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Author Topic: नवरात्रि (दुर्गा पूजन)  (Read 157068 times)

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Offline tana

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Re: नवरात्रि (दुर्गा पूजन)
« Reply #15 on: October 17, 2007, 01:04:46 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~


    जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
    जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
    जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
    जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~


    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline JR

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      • Sai Baba
    Re: नवरात्रि (दुर्गा पूजन)
    « Reply #16 on: October 17, 2007, 01:21:26 AM »
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  • JAI MATA DI..............
      JAI MATA DI...................
       JAI MATA DI....................
        JAI MATA DI............................
         JAI MATA DI...................................
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    Offline tana

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      • Sai Baba
    Re: नवरात्रि (दुर्गा पूजन)
    « Reply #17 on: April 06, 2008, 11:33:17 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
    जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~


    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
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    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
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    Offline JR

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      • Sai Baba
    Re: नवरात्रि (दुर्गा पूजन)
    « Reply #18 on: April 06, 2008, 11:42:47 PM »
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  • JAI MATA DI
    JAI MATA DI
    JAI MATA DI
    JAI MATA DI
    JAI MATA DI
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    JAI MATA DI

    नवरात्रि (दुर्गा पूजन)

    आइये सभी मिलजुल कर नवरात्रि को मनाते है ।  ये त्यौहार सोमवार 19 मार्च से शुरु हो रहा है ।  

    यह चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा से लेकर रामनवमी तक मनाया जाता है ।  इन दिनों भगवती दुर्गा पूजा तथा कन्या पूजन का विधान है ।

    प्रतिपदा के दिन घट-स्थापना एवं जौ बोने की क्रिया की जाती है ।  नौ दिन तक ब्राहमण द्घारा या स्वयं देवी भगवती दुर्गा का पाठ कराने का विधान है ।

    कथा ः प्राचीन समय में सुरथ नाम के राजा थे ।  राजा प्रजा की रक्षा में उदासीन रहने लगे थे ।  परिणामस्वुप पड़ोसी राजा ने उस पर चढ़ाई कर दी ।  सुरथ की सेना भी शत्रु से मिल गई थी ।  परिणामस्वरुप राजा सुरथ की हार हुई और वह जान बचाकर जंगल की तरफ भाग गया ।

    उसी वन में समाधि नामक एक वणिक अपनी स्त्री एवं संतान के दुर्व्यवहार के कारण निवास करता था ।  उसी वन में वणिक समाधि और राजा सुरथ की भेंट हुई ।  दोनों में परस्पर परिचय हुआ ।  वे दोनों घूमते हुए महर्ष मेघा के आश्रम में पहुँचे ।  महर्ष मेघा ने उन दोनों के आने का कारण जानना चाहा तो वे दोनों बोले कि हम अपने ही सगे-सम्बन्धियों द्घारा अपमानित एवं तिरस्कृत होने पर भी हमारे हृदय में उनका मोह बना हुआ है, इसका क्या कारण है ।

    महर्षि मेघा ने उन्हें समझाया कि मन शक्ति के आधीन होता है और आदि शक्ति के विघा और अविघा दो रुप है ।  विघा ज्ञान-स्वरुप है और अविघा अज्ञान स्वरुपा ।  जो व्यक्ति अविघा (अज्ञान) के आदिकरण रुप में उपासना करते है, उन्हें वे विघा स्वरुपा प्राप्त होकर मोक्ष प्रदान करती है ।

    इतना सुन राजा सुरथ ने प्रश्न किया – हे महर्षि ।  देवी कौन है ।  उनका जन्म कैसे हुआ ।  महर्ष बोले – आप जिस देवी के विषय में पूछ रहे है वह नित्य स्वरुपा और विश्व व्यापिनी है ।  उसके बारे में ध्यानपूर्वक सुनो ।  कल्पांत के समय विष्णु भगवान क्षीर सागर में अनन्त शैय्या पर शयन कर रहे थे, तब उनके दोनों कानों से मधु और कैटभ नामक दो दैत्य उत्पन्न हुए ।  वे दोनों विष्णु की नाभि कमल से उत्पन्न ब्रहमाजी को मारने दौड़े ।  ब्रहमाजी ने उन दोनों राक्षसों को देखकर विष्णुजी की शरण में जाने की सोची ।  परन्तु विष्णु भगवान उस समय सो रहे थे ।  तब उन्होंने विष्णु भगवान को जगाने हेतु उनके नयनों में निवास करने वाली योगनिद्रा की स्तुति की ।

    परिणामस्वरुप तमोगुण अधिष्ठात्री देवी विष्णु भगवान के नेत्र, नासिका, मुख तथा हृदय से निकलकर ब्रहमा के सामने उपस्थित हो गई ।  योगनिद्रा के निकलते ही विष्णु भगवान उठकर बैठ गये ।  भगवान विष्णु और उन राक्षसों में पाँच हजार वर्षों तक युद्घ चलता रहा ।  अन्त में मधु और कैटभ दोनों राक्षस मारे गये ।

    ऋषि बोले – अब ब्रहमाजी की स्तुति से उत्पन्न महामाया देवी की वीरता तथा प्रभाव का वर्णन करता हूँ, उसे ध्यानपूर्वक सुनो ।

    एक समय देवताओं के स्वामी इन्द्र और दैत्यों के स्वामी महिषासुर में सैंकड़ो वर्षो तक घनघोर संग्राम हुआ ।  इस युद्घ में देवराज इन्द्र की पराजय हुई और महिषासुर इन्द्रलोक का स्वामी बन बैठा ।

    अब देवतागण ब्रहमा के नेतृत्व में भगवान विष्णु और भगवान शंकर की शरण में गये ।

    देवताओं की बातें सुनकर भगवान विष्णु तथा भगवान शंकर क्रोधित हो गये ।  भगवान विष्णु के मुख तथा ब्रहमा, शिवजी तथा इन्द्र आदि के शरीर से एक तेज पुंज निकला जिससे समस्त दिशाएँ जलने लगी और अन्त में यही तेज पुंज एक देवी के रुप में परिवर्तित हो गया ।

    देवी ने सभी देवताओं से आयुद्घ एवं शक्ति प्राप्त करके उच्च स्वर में अट्टहास किया जिससे तीनों लोकों में हलचल मच गई ।

    महिषासुर अपनी सेना लेकर इस सिंहनाद की ओर दौड़ा ।  उसने देखा कि देवी के प्रभाव से तीनों लोक आलोकिक हो रहे है ।

    महिषासुर की देवी के सामने एक भी चाल सफल नहीं हुई और वह देवी के हाथों मारा गया ।  आगे चलकर यही देवी शुम्भ और निशुम्भ राक्षसों का वध करने के लिये गौरी देवी के रुप में अवतरित हुई ।

    इन उपरोक्त व्याख्यानों को सुनाकर मेघा ऋषि ने राजा सुरथ और वणिक से देवी स्तवन की विधिवत व्याख्या की ।

    राजा और वणिक नदी पर जाकर देवी की तपस्या करने लगे ।  तीन वर्ष घोर तपस्या करने के बाद देवी ने प्रकट होकर उन्हें आर्शीवाद दिया ।  इससे वणिक संसार के मोह से मुक्त होकर आत्मचिंतन में लग गया और राजा ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके आपना वैभव प्राप्त कर लिया ।

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    Offline caesertheking

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    जय जय श्री महालक्ष्मी
    करू मात तव ध्यान
    सिद्ध काज मम कीजिये
    निज शिशु सेवक जान
    नमो महालक्ष्मी जय माता
    तेरो नाम जगत विख्याता
    आदि शक्ति हो मात भवानी
    पूजत सब नर मुनि ज्ञानी
    जगत पालनी सब सुख करनी
    निज जन हित भद्रं भरनी
    श्वेत कमलतरपर तव दरआसन
    मत शुशोभित है पदमासन
    श्वेताम्बर और श्वेत भूषन
    श्वेत ही श्वेत सुसजित पुष्पन
    शीश छत्रअति रूप विशाला
    गल सोहे मुक्तन की माला
    सुंदर सोहे कुंजित केशा
    विमल नयन अरु अनुपमभेषा
    कमलनाल सम भुज तव चारी
    सुर नर मुनि जनहित सुखकारी
    अदभुतछठामात तव वाणी
    सकल विश्व की हो सुख खानी
    महालक्ष्मी धन्य हो माई
    पंचतत्वमें श्रृष्टि रचाई
    जीव चराचर तुम उपजाई
    पशु पक्षीनर नारी बनाई
    शीतित्तल अगणितवृक्ष जमाए
    अमी तरंग फल फूल सुहाए
    छवि विलोक सुर मुनिनरनारी
    करे सदा तव जय जय कारी
    सुरपति और नरपति सवध्यावे
    तेरे सन्मुख शीश नवावे
    चारु वेदनतव यश गाया
    महिमा अगम पार नहीं पाया
    जा पर करू मात तुम दया
    सोही जग में धन्य कहाया
    पल में राज जी रंक बनाओ
    रंक राव कर विलम न लाओ
    जिन घर करहु मात तुम व्यासा
    उनका यश हो विश्व प्रकाशा
    जो ध्यावे सो वहू सुख पावे
    विमुख रहे हो दुःख उढावे
    महालक्ष्मीजन सुख दाई
    ध्याओतुम को शीश नवाई
    निज जनजानीमोहिअपनाओ
    सुख सम्पति दे दुःख नसाओ
    ओम श्री श्री जय सुख की खानी
    रिद्धीसीधहीदियो मात जन जानी
    ओम ह्रींह्रींसब व्याधि हटाओ
     जन और विमल द्रिष्टिदर्शाओ
    ओम कलीम कलीम शत्रुं खेकीजिये
    जन हित मत अभय वर दीजिए
    ओम जय जय जयति जय जनन
    सकल काज भक्तन के सरणी
    ओम नमोनमोभवनिधि तारणी
    तारणी भावर से पार उतारनी
    सुनो मात यह विनय हमारी
    पूर्वो पाषाणकरो आवारी
    रीन दुखी जो तुमको ध्यावे
    सो प्राणी सुख सम्पति पावे
    रोग ग्रसितजो ध्यावे कोई
    ताकि निर्मल काय होए
    विष्णु प्रिय जय जय महारानी
    महिमा अमित न जाये वखानी
    पुत्रहीनजो ध्यान लगावे
    पाए सूत अति उल्सावे
    तरही तरही सरनागततेरी
    करहोमात अब नीक न देरी
    आवो मात विलम्ब न कीजिये
    ह्रदय निवासभक्तवर दीजिए
    जानुजाप तपका नहीं भेवा
    पार करो भव निज बिन खेवा
    बिन्वो बार बार कर जोरी
    पूरण आशा करहो अब मोरी
    जनि दास मम संकट टारो
    सकल व्याधि से मोहि उबारो
    जो तव सुरती रहे लव लायी
    सो जग पावे सुयश बड़ा ही
    छायोयश तेरो संसारा
    पावत सीश्श्म्भुनहीं पारा
    गोविन्द निष् दिन शरण तेहारी
    करहु पूरण अभिलाषा हमारी
    महालक्ष्मी की कथा पढ़े सुन्हे चित लाये
    ताहि पदार्थ मिले अब
    कहे वेद हस गाये

    Offline ShAivI

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Happy Navaratri to all
    « Reply #20 on: September 24, 2014, 10:26:39 AM »
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  • Happy Navaratri to All .....
    Jai Sai Maa Sai Baba.

    ॐ सर्व मंगल मांगल्ये। शिवे सर्वार्थ साधिके।।
    शरण्ये त्रियाम्बके गौरी। नारायणी नमोस्तुते।।

    जयंती मंगला काली, भद्र काली कृपालिनी।
    दुर्गा क्षमा शिव धात्री, नारायणी नमोस्तुते।


    JAI SAI RAM !!!

    Offline Aina

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    • Anant koti bhramand nayak rajdhiraj yogiraj parbhrma satguru shri sainath maharaj ki jai
    Re: नवरात्रि (दुर्गा पूजन)
    « Reply #21 on: September 24, 2014, 11:21:37 AM »
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  • jai sai ram
    jai mata di
    jai mata di
    jai mata di
    happy navratri to all
    :-) :-)

     


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