपी गाय का समागम होता है। यह गाय जप-तप रूपी घास चर करके सद्भाव रूपी बछडे को जन्म देती है। सद्भाव रूपी बछडा जब श्रद्धा रूपी गाय के स्तन को स्पर्श करता है तो वह पेन्हाजाती है। पेन्हानेके पश्चात् जीव का निर्मल मन रूपी दोग्धाविश्वास रूपी पात्र में गाय को दुहता है। तदनन्तर ज्ञानमार्गका पथिक जीव धर्मरूपीइस दुग्ध को निष्कामताकी अग्नि में औटाताहै। औटायाहुआ धर्मदुग्धजीव के क्षमा और संतोष रूपी शीतल वायु के स्पर्श से ठंडा होता है। तत्पश्चात् जीव इस दुग्ध में धैर्य रूपी जामन डालकर इसे जमाता है। फिर वह दही को पुनीत विचार रूपी मथानी से मथता है। मथानी को चलाने के लिए जीव इसे इन्द्रिय निग्रह एवं सत्याग्रह रूपी रस्सियों से बांधता है। ऐसी मथानी से धर्मदुग्धके मथने से जीव को वैराग्यरूपीनवनीत (मक्खन) की प्राप्ति होती है। नवनीत रूपी वैराग्य की प्राप्ति के उपरान्त जीव योगरूपीअग्नि को प्रकट करता है और इसी अग्नि की ज्वाला में अपने सभी पूर्व शुभाशुभ कमरें को कर देता है। इतना सब करने के उपरान्त जीव को विज्ञान रूपी बुद्धिघृतकी सम्प्राप्ति होती है। जीव इस बुद्धिघृतको चित्त रूपी दीये में डालकर इसे समता रूपी दिऔटेपर स्थापित करता है। साथ ही जीव अपने चित्त रूपी कपास से सत, रज, तम इन तीन गुणों को निष्कासित करके, जागृति, स्वप्न एवं सुसुप्तिअवस्थाओं से ऊपर उठकर दीपक में डालने के लिए तुरीयावस्था की बाती बनाता है। इतना सब कर्मकाण्ड करने के पश्चात् जीव विज्ञान रूपी दीपक को प्रज्वलित कर देता है। इस दीपक के आसपास मंडराते काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह मात्सर्य के कीट-पतंग जलकर भस्म हो जाते हैं।
इसी दीपक के प्रकाश में जीव को सहसा यह अनुभूति होती है कि वह स्वयं ब्रह्म है (सोऽहमस्मि)। उसके हृदय का माया जनित संपूर्ण अंधकार उच्छिन्न हो जाता है। सोऽहमस्मिजीव का सारा भ्रम नष्ट कर देती है। अविद्या और अज्ञान की पूरी बारात चित्तवृत्तिओले की भांति गल जाती है। ज्ञान के इसी प्रकाश में जीव की बुद्धि मायाजनितबंधन की उन गांठों को खोलने का प्रयास करती है, जिनके कारण वह भवचक्र में पडा हुआ है। परंतु ज्यों ही जीव इस कार्य में प्रवृत्त होता है, माया उसके सम्मुख भांति-भांति के विघ्न और प्रलोभन लेकर उपस्थित होती है। माया जीव को ऋद्धि-सिद्धि के मोहजालमें फंसाने का प्रयास करती है। माया के लम्बे हाथ दीपक तक पहुंच जाते हैं। वह अपने आंचल की हवा से जीव के चित्त में प्रज्वलित विज्ञानदीपको बुझा देती है। जीव यदि एकनिष्ठभाव में अपनी साधना में प्रवृत्त रहता है तो वह ऋद्धि-सिद्धि के आकर्षण में नहीं फंसता। वह माया की आंखों से आंखें नहीं मिलाता। ऐसा ही विरल जीव अपने लक्ष्य पर आरूढ हो पाता है। ऐसा भी होता है कि माया के असफल होने की स्थित में देवगण जीव को लक्ष्य-भ्रष्ट करने के लिए भांति-भांति के उत्पात मचाते हैं। पांचों ज्ञानेन्द्रियोंके द्वारों पर देवताओं का वास रहता है। देवता जब देखते हैं कि बाहर से विषयों की आंधी जीव की ओर बढ रही है तो वे ज्ञानेन्द्रियोंके गवाक्षखोल देते हैं। विषय की आंधी जीव के चित्त में पहुंचकर हठात् उसके विज्ञान दीप को बुझा देती है। जीव माया सृजित बंधन की गांठ सुलझाने में सफल नहीं हो पाता। इस प्रकार जीव पुन:भवचक्र में गिर जाता है और नाना प्रकार के सांसारिक दु:खों को भोगने के लिए बाध्य हो जाता है। गोस्वामी जी ऐसा मानते हैं कि ज्ञानमार्गपर चलना तलवार की धार पर चलने जैसा है। थोडी सी असावधानी हुई कि जीव साधना-क्षेत्र से बाहर हो जाता है। जो जीव एकनिष्ठभाव से ज्ञानमार्गका अनुसरण करता है, उसी को कैवल्य पद की प्राप्ति होती है।
ज्ञान मार्ग में विघ्न बाधाएं बहुत हैं। भक्तिमार्ग सारी विघ्न-बाधाओं से मुक्त है। भक्तिमार्गानुगामीजीव को भक्तिपथपर सतत् अग्रसर होने के लिए रामनामरूपीचिन्तामणि से निरन्तर प्रकाश मिलता है। जीव को प्रकाश के लिए दीपक, घी, बाती जैसी सामग्री की आवश्यकता नहीं पडती। चिन्तामणि के पास काम, क्रोध जैसी दुष्ट प्रवृत्तियां फटकती तक नहीं। लोभ की आंधी भी चिन्तामणि के प्रकाश को बुझा नहीं सकती। चिन्तामणि अज्ञान के सघन अंधकार को मिटाकर निरन्तर प्रकाश ही प्रकाश बिखेरती रहती है। जिस जीव के हृदय में रामभक्तिरूपीचिन्तामणि विद्यमान है, वह सांसारिक क्लेशों से सर्वथा मुक्त हो जाता है। जीव को चिन्तामणि की प्राप्ति ईश्वरीय कृपा से ही होती है। गोस्वामी जी के शब्दों में :
राम भगतिचिन्तामणि सुंदर। बसइगरुड जाके उर अंतर।। परम प्रकासरूप दिन राती।नहिंकछुचहियदिया घृत बाती।। सेवक सेव्य भाव बिनुभव न तरियउरगारि।भजहुरामपदपंकज अससिद्धान्त विचारि।।
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संस्कारवान व्यक्ति सबको प्रिय
सभ्य समाज में रहने वाले व्यक्ति की पहचान के लिए उसका संस्कारवान होना आवश्यक है। अच्छे संस्कार ही पर्याय है सभ्यता का। यदि हम देखने में सुंदर हैं, लेकिन संस्कारों से शून्य अर्थात दरिद्र है तो हमारी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है।
संस्कारों के माध्यम से आदर्शो के पुंज एकत्र किए जा सकते हैं। सज्जनता हमें अपने आचरण से दीर्घकाल तक जीवित रखती है। संस्कारवान व्यक्ति जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना करने की सामर्थ्य रखता है। इसके साथ ही हर व्यक्ति भी सुस्कारित मानव को ही पसंद करते है नैतिकता का सीधा संबंध आत्मबल से है जो संस्कारों से ही निर्मित होती है। हमारे गुण, कर्म, स्वभाव में घुले-मिले कुसंस्कारों को हमारे द्वारा अर्जित संस्कारों की शक्ति ही उन्हें अप्रभावित करती है। आत्मा परमात्मा का ही स्वरूप है, जो हमारे शरीर रूपी मंदिर में सदैव विराजमान रहते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने आचरण से किसी भी तरह आत्मा को कलुषित न होने दें। हमसे जुडी हुई हमारी सामाजिक जिम्मेदारियां भी है जिनका निर्वहन भी हम अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के माध्यम से करने में तभी समर्थ होंगे जब हम सुसंस्कारिता के क्षेत्र में संपन्न होंगे। संस्कार हमारे आत्मबल का निर्माण करते हैं। शालीनता, सज्जनता, सहृदयता, उदारता, दयालुता जैसे सद्गुण सुसंस्कारिता के लक्षण हैं। आधुनिकता के इस युग में संस्कारों की मजबूत लकीर धूमिल होती जा रही है, हमें इसे बचाना होगा। इस दिशा में विवेकशील लोगों को आगे आना होगा। यह मानवता, नैतिकता और समाज के विकास के लिए अति आवश्यकता है। सामाजिक संतुलन सुसंस्कारिता के आधार पर ही कायम रखा जा सकता है अन्यथा सर्वत्र अराजकता का ही बोल बाला हो जाएगा, जो एक सभ्य समाज के लिए असहनीय बात होगी, क्योंकि हर कोई सुख, शांति, प्रगति और सम्मान चाहता है जो संस्कारों के द्वारा ही संभव है। संस्कार हमें नैतिकता की शिक्षा देते हैं। मानवता इसी से पोषित होती है। चरित्र निर्माण के लिए संस्कारों की पृष्ठभूमि निर्मित करनी होती है। रहन-सहन का तरीका, जीवन जीने की कला, लोकव्यवहार आदि सदाचार से संबंधित बातें है जो हमें जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करती है। समाज में भाई चारा और आत्मीयता का विस्तार भी नैतिकता और मानवता के माध्यम से ही संभव है। यदि हम सुखी होंगे तो हमारे पडोसी भी सुखी होंगे इस भावना को यदि हम अपने परिवार से ही विकसित करेंगे तो निश्चय ही आत्मीयता का विस्तार होगा।
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जय सांई राम।।।
"बाबा-भक्त कहलाने का अधिकारी वही है, जो दूसरों के कष्ट को समझे!"
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
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ramesh bhai
sach bola aapney jo dusro ke dookh na samjhey wo bhala bhagwan ko kaha samjh payega . kyonki permatma har insan main hai . or jo insan ko hurt ya dookh de wo us sakashat ishwer ko kasht deta hai
hey perm pita permatma tery cherno main vinti hai bhul ke bhi kise ka dil na dookhayoon ,
jai sai ram
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~~~ॐ सांई राम ~~~
~~साईं नाम मुद मंगलकारी,विघ्न हरे सब पातकहारी,~~
~~साईं नाम है सबसे ऊंचा,नाम शक्ती शुभ ज्ञान समूचा ।~~
~~~श्री सच्चीदानंद समर्थ सदगुरू सांई नाथ महाराज की जय ~~~
~~~जय सांई राम ~~~
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शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति
-स्वामी ज्ञानानन्द
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जय सांई राम।।।
महात्मा बुद्ध किसी उपवन में विश्राम कर रहे थे। तभी बच्चों का एक झुंड आया और पेड़ पर पत्थर मारकर आम गिराने लगा। एक पत्थर बुद्ध के सिर पर लगा और उससे खून बहने लगा। बुद्ध की आंखों में आंसू आ गए। बच्चों ने देखा तो भयभीत हो गए। उन्हें लगा कि अब बुद्ध उन्हें भला-बुरा कहेंगे। बच्चों ने उनके चरण पकड़ लिए और उनसे क्षमा याचना करने लगे। उनमें से एक ने कहा, ‘हमसे भारी भूल हो गई है। हमने आपको मारकर रुला दिया।’ इस पर बुद्ध ने कहा, ‘बच्चों, मैं इसलिए दुखी हूं कि तुम ने आम के पेड़ पर पत्थर मारा तो पेड़ ने बदले में तुम्हें मीठे फल दिए, लेकिन मुझे मारने पर मैं तुम्हें केवल भय दे सका।’
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
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मोहमाया है केवल धोखा
यदि मनुष्य अपने भीतर गहराई से यह प्रश्न पूछे कि उसे किस चीज की तलाश है तो भीतर गहराई से एक ही उत्तर आएगा कि सुख व शांति की तलाश है। मनुष्य सोचता है कि ज्यादा धन कमा लूंगा तो मै सुखी हो जाऊंगा और ज्यादा यश कमा लूंगा तो मै सुखी हो जाऊंगा। बहुत कमा लेने पर भी जब वह सुख, शांति नही पाता तो मन कहता है कि सुख इसलिए नही मिला कि श्रम मे कही कमी थी और शक्ति से दौडो और धन इकट्ठा करो, जबकि केवल धन कमाने से ही सुख प्राप्त नही होता क्योंकी जिन वस्तुओ मे व्यक्ती सुख तलाश रहा है वहां सुख है ही नही। सांसारिक मोह माया तो केवल धोखा है।अगर हम भीतर से खुश है तो हमे रेगिस्तान मे भी फूल खिले हुए महसूस होगे और अगर हम दुखी है तो हमे फूलो के बगीचे मे चारों ओर कांटे ही कांटे नजर आएंगे। हम खुश है तो बाहर चिलचिलाती धूप भी अच्छी है और हम दुखी है तो बाहर का मौसम चाहे कितना खुशगवार हो तो भी हमे पतझड की तरह लगता है। क्योंकी जैसा हम भीतर से महसूस करते है, वैसा ही हमे संसार नजर आता है। इससे एक बात तो सिद्ध होती है कि सुख भीतर से आता है बाहर से नही।जब हम निद्रा से उठते है तो ताजगी अनुभव करते है क्योंकी धन कमाने की, यश मिलने की यात्रा ऊर्जा की बहिर्यात्रा है और निद्रा ऊर्जा की अंतर्यात्रा है। बाहर का जितना बडा ब्रह्माण्ड है उतना ही बडा भीतर का ब्रह्माण्ड है। हम मध्य मे खडे है। बाहर की तरफ यात्रा करेगे, तो केवल यात्रा ही यात्रा है पहुंचेगे कही नही क्योंकी मंजिल बाहर नही भीतर है।दूसरी बात हम सोचते है कि हम सुख की तलाश मे भटक रहे है पर यह गलत है। व्यक्ती को सुख की तलाश मे नही बल्कि उसे आनंद की तलाश मे भटकना चाहिए। चूंकि हमारा पंचभूतो से बना शरीर इंद्रियो से जुडा है इसलिए हम उसे ही सुख समझते है। यह देह तो केवल एक वस्त्र की भांति है परन्तु जैसे ही भीतर की यात्रा शुरू होती है वैसे-वैसे बाहर की परतें छूटती जाती है और हम अपने स्वरूप को पहचानने लगते है।
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मन को इतनी छूट न दो
कि वह कहते-कहते
तुम्हारी सुनना ही बंद कर दे।
अगर उसकी सुनने लगो इतनी
तो यह न हो
कि बोलना ही वह तुम्हारा बंद कर दे।
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जय सांई राम।।।
श्री सांई सच्चरित्र का सार यही तो है कि आपका सदा ही प्रेमपूर्वक स्मरण करना चाहिये; क्योंकि आप सदैव भक्तों के कल्याणार्थ हमेशा त्तपर तथा आत्मलीन रहते है। आपका भजन करना ही जीवन और मृत्यु की पहेली को हल करना है। साधनाओं में यह अति श्रेष्ठ तथा सरल साधना है।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
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ॐ सांई राम~~~
वाणी से बढ़ कर निशिचत चरित्र की परिचायिका और कोई चीज नहीं है~~~
जय सांई राम~~~
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ॐ सांई राम~~~
सतसंग की पाचँ बेटियाँ और एक बेटा है~~
बेटियाँ~~~ मति , कीर्ती , गति , बुद्धि , भलाई ~~~
बेटा~~~ विवेक~~~
जय सांई राम~~~
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माँ का महत्व
१ आसमान ने कहा ....माँ एक इन्द्रधनुष है ,जिसमें सभी रंग समाये हुए हैं
२ शायर ने कहा ....माँ एक ऐसी गजल है जो सबके दिल में उतरती चली जाती है
३ माली ने कहा ....माँ एक दिलकश फूल है जो पूरे गुलशन को मह्काता है
४ औलाद ने कहा ....माँ ममता का अनमोल खजाना है जो हर दिल पर कुर्बान है
५ वाल्मीकि जी ने कहा ....माता और मातर भूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है
६ वेद व्यास जी ने कहा ....माता के समान कोई गुरु नही है
७ पैगम्बर मोहम्मद साहब ने कहा....माँ वह हस्ती है जिसके क़दमों के नीचे जन्नत है
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ॐ नम: शिवाय
ॐनम:शिवाय मंत्र का पहला अक्षर है बीजमंत्र, जिसमें तीन अक्षरों का योग है-अ, उऔर म।इन अक्षरों के स्पंदन से बनता है ॐ।यह स्पंदन ही उस अलौकिक शक्ति की पहचान है, जो हमारे भीतर आत्मबल का संचार करती है। यही स्पंदन हमारे भीतर की कुप्रवृत्तियोंको नष्ट कर हमें कल्याण के मार्ग पर आगे बढने को प्रवृत्त करता है। शिव ही नहीं जितने भी देवताओं और देवियों की परिकल्पना की गई है, सभी ऐसे ही स्पंदनों पर आधारित हैं। वास्तव में सभी देवी-देवताओं का संयुक्त स्वरूप एक ही परम ब्रह्म है, जो इस स्पंदन से प्रभावित होता है। मंत्रों का स्पंदन विभिन्न दिशाओं की ओर उत्सर्जितहोता है। वैसे ही एक-एक स्पंदन का मूल है यह बीज मंत्र। मंत्र वैसा ही स्पंदन पैदा करते हैं, जो बोलनेवालाचाहता है। यानी कोई भक्त जब विद्या की अधिष्ठात्री सरस्वती की उपासना करता है और मंत्र बोलता है तो उससे वायुमंडल में उत्पन्न होनेवालास्पंदन शक्ति के उसी स्वरूप को आकर्षित करता है और उसके चित्त में वही शक्ति आभासित हो उठती है। भारत के महर्षियोंने लंबे समय तक घोर तपस्या करके मंत्रों का दर्शन किया है, जिससे देवी-देवताओं तक पहुंचा जा सकता है। वैसे ही मंत्रों को वेदों में संकलित किया गया है। उन महर्षियोंने भगवान शिव के स्वरूप को अच्छी तरह पहचान लिया था। उन्होंने जान लिया था कि भगवान शिव वास्तव में तो निर्गुण निराकार हैं, लेकिन उनकी उपासना आम श्रद्धालु भक्त गण कैसे कर पाएंगे। इसलिए उन्होंने भगवान शिव को सगुण साकार रूप में देखा और संसारवासियोंको बताया। यहीं से प्रतिमाओं की कल्पना होती है। प्रतिमा शब्द का अर्थ होता है प्रतिरूप। यानी ठीक वैसा ही, जैसा स्वयं भगवान शिव हैं। हालांकि शिव का दूसरा प्रतिमानहो ही नहीं सकता, लेकिन उपासना की सुगमता को ध्यान में रखकर उनकी प्रतिमा की परिकल्पना कर ली गई है। उस दृष्टिकोण से भगवान शिव सगुण साकार रूप में अनेक विग्रहोंके स्वामी हैं, लेकिन उनके विग्रहोंमें शिवलिंगका सर्वाधिक महत्व बताया जाता है। उनकी पूजा अर्चना करना अत्यंत लाभप्रद माना जाता है, लेकिन सर्वोपरि होता है मंत्र, जिसे बोल कर अर्चना की जाती है। उस मंत्र के समुचित प्रयोग के बिना अर्चना का अर्थ ही व्यर्थ हो जाता है।
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आत्मा की एकता
वैदिक धर्म में आत्मा की एकता पर सबसे अधिक जोर दिया गया है। जो आदमी इस तत्व को समझ लेगा, वह किससे प्रेम नहीं करेगा? जो आदमी यह समझ जाएगा कि 'घट-घट में तोरा साँई रमत है!' वह किस पर नाराज होगा? किसे मारेगा? किसे पीटेगा? किसे सताएगा? किसे गाली देगा? किसके साथ बुरा व्यवहार करेगा?
यस्मिन्सर्वाणि भूतानि आत्मैवाभूद्विजानतः ।
तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः ॥
जो आदमी सब प्राणियों में एक ही आत्मा को देखता है, उसके लिए किसका मोह, किसका शोक?
वैदिक धर्म का मूल तत्व यही है। इस सारे जगत में ईश्वर ही सर्वत्र व्याप्त है। उसी को पाने के लिए, उसी को समझने के लिए हमें मनुष्य का यह जीवन मिला है। उसे पाने का जो रास्ता है, उसका नाम है धर्म।
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ॐ सांई राम~~~
क्रोध करने का अर्थ है- दूसरों की गलतियों का अपने से बदला लेना~~~
जय सांई राम~~~
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ॐ सांई राम~~~
जैसे बादल पृथ्वी से जल लेकर फिर पृथ्वी पर बरसता है, वैस ही सज्जन भी जिस वस्तु का ग्रहण करते है उसका दान भी करते है |
जय सांई राम~~~
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~~~ॐ सांई राम~~~
हर मनुष्य अच्छी सोच के साथ जीवन के लम्हों को जीना चाहता है केवल उसकी नकारात्मक और धनात्मक सोच ही उसके कल को बनाती है। एक दोहा याद आता है
“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल मे प्रलय होयेगी बहुरी करेगा कब”
आज को सुन्दर बनाये कल की चिंता कल के लिये छोड़ दे।
~~~ॐ सांई राम~~~
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ॐ सांई राम~~~
जब हम कोई काम करने की इच्छा करते हैं, तो शक्ति अपने आप ही आ जाती है~~~
जय सांई राम~~~
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~~~ॐ सांई राम~~~
'अपने पापों को स्वीकार करने में शर्म मत करो।' क्योंकि पाप हमें ईश्वर से अलग कर देता है... यह मेल-मिलाप का संस्कार है। (प्रायश्चित-पाप स्वीकार) जो हमें वापस लाता है और ईश्वर से पुनः मिलाता है।
~~~ॐ सांई राम~~~
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~~~ॐ सांई राम~~~
ईश प्राप्ति (शांति) के लिए अंतःकरण शुद्ध होना चाहिए | – रविदास
ईश्वर के हाथ देने के लिए खुले हैं. लेने के लिए तुम्हें प्रयत्न करना होगा | – गुरु नानक देव
रहिमन बहु भेषज करत , ब्याधि न छाडत साथ । खग मृग बसत अरोग बन , हरि अनाथ के नाथ ॥
अजगर करैं न चाकरी, पंछी करैं न काम। दास मलूका कहि गये सब के दाता राम।। —– सन्त मलूकदास
~~~ॐ सांई राम~~~
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ॐ सांई राम~~~
मन एक मन्दिर है ; इसमे सद्विचारों की धूप जलाइए। ईर्ष्या –द्वेष का कूड़ा इसमें नहीं भरा जाता|
जय सांई राम~~~
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जीवन और मृत्यु
जीवन और मृत्यु आत्मा और परमात्मा को पाने के दो पहलू हैं। रात के बाद दिन, दिन के बाद रात होती है। इसी तरह चोले बदलते हुए... अनुभवों से गुजरते हुए अपने आत्मस्वरूप को ब्रह्मस्वरूप को पाने के लिए मंगलमयी व्यवस्था है।
~~~ॐ सांई राम~~~
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आस्था
आस्था सचमुच वह सबसे महान चमत्कारी शक्ति है जिसकी कल्पना की जा सकती है। आस्था कभी किसी व्यक्ति का साथ नहीं छोड़ती। हम तब असफल होते हैं जब हम अपनी आस्था का दामन छोड़ देते हैं।
~~~ॐ सांई राम~~~
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~~~ॐ सांई राम~~~
मनुष्य को अच्छाइयाँ और बुराइयों का पुतला कहा गया है।ऐसा मनुष्य किस काम का जो औरों में केवल बुराई ही बुराई पाए। ऐसे बुरे आदमी के लिए कहा है-'बुरा जो देखन मैं चला, मुझ-सा बुरा न कोय।
~~~ॐ सांई राम~~~
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~~~ॐ सांई राम~~~
अन्यों में सदैव बुराई देखने वाले स्वयं बहुत बुरे होते हैं। मनुष्य के दो कान और दो आँखों के समान समाज में दूसरों की अच्छाइयाँ देखने वाले भी होते हैं। दानी, ज्ञानी, धार्मिक, परोपकारी तथा सेवा करने वालों की बड़े-बड़े समारोहों में प्रशंसा के गीत गाए जाते हैं। इससे इन सद्गुणों का व्यापक प्रचार होता है। ऐसे लोगों को सद्गुणी और प्रशंसक कहा जाता है।
~~~ॐ सांई राम~~~
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~~~ॐ सांई राम~~~
देखने में फूल खूब सुंदर हो, पर उसमें खुशबू न हो तो उसका होना, न होना बराबर है। उसी तरह जो आदमी बोलता तो बहुत मीठा है, पर जैसा बोलता है वैसा करता नहीं, उसकी मीठी वाणी व्यर्थ है।
~~~ॐ सांई राम~~~
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~~~ॐ सांई राम~~~
संतोष अर्थात सभी सुखों का दाता। संतोष का गुण ही जीवन में सुख-शांति लाने की उत्तम औषधि है, और कहा भी जाता है जिस मनुष्य के पास संतोषरूपी गुण है, उसे पानी की बूँद भी समुद्र के समान प्रतीत होती है और जिसके पास यह गुण नहीं उसे समुद्र भी बूँद के समान प्रतीत होता है। कबीरदासजी कहते हैं-
चींटी चावल ले चली/ बीच में मिल गई दाल।
कहत कबीरा दो ना मिले/ इक ले दूजी डाल॥
अर्थात- एक चींटी अपने मुँह में चावल लेकर जा रही थी, चलते-चलते उसको रास्ते में दाल मिल गई।उसे भी लेने की इच्छा हुई, लेकिन चावल मुँह में रखने पर दाल कैसे मिलेगी? दाल लेने को जाती तो चावल नहीं मिलता। चींटी का दोनों को लेना का प्रयत्न था।
~~~ॐ सांई राम~~~
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ॐ सांई राम~~~
जब सोचना है तो सकारात्मक ही सोचें।जीत की बात सोचने से भले ही आप न जीत सकें;परन्तु उतने समय के लिए हार की दुर्बलता से तो दूर रहेंगे~~~
जय सांई राम~~~
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~~~ॐ सांई राम~~~
'समय बेशकीमती है। समय जीवन है। इसे न खरीदा जा सकता है, न उधार लिया जा सकता है। समय की बर्बादी जीवन की बर्बादी है। बीता हुआ कल सुधारा नहीं जा सकता। आने वाला कल शायद कभी न आए।आज ही हमारा है, इसका हम श्रेष्ठतम उपयोग करें। जो अतीत से नहीं सीखता, वह भविष्य द्वारा दंडित किया जाता है।'
~~~ॐ सांई राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
जीतने के लिए कोई चीज है तो~~प्रेम
पीने के लिए कोई चीज है तो~~क्रोध
खाने के लिए कोई चीज है तो~~गम
देने के लिए कोई चीज है तो~~दान
करने के लिए कोई चीज है तो~~दया
लेने के लिए कोई चीज है तो~~ज्ञान
कहने के लिए कोई चीज है तो~~सत्य
रखने के लिए कोई चीज है तो~~इज्जत
त्यागने के लिए कोई चीज है तो~~ईष्या
छोङने के लिए कोई चीज है तो~~मोह
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता ?
- विवेकानंद
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है।
~~गौतम बुद्ध
जय साईं राम~~~
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the beauty of a woman is not in the clothes she wears, the figure that she carries, or the way she combs her hair.
The beauty of a woman must be seen in her eyes, because that is the doorway to her heart - the place where love resides."
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ॐ साईं राम~~~
माचिस की तीली का सिर होता है, पर दिमाग नहीँ, इसलिये वह थोड़े घर्षण से जल उठती है
हमारे पास सिर भी है और दिमाग भी।
फिर भी हम छोटी- सी बात पर उत्तेजित क्यों हो जाते हैं।
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
आपका सच्चा दोस्त आईना ही होता है, जो आपकी खोट को छिपाता नहीं है~~~
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
बहुत जरुरी है:परिवार के लिए शांति ,समाज के लिए क्रांति ,जीवन के लिए उन्नति, सफलता के लिए सम्मति!
अपने अन्दर से कभी कम होने मत देना:प्रेम के भाव भाव को,शांति के स्वभाव को,ईश के प्रभाव को !!!!
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
"किसी को क्षमा करना या किसी व्यक्ति से क्षमा माँगना दोनों ही कार्य अत्यधिक साहस, हिम्मत व विशाल हृदय होने पर ही पूर्ण हो सकते हैं। क्षमा की सीधी-सादी परिभाषा है माफ करना या अपने कृत्य के लिए माफी माँगना या प्रायश्चित करना।"
ॐ साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
खुद की सुनो खुद ही करो~~
कोई कहता है ये करो, कोई कहता है वो करो, मैं कहता हूँ कि तुम वह करो जो तुम करना चाहते हो, नकारात्मक विचारों को अपने अंदर से उखाड़ फेंको, तुम ही हो जो सब कुछ कर सकते हो, स्वयं को जागृत करो, उठो खड़े हो जाओ और लग बैठो फिर किसी की न सुनो, नहीं नहीं कहने से तो सॉंप का विष भी असर नहीं करता, अपनी श्रेष्ठता को पहचानो – स्वामी विवेकानन्द
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
मनुष्य के पतन और नष्ट होने का प्रथम लक्षण क्या है~~~
विनाश काले विपरीत बुद्धि ।
अर्थात जिस मनुष्य के विनाश का वक्त या पतन का वक्त आ जाता है, उसकी बुद्धि भ्रमित होकर उल्टे ही उल्टे सारे कार्य करने लगती है और वह उचित को अनुचित और अनुचित को उचित की भांति व्यवहृत करने लगता है – महाभारत
ताकों प्रभु दारूण दुख देंईं । ताकी मति पहलेईं हर लेंईं ।।
गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में लेख करते हैं कि प्रभु जिसको दारूण दुख देना चाहते हैं तो सबसे पहले वे उसकी बुद्धि का हरण कर लेते हैं जिससे वह सारे के सारे कार्य उल्टे ही उल्टे करने लगता है और अंतत: दारूण दुख पा कर पूर्णत: नष्ट हो जाता है । - तुलसीदास, रामचरित मानस
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
आपने क्या खोया क्या पाया??
Money is lost nothing is lost, Health is lost something is lost, Character is lost everything is lost.
आपने धन गँवा दिया समझिये कुछ नहीं खोया, आपने स्वास्थ्य गंवाया समझिये कुछ खो दिया, आपने अपना चरित्र गंवाया समझिये आपका सब कुछ खो गया नष्ट हो गया ।
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
कुलीन और खानदानी मनुष्यों के क्या लक्षण होते हैं?
'' कुलीन और खानदानी मनुष्यों का प्रथम लक्षण है कि नुकसान होते दिखने पर और हर समय तथा संकट के वक्त भी उनकी कथनी व करनी एक रहती है, तथा सत्य को स्वयं के और अपने राज्य को नष्ट होने या हानि होने पर भी नहीं छोड़ते, दूसरा लक्षण है कि वे शरणागत शत्रु को भी आश्रय देकर भयमुक्त करते है, तीसरा लक्षण है कि उनके भीतर भय कभी भूल कर भी प्रवेश नहीं कर सकता'' – भगवान श्री कृष्ण
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है
ॐ साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
समय की ताकत~~~
''जो समय को नष्ट करता है, समय भी उसे नष्ट कर देता है'' ~~
''समय का हनन करने वाले व्यक्ति का चित्त सदा उद्विग्न रहता है, और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है'' ~~
'' प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्य को विलक्षण और अदभुत बना देता है'' ~~
''पड़े पड़े तो अच्छे से अच्छे फौलाद में भी जंग लग जाता है, निष्क्रिय हो जाने से,सारी दैवीय शक्तियां स्वत: मनुष्य का साथ छोड़ देतीं हैं'' ~~
'' यदि उपयोगी और महत्वपूर्ण बन कर विश्व में सम्मानित रहना है तो सबके काम के बनो और सदा सक्रिय रहो''~~
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
अभ्यास का महत्व~~~
करत करत अभ्यास सों, जड़मति होय सुजान ।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान ।।
निरन्तर अभ्यास करने से मूर्खतम मनुष्य भी सुजान (चतुर और ज्ञानवान) हो जाता है, जैसे कुंयें के पाट (पत्थर) पर बार बार रस्सी रगड़ते रहने से उस पर भी रस्सी के निशान (खांचे) बन जाते हैं ।
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
दौलत पद और सत्ता मिलने और खोने पर क्या होता है ~~~
दौलत की दो लात हैं, तुलसी निश्चय कीन ।
आवत में अंधा करें, जावत करे अधीन ।।
दौलत, संपत्ति और पद जब मिलते हैं, तो मनुष्य अंधा हो जाता है, और जब ये छिनते हैं तो मनुष्य पागल हो जाता है यानि उसका दास गुलाम होकर पगलाया फिरता है – तुलसीदास
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
"इस सुंदर जगत के रचनाकार उस परमात्मा ने हर जगह आनंद ही आनंद बिखेरा हुआ है। जब व्यक्ति का संपर्क उस जगत चालक से होता है तो वह भी उस परमानंद को प्राप्त करता है।"
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
'ज्ञानी मनुष्य के मन में किसी भी प्रकार का अहंकार नहीं होता यानी वह निर्रहंकारी होता है और यह गुण बहुत बड़ा होता है। ज्ञानी व्यक्ति अपने कर्म को सतत करता रहता है और उसमें उसे अहंकार नहीं होता। 'मैंने यह कर्म किया या मेरी वजह से यह कार्य पूर्ण हुआ।'
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
भाग्य और प्रारब्ध में क्या फर्क है~~~
मनुष्य के पूर्व कर्मों से प्रारब्ध का निर्माण होता है और प्रारब्ध से भाग्य बनता है, मनुष्य के वर्तमान कर्म उसके भविष्य का निर्धारण करते हैं । अत: प्राप्ति जितनी सहज हो उसे सहेजना उससे कई गुना दुष्कर होता है । - संस्कृत की प्राचीन कहावत
जय साईं राम~~~
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~~~जय साईं राम~~~
यह बात याद रखना चाहिए कि परिवार, समाज और सारी दुनिया आपसी सहयोग और भाईचारे की भावना से ही चल रही है। कष्ट या संकट किसी पर भी आ सकते हैं। ऐसे समय सहायता की जरूरत होती है। सहायता मिल जाने से संकट दूर हो जाते हैं और कष्टों से छुटकारा मिल जाता है|
~~~जय साईं राम~~~
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~~~जय साईं राम~~~
जीवन और मृत्यु आत्मा और परमात्मा को पाने के दो पहलू हैं। रात के बाद दिन, दिन के बाद रात होती है। इसी तरह चोले बदलते हुए... अनुभवों से गुजरते हुए अपने आत्मस्वरूप को ब्रह्मस्वरूप को पाने के लिए मंगलमयी व्यवस्था है।
~~~जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
पाप~~~
1~पाप में जब आदमी की मनोवृति बिगड़ जाती है तब पाप होते हैं !
2~जब रोटी खाने बैठो तो सोचो यह कैसे कमाई की रोटी है !
3~इतने सहन शील मत बन जाओ की दुष्ट अपनी दुष्टता से आपको दुःख देते जायं !
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
हंसना~~~
1~हंसना, हंसाना, गुनगुनाना अगर खत्म होगया तो दिमाग भी कमजोर हो जाता है !
2~मशीन के युग में हम इतने व्यस्त हो गये हें की हम को यह ही पता नहीं की हम कौन हैं !
3~अक्ल कब शांत होती है जब दिमाग शांत है, अशांत दिमाग में बुद्धि चली जाती है और काम करना बंद हो जाता है !
4~हे भगवान मुझे अच्छे निर्णय लेने वाली बुद्धि देना !
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
लक्ष्मी कहाँ रहती है??
जिस घर में सब प्रसन्न रहते हैं लक्ष्मी वहाँ रहती है! जिस घर में अशान्ति , अवव्यवस्था हो, नारी आंसू बहाये-बच्चे बड़ों का सत्कार न करें, धर्म से विमुख हों, बड़े गुस्सा करें, तो लक्ष्मी वहाँ एक दरवाजे से आयगी और दूसरे दरवाजे से निकल जायगी टिक भी नहीं पायेगी और बीमारी देकर जायेगी ! इसलिय घर में शान्ति बनाकर रखो !
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
हंसो बिना बात के भी हंसो -खूब हंसो -खुश रहो ,भगवान का दिया हुआ वरदान है मुसकराना ,खुश रहना ,अपनी असली ख़ुशी को मत भूलो ! सदा प्रसन्न रहना स्वर्ग है ! अपना कर्म पूरा करो और फल भगवान के ऊपर छोड़ देना "मेहनत मेरी रहमत तेरी " !
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोद्भवः धन्या च वसुधा देवी यत्र स्याद गुरुभक्तता||
हे पार्वती ! जिसके अन्दर गुरुभक्ति हो उसकी माता धन्य है, उसका पिता धन्य है, उसका कुल गोत्र / वंश धन्य है, उसके वंश में, जन्म लेनेवाले धन्य हैं, समग्र धरती माता धन्य है
- भगवान शिवजी
जय साईं राम~~~
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जय सांई राम।।।
पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है। उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है, फर्क यह है कि एक परिमित है, दूसरा अनंत; एक परतंत्र है, दूसरा स्वतंत्र।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
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ॐ सांई राम~~~
जब आप क्रोध करते हें , निराश होते हें, या चिंता में होते हें, ये सब आदमी को रोग ग्रस्त करती हें मगर आप आनंद में भगवान् को धन्यवाद देते हुए खुश होकर जीयगे तो इससे आपकी उम्र बढ़ती है।
जय सांई राम~~~
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जय सांई राम।।।
माला जपने से भक्त नहीं होता, माला चले न चले मन में भगवान् बसे तो भक्त है
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
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ॐ साईं राम~~~
जैसे एक पत्थर को तराशने से सुन्दर मूर्ति बन सकती है ऐसे ही कर्मों के सहारे ज़िन्दगी को तराशने से ज़िन्दगी का स्वरूप बहुत सुन्दर बन सकता है।
बडों के प्रति सम्मान की भावना , आत्मीयजनों के प्रति कोमलता ,स्वयं के प्रति निरीक्षण की भावना रखते हुए आत्मचिंतन के शीशे में अपने को रोज निहारो ।
जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
सुख और दुःख की परिभाषा यह है कि जहाँ तक तुम सह सकते हो वहां तक तो सुख है, जहाँ से सहना मुश्किल हो जाता है, वहाँ से दुःख शुरू हो जाता है, और यह सहने की शक्ति सबकी अलग-अलग है। कोई थोड़े दुःख में घबरा जाता है, कोई बहुत दुःख आये तो भी नहीं घबराते हैं।
जय साईं राम~~~
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~~~ॐ साईं राम~~~
"दरअसल यह दृष्टि और सृष्टि का मामला है। मनुष्य की जैसी दृष्टि होगी, वैसी उसकी सोच बनेगी और जैसी सोच होगी वैसा उसे नजर आएगा। यहाँ आधा भरा, आधा खाली गिलास का दृष्टांत अप्रासंगिक न होगा। एक व्यक्ति को गिलास आधा खाली नजर आता है तो दूसरे को आधा भरा।"
~~~जय साईं राम~~~
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ॐ साईं राम~~~
सोने को धोने से उसमें निर्मलता नहीं आती ,उसे अग्नी में तपाना पङता है ,तभी उसका मैल दूर होता है ! इसी प्रकार प्रयाशिचत से अपने अन्दर के गुनाहों को जलाना पङता है ,नया संकल्प करना पङता है तो जीवन में शांति आती है !
जय साईं राम~~~
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जय सांई राम।।।
माला जपने से भक्त नहीं होता, माला चले न चले मन में भगवान् बसे तो भक्त है
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ALLAH MALIK!
Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM
ॐ सांई राम।।।
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~~~जय साईं राम~~~
जीवन और मृत्यु आत्मा और परमात्मा को पाने के दो पहलू हैं। रात के बाद दिन, दिन के बाद रात होती है। इसी तरह चोले बदलते हुए... अनुभवों से गुजरते हुए अपने आत्मस्वरूप को ब्रह्मस्वरूप को पाने के लिए मंगलमयी व्यवस्था है।
~~~जय साईं राम~~~
ALLAH MALIK!
Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM
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~~~जय साईं राम~~~
यह बात याद रखना चाहिए कि परिवार, समाज और सारी दुनिया आपसी सहयोग और भाईचारे की भावना से ही चल रही है। कष्ट या संकट किसी पर भी आ सकते हैं। ऐसे समय सहायता की जरूरत होती है। सहायता मिल जाने से संकट दूर हो जाते हैं और कष्टों से छुटकारा मिल जाता है|
~~~जय साईं राम~~~
BEAUTIFUL WORDS.....
ALLAH MALIK!
Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM
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~~~ॐ सांई राम~~~
ईश प्राप्ति (शांति) के लिए अंतःकरण शुद्ध होना चाहिए | – रविदास
ईश्वर के हाथ देने के लिए खुले हैं. लेने के लिए तुम्हें प्रयत्न करना होगा | – गुरु नानक देव
रहिमन बहु भेषज करत , ब्याधि न छाडत साथ । खग मृग बसत अरोग बन , हरि अनाथ के नाथ ॥
अजगर करैं न चाकरी, पंछी करैं न काम। दास मलूका कहि गये सब के दाता राम।। —– सन्त मलूकदास
~~~ॐ सांई राम~~~
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Bow to Sri Sai!
Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM
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ॐ साईं राम~~~
धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोद्भवः धन्या च वसुधा देवी यत्र स्याद गुरुभक्तता||
हे पार्वती ! जिसके अन्दर गुरुभक्ति हो उसकी माता धन्य है, उसका पिता धन्य है, उसका कुल गोत्र / वंश धन्य है, उसके वंश में, जन्म लेनेवाले धन्य हैं, समग्र धरती माता धन्य है
- भगवान शिवजी
जय साईं राम~~~
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What You are not able to do today You will achieve Tomorrow.
Persevere & You shall conquer
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जब बेटा अपने पिता से सम्मान की अपेक्षा करे तो समझ ले की वह दुर बुधि का शिकार हो गया है
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जो इंसान मामूली बातों में झूट बोलता है
उस पे महत्व पूर्ण बातों पे कैसे विशावास कीया जा सकता है ?
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"Peace begins with a smile." — Mother Teresa
Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM
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"होठों पर मुस्कान हर मुश्किल को आसान कर देती है"
OMSAIRAM
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"मीठा बोलने मे एक कौडी भी नही खर्च होती है फ़िर कंजूसी क्यों? सदा प्रेमयुक्त, मधुर, व सत्यवचन बोलें।"
OMSAIRAM
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OMSAIRAM
इस बात की परवाह मत करो की लोग तुम्हे क्या कहेंगे ? लोग तो अपने अपने मन की कहेंगे . वे राग द्वेष का जैसा चश्मा चढाये होंगे वैसा ही कहेंगे. उनकी प्रशंसा में फूलो मत और उनकी निंदा से घबराकर लक्ष्य से मत हटो .
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ॐ साईं राम~~~
"जो शक्ति न होते हुए भी मन से हार नहीं मानता , उसको दुनिया की कोई ताकत परास्त नहीं कर सकती |"
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ॐ साईं राम~~~
"जिसका ह्रदय पवित्र है, उससे अपवित्रता छू तक नहीं सकती |"
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ॐ सांई राम~~~
दुर्भावना के वातावरण में पंचशील के सिद्धांत अन्तराष्ट्रीय जगत में भले ही सफल न हुए हो पर पारिवारिक जगत में सदा सफल होते है . यथा -
1. परस्पर आदर भाव से देखना
2. अपनी भूल स्वीकार करना
3. आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
4. भेदभाव न रखना
5. विवादो का निष्पक्ष निपटारा
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कहते हैं हम जो लोगों को देते हैं वही हमें वापस मिला है। अगर हम किसी को प्यार देगें तो ही हमें बदले में प्यार मिल सकता है और अगर किसी से नफरत करेंगें तो बदलें में प्यार की उम्मीद करना बेकार है।
~~जय श्री साईं राम~~
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जीवन में अक्सर ऐसे अवसर आते हैं जब बिना सच्चाई जानें ही किसी एक निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं जबकि सच्चाई कुछ और ही होती है। जो हमें दिखता है हम उसी पर यकीन कर लेते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि जो दिख रहा है उसमें कितनी सच्चाई है पहले इस पर विचार किया जाए। तभी हम सही सही निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं।
~~ॐ सांई राम~~~
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"आयु बढ़ने से या दुर्घटना से सुन्दरता नष्ट हो सकती है पर आत्मिक सुन्दरता कभी नष्ट नही होती है"
~~OmSaiRam~~
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"यदि आप अकेले है तो आपका कोई महत्व नही, परन्तु यदि आप संगठन मे स्नेहशील, रमणीक, व सहयोगी होकर रहते हैं तो आप मूल्यवान है। "
~~OmSaiRam~~
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इंसान को अगर खुद को बेहतर बनाना है और अपनी किसी बुराई को छोडऩा है तो उसे इस बात की शुरूवात खुद से ही करनी होगी। किसी और के भरोसे आप अपनी किसी बुराई को नहीं छोड़ सकते। बस जरूरत है तो केवल दृढ़ विश्वास की।
Om Sai Ram
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हमारे सुख-दुःख का कारण दूसरे व्यक्ति या परिस्थितियाँ नहीं अपितु हमारे अच्छे या बूरे विचार होते हैं।
~~OmSaiRam~~
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कबीरदास जी एक स्त्री को अनाज पीसते देखकर अपने गुरू निपतिनिरंजन से कहने लगे कि मैं इसलिये रुदन कर रहा हूँ कि जिस प्रकार अनाज चक्की में पीसा जाता है, उसी प्रकार मैं भी भवसागर रुपी चक्की में पीसे जाने की यातना का अनुभव कर रहा हूँ । उनके गुरु ने उत्तर दिया कि घबड़ाओ नही, चक्की के केन्द्र में जो ज्ञान रुपी दंड है, उसी को दृढ़ता से पकड़ लो, जिस प्रकार तुम मुझे करते देख रहे हो ष उससे दूर मत जाओ, बस, केन्द्र की ओप ही अग्रसर होते जाओ और तब यह निशि्चत है कि तुम इस भवसागर रुपी चक्की से अवश्य ही बच जाओगे ।
साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुध्द सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है।
~~OmSaiRam~~
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जैसा कि मेरे अनुभव में आया कि साई के दर्शन में ही यह विशेषता है कि वितार परिवर्तन तथा पिछले कर्मों का प्रभाव शीघ्र मंद पड़ने लगता है और शनैः शनैः अनासक्ति और सांसारिक भोगों से वैराग्य बढ़ता जाता है । केवल गत जन्मों के अनेक शुभ संस्कार एकत्रित होनेपर ही ऐसा दर्शन प्राप्त होना सुलभ हो सकता है । पाठको, मैं आपसे शपथपूर्वक कहता हूँ कि यदि आप श्री साईबाबा को एक दृष्टि भरकर देख लेंगे तो आपको सम्पूर्ण विश्व ही साईमय दिखलाई पड़ेगा ।
हेमाडपंत
साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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किसी ने प्रश्न किया – बाबा, कहाँ जायें । उत्तर मिला – ऊपर जाओ । प्रश्न – मार्ग कैसा है ।
बाबा – अनेक पंथ है । यहाँ से भी एक मार्ग है । परंतु यह मार्ग दुर्गम है तथा सिंह और भेड़िये भी मिलते है ।
काकासाहेब – यदि पथ प्रदर्शक भी साथ हो तो ।
बाबा – तब कोई कष्ट न होगा । मार्ग-प्रदर्शक तुम्हारी सिंह और भेड़िये और खन्दकों से रक्षा कर तुम्हें सीधे निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचा देगा । परंतु उसके अभाव में जंगल में मार्ग भूलने या गड्रढे में गिर जाने की सम्भावना है । दाभोलकर भी उपर्युक्त प्रसंग के अवसर पर वहाँ उपस्थित थे । उन्होंने सोचा कि जो कुछ बाबा कह रहे है, वह गुरु की आवश्यकता क्यों है । इस प्रश्न का उत्तर है (साईलीला भाग 1, संख्या 5 व पृष्ठ 47 के अनुसार) । उन्होंने सदा के लिये मन में यह गाँठ बाँध ली कि अब कभी इस विषय पर वादविवाद नहीं करेंगे कि स्वतंत्र या परतंत्र व्यकति आध्यात्मिक विषयों के लिये कैसा सिदृ होगा । प्रत्युत इसके विपरीत यथार्थ में परमार्थ-लाभ केवल गुरु के उरदेश में किया गया है, जिसमें लिखा है कि राम और कृष्ण महान् अवतारी होते हुए भी आत्मानुभूति के लिये राम को अपने गुरु वसिष्ठ और कृष्ण को अपने गुरु सांदीपनि की शरण में जाना पड़ा था । इस मार्ग में उन्नति प्राप्त करने के लिये केवल श्रदृा और धैर्य-ये ही दो गुण सहायक हैं ।
साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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SAI is the real self within.when self unfolds,life shines.FAITH lands on in the comforting arms of the LORD.Perseverance paves the path ahead.Let him arrange everything for you and you will safely cross the OCEAN OF SUFFERING......
OmSaiRam
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चार बातें नहीं भूलना चाहिए -
बडो का आदर करना
छोटो को सलाह देना
बुद्धिमानो से सलाह लेना
और मूर्खो से न उलझना .
~~OmSaiRam~~
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The function of the mind is to think; it cannot remain for a minute without thinking. If you give it a Sense-object, it will think about it. If you give it to a Guru, it will think about Guru.
साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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;D
surrender is when in reality you are faced a situation and you surrender to BABA
Bookish knowledge is useless ;D
साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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बाबा के वाक्य :
"नेकी कर दरिया मे डाल"
अर्थात्
भलाई करने के बाद उसे कभी व्यक्त नहीं करना चाहिये |
बाबा कहते हैं, कि भला आदमी चंदन की तरह होता है, जैसे चंदन को कुल्हाड़ी से काटने पर कुल्हाड़ी से खुशबू देता है | जलाओ तो महक आती है, घिसो तो सुगन्ध आती है, मस्तक पे लगाओ तो शीतलता प्रदान करता है, रखें तो खुशबू देता है, ऎसे ही मनुष्य परमात्मा के सुरक्षित हाथों मे होता है, किसी मनुष्य को कभी सताना नहीं चाहिये |
~~OmSaiRam~~
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"जीवन एक नाटक है , यदि हम इसके कथानक को समझ ले तो सदैव प्रसन्न रह सकते है।"
~~OmSaiRam~~
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यदि घर का काम-काज करते हुए ज्ञान की उच्च मंजिल प्राप्त करना चाहो तो अपने घर में मंदिर की भावना पैदा करो और उसे अपने प्रेम एवं सेवा द्वारा समुचित मंदिर बना दो।
~~OmSaiRam~~
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सूर्य हर जगह वही है , आकाश हर जगह वही है। धरती , जल , अग्नि और वायु हर जगह वही है। जब वतन की यह सब चीज़े सब जगह उपस्थित हैं, तब जहाँ तहाँ वतन ही हुआ। परदेस तो केवल दिल का भ्रम है।
~~OmSaiRam~~
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फूल की सुगंध की तरह संसार में रहो । ऐसा न हो कि तुम किसी पर भार हो जाओ।
~~OmSaiRam~~
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'What are obstacles? They are nothing! There is no obstacle that cannot be overcome. Obstacles are like stones on the path: you walk over them or around them. Never let them upset you. Never become involved with them in such a way that they become part of your life. Observe them and let them pass, for they do not belong to you. If obstacles continue to disturb you, offer them to the Lord and He knows why they have come into your life. The Lord is always there to help you, if only you ask for His help.'
OMSAIRAM
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कहते हैं कि चाह अगर सच्ची हो तो मंजिल तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता। जरूरत है उस तीव्र प्यास की जो सीधे आत्मा को परमात्मा से जोड़ देती है। ऐसे एक नहीं बल्कि सैकड़ों उदाहदण हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि मनुष्य जब कुछ पाने के लिये अपने जीवन की बाजी लगाने को तैयार हो जाता है तो अपने मकसद में कामयाबी अवश्य ही मिलती है।
ॐ साईं राम
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फूल की सुगंध की तरह संसार में रहो । ऐसा न हो कि तुम किसी पर भार हो जाओ।
ॐ साईं राम
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ईर्ष्या या घृणा के के विचार मन में प्रवेश होते ही खुशी गायब हो जाती है, प्रेम व शुभ-भावना युक्त विचारों से उदासी दूर हो जाती है ।
~~OmSaiRam~~
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जो इंसान मामूली बातों में झूट बोलता है
उस पे महत्व पूर्ण बातों पे कैसे विशावास कीया जा सकता है ?
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माँ का महत्व
१ आसमान ने कहा ....माँ एक इन्द्रधनुष है ,जिसमें सभी रंग समाये हुए हैं
२ शायर ने कहा ....माँ एक ऐसी गजल है जो सबके दिल में उतरती चली जाती है
३ माली ने कहा ....माँ एक दिलकश फूल है जो पूरे गुलशन को मह्काता है
४ औलाद ने कहा ....माँ ममता का अनमोल खजाना है जो हर दिल पर कुर्बान है
५ वाल्मीकि जी ने कहा ....माता और मातर भूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है
६ वेद व्यास जी ने कहा ....माता के समान कोई गुरु नही है
७ पैगम्बर मोहम्मद साहब ने कहा....माँ वह हस्ती है जिसके क़दमों के नीचे जन्नत है
Maawan Thandian Chhawan
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वाल्मीकि जी ने कहा ....माता और मातर भूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है
Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM
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baba pl bless all your bhaktas and protect them and save them from misery
omsairam
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ॐ श्री साईं नाथाय नमः
अपने दिल में एक ऐसा कब्रिस्तान बनाये जिसमे अपने दोस्तों और दुश्मनों की गलतियों को दफना सकें |
साईं राम
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jai sai ram
baba g mai shirdi kab darshan karuga
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कितनी खूबसूरती से साईं आपकी जिंदगी में हर एक दिन जोड़ते है..
इसीलिए नहीं कि आपको उनकी जरुरत है..
पर इसीलिए कि किसी और को आपकी ज्यादा जरुरत है..
इसीलिए हर दिन ख़ुशी के साथ जियो ..क्योकि बाबा है ना :)
"ॐ साईं राम"
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ॐ साईं नाथाय नमः
खुदा मुझे ऐसी खुदाई ना दे
कि अपने सिवा ओर कुछ साईं
मुझे दिखाई ना दे ||
ॐ साईं राम
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baba g ko mera parnaam
jai sai ram ,
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ॐ साईं राम !!!
" जिंदगी में कभी प्यार करने का मन हो,
तो अपने दुःख से प्यार करना,
क्योंकि .........
दुनिया का दस्तूर है
जिसे जितना चाहोगे
उसे उतना दूर पावोगे :D "
ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!
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एक बार नारद मुनि जी ने भगवान विष्णु जी से पुछा, हे भगवन आप का इस समय सब से प्रिय भक्त कौन है?, अब विष्णु तो भगवान है, सो झट से समझ गये अपने भक्त नारद मुनि की बात, और मुस्कुरा कर बोले ! मेरा सब से प्रिय भक्त उस गांव का एक मामुली किसान है, यह सुन कर नारद मुनि जी थोडा निराश हुये, और फ़िर से एक प्रश्न किया, हे भगवान आप का बडा भक्त तो मै हूँ, तो फ़िर सब से प्रिय क्यो नही??
भगवान विष्णु जी ने नारद मुनि जी से कहा, इस का जबाब तो तुम खुद ही दोगे, जाओ एक दिन उस के घर रहो ओर फ़िर सारी बात मुझे बताना,नारद मुनि जी सुबह सवेरे मुंह अंधेर उस किसान के घर पहुच गये, देखा अभी अभी किसान जागा है, और उस ने सब से पहले अपने जानवरो को चारा वगेरा दिया, फ़िर मुंह हाथ धोऎ, देनिक कार्यो से निवर्त हुया, जल्दी जल्दी भगवान का नाम लिया, रुखी सूखी रोटी खा कर जल्दी जल्दी अपने खेतो पर चला गया, सारा दिन खेतो मे काम किया और शाम को वापिस घर आया जानवरो को अपनी अपनी जगह बांधा, उन्हे चारा पानी डाला, हाथ पाँव धोये, कुल्ला किया, फ़िर थोडी देर भगवान का नाम लिया, फ़िर परिवर के संग बैठ कर खाना खाया, कुछ बाते की और फ़िर सो गया.
अब सारा दिन यह सब देख कर नारद मुनि जी, भगवान विष्णु के पास वापिस आये, और बोले भगवन मै आज सारा दिन उस किसान के संग रहा, लेकिन वो तो ढंग से आप का नाम भी नही ले सकता, उस ने थोडी देर सुबह थोडी देर शाम को ओर वो भी जल्दी जल्दी आप का ध्यान किया, और मैं तो चौबीस घंटे सिर्फ़ आप का ही नाम जपता हुं, क्या अब भी आप का सबसे प्रिय भक्त वो गरीब किसान ही है, भगवान विष्णु जी ने नारद की बात सुन कर कहा, अब इस का जबाब भी तुम मुझे खुद ही देना.
और भगवान विष्णु जी ने एक कलश अमृत से भरा नारद मुनि को थमाया, ओर बोले इस कलश को ले कर तुम तीनो लोको की परिक्रमा कर के आओ, लेकिन ध्यान रहे अगर एक बुंद भी अमृत नीचे गिरा तो तुम्हारी सारी भक्ति और पुण्य नष्ट हो जायेगे, नारद मुनि तीनो लोको की परिक्र्मा कर के जब भगवान विष्णु के पास वापिस आये तो , खुश हो कर बोले भगवान मैंने एक बुंद भी अमृत नीचे नही गिरने दिया, विष्णु भगवान ने पुछा और इस दौरान तुम ने मेरा नाम कितनी बार लिया?मेरा स्मरण कितनी बार किया ? तो नारद बोले अरे भगवान जी मेरा तो सारा ध्यान इस अमृत पर था, फ़िर आप का ध्यान केसे करता.
भगवान विष्णु ने कहा, हे नारद देखो उस किसान को वो अपना कर्म करते हुये भी नियमित रुप से मेरा स्मरण करता है, क्योकि जो अपना कर्म करते हुये भी मेरा जाप करे वो ही मेरा सब से प्रिय भक्त हुआ, तुम तो सार दिन खाली बैठे ही जप करते हो, और जब तुम्हे कर्म दिया तो मेरे लिये तुम्हारे पास समय ही नही था, तो नारद मुनि सब समझ गये ओर भगवान के चरण पकड कर बोले हे भगवन आप ने मेरा अंहकार तोड दिया, आप धन्य है|
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ॐ साई राम !!!
एक समय की बात है जब धर्मपुरी नगर के राजा सोमसेन शिकार खेलने के बाद अपने नगर को लोट रहे थे की
जंगल के बिच में राजा अपने सेनिको से बिछड़ गए और जंगल में अकेले ही अपने नगर की तरफ चल पड़े |
रस्ते में चलते समय उन्होंने एक आदमी को मुरली बजाते हुए अपने नगर की तरफ जाते हुए देखा तो
राजा ने कुछ दूर के लिए उसका साथ ले लिया और दोनों साथ साथ चलने लगे बातो ही बातो में राजा ने
उस व्यक्ति को पूछा की वो कोन है और क्या काम करता है और केसे गुजारा चलता है |
उस आदमी ने कहा की में एक लकडहारा हु और लकड़ी काटने का काम करता हु और रोजाना चार रुपये
कमाता हु और पहला रुपया तो कुए में फेंक देता हु दुसरे रुपये से कर्जा चुकता हु तीसरे रुपये को में उधार देता हु
और चौथे रुपये को में जमीन में गाड़ देता हु | वो अपनी कहानी कह रहा था और राजा उसको इस बारे में
पूछना चाहता था मगर तभी सेनिक राजा को ढूंढते ढूंढते वह आगये और फिर राजा उनके साथ चला गया |
राजा ने दुसरे दिन अपने दरबार में सभी लोगो को उस लकडहारे की बात कही और पूछा की वो लकडहारा
जो चार रुपये खर्च करता है उसको केसे और कहा खर्च करता है जरा खुलासा पूर्वक बताओ लेकिन
इस बात का जवाब कोई भी नहीं दे सका |
तो राजा ने सिपाही को आदेश दिया की जाओ और उस लकडहारे को दरबार में मेरे सामने उपस्थित करो |
सिपाही ने लाकर के राजा के सामने लकडहारे को पेश कर दिया |
राजा ने उसको कल के उसके जवाब का खुलासा करने को कहा तो उस लकडहारे ने कहा की
पहला रूपया में कुए में फेकता हु का मतलब ये है की में पहले रुपये से अपने परिवार का पालन करता हु |
दुसरे रुपये से में कर्जा चुकता हु यानी की मेरे माता पिता बूढ़े है जिनके इलाज और खर्चे को पूरा करता हु
और उनका जो उपकार है वो कर्जा मेरे ऊपर है उसको चुकता हु "
तीसरे रूपये को में उधार देता हु का मतलब ये है की एक रुपये को में अपने बचो की शिक्षा आदि पर
खर्चा करता हु ताकि जब में बूढ़ा हो जाऊ तो वो उधार दिया हुवा मेरे को काम आ सके |
और चौथे रुपये को मै जमीन में गाड़ देता हु इसका मतलब ये हुवा की चौथा रूपया में धर्म ध्यान दान दक्षिणा
और लोगो की सेवा में खर्चा करता हु ये तब मेरे काम आएगा जब में इस दुनिया से विदा होऊंगा |
राजा और सभी दरबारियों ने लकडहारे की बाते सुनी और सराहना की राजा ने उस लकडहारे को समान दिया
और काफी धन देकर के इज्जत से वापस विदा किया |
ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
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ॐ साई राम !!!
गुस्से से क्या होता है एक साधू ने बताया
किसी नगर में एक वीतरागी साधु कुछ शिष्यों के साथ रहते थे।
उनकी वाणी अत्यंत मधुर थी और आचरण शुद्ध व सात्विक था।
लोग उनके पास से संतुष्ट व प्रसन्न होकर जाते थे।
एक दिन एक व्यापारी साधु के पास आया। वह बहुत क्रोध में था।
उसका इकलौता पुत्र घर छोड़कर साधु के आश्रम में आ गया था।
उसने आते ही साधु पर अपशब्दों की बौछार शुरू कर दी- आपके पाखंड ने मेरे पुत्र को बहका दिया है।
अपने इस ढोंग को बंद कर दो अन्यथा आपके आश्रम को तहस-नहस कर दूंगा
वह इस तरह साधु को दुर्वचन कहता रहा, किंतु साधु के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं आई।
वे मौन रहकर मुस्कराते रहे। यह देखकर व्यापारी को और अधिक गुस्सा आया।
अंतत: जब वह बोलते हुए थक गया तो कुछ देर रुका।
तब साधु ने कहा, क्या तुम यह जानते हो कि जो शब्द व्यक्ति के मुंह से निकलता है,
वह बाहर आने से पूर्व उसकी की जिव्हा का स्पर्श करता है?
कटु शब्द दूसरों पर जैसा भी प्रभाव डाले, किंतु पहले बोलने वाले के मुंह को ही कड़वा कर देता है।
क्या तुम्हारा मुंह कसैला हो रहा है?
व्यापारी ने पाया कि उसकी जिव्हा पर वास्तव में कसैला स्वाद था। साधु ने फिर कहा,
क्रोध की अग्नि पहले क्रोध करने वाले को ही जलाती है।
तुम अपनी दशा देखो और अपने पुत्र को देखो।
व्यापारी ने खिड़की के बाहर आश्रम के बगीचे में हंसकर मस्ती में गीत गाते हुए काम करते पुत्र को देखा।
फिर क्या था, व्यापारी के मन का विकार दूर हो गया और साधु के स्नेह ने उसे भी आश्रम का सदस्य बना दिया।
मधुर वाणी आत्मा को तृप्त करती है, जबकि कटु वाणी स्वयं सहित सभी को संतप्त करती है।
अत: हमेशा मीठा बोलना चाहिए।.........................
ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
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ॐ साई राम !!!
एक दिन चाणक्य का एक परिचित उनके पास आया और उत्साह से कहने लगा,
'आप जानते हैं, अभी-अभी मैंने आपके मित्र के बारे में क्या सुना?'
चाणक्य अपनी तर्क-शक्ति, ज्ञान और व्यवहार-कुशलता के लिए विख्यात थे।
उन्होंने अपने परिचित से कहा, 'आपकी बात मैं सुनूं,
इसके पहले मैं चाहूंगा कि आप त्रिगुण परीक्षण से गुजरें।'
उस परिचित ने पूछा, ' यह त्रिगुण परीक्षण क्या है?'
चाणक्य ने समझाया , ' आप मुझे मेरे मित्र के बारे में बताएं, इससे पहले अच्छा यह होगा कि जो कहें,
उसे थोड़ा परख लें, थोड़ा छान लें। इसीलिए मैं इस प्रक्रिया को त्रिगुण परीक्षण कहता हूं।
इसकी पहली कसौटी है सत्य। इस कसौटी के अनुसार जानना जरूरी है कि जो आप कहने वाले हैं,
वह सत्य है। आप खुद उसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं?'
'नहीं,' वह आदमी बोला, 'वास्तव में मैंने इसे कहीं सुना था। खुद देखा या अनुभव नहीं किया था।'
'ठीक है,' - चाणक्य ने कहा, 'आपको पता नहीं है कि यह बात सत्य है या असत्य।
दूसरी कसौटी है -' अच्छाई। क्या आप मुझे मेरे मित्र की कोई अच्छाई बताने वाले हैं?'
'नहीं,' उस व्यक्ति ने कहा। इस पर चाणक्य बोले,' जो आप कहने वाले हैं, वह न तो सत्य है,
न ही अच्छा। चलिए, तीसरा परीक्षण कर ही डालते हैं ।'
'तीसरी कसौटी है - उपयोगिता। जो आप कहने वाले हैं, वह क्या मेरे लिए उपयोगी है?'
'नहीं, ऐसा तो नहीं है।' सुनकर चाणक्य ने आखिरी बात कह दी।
' आप मुझे जो बताने वाले हैं, वह न सत्य है, न अच्छा और न ही उपयोगी,
फिर आप मुझे बताना क्यों चाहते हैं?'
जिन्दगी का सबक: कोई भी बात कहने से पहले से पहले खूब अच्छी तरह सोचना चाहिए
इससे आपका और सामने वाले का मान सम्मान बना रहता है ।.........................
ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
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वो है परिंदों की जात ~ इधर है दरिंदों की जात
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Sai Shiksha
Zindgi Haseen Hai Isse Pyar Karo !
Har Raat Ki Nai Subha Ka Intjaar Karo !
Who Pal Bhi Aayega, Jiska Aapko Intjaar Hai…
Bas Apne Rab Pe Bharosha Aur Waqt Par Aitbaar Karna !
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तलाश है ऐसे इंजीनियर की......
जो इंसान से इंसान को जोड़ने वाला पुल बना सके,
आंसुओं को बहनें से रोकने वाला बाँध बना सके,
और सच्चे संबंधों में पड़ती दरारोंको भर सके .....
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ॐ साई राम!!!
विचार एक जल की तरह है
आप उसमे गंदगी मिला दो तो
वह नाला बन जाएगा
अगर सुगंद मिला दो तो
वह गंगा जल बन जाएगा।
(https://scontent.fbom1-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/13139144_1021088464606367_6994406256277399736_n.jpg?oh=3fb19a44cdf8f4cecf99e2a85aa37ebd&oe=579EF230)
ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
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ॐ साई राम!!!
परखना मत,
परखने से कोई अपना नहीं रहता।
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता।
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फासला रखना,
जहाँ दरिया समंदर से मिला, दरिया नहीं रहता।
(https://scontent.fbom1-2.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/13133339_1024006380981242_5381904879452060485_n.jpg?oh=501ffab573da22dcfee651479083337b&oe=57E3C78A)
ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
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ॐ साई राम!!!
किसी की "तारीफ़" करने के लिए जिगर चाहिए...
"बुराई" तो बिना हुनर के किसी की भी की जा सकती है !!
(https://scontent.fbom1-2.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/13173936_1025808934134320_3985657834306727420_n.jpg?oh=69dba118e2fc6eb17336c301745f806c&oe=57A4F96B)
ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
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ॐ साई राम!!!
पहाड़ चढ़ने का एक असूल है,
झुक कर चढ़ो,
जिंदगी भी बस इतना ही मांगती है,
अगर झुक कर चलोगे तो
ऊंचाई तक पहुँच जाओगे।
(https://scontent.fbom1-2.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/13331169_1040158726032674_8220125885031670056_n.jpg?oh=d803a2b6ef657bf6fb088f649dbedfa8&oe=57DD634C)
ॐ साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!
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(https://scontent.fbom1-2.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/13346930_1033558150060190_8784317135364107866_n.jpg?oh=7a096ef05c35f25d09b0ce450febb293&oe=5802C8DC)
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(https://scontent.fbom1-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/13715987_1069675743080972_8389571386347873269_n.jpg?oh=978e0ad9a81069af87f1f585e29f290c&oe=57EE0709)
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(https://scontent.fbom1-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/13692688_1161909657188175_3461732288427911233_n.jpg?oh=e7f73ef64f57c3e3665604f29d5e76d3&oe=583303C8)
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(https://scontent.fbom1-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/13770405_1087899911290036_2215247268938430443_n.jpg?oh=0bb6a99ad2f7211e631372488b2b5d1d&oe=5833232F)
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(https://scontent.fbom1-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/13754090_1059022750847063_4243919750429310322_n.jpg?oh=cb0bab414b7d9c3ca639ebe49bbffe5b&oe=58376D03)
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(https://scontent.fbom1-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/13775355_1087422561346240_4102273574962645286_n.jpg?oh=c3626cfacd542b45dec55977909eb188&oe=58254159)
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ॐ साईं राम !!!
लफ्ज़ ही ऐसी चीज़ है
जिसकी वजह से इंसान
या तो दिल में उतर जाता है
या दिल से उतर जाता है.
ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!
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ॐ साईं राम !!!
रिश्ता दिल से बनता है यारो,
जबर्दस्ती के रिश्ते थोपकर अपनापन नही मिलता l
ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!
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